वर्तमान संदर्भ में श्रीकृष्ण


कृष्ण जन्माष्टमी केवल बधाईयों के आदान- प्रदान और उनकी रासलीला देखने का अवसर नहीं है। हमें वर्तमान संदर्भ में श्रीकृष्ण समझना चाहिए।
1- कृष्ण नारी सम्मान के पक्षधर- द्रोदी का चीर बढ़ाना, शिाुपाल को रूकमणि को वागदत्ता पत्नी बताने पर उसका शीश छेदन, सोलह हजार नारियों को आजाद कराना।
2- कृष्ण प्रथम समाजवादी- जो मेहनत करेगा वहीं माखन खाएगा। उन्होंने माखन बाहर जाने से रोकने का हर संभव प्रयास किया। मटकियां तक फोड़ी।
3- कृष्ण पर्यावरण संरक्षण- यमुना से कालिया को मुक्त कराना। गोवर्धन पर्वत प्रसंग, गौ-संरक्षण।
4- सत्ता का लालच नहीं- आततायी कंस को परास्त कर खुद या अपने पिता, भाई को नहीं बल्कि राजपाट उसी के परिजनों को सौंपा।
5- श्रेय अपने साथियों से बांटा- गोवर्धन पर्वत प्रसंग।
6- जिम्मेवारी से भागने के विरोधी- अर्जुन को गीता उपदेश, फल की चिंता किये बिना कर्म की प्रधानता पर बल।
7- प्रबंधन में महारथ है।
8- तर्कशील।
9- शांति के समर्थक- मात्र 5 गांव का प्रस्ताव।
10- जनहित और परिस्थितियों  की मांग के अनुरूप स्वयं को बदलना- ब्रज छोड़ द्वारका जाना, शस्त्र न उठाने की प्रतीज्ञा।
11- परिस्थितियों  द्वारा सौंपे कर्तव्य का शुद्ध अंतकरण से पालन ही धर्म है।
12- समानता के पक्षधर- 
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि। शुनि चौव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ।18-5।
जिनका मन सम भाव में स्थित है जो ब्राह्मण कुत्ते व चाण्डाल में एक भाव अथवा ब्रह्म भाव रखता है; ऐसे पुरुष द्वारा वास्तव में संसार जीत लिया गया है अर्थात वह संसार बन्धन से ऊपर हो जाते हैं। ब्रह्म, दोष रहित और सम है और वह भी समभाव के कारण दोष रहित हो ब्रह्म स्वरूप हो जाते हैं। यही ब्राह्म स्थिति है।
13- ‘भागो मत- मुकाबला करो और स्वयं के भाग्य विधाता बनो’ का संदेश दिया
ऐसे असंख्य उदाहरण और भी। श्रीकृष्ण जहाँ अत्यन्त सरल हैं, सत्याग्रही हैं वही दुष्टों के प्रति अत्यन्त कठोर भी हैं। वे जानते हैं कि आततायी शक्तियों के असीमित बल को तोड़ने के लिए ‘नरों वा कुंजरो वा’ भी आवश्यक है। आलोचक इसे सच-झूठ के द्वंद्व में उलझाते रहें लेकिन श्रीकृष्ण तिनके को चीरकर दुर्याेधन पर प्रहार का उपाय बताने से भी पीछे नहीं हटते क्योंकि सभी के लिए सुख और शांति उनका ध्येय है। 
श्रीकृष्ण जहाँ अत्यन्त सरल हैं, सत्याग्रही हैं वही दुष्टों के प्रति अत्यन्त कठोर भी हैं। वे जानते हैं कि आततायी शक्तियों के असीमित बल को तोड़ने के लिए ‘नरों वा कुंजरो वा’ भी आवश्यक है। आलोचक इसे सच-झूठ के द्वंद्व में उलझाते रहें लेकिन श्रीकृष्ण तिनके को चीरकर दुर्याेधन पर प्रहार का उपाय बताने से भी पीछे नहीं हटते क्योंकि सभी के लिए सुख और शांति उनका ध्येय है।  कृष्ण वन्दे जगद्गुरु!              - विनोद बब्बर 9868211911 


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