मानवता के प्रति अपराध है खाद्य पदार्थों में मिलावट -- डा. विनोद बब्बर

किसी भी सभ्य समाज के लिए खाद्य़ पदार्थों में मिलावट बेहद शर्म की बात होती है लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि हमारे देश में तुच्छ लाभ के लिए मिलावट का धंधा न केवल जारी है बल्कि नित नए तरीकों का इजाद कर लाखों लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ होता है। ऐसा तब है जब देश में सैंकड़ों कानून है, अफसरों की लम्बी-चौड़ी फौज है। धनु पशुओं के अमानवीय कृत्य का मजबूती से जारी रहना सिद्ध करता है कि इस काले ध्ंाधें की कमाई का एक बड़ा हिस्सा ‘सफेदपोश’ लोगों की जेबों तक पहुंचता रहा है। अन्यथा मिलावट रूपी ‘लोकव्यवहार’ एक क्षण भी नहीं टिक सकता। ऐसे में देश की सबसे बड़ी अदालत द्वारा मिलावटी दूध के बढ़ते प्रचलन पर कड़ा नोटिस लेते हुए सरकार से संसद के आगामी सत्र में ही खाद्य संरक्षा एवं मानक कानून में संशोधन कर उसे सख्त बनाने को कहना निश्चित रूप से राहतकारी कदम है।
सभी जानते हैं कि कुछ वर्ष पूर्व तक नगरों में गर्मी के दिनों में खोए पनीर की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया जाता था। इस बात से शायद ही किसी की असहमति हो कि पिछले कुछ दशकों में दूध देने वाले पशुओं की संख्या में भारी गिरावट आई है लेकिन दूध की उपलब्धता बढ़ी है। अनेक ब्रांडों के पैक्ड दूध, हर गली के नुक्कड़ पर डेयरी उस पर भी  सर्दी-गर्मी सारे साल खोये पनीर की उपलब्धता अनेक प्रश्न उत्पन्न करती है। आज खोए की मिठाईयों का प्रचलन ही है जबकि पहले अनेक प्रकार की मिठाईयां होती थी। बेशक विज्ञान ने कितनी भी उन्नति कर ली हो लेकिन अब तक ऐसे किसी दुधारू पशु की खोज नहीं हुई है जो त्यौहारों के सीजन में सामान्य से कई गुना अधिक दूध देता हो। स्पष्ट है कि दाल में बहुत कुछ काला है। त्यौहारों के दौरान नकली खोए पकड़े जाने के समाचार मिलावट की पुष्टि करते है। दूध समाज के हर वर्ग की आवश्यकता है। दूध को हम चाय, कॉफी व पेय के रूप मेें प्रयोग करते हैं किन्तु मिलावटखोर कृत्रिम दूध बनाकर हमेें विभिन्न बीमारियों के घेरे मेें ला देती हैं। यूरिया, डिटरजेंट, शैम्पू, चीनी व सोडियम वाई कार्बाेनेट के प्रयोग से तैयार  दूध जहरीला है तो डेयरी मालिकों द्वारा पशुओं को प्रतिबंधित ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन लगाकर दूध की आखिरी बूंद भी निचोड़ लेना चाहते है। ऐसा दूध अनेक प्रकार के गंभीर रोेगों का कारण बनता है।
दूध के बाद अब लोकी आदि दैनिक उपयोग की सब्जियों में खतरनाक ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन लगाकर उसका आकार बढ़ाने के समाचार भी डराने लगे है। कुछ वर्ष पूर्व देश की राजधानी दिल्ली में मिलावटीसरसों के तेल से फैली महामारी के बाद खाद्य पदार्थों में किसी भी प्रकार की मिलावट रोकने के लिए नियम तो जरूर बनाये गए लेकिन इनका पालन कितना हो रहा है, यह जानने की फुर्सत हमारे शासकों को नहीं है। वरना  तेल, दूध, चीनी और अनाज जैसी रोजमर्रा की वस्तुएं सरेआम बेची जा रही हैं। सब्जियों पर हरा रंग लगाकर लोगों को बेफकूफ बनाने का प्रयास धडल्ले से किया जाता है।
आज दालें, अनाज, दूध, घी से लेकर सब्जी और फल तक कोई भी चीज मिलावट से अछूती नहीं है। ये मिलावट इतनी चतुराई से की जाती है कि मूल खाद्य पदार्थ तथा मिलावट वाले खाद्य पदार्थ में भेद करना काफी मुश्किल हो जाता है। यहां तक कि देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर बोतल बंद पानी भी नकली और मिलावटी बिक रहे है। कई ऐसे खाद्य सामग्री है जिसे बनाते समय कपडा धोने वाले सोडे का प्रयोग किया जाता है जोकि पाचन तंत्र और रक्तचाप के लिए नुकसानप्रद है। इसी प्रकार फलों को जल्दी पकाने के लिए पेस्टी साइड्स का इस्तेमाल ,सब्जियों को जल्दी उगाने और बढाने के लिए रसायनों का प्रयोग हमारी आंखों के सामने जारी है। प्रयोग हो चुकी चाय को सुखाकर उसमें कृत्रिम रंग, रसायन आदि तो घी में वनस्पति घी अथवा चर्बी मिलाने जैसे अपराध के प्रति समाज में जागरूकता की आवश्यकता है तो प्रशासन के स्तर पर सजगता की आपेक्षित है। 
हमारे देश में खाद्यान्नों एवं सब्जियों के उत्पादन और भंडारण में तरह-तरह के रसायनों और कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग के चलते भी बाजार में मिलावटी खाद्य पदार्थों की भरमार है। इसके अलावा, बहुत से लोग ज्यादा धन कमाने के चक्कर में मिलावट के धंधे को अंजाम दे रहे हैं। एक तो अज्ञानता और दूसरे लालच के कारण देश में मिलावट का कारोबार बढ़ रहा है। देशभर में साधारण से हाई फाई दुकान तक बिकने वाले  चाऊमिन, पिज्जा, गोल गप्पे आदि को आकर्षक और स्वादिष्ट बनाने के लिए अनेक प्रकार के रसायनों मिलाये जाते है। सड़कों के किनारे खुलेआम बिकने वाले पिसे हुए मसालों में अनेक प्रकार के रसायन मिलाए जाने की जानकारी सबको है। एक भुगतभोगी के अनुसार- बार-बार संबंधित विभागों को शिकायत किए जाने के बावजूद कोई कार्यवाही न होना सिद्ध करता है कि अपराधी कोई एक नहीं, पूरी व्यवस्था है। एक बानगी देखे- गत वर्ष 123 खाद्य प्रयोगशालाओं ने खाद्य पदार्थों के 29,328 नमूने लिए।   5,180 नमूने मिलावटी पाए गए थे। दोषियों में से अधिकांश कानून के चंगुल से बच निकले।
खेत से लेकर प्लेट तक सुरक्षित और पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा ‘भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण’ नामक निकाय का सन् 2008 में गठन किया था।  ताकि खाद्य सुरक्षा के नियमन और इसका गठन ‘खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006’ के तहत किया गया है। इस प्राधिकरण का मुख्य कार्य भोजन के उत्पादन, प्रसंस्करण, वितरण, बिक्री तथा भोजन के आयात एवं निर्यात सम्बंधित प्रयोजन के लिए विज्ञान आधारित मानको को तय करना है। इस संबंध में बहुस्तरीय नियंत्रण और बहुविभिागीय कार्यों को एक निकाय के अंतर्गत लाने का कार्य जरूर हुआ लेकिन इस इस प्राधिकरण के पास आज भी आधारभूत ढांचे की कमी होने के कारण सकारात्मक परिणाम प्राप्त नहीं हो रहे है। इसके अतिरिक्त यह भी भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि ‘खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006’ के वजूद में आने के पश्चात देश में विद्यमान मिलावटखोरों और दूषित वातावरण में भोजन का कारोबार करने वालों की अवैध गतिविधियां बंद होनी चाहिए थी क्योंकि इस कानून में दूषित एवं मिलावटी भोजन के उत्पादकों, वितरकों, विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं के लिए सख्त सजा (कम से कम 10 लाख रुपए का जुर्माना और 6 महीने से उम्रकैद तक) का प्रावधान किया गया है। मुकद्दमों का शीघ्र निपटान करने के लिए विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों को यह काम सौंपा जाना है लेकिन आज भी जिस तरह से मिलावट जारी है उससे सिद्ध है कि वास्तव में ऐसा नहीं हो पा रहा है। जीवन रक्षक दवाओं तक में मिलावट के समाचार भी है। जरूरत है ऐसे अपराधियों को सरेआम फांसी दी जाए। लगातार निगरानी का सिलसिला जारी रहै। जिस क्षेत्र में मिलावट का धंधा जारी रहे उस क्षेत्र के संबंधित विभाग के अधिकारियों को दोषी ठहराने का प्रावधान कानून में किए बिना किसी क्रांतिकारी परिवर्तन की आशा नहीं की जा सकती। सर्वोच्च न्यायालय ने ठीक ही कहा है, ‘यह तर्क विचित्र है कि दूध में मिलावट से तत्काल जान नहीं जाती। क्या दूध में सायनाइड मिलाया जाए और इसे पीकर लोगों की तत्काल मौत हो जाए। क्या तब जाकर सख्त कानून बनेगा।’  Vinod Babbar 09868211911
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