अध्यात्म-कला का संगम खजुराहो

भारतीय राजाओं ने अपने सांस्कृतिक गौरव को अक्षुण रखने के लिए श्रेष्ठ वास्तुकला का सहारा लिया। उस काल में अनेक ऐसे मंदिरों का निर्माण हुआ, जो कला के साथ-साथ आध्यात्म का बेजोड़ उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। ऐसे मंदिर जिन्होंने पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया है, उन में से एक हैं खजुराहों के मंदिर। देश में ताजमहल के अलावा अगर कोई पर्यटन स्थल विदेशी सैलानियों और पर्यटकों को सर्वाधिक आकर्षित करता है तो वह  खजुराहो ही है।
खजुराहों के मंदिरों के विषय में लम्बे समय से सुना था कि वहाँ काम चित्रों की भरमार है, बड़ी संख्या में विदेशी काम-कला के लिए वहाँ आते हैं, आदि-आदि। अपनी विशिष्ट छवि और जीवन शैली के कारण कभी खजुराहों जाने का साहस नहीं हुआ जबकि खजुराहों के आस-पास के क्षेत्रों में जाने का अवसर अनेक बार प्राप्त हुआ। पिछले दिनों समाज कल्याण मंत्रालय में निदेशक और हमारे यशस्वी मित्र श्री किशोर श्रीवास्तव ने झांसी में आयोजित राष्ट्र भाषा सम्मेलन में भाग लेने का निमंत्रण दिया तो हमने झांसी के आस-पास के क्षेत्रों औरछा, महोबा, दतिया के साथ खजुराहो चलने का भी अफैसला कर ही लिया। कार्यक्रम के पश्चात आसपास के स्थानों का अवलोकन करने के बाद हम झांसी-खजुराहो मेल पर सवार होकर महोबा पहुंचे तो उसके पाँच डिब्बे वहीं छोड़कर शेष गाड़ी अपने अगले लक्ष्य की ओर बढ़ गई। महोबा में एक इंजन तैयार खड़ा था। कुछ ही मिनटों में छुटे हुए डिब्बों के साथ इंजन बंधा और गाड़ी एक बार फिर से दौड़ने लगी।
गाड़ी में ज्यादा भीड़ नहीं थी। कुछ विदेशी पर्यटक, कुछ बीच में पड़ने वाले स्टेशनों से चढ़ने वाले तो कुड उतरने वाली सवारियाँ और कुछ हमारे जैसे पर्यटक। कुछ युवक मस्ती कर रहे थे। उनकी बातों में सभी रूचि ले रहे थे। एक युवक ने दूसरे से चुहल करते हुए पूछा- नीरज बता, यदि एक ही टैªक पर दो गाड़ियाँ आमने-सामने आ जाए तो क्या होगा? नीरज जो उन सबसे बड़ा और स्वस्थ भी दिखाई दे रहा था, बोला- होगा क्या, टक्कर हो जाएगी? यह सुनते ही प्रश्न पूछने वाले युवक ने तुनक कर उत्तर दिया- ’हमेशा गलत बात ही क्यों सोचते हो? यह क्यों नहीं सोचते कि दोनों ड्राइवर अंधे नहीं होंगे। मेरा ख्याल है दोनो समझदारी से काम लेंगे। गाड़ियाँ रूक जाएगी। सब कुछ ठीक-ठाक रहेगा, बस सवारियाँ थोड़ा लेट जरूर हो जाएगी।’ उसकी बात सुनकर सभी खिलखिला कर हंस पड़े। मैं विचारों में खे गया, ‘सच ही तो कह रहा है यह युवक। हम सब असामान्य परिस्थितियों में ऐसा व्यवहार ही तो करते हैं। कुछ समाधान ढूंढ़ने की बजाय यह तय मान लेते हैं कि अब अनर्थ होकर रहेगा। ऐसी नकारात्मक सोच हमारे हाथ-पांव फुला देती है और हम अपनी कर्तव्य विमूढ़ता के बंधक बने अनहोनी का इंतजार करने लगते हैं। क्या यह जरूरी नहीं है कि हम सकारात्मक सोच और तत्परता से संकट से बाहर निकलने की कोशिश करें ...।’
मैं विचारों में खोया हुआ था कि साथी मित्र ने पुकारा, ‘कहाँ खोए हो, खजुराहो आ गया। अचानक तन्द्रा टूटी। स्टेशन अपने आप में खूबसूरत था। चमचमाता कोटा स्टेशन, आधुनिक कुर्सिंयां, सभी आधुनिक सुविधाएं। बाहर से देखने में मंदिर का आकार लिए स्टेशन पहली नजर में ही आकर्षित करता है। बाहर आटो ओर टैम्पो वालों से सवारियों को आकर्षित करने की होड़ हो रही थी। एक बार में 10 सवारियां बैठाकर ही चलने वाले ये ड्राइवर बहुत फुर्तीले हैं। सड़कें भी आपेक्षाकृत साफ-सुधरी और मजबूत-समतल दिखाई दी। सड़कों के दोनों ओर हरियाली, ‘हमारा प्रदेश, हरा-भरा मध्यप्रदेश’ के नारों को सार्थक कर रही थी। फरवरी महीने में भी यहाँ अच्छी गर्मी थी। दोपहर हो चुकी थी इसलिए मंदिर परिसर के निकट एक होटल में सादा भारतीय भोजन ग्रहण, जिसके दाम जरूर विदेशी थे।
बुन्देलखंड भारत का हृदय है। यदि हम इतिहास के पन्ने उलटे तो सामने आता है कि इसके अंचल में विश्व के सर्वश्रेष्ठ आकर्षण केंद्रों में से वत्स जनपद में सम्मिलित रहा है। मध्यकाल में चंदेल राजाओं की इस कर्मभूमि को जेजाक मुक्ति कहा जाता थे जो बहुत बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ था। आज के हमीरपुर, जालौन, बांदा, चरखारी, छतरपुर, बिजावर, जैतपुर, अजयगढ़,  पन्ना के भू-भाग सहित बहुत से क्षेत्र इसमें शामिल थे। सम्राट हर्ष के शासन काल (629 से 643ई.) के बीच भारत आने वाले चीनी विद्वान ह्वेनसांग ने   अपनी पुस्तक में जुझौति (जाहुति) को प्रदेश की राजधानी बताया है।  इसे खूजूरवाटिका भी कहा गया जैसाकि 999 ई के चंदेल राजा गण्डदेव द्वारा निर्मित शिलालेख पर भी अंकित है। कुछ ग्रंथों में 1021 में प्रसिद्ध इतिहासकार शआवरिहां (अबुरिहां अलीबीरुनी) के महमूद गजनवी के साथ भारत आने और इस दौरान खुजराहों भ्रमण के प्रमाण भी मिलते है। उसने इस स्थान का जेजाहती की राजधानी के रूप में उल्लेख किया। कविवर चंदवरदाई कृत पृथ्वीराज रासो में इस ग्राम का वर्णन खजूरपुर नाम से किया गया है। सन् 1333 में अफ्रीकी यात्री इब्नवतूता मुहम्मद तुगलक के शासन काल में भारत  यात्रा कर अपने वर्णन में इसे खजुरा लिखता है।  कनिंघम इसका मूल नाम खजूर्रवाटिका तथा उससे खजुबाटिका और खजुराहा या खजूरपुरा होना मानते हैं। इसके अतिरिक्त एक मजेदार दंतकथा यह भी है जिसके अनुसार पहले नगर के द्वार पर दो स्वर्ण वर्ण के खजूर के वृक्ष अंलकृत करते थे। एक संभावना यी भी हो सकती है कि यह नगर में खजूर के पेड बहुतायात में हो जिसके इसे खर्जूरवाहकया खजूरवाटिका और फिर खुजराहो कहा गया हो।
खैर नाम से बड़ा है यहाँ का दर्शन। खुजराहो एवं जटकरा के शिव सागर, निनौरा ताल तथा कुड़ार नाले पर विद्यमान आर्य शिल्प कला के सर्वाेकृष्ट आदर्श ये गगनचुम्बी देवालय लगभग 10 किमी के विस्तृत भू-भाग में फैले हुए है। एक दंत कथानुसार चंद्रवर्मा ने अपनी माता हेमवती के कुमार अवस्था में चंद्रमा के आलिंगन से पुत्रोत्पति के कलंक को दूर करने के लिए खजूरपुर में एक यज्ञ का अनुष्ठान किया। साथ ही 85 भव्य कलात्मक मंदिरों का निर्माण कराया। यह भी संभव है कि उस युग में काम को वह मान्यता मिल गई जो पहले धार्मिक ग्रंथों में छिपी थी। हमारे धार्मिक ग्रंथ यौन संबंधों के बारे में उदार थे पर उनको आम जनता तक पहुंचाने नहीं दिया जाता था। चंदेल राजाओं ने उन बातों को पत्थरों पर उकेर कर सब के लिए सुलभ कर दिया। इस बारे में एक अन्य धारणा यह भी है कि संभवत तब बौद्ध धर्म और जैन धर्म के प्रभाव से भारी संख्या में लोग संन्यास लेने लगे तो इस तरह की मूर्तियां गढ़ना उन्हें घर गृहस्थी में बांधने का एक प्रयास हो सकता है। अनेक देवी-देवताओं के लघु मंदिरों के अतिरिक्त वर्तमान में विशाल मंदिरों की संख्या लगभग 30 है। खुजराहों के भव्य मंदिर तीन समूहों की विशाल सूची है। सर्वप्रथम पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी पश्चिमी समूह में कंदारिया महादेव मंदिर, चौसठ योगिनी मंदिर, मतंगेश्वर मंदिर, लक्ष्मण मंदिर,वराह मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, पार्वती मंदिर,देवी जगदम्बा मंदिर, महादेव मंदिर, ललगुंवा मंदिर,दूसरे स्थान पर पूर्वी मंदिर समूह में वामन मंदिर, ब्रह्मा मंदिर, खखरामठ,जवारी मंदिर, घण्टाई मंदिर, जैन मंदिर, हनुमान जी की मूर्ति तथा अंत में दूल्हादेव मंदिर और चतुर्भुज मंदिर शामिल हैं।
मंदिर परिसर में प्रवेश के लिए दस रूपये का टिकट है। विश्व धरोहर होने के कारण प्रवेश से पूर्व धातुरोधी यंत्रों से जांच की गई। अन्दर किसी प्रकार की खाने की वस्तु ले जाने की आज्ञा नहीं है। प्रवेश करते ही हरे-भरे पार्क, रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियाँ अपनी वासंती छटा बिखेर रही थी। पृष्ठ में विशाल मंदिर शोभायमान हो रहा था।
हर मंदिर का विशाल प्लेटफार्म, उस पर भी काफी ऊँचाई पर बना गर्भगृह। मंदिर के बाहर कलात्मक मुद्राओं वाली मूर्तियाँ लेकिन मंदिर के अंदर केवल भगवान शिव। मंदिर परिसर का अवलोकन करने के पश्चात खजुराहों के विषय में मेरी धारणा बदल गई। सारा संसार बेशक इसे काम कलाओं का केन्द्र कहे मगर मेरा हृदय इनमें छिपे आध्यात्म के लिए शिल्पकार को सराह रहा था।
मंदिर के आधार (प्लेटफार्म) के चहु ओर एक फुट से भी कम चौड़ाई की मूर्तियाँ। उन्हीं में है कुछ कामुक मुद्राएं। लेकिन उसके साथ ही सेना, युद्ध, हाथी, घोड़े, बरछे, भाले, बंदी देखकर भी यदि इनके वास्तविक अर्थ को न समझ पाए तो दोष मूर्तिकार का नहीं, स्वयं हमारा है। स्पष्ट है कि यह संदेश देने की कोशिश है कि काम संसार का आधार है। परंतु काम में इतने भी न डूब जाओ कि मर्यादा का ध्यान भी न रहे। यदि मर्यादा की लक्ष्मणरेखा पार की तो विनाश के लिए भी तैयार रहो। अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि कामुक चित्र तो  मात्र 2-3 प्रतिशत भी न होंगे। शेष चित्रों में संगीत, नृत्य और अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित सेना है। आधार से आगे बढ़ो तो मंदिर के बाहर भाग में एक स्थान ही मैथुन चित्र है, अन्यत्र लगभग सामान्य चित्र है। यहाँ तक कि अनेक स्थानों पर गणपति महाराज की सुन्दर मूर्तियां है।
मंदिर के चहूं ओर परिक्रमा कर जब आप गर्भगृह की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं तो द्वार पर भी कुछ नारी चित्र हैं, मगर मंदिर के अंदर केवल आप और आपका ईष्ट। क्या इसका यह स्पष्ट अर्थ नहीं कि काम को बाहर त्यागकर ही आप अपने प्रभु से साक्षात्कार कर सकते हो। यदि इन मंदिरों के निर्माण का उद्देश्य काम-कला का प्रचार-प्रसार ही होता तो निश्चित रूप से मंदिर के अंदर भी ऐसे चित्र होते। यह कहानी एक मंदिर की नहीं, शेष सभी मंदिरों की थी। मैं योजनाकार और शिल्पियों की दूरदर्शिता का कायल हो गया।
मजेदार बात यह है कि खजूराहो गाँव, जहाँ चंदेल राजाओं ने 80 मंदिर बनाए, न तो किसी नदी के पास है, न ही खेती का बड़ा केन्द्र रहा है। यहाँ की मूर्तियों में उन्नत शिल्प, उत्कृष्ट कला, वैभवशाली इतिहास के अलावा एक बौद्धिक संदेश और सार्थक काम शिक्षा भी दिखाती है। मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बसे खजुराहो की मूर्तियों के बारे में ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि चंदेल शासकों ने 9वीं सदी से लेकर 11वीं सदी के पूर्वार्द्ध तक इसे गढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन मंदिरों की खासियत यह है कि यहाँ शिव, विष्णु, ब्रह्मा और जैन सभी के मंदिर हैं। चंदेलाओं का राज पाँच सदियों तक चला।  आसपास के क्षेत्र के अति पिछड़ेनप को देखकर यह अनुमान लगता है कि तब मंदिर बनाने के अलावा कोई और काम न था। अंग्रेजों ने 1838 में इस स्थान को फिर खोजा जो 1200 के आसपास दिल्ली में मुगल शासन के बाद लगभग खो गया था।
यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थल में कंदरिया महादेव मंदिर प्रमख है जोकि  खजुराहो के बीचो-बीच विद्यासागर वर्मन द्वारा 1065 में बनवाया गया। यह शिव मंदिर 117 फुट ऊँचा, इतना ही लंबा और 66 फुट चौड़ा है। शिव को समर्पित यह भव्य मंदिर बाहर से देखने पर किसी गुफा का एहसास करता है। संभवतः इसीलिए इसका नाम कंदरिया पड़ा। इस मंदिर की बाहरी और भीतरी दीवारों पर जो शिल्प गढ़ा है उसकी तुलना करने की कोशिश की जाए तो शायद कोई दूसरी जगह न मिले। सतही तौर पर पर्यटकों को तब हैरानी होती है जब वे देखते हैं कि कैसे शिल्पकारों ने एकएक सेंटीमीटर जगह का उपयोग किया है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर बनाई गई मुद्राओं को देख  शिल्पकारों और कारीगरों को दाद देनी ही पड़ेगी जिन्होंने कल्पनाशीलता को ऐसे आयाम प्रदान किए जिन्होंने पूरे विश्व को चकित कर दिया। मंदिर के प्रवेशद्वार पर बने मकर तोरण में एक ही पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। वैसे भौगोलिक लिहाज से खजुराहों के मंदिरों को तीन हिस्सों से बांटा गया हैः पश्चिम मंदिर समूह का महत्वपूर्ण मंदिर चौंसठ योगिनी मंदिर है। यह खजुराहो का सब से पुराना मंदिर माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण काल छठी सदी माना गया है। मंदिर के नाम से ही तांत्रिकों का तंत्र और उनका प्रभाव स्पष्ट होता है। कहा जाता है, यहाँ तांत्रिकों द्वारा 64 योगिनियों की पूजा की जाती थी। इसी समूह में लक्ष्मण मंदिर, मातंगेश्वर मंदिर, वराह मंदिर, पार्वती मंदिर व चित्रगुप्त मंदिर हैं जिनकी अलग-अलग विशेषताएं हैं। मगर इनमें समानता यही है कि सभी मंदिरों की बाहरी दीवारों पर मूर्तियां हैं। यहाँ की शिल्पकला में श्रृंगार का जो समावेश है वह सोचने पर विवश करता है कि नायिका की भावभंगिमा और लुभाने की मुद्राओं का कोई अंत नहीं होता।
पूर्वी मंदिर समूह में निरंधार शैली के वामन मंदिर का प्रवेशद्वार हालांकि टूटा हुआ है लेकिन गर्भगृह में विष्णु प्रतिमा बेहतर हालत में हैं। इसी समूह में घंटाई मंदिर खजुराहो गांव के बाहरी दक्षिणी रास्ते पर स्थित है जिस में घंटियां सांकलों से लटकी प्रदर्शित की गई हैं। पूर्वी समूह के जवारी मंदिर में खंडित विष्णु प्रतिमा बैकुंठ रूप को दिखलाती है तो ब्रह्मा मंदिर लावा और बालू पत्थर से निर्मित है जो 900 ईसवी का बना हुआ है। घंटाई मंदिर के नजदीक ही जैन मंदिर हैं जिनमें आदिनाथ, शांतिनाथ और पार्श्वनाथ के मंदिर हैं। इन मंदिरों को देख कर  आश्चर्य होता है कि जैन धर्म में भी ‘काम’ वर्जित नहीं था। इन मंदिरों की बाहरी दीवारों पर श्रृंगाररत नायिकाओं की भावभंगिमाओं की मूर्तियां संयम और भोग के द्वंद को दर्शाती प्रतीत होती हैं। यहाँ के जैन मंदिर समूह का नवनिर्मित संग्रहालय तो अद्वितीय है। यहाँ से कुछ ही दूर हनुमान मंदिर है। इस मंदिर में 3 मीटर की हनुमान मूर्ति जीवंत दिखती है। यहाँ के शिलालेख के बारे में कहा जाता है कि सब से पुराना है।
दक्षिण मंदिर समूह में चतुर्भुज मंदिर और दूल्हादेव मंदिर प्रमुख हैं। दूल्हादेव मंदिर 1500 ईसवी के लगभग निर्मित है। निरंधार शैली में बने इस मंदिर के गर्भगृह में सहस्त्रमुखी शिवलिंग पर छोटे-छोटे 1000 शिवलिंग और उकेरे गए हैं जो शायद ही कहीं और देखने को मिलें। चतुर्भुज मंदिर भी निरंधार शैली में निर्मित है जिसमें अर्धनारीश्वर रूप में शिव को दिखाया गया है।
उसके आसपास के दर्शनीय स्थलों में प्रसिद्ध हैं-
रानेह फॉल्स जो खजुराहों से 19 किमी दूर हैं और यहां वोटिंग की भी सुविधा है। तो केन सेंचुरी खजुराहों से 22 किमी दूर स्थित घड़ियालों का निवास स्थान कही जाती है। पन्ना नेशनल पार्क  अभ्यारण्य जोकि  543 किलोमीटर के दायरे में फैला विश्व विख्यात प्राजेक्ट टाइगर है। यहां बाघ, पैंथर, भालू, जंगली भैंसे, स्पॉटेड हिरन, काले हिरन आदि पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त खजुराहों से 34 किमी की दूर पांडव फॉल्स है। कटोरे के आकार की इस घाटी का संबंध पांडवों से भी जोड़ा जाता है।
अभी खजुराहों के कुछ दर्शनीय स्थलों का अवलोकन शेष था परंतु वापसी समय हो रहा था। समय से स्टेशन पहुँचने से पूर्व एक बार फिर मंदिर परिसर के सामने स्थित मार्किट में चाय की चुस्कियाँ ली। स्टेशन परिसर के बाहर बिकते वहाँ के परम्परागत व्यंजनों और फलों का स्वाद लेना भी सुखद अनुभव था। निश्चित समय पर ट्रैन रवाना हुई। बाहर हल्का-हल्का अंधेरा हो रहा था। दिनभर की थकान के पश्चात हमने भी आराम करने का फैसला किया। रेलगाड़ी में युवको की बातचीत से मिले सबक की तरह खजुराहो के विषय में अब हमारी सोच सकारात्मक हो चुकी थी। सचमुच अद्वितीय  है खजुराहों का दर्शन! - विनोद बब्बर 09868211911

अध्यात्म-कला का संगम खजुराहो अध्यात्म-कला का संगम खजुराहो Reviewed by rashtra kinkar on 20:04 Rating: 5

No comments