गुरुद्वारा श्री कलगीधर बागोर साहिब Gurudwara Kalgidhar Bagor Sahib, Bhilwada in rajsthan




गुरुद्वारा श्री कलगीधर बागोर साहिब 
पिछले दिनों भीलवाड़ा (राजस्थान) प्रवास के दौरान बागोर साहिब की चर्चा हुई तो मैंने विनायक विद्यापीठ के अधिष्ठाता डा. देवेन्द्र जी कुमावत से उस स्थान के दर्शन कराने का आग्रह किया। बागोर जाने के लिए अनेक ग्रामीण रास्तों से गुजरना पड़ता है। टेढ़े मेढ़े घुमावदार रास्तों से होते हुए आखिर हम (मेरे साथ दिल्ली से माणिक और मुरलीदास भी गये थे) बागोर पहुंचे तो दूर से ही गुरुद्वारे का निशान साहिब दिखाई दिया लेकिन  वहां तक पहुंचने के लिए गांव के घुमावदार रास्तो ने हमारी मदद की।


प्रथम तल की ऊंचाई पर बना इस गुरुद्वारे में संत निवास, लंगर भवन सहित पर्याप्त स्थान है। वहां उपस्थित सेवादार सरदार सुवेग सिंह के अनुसार यहाँ हर सुबह 4 से 6 बजे तक और शाम में 6ः30 से 7ः45 बजे तक गुरुवाणी का सबद कीर्तन किया जाता है। बेशक स्थानीय लोग बहुत सहयोगी हैं लेकिन वहां नित्य-प्रति संगतो का आना जाना बहुत कम है। हर माह के अंतिम रविवार को यहां विशेष आयोजन होता है तब भीलवाड़ा, उदयपुर, चित्तौड़गढ़ सहित अनेक अन्य जिलो एवं देश के विभिन्न प्रान्तों की संगते यहां मत्था टेकने आती है। 5 जनवरी को गुरुजी के प्रकाश पर्व के दिन बागोर में उत्सव सा माहौल रहता है जब देश- विदेश से बड़ी संख्याँ में श्रद्धालु भी यहाँ पहुँचते है। इस दौरान विशेष दीवान सजाये जाते हैं। शबद कीर्तन और गुरु का अटूट लंगर बरताया जाता है। इस दिन गुरुद्वारा समिति द्वारा रक्तदान शिविर का आयोजन भी रखा जाता है। सोनी जी इस गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान हैं। बोर्ड पर दिये गये सम्पर्क नम्बर हैं- 9414190215, 9829046654, 9829749875। इस स्थान की कार सेवा संत बाबा बलविन्दर सिंह जी (अगमगढ़ कोटा वाले) द्वारा की गईं।
गुरुद्वारा साहिब के परिसर में लगे बोर्ड के अनुूसार- ‘सिक्ख पंथ के महान विभूतियों में से भाई दया सिंह जी, भाई धरम सिंह जी (पंज प्यारो में से) एवं माई भागों जी और बहुत सारे शूरवीर सिक्ख भी गुरु जी के साथ थे। इस ऐतिहासिक स्थान का जिक्र  सिक्ख जगत के प्रसिद्ध लेखक भाई काहन सिंह जी नाभा, डा. भाई वीर सिंह जी सोढ़ी, तेज सिंह और चूड़ामणि कवि भाई संतोख सिंह जी की ऐतिहासिक पुस्तकों में बखूबी मिलता है।’
सेवा व सिमरन की इस पावन स्थली पर 1707 ईस्वी में अपनी दक्षिण यात्रा के समय सिखों के दसवंे गुरु श्री गोविन्द सिंह जी महाराज ने 17 दिन प्रवास किया था। गुरुजी  के प्रवास की जानकारी जब बागोर के तत्कालीन शासक  शिव प्रताप सिंह जी को मिली वे उन्हें ससम्मान अपने राजमहल (जिसे स्थानीय लोग गढ़ कहते हैं) में लाए थे। यही वह स्थान है जहां गुरुजी को अपने मार्च 1707 में अपने प्रवास के दौरान औरंगजेब की मृत्यु का समाचार मिला था। तब  मुअज्जम (बहादुरशाह प्रथम) ने गुरुजी से उत्तराधिकार युद्ध में मदद मांगी थी। कालान्तर में गुरुजी के यहां प्रवास के ठोस प्रमाण मिलने पर प्राचीन गढ़ के स्थान पर धवल रंग का तीन मंजिला गुरुद्वारा श्री कलगीघर बागोर साहिब का निर्माण किया गया।
जहां तक बागोर के इतिहास भूगोल का प्रश्न है। यह मोहनजोदड़ो सिंधुघाटी सभ्यता से जुड़ा भीलवाड़ा जिले का एक प्रसिद्ध व ऐतिहासिक क़स्बा है जो जिला मुख्यालय  भीलवाड़ा से 30 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम दिशा में कोठारी नदी के किनारे बसा हुआ है। कहने को कोठारी नदी हैं लेकिन यह एक बरसाती नदी है। वर्ष के शेष दिनों में जल के स्थान पर रेतीले टीले ही नजर आते है।
बताया गया कि 1968 से 1970 के दौरान यहाँ दक्कन कॉलेज पूना विश्वविद्यालय के प्रो. विध्न मिश्र एवम् हाईडेलबर्ग विश्वविद्यालय के प्रो. एल एस लेसनिक के नेतृत्व में हुई खुदाई के दौरान इन्ही टीलो में से एक महासतियाँ टीले से प्रागैतिहासिक काल के मानव कंकाल और अवशेष प्राप्त हुए। इस उत्खनन से मध्य पाषाणकालीन सभ्यता के तीन स्तरों के प्रमाण मिले। बागोर में लघु पाषाण कालीन के उपकरण बड़ी मात्रा में प्राप्त हुए। लगभग प्रत्येक घर में मिले पाषाण उपकरणों और बाणों का प्राप्त होना इस क्षेत्र के लोगों के आखेट जीवन की ओर संकेत करता है। प्रथम स्तर मानव की आखेट जीवन के अतिरिक्त बागोर सभ्यता में द्वितीय स्तर पशुपालन और तृतीय स्तर कृषि अवस्था के पया्रप्त प्रमाण प्राप्त हुए है।
जहां तक बागोर के मध्यकालीन इतिहास का प्रश्न है, यह मेवाड़ रियासत के अन्तर्गत प्रथम श्रेणी का ठिकाना माना जाता था। मेवाड़ की राजनीति में बागोर की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। बाहरी आक्रमणों के दौरान बागोर में रक्षा चौकी कायम की जाती थी। अठारवीं शताब्दी के प्रारम्भ में राणा संग्रामसिंह द्वितीय के पुत्र नाथसिंह को बागोर जागीर के रूप में प्राप्त हुआ। राणा नाथसिंह द्वारा मेवाड़ के सिंहासन की दावेदारी पेश करने पर 1751 में महाराणा प्रतापसिंह द्वितीय द्वारा इसकी ह्त्या करवा दी गई। लेकिन कालान्तर में बागोर की गोद से गए चार शासको महाराणा सरदारसिंह (1838-42), महाराणा स्वरूपसिंह (1842- 61), महाराणा शम्भूसिंह (1861- 74) और महाराणा सज्जनसिंह (1874-84) ने मेवाड़ के राजसिंहासन को सुशोभित किया। बागोर के अंतिम शासक महाराजा सोहनसिंह ने 1875 में मेवाड़ महाराणा के विरूद्ध विद्रोह किया तो मेवाड़ की सेना ने बागोर पर आक्रमण कर यहाँ के गढ़(किला) को नष्ट कर दिया और बागोर मेवाड़ में शामिल कर लिया।
इस वर्ष गुरु गोविन्द ंिसंह जी की 350वीं जयन्ती मनाई जा रही है अतः गुरुजी की स्मृति से जुड़े इस पावन स्थल के दर्शन करना हमारे लिए किसी सौभाग्य से बढ़कर है। कडाह प्रसाद के बाद गुरुद्वारे के ग्रन्थी  स. सुवेग सिंह ने आग्रह पूर्वक हमें चाय का लंगर भी छकाया। विनायक विद्यापीठ के कुमार अरविन्द ने इस दर्शन को विशेष बनाया
डा. विनोद बब्बर  संपर्क-   09868211911, 7892170421 Email--rashtrakinkar@gmail.com
ज्ञातव्य हो विनायक विद्यापीठ, राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के विश्व प्रसिद्ध ज्येतिष नगरी कारोई के निकट भूणास में स्टेट हाईवे पर स्थित है। अपनी तरह के इस अनूठे विद्यालय में जहां कम्प्यूटर शिक्षा है, अंग्रेजी है वहीं भारतीय संस्कृति के तत्व भी विद्यमान है। प्रवेश करते ही विनायक जी का छोटा सा मंदिर है तो प्रांगण में स्वामी विवेकानंद, गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर, महावीर स्वामी, बुद्ध सहित अनेको मूर्तियां और हरे भरे विशाल वृक्ष हैं। इस विद्यापीठ के निदेशक डा. देवेन्द्र जी कुमावत संत-शिक्षक है जो अपने कर्तव्य को जनून की तरह पूरा करते हैं।

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