जय गिरगिटावतार


इधर सदी की सबसे अधिक बारिश का रिकार्ड क्या बना सर्दी में सब सिमटने लगे। लेकिन बिना धूप के एक स्थान पर गिरगिटों का झुंड देख मैं चौंका। इतनी सर्दी में इतने गिरगिट वो भी एक साथ, बाल बच्चों सहित। खुदा खैर करें, किसी प्राकृतिक आपदा का संकेत तो नहीं। कसम आपके सिर कीं, उम्र सत्तर पार कर चुकी है लेकिन सर्दी तो क्या, गर्मी और बरसात में भी इस बंदे ने इतने गिरगिट एक साथ न देखे, न सुने थे। बिन वजह बंदा तो बेशक सिर धुनता हो लेकिन न तो परिंदा पर मारता है और न ही कोई चौपाया अपना पाया हिलाता है। फिर ये गिरगिट बिना वजह रैली कर रहे हो, यह हो नहीं सकता।
सोचते- सोचते सोचा कि क्यों न उन्हीं से पूछ लिया जाये कि आज ये शोभायात्रा किस उपलक्ष्य में निकाली जा रही है? पूछने के लिए उनके पास गया तो वे हमेशा की तरह जरा भी न तो ठिठके और न तो डरे। उनकी इस दूसरी नई हरकत से माथे के साथ मेरा पैर भी ठनका।
खैर बंदा पैदायशी बहादुर हो, न हो पर इतना डरपोक भी नहीं कि गिरगिट से ही डर जाये। जब प्यार किया तो डरना क्या कि तर्ज पर एक बुजुर्ग से गिरगिट से पूछ ही लिया, ‘आदरणीय गिरगिट जी, आज सुबह-सुबह ही  लाव-लश्कर संग कहां कूच करने का इरादा है? क्या आज आप लोगों का कोई त्यौहार है या प्रकृति की किसी हलचल से त्रस्त हो आप लोग बचाव की तैयारी में हैं?’
प्रथमदृष्टया दिखने में मोटे- ताजे उस गिरगिट ने मुझे यूं घूरा जैसे मैंने कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो और फिर जोर से हंस कर मुंह फेर लिया। जब मैंने रंगीले शाह की कसम खाई।हाथ-पैर जोड़ाकर विश्वास दिलाया कि मैं वैसा नहीं हूं जैसा वह सोच रहा है। बहुत गिड़गिड़ाया तब जाकर उसने मुंह खोला, ‘कैसा अजीब सवाल? अरे मतदाता हो या अभी भी अव्यस्कों की सूची में लटक रहे हों?’
‘मैं समझा नहीं गिरगिट जी। बात अगर साफ-साफ हो तो आसानी से समझ में आएगी।’
लाल-पीला होते हुए गिरगिट जी दहाड़े, ‘साफ-साफ? अरे इससे ज्यादा साफ क्या होगा कि तुम बहुत तेजी से अल्पसंख्यक होने की ओर बढ़ रहे हैं। बहुत जल्द अब हम ही तुम इंसानों पर राज करेंगे।’
‘हा हा हा, ये मुंह और मसूर की दाल? गिरगिट हम इंसानों पर राज करेंगे! लगता है तुम सब मिलकर किसी मूर्ख सम्मेलन की तैयारी में हो।’
‘अगर यह सही है कि जो परिस्थितियों को नहीं समझता वह मूर्ख होता है। तो तुम निश्चित रूप से मूर्ख ही हो। हम तो समय की आहत को सुन, देख, समझ कर भविष्य की तैयारी में लगे हैं।’ गिरगिट जी ने जिस आत्मविश्वास से यह बात कहीं थी उससे मेरा माथा ठनका। हो, न हो  कुछ ऐसा जरूर है जिसकी या तो मुझें जानकारी नहीं या फिर ये गलत फहमी में हैं।
पैंतरा बदलते हुए मैंने कहा, ‘भाई क्षमा करना’, मैंने मानवता के कारण आपसे इस भीड़ का कारण जानना चाहा था। अगर कोई मेरे योग्य सेवा हो तो बताओं।’
‘वाह !रंग बदलने वालों के सामने इनी फुर्ती से रंग बदलना तुम इंसानों के ही बस का है। इसीलिए तो मैं कहता हूं प्रलय भी आ जाये तो भी हमारा विनाश नहीं हो सकता।’ मुस्कराहट के रंग बिखेरते हुए गिरगिट जी ने चहकना जारी रखा, ‘अनेक दशकों से हम लोग मनुज अवतार की बाते सुना करते थे कि फलां इलाके में, फलां पार्टी मे हमारे वंश के किसी सदस्य ने मानव रूप में अवतार लिया हैं। हम लोग चाह कर भी उनके दर्शनों से वंचित रह जाते थे। हमने अपने प्रभु से एक स्थान पर नहीं बल्कि हर क्षेत्र में सामूहिक अवतार लेने की प्रार्थना की। प्रभु ने हमारी प्राथ्रना स्वीकार कर पहले हर राज्य में एक-एक मानवातार लिया। उसकी स्वीकार्यता को देखते हुए अब हर राज्य में बहुत बड़ी संख्या में गिरगिटावतार हो रहे हैं। अनेक स्थानों पर तो अनेक जाने-माने सिद्ध लोगों की काया में हमारे गिरगिटावतार की आत्मा के प्रवेश करते ही वे रंग बदलने के दिव्य गुणों के स्वामी बन गये। एक सिद्ध बाबा अपनी सेवाओं के बदले ‘बाबाजी का ठल्लु’ पाकर निराश थे तो उन्होंने गिरगिटावतार की उपासना की और  एक मौसम में कई रंग बदलकर  हमारी जाति में प्रवेश किया।’
‘साइकिल बाबू ने रंग बदलकर अपने अब्बा  तक को  हैरत में डाल दिया। तो पप्पू मियां रंग बदलने के लिए उनकी कालिख तक धोने में लग गये। फूलछाप ने गिरगिटों की बाकायदा फौज ही भर्ती कर ली तो बहन जी क्यों पीछे रहती। गुंडों की छाती पर चढ़ मोहर लगाने वाला रंग बदलकर उन्होंने ‘उन्हीं’ का रंग बदलकर गृह-प्रवेश करा लिया। कितना बताऊ, जो सारा दुनिया देख रही है लेकिन तुम्हें क्यों नहीं दिख रहा कि आज ‘पांच प्रदेश कल सारा देश’ हमारा होगा। अब गिरगिट राज को कोई रोक नहीं सकता।’
‘लेकिन मान्यवर! यह धरती तो न तो पंचनद है और न ही पंच प्रदेश। फिर यहां आपकी रैली का औचित्य नहीं समझ पा रहा हूं।’
‘तुम नहीं समझों। आखिर आदमी ठहरें। जब तक सिर पर न आ जाये कहां समझते हो। आयाराम आया, गयाराम गया लेकिन कहां समझे तुम। पूरी भजनमंडली ने  गीत बदल लिया, कहां समझे तुम?  समझने का दिखावा करते हुए हम गिरगिटों का राज स्थापित होने से रोकने के लिए बोफोर्स बाबू ने कानून बनाया लेकिन क्या हुआ? हमें रोक पाया क्या? मिस्टर क्लीन को उसके घर में वीपी ने रंग बदलते हुए पटकी जरूर दी पर वह भी ज्यादा देर तक अपने असली रंग को न छिपा सका और इतिहास के रंग- बिरंगे पन्नों में खो गया। रथी ने ‘टायर्ड’ को ‘रिटायर्ड’ रंग में बदलने की कोशिश की पर महारथी रंगों का बादशाह था। कभी आज के रथी को उसी रथी ने रंग बदलकर महारथी के प्रकोप से बचाया था। लेकिन आज ‘इस’ के रंग बदलने से ‘वह’ बेचारा बेरंग है। ये हमारा छुटपुट इतिहास है लेकिन हमारा वर्तमान विशाल तो भविष्य महान  है। इसीलिए झाडू बाबू दिल्ली की तस्वीर बदल सके या नहीं बदल सके पर उन्हें ‘आम’ न समझो। वे हर क्षण रंग बदलने में महारथ हासिल हैं।’ ‘बच्चा आज जो समाजसेवी का बोर्ड टांगे घूम रहे हैं। उनमें भी हमारा अंश है। तुम नहीं तो वो सही। वो नहीं तो और सही। रंग कितने भी बदलने पड़े पर रंग जमाकर छोड़ेंगे। फिलहाल हमारा रास्ता साफ करों, हमें अपने बिरादरों के प्रचार में जाना है। जय जय गिरगिटावतार!!’- विनोद बब्बर 9868211911


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