मूछ का सवाल है जी


मूछ का सवाल है जी
पिछले दिनोे एक मंत्री के पूंछ और मूछ वाले वक्तव्य पर विवाद हुआ। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि ‘आप’ या ‘वे’ मूछ को महत्वहीन समझे। वास्तव में ‘मूछ’ सम्मान दिलाती है तो ‘पूंछ’ भी बढ़ाती है। अगर मूंछ संग दाढ़ी भी हो तो सोने पर सुहागा। हुआ यूं कि एक कार्यक्रम से लौट रहा था कि एक मूछ वाले ने इस दाढ़ी सहित मूछ वाले को रोककर सेल्फी लेनी चाही तो हमने भी अपनी साथी को उस स्मृति को सुरक्षित करने का अनुरोध किया।
 मूछ नहीं तो कुछ नहीं, मूछ की पूछ बाक़ी सब छूछ,  मूछों पर ताव देना, मूछों की लड़ाई आदि आदि इतने मुहावरे रहे हैं कि जितने युवा मूछ के बाल। कोई ‘मूछ का बाल’ होकर खुश है तो कोई ‘मूछ मुंडवाने’ को तैयार है। परंतु ‘मूछ नीची’ करने को कोई तैयार नहीं है।
हैरान हूं कि मूछ न आये तो लोग परेशान हो उठते हैं। नीम हकीमो से डाक्टरो तक के चक्कर लगाते हैं। और जब मूछ आ जाये तो स्वयं ही अपनी मूंछों को छिपाने लगते हैं। कभी गांव में हुक्का गुडगुडाते बूढ़े से जवान तक सभी मूंछ रखते थे। कारण? कारण जानना चाहते तो सुनो उस मूंछो वाले बूढे की- 
‘मूछ बाला मर्द शोभे, नयन वाली गोरियां। 
सिंग वाला बैल सोहे, दुम वाली घोड़ियाँ।
 मगर आज गांव से शहर तक नयन मटकाती गोरियां है, सींग वाले बैल भी है और दुमदार घोड़ियां भी पर मूंछ गायब है। कारण? ओह आपको हर परिवर्तन का कारण चाहिए। अरे भाई, आज का युग सुविधा का युग है। उम्र से पहले सफेद हो गये बालों के चलते भरी जवानी में स्वयं को कोई भी बूढ़ा कहलाता चाहता है इसलिए हर सुबह आंख बंद करके रेजर घुमाकर मूछ पांेछ दो यानी चिकना चुपड़ा चेहरा पाओं। ऐसे में ‘मूछ’ के बजाय ‘पूंछ’ को अधिक महत्वपूर्ण माने जाने का प्रचलन बढ़ना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। 
अगर आप भी मूंछों को बेकार मान रहे हो तो कान खोलकर सुन लो, केवल भारत की बात नहीं अमेरिका में भी मूंछ वाले क्लीन शेव वालों से ज्यादा कमाते है। आखिर मूंछ रखना कोई खालाजी का घर नहीं है। यह एक साधाना है जिसपर खर्च भी आता है इसलिए भारत में पुलिस और सुरक्षा बल अपने मुछंदर कर्मियों को मूंछ की रक्षा और रख रखाव के लिए भत्ता देते है। आने वाली 26 जनवरी को राजपथ पर जब गणतंत्र दिवस परेड़ देखते हुए शानदार मूछो वालो सुरक्षा बलो की टुकड़ी को देखकर आपको अपने नामूछे होने का दर्द सता सकता है। इसलिए सावधान रहे।
बढ़ती बेरोजगारी के युग में मूछ रोजगार की गारंटी है। मूछ वाला आसानी से नौकरी पा जाता है। इसलिए किसी भी अच्छे शोरूम अथवा पंचसितारा होटल के बाहर मुच्छल गार्ड दिखाई देता है। कुछ लोग तो केवल मूछों के कारण विश्व रिकार्डधारी हो गये। 
मूछो के भी कई आकार प्रकार होते हैं।राजसी मूंछ,  कटी मूछ, तनी मूंछ, फनी मूंछ, झुकी मूंछ, फुकी मूंछ, तितली मूंछ, पतली मूंछ जैसी अनेको वैरायिटी हैं। लेकिन साहब न जाने आज के नौजवानो कह पसंद को क्या हुआ। एक बार ट्रैन में सफर कर रहे एक युवक को एक सज्जन बहुत गौर से देख रहे थे।। युवक से रहा न गया तो उसने पूछ ही लिया, ‘क्या बात है साहब, आप बहुत देर से मेरे चेहरे की ओर बहुत गौर से देख रहे हो।’
उस व्यक्ति ने जवाब दिया, ‘आप बुरा न माने तो बताना चाहता हूं कि आपका चेहरा मेरी पत्नी से बहुत मिलता है। बस मूछो का अंतर है।’
युवक बोला, ‘मूछो का अंतर? मगर मेरे तो मूछ है ही नहीं?’
जवाब मिला, ‘मगर मेरी पत्नी के तो है।’
स्लो, बर्कशायर की  हरमन कौर
यह केवल चुटकुला नहीं है, अनेक देवियों के भी दाढ़ी मूछ हो सकती है। विश्वास न हो तो स्लो, बर्कशायर की 25 वर्षीय हरमन कौर, से मिलिये जो बेर्डड डेम के नाम से खासी लोकप्रिय है। प्रथम दाढ़ी मूछ वाली सेलिब्रिटी डिज़ाइनर के रूप में उन्होंनेे इतिहास बनाया है। 
मूछ मूछ में आप अंतर तलाशते रहो लेकिन मूछ का असली स्वभाव 3 बजकर 40 मिनट है लेकिन लोग उस हमेशा एक बजकर पचास मिनट ही रखना चाहते हैं। आप 1ः50 और 3ः40 का गणित समझना चाहते हो तो सबसे पहले इतना समझो कि 1ः50 में ताव है तो 3ः40 ढलाव है। अगर अब भी समझ में न आया हो तो घड़ी में पहले 1ः50 तो फिर 3ः40 कर देख लो। सब समझ में आ जायेगा। खैर आप कितना भी मरोड़ दो एक मोड़ ऐसा आता है कि जब 3ः40 की भी केवल पतली लकीर ही बचती है।
अगर खुद पर विश्वास न हो तो अमेरिका के उस अध्ययन पर विश्वास करो जिसके अनुसार मूछ वाली की उपस्थिति सुरक्षा का अहसास देती है। मुझे नहीं मालूम कि मूछ का अक्ल से क्या संबंध है मगर,एक बार एक हरियाणवी महिला साईकिल से टकरा गई। इससे पहले कि साइकिल सवार क्षमा याचना करता। महिला बोली, ‘तेरी ओड़ बडी बडी मूछा हो रही है तन्ने शर्म नहीं आन्दी। मेरे साइकल मार दी।’ छोरा भी किसी हरियाणवी मां का बेटा था, बोला, ‘ताई मूछा में के ब्रेक लाग री सै।’
मुझे नहीं मालूम कि कवि रूपचंद्र ‘मयंक’ जी मूछ रखते हैं या नहीं, लेकिन उनकी मूछ भक्ति को प्रणाम करने का मन है क्योंकि वे मूंछो के विषय में लिखते हैं-
आभूषण हैं बदन का, रक्खो मूछ सँवार,
बिना मूछ के मर्द का, जीवन है बेकार।
जीवन है बेकार, शिखण्डी जैसा लगता,
मूछदार राणा प्रताप, ही अच्छा दिखता।
कह ‘मंयक’ मूछों वाले, ही थे खरदूषण,
सत्य वचन है मूछ, मर्द का है आभूषण।।
मूछ एयर फिल्टर है। प्रदूषण के दौर में हवा को छानकर आगे सरकाती है। बीमारियों से बचाती है। पर फिर भी मूछ आसानी से सबकी समझ में नहीं आती। यूं तो समझ में और भी बहुत सी बाते नहीं आती। इसलिए जरा आसान तरीके से समझाने की कोशिश करता हूं। अरे भाई जब तुम पढ़ते थे याद है तब हर महत्वपूर्ण शब्द को ‘अंडरलाइन’ करते थे या नहीं? नाक का मतलब समझते हो या नहीं?सत्तर सालो में उन्होंने तो नाक का महत्व नहीं समझा। तुम समझते हो तो उसे ‘अंडरलाइन’ करोगे या नहीं? 
मूछो की इतनी महिमा सुनकर मेरी तरह आपके मन में भी यह सवाल जरूर हिलोरे ले रहा होगा कि ब्लैड और रैजर लगातार महंगे हो रहे हैं पर मूछे घिसती जा रही है। दाढ़ी वाले बढ़ रहे हैं पर मूछे घिसती जा रही है। सिर के इतने बाल हर बार काले हो सकते हैं तो मूछ के चार बाल केवल सफेदी के चक्कर में शहीद नहीं होने चाहिए। इस सफाचट युग का आखिर कोई तो मजबूत कारण जरूर होगा। कारण खोजने पर कोई रोक नहीं, कोई ब्रेक नहीं है। लगे रहो पर  बाल साहित्यकार मित्र प्रभुदयाल श्रीवास्तव की भी सुन लो-
बाल बाल कुल बाल बचे दस,
सिर पर मेरे दादा के। 
पग चिह्नों पर रोज चले हैं,
दादाजी पर दादा के।
परदादा के बाल बीस थे,
दादा उससे दस आगे। 
हुई होड़ परदादा से तो,
दस बाकी रख सब त्यागे। 
परदादा की मूंछ लाल थी,
दादा ने पीली कर ली। 
परदादा की घनी घनी थी,
दादा ने पतली धर ली।
इसी होड़ में दादाजी तो,
आगे थे परदादा के। 
पर रिश्ते में पूज्य पिताजी,
पर दादाजी दादा के।
मूछ बाल की बात सनातन
सदियों से होती आई। 
न ही बाल मिटे हैं अब तक,
न ही मूछ मिटा पाई।

 विनोद बब्बर संपर्क-   7982170421, 9868211911 Email---1vinodbabbar@gmail.com


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