टेम्स नदी के तट पर बसे लंदन का सौंदर्य


यूरोप के कुछ देशो की यात्रा का अवसर पहले भी चुका है। इा वर्ष एक समारोह में ताशकंद जाना था लेकिन किसी विवाद के कारण मैंने और कुछ मित्रों ने उस कार्यक्रम को रद्द कर दिया। इसी बीच दिल्ली की जबरदस्त गर्मियों में ठंडे यूरोप की सैर का प्रस्ताव सामने आया तो इरादा बदल गया। ब्रिटेन और सैनेगन देशों का वीजा प्राप्त करना आसान नहीं है इसीलिए मेरे अग्रज सम हरिकिशन चावला व दो अन्य साथियों को निराशा हाथ लगी। 23 जून को जेट एयरवेज की उडान से लंदन रवाना होने से पूर्व दो सप्ताह के अपने दायित्वों को पूरा करने का दबाव था इसलिए विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का अवसर ही नहीं मिला। एयरपोर्ट पर थामस कुक के काउण्टर से एक्सचेंज प्राप्त किया लेकिन उनकी दर सर्वाधिक होने के कारण अधिक राशि देनी पड़ी। ठीक समय (दोपहर 1ः20) पर विमान ने उडान भरी और स्थानीय समय के अनुसार सायं 6ः30 बजे लंदन के हीथ्रों एयरपोर्ट पर उतरा। कड़ी जांच के कारण दो घंटे से भी अधिक समय तक लाइनों में लगने के बाद बाहर आए तो मूलतः महाराष्ट्र के थाणे निवासी मृदु भाषी एवं यात्रा व्यवस्थापक श्री मिलिन्द ने हमारा स्वागत किया। हमें ‘होलीडे इन’ में ठहराया गया। रात्रि विश्राम के बाद अगली सुबह लंदन के सबसे बड़े मंदिर स्वामी नारायण मंदिर से हमारा नगर भ्रमण आरंभ हुआ। विशाल मंदिर प्रांगण, सजा, संवरा, भारत से हजारों मील दूर भी पूर्णत गुजराती परिवेश भारत पुत्रों के पुरुषार्थ और समर्पण का एक और उदाहरण लगा। लंदन में पंजाबी तथा गुजराती लोगों की संख्या सर्वाधिक है। पंजाबी साउथ हाल में रहते हैं जहाँ गुरुद्वारा साहिब का स्वर्णजड़ित गुम्बद दूर से ही आकर्षित करता प्रतीत होता है। लंदन एक खूबसूरत शहर है। यहां के उद्यानों और बगीचों की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं तो सफाई की निर्दोष व्सवस्था भी प्रभावित करती है। पिछले ही दिनों हुए एक सर्वेक्षण में लंदन को दुनिया का सबसे प्रभावशाली शहर चुना गया, जबकि न्यूयॉर्क को दूसरा स्थान मिला। ‘द वेल्थ रिपोर्ट’ नाम के इस सर्वेक्षण में हांगकांग, पेरिस और सिंगापुर को क्रमशः तीसरा, चौथा और पांचवां स्थान मिला है। सर्वेक्षण में शीर्ष पांच शहरों के बाद जिन शहरों को स्थान मिला है उनमें मियामी, जिनेवा, शंघाई, बीजिंग और जर्मनी की राजधानी बर्लिन शामिल है। कुछ ही दिनो बाद यहाँ ओलम्पिक खेलो का आयोजन हो रहा है। दुनियाभर से आने वाले खेलप्रेमियों और पर्यटकों के लिए इसे विशेष रुप से सजाया, सवारा गया है। लंदन शहर के मुख्यतः तीन भाग हैं- पुराना शहर, जहां पुरानी इमारतें जैसे वेस्ट मिन्स्टर जहाँ शाही परिवार के भवन और सरकारी कार्यालय हैं और वेस्ट एंड जहाँ खरीदारी के मुख्य तीन स्थान बॉन्ड स्ट्रीट, रीजेंट स्ट्रीट और ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट हैं। लंदन के प्रमुख स्थलों में बकिंघम पैलेस, कॉमनवेल्थ इंस्टीटयूट, टावर ऑफ लंदन, ज्वेल हाउस, मदाम तुषाद संग्रहालय, लंदन संग्रहालय, विक्टोरिया संग्रहालय, लंदन ब्रिज और सेंट पाल गिरजाघर प्रमुख हैं। बंकिघम पैलेस महारानी का शाही निवास है। यहां मौसम ठीक रहने पर प्रतिदिन 11.30 बजे महारानी के अंगरक्षकों के दल का अदलाबदली समारोह देखने लायक होता है। संयोग से मौसम खुशनुमा था इसलिए हमे गणतंत्र दिवस के बाद राष्ट्रपति भवन प्रांगण में होने वाले बीटिंग रिट्रीट जैसा यह चेजिंग ऑफ गार्ड समारोह देखने का अवसर मिला। लंदन टेम्स के किनारे बसा है। इस नदी को लंदन की गंगा कहा जाता है। टेम्स नदी चौल्थनम में सेवेन स्प्रिंग्स से निकलती है और ऑक्सफार्ड, रैडिंग, मेडनहैड, विंड्सर, ईटन और लंदन जैसे शहरों से होती हुई 346 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर इंग्लिश चौनल में जाकर गिरती है। टेम्स कभी दुनिया का सबसे व्यस्त जलमार्ग हुआ करता था। लंदन की आबादी बढ़ने के साथ ही टेम्स नदी में भी प्रदूषण बढ़ता गया। टेम्स नदी की सफाई के लिए हालांकि समय समय पर लंदन में कई अभियान शुरू किए गए, लेकिन 2000 में शुरू हुई टेम्स रिवर क्लीन अप अभियान टेम्स के लिए वरदान साबित हुआ। इस अभियान के तहत साल में तय एक दिन चौल्थनम, ऑक्सफार्ड, रैडिंग, मेडनहैड, विंड्सर, ईटन और लंदन जहाँ-जहाँ से टेम्स गुजरती है, हर जगह लोग एकत्र होकर नदी की सफाई करते हैं। ये लोग सफाई का सारा सामान अपने साथ लेकर आते हैं। ये वहाँ के लोगों की मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति का परिणाम है कि बहुत कम समय में ही टेम्स अपने पुराने स्वरूप में आ गई। कहा तो यह भी जाता है कि टेम्स आज जितनी स्वच्छ है उतनी डेढ़ सौ साल पहले थी। इससे हटकर यदि हम भारत की नदियों को देखे तो निराशा होती है। दिल्ली में यमुना नदी गंदे नाले में बदल चुकी है। करोड़ों रुपये यमुना सफाई के नाम पर कहाँ जाते हैं, बताने वाला कोई नहीं है। गंगा जो हम भारतीयों के लिए सिर्फ नदी नहीं बल्कि आस्था का प्रतीक है जिसमें डुबकी लगाकर हर कोई स्वयं को पापों से मुक्त समझता है। गोमुख से गंगासागर तक पच्चीस सौ पच्चीस किलोमीटर की लंबी यात्रा में गंगा इसके किनारे बसने वाले करोड़ों लोगों को पावन करते हुए चलती है लेकिन कटू सत्य यह है कि गंगाजल अब गंदाजल हो गया है। टेम्स नदी के तट पर बनी किलेनुमा इमारत टावर ऑफ लंदन कहलाता है। यहां पर सेन्ट जॉन का गिरजाघर भी है। टावर के पास ही ज्वेल हाउस भी स्थित है। यह वास्तव में सोना, हीरा व जवाहरात का भंडार है। विख्यात भारतीय हीरा कोहिनूर भी यहीं पर है। फरवरी माह में ज्वेल हाउस बंद रहता है। लंदन ब्रिज से टेम्स नदी को निहारते हुए सोच रहा था कि जब लंदन के लोग 346 किलोमीटर लंबी टेम्स को साल में एक दिन साफ कर सकते हैं तो क्या हम यमुना,गंगा या अन्य नदियों के लिए क्या करते हैं? यदि साफ भी नहीं करते तो भी कम-से-कम गंदगी को इसमें जाने से तो रोक ही सकते हैं। लंदन का एक आकर्षण है मदाम तुषाद। 29 पॉण्ड की टिकट लेकर ही इसमें प्रवेश किया जा सकता है। यह संग्रहालय पूरे विश्व में अपनी तरह का एकमात्र संग्रहालय है। यहां विश्व के अनेक महान और विशिष्ट लोगों की मोम से बनाई मूर्तियां रखी गई हैं। ये मूर्तियों इतनी कुशलता से बनाया जाता है कि लगता है मानो ये मूर्तियां जीवांत हों और अभी बोल पड़ेगी। मैंने इन मूर्तियों को अपने कैमरे में कैद कर लिया। इस संग्रहालय में महात्मा गांधी, क्रिकेट स्टार सचिन तेदुलकर, इन्दिरा गांधी, अभिनेता अमिताभ बच्चन की मूर्तियों तो हैं ही विश्व की अनेक जानी मानी हस्तियों से साक्षात्कार भी होता है। इस बहुमंजिले संग्रहालय में अनेक खण्ड हैं। अंतिम खण्ड में भयानक मूर्तियों, वातावरण, ध्वनि, धुएं से भय और रोमांच को अनुभव किया जा सकता है। खून, फंासी, हत्या, सांप, शोर और उसके बाद केबल कार में बैठे ‘स्पिरिट ऑफ लंदन’ नामक प्रदर्शनी के माध्यम से इस विश्व नगरी के इतिहास को जीवान्त देखना सचमुच अनूठा अनुभव रहा। बेशक इस संग्रहालय का प्रवेश शुल्क भारतीय मुद्रा में हजारों रुपए में हैं लेकिन इसे देखे बिना लंदन से मिलन अधूरा रहता। लंदन में स्थित सेन्ट पॉल गिरजाघर 33 सालों में बनकर तैयार हुआ था। ईसाई समुदाय के लोग रोम के सेन्ट पीटर गिरजाघर के बाद इसे संसार का दूसरा महत्वपूर्ण गिरजाघर मानते हैं। यहां सोने की अनेक मूर्तियां हैं। दीवारों पर की गई चित्रकारी में भी सोने का प्रयोग किया गया है। पार्किंग की परेशानी होने के कारण वाहन रोकना असंभव था इसलिए हम अंदर नहीं जा सके और इसे बाहर से ही निहारते हुए आगे बढ़ गए। यहाँ नगर परिक्रमा के लिए विशेष प्रकार की बसें हैं जिनके छत्त पर भी बैठा जा सकता है। वैसे लंदन में घूमने के लिए सबसे अच्छा साधन है टयूब रेलवे। इसकी रेलगाड़ियां सुबह से देर रात तक थोड़े-थोड़े अंतराल पर उपलब्ध होती हैं। कॉमनवेल्थ इंस्टीटयूट में 40 देशों की संस्कृति, जीवन-शैली, संसाधनों आदि को प्रदर्शित करने वाली एक विस्तृत प्रदर्शनी है। यहाँ एक कला केंद्र भी है। इसमें संगीत, नृत्य और नाटक के मनभावन कार्यक्रम होते रहते हैं। इनके अतिरिक्त यहां बारबिकन आर्ट सेंटर, पार्लियामेंट लंदन, डायमंड सेंटर, प्लेनिटॅरियम, ब्रिटिश म्यूजियम, कैबिनेट वार रूम्स, जियॉलाजिकल म्यूजियम आदि दर्शनीय स्थल भी हैं। पूरे यूरोप में ब्रिटेन ही है जहाँ यातायात भारत की तरह सड़क के बायी ओर चलता है जबकि शेष देशों में सड़क के दायी ओर चलने का प्रचलन है। यातायात का अनुशासन देखते ही बनता था। भारत की तरह कहीं हड़बड़ाहट अथवा मनमानी नहीं। सड़के भी बहुत बढ़िया। कहीं कोई नाली खुली नहीं। सड़क के दोनो ओर रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियां। एक परिचित ने जब हमसे दिल्ली और लंदन के अंतर के बारे में पूछा तो मैंने मुस्कारते हुए कही, ‘सबसे बड़ा अंतर तो ईश्वर प्रदत्त जलवायु का है तो दूसरा आपकी अमीरी परंतु उसका कारण आपके द्वारा भारत से लूटा गया धन है। हमारा कोहिनूर इसका एक उदाहरण है।’ मेरा उत्तर सुनकर वे जोर से हंसे और बोले, ‘तुम्हारी आधी बात ठीक है। हमें ईश्वर ने जलवायु जरूर बेहतर दी है लेकिन अमीर हम नहीं तुम हो। देखो, लंदन में रहते बरसों बीत गये लेकिन मैंने आज तक अपने घर के सामने की सड़क बनते नहीं देखा। एक बार बन गई, आज भी वहीं है और बढ़िया है। मैं अनेक बार दिल्ली गया हूँ। जब , जहाँ देखो, सड़क, नालियाँ बनती दिखाई देती है। बताओ हमारे पास धन ज्यादा है या तुम्हारे पास? रही बात भारत से लूट कर लाने की तो वह हमारी योग्यता थी। आज तुम्हारे नौजवान भी तो सारी दुनिया को लूट रहे हैं।’ मैं निरुत्तर था। कैसे कहता कि हमारी सड़के इसलिए बार-बार बनती और टूटती हैं क्योंकि हमारे नेताओं-अफसरों की रोजी -रोटी उसी से चलती है। हमारे नेताओं के शब्दकोश में विकास का अर्थ जनता का विकास नहीं, सर्वप्रथम अपना विकास है! लंदन में अनेक भारतीय रेस्टोरेंट हैं। हमने पश्चिमी लंदन में आक्सफोर्ड स्ट्रीट के पास डेन्मन स्ट्रीट में चौकी रेस्टोरेंट पर दोपहर का भोजन ग्रहण किया। लजीज दाल मखनी और गर्मागर्म नान पाकर मन प्रसन्न हो गया क्योंकि सुबह कांटीनेंटल नाश्ते ने मजा खराब कर दिया था। नाश्ते में बहुत कुछ था लेकिन भारतीय व्यंजन एक भी नहीं। अधिकांश के संदेहास्पद होने के कारण हमने उस ओर देखना भी उचित नहीं समझा था। हाँ, एक दिन उपमा एवं छोटे-छोटे समोसे अवश्य थे। आलू के पिचके हुए त्रिभुजाकार नर्म गर्म समोसे भी फीके ही थे। ब्रिटेन से हमें फ्रांस की राजधानी पेरिस जाना था। दोनो देशों के बीच इंगलिश चैनल है। इस समुन्द्र को पार करने के लिए क्रूज उपलब्ध हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि समुन्द्र के नीचे चलने वाली तीव्रगामी रेल सेवा भी उपलब्ध है। पहले से निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हमारे वाहन ने छोटे समुद्री जहाज (क्रूज) पर सवार होकर इसे पार किया ।
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