शब्द आक्सीजन है
पर्यावरण- विनोद बब्बर
मैंने गमला बनाया - उसमें पौधा लगाया
कलिया सजाई- तितली नचाई
खिलखिलाते फूलों में - रंगों की छटा बिखेरी
पर बहार नहीं आई।
मैंने कई पन्ने रंग डाले-
हरे-पीले-नीले-काले
अब भी दम घुट रहा है
आप तो कहते थे- शब्द आक्सीजन है
शब्द उकेरने के लिए कागज चाहिए
कागज उसी पेड़ से बनता है
जो आक्सीजन बनाता है
हमारा दम घुटने से बचाता है!
जैसे बात कहने का मेरा अपना अंदाज है
वैसे ही बहार का अपना मिजाज है
बहार लाने के लिए- बाहर निकलना पड़ता है
-डायरी के पन्नो से
-कागज के फूलो से
-सदाबहार गुलदस्तो से
-भारी भरकम बस्तो से
और समझना पड़ता है कि-
पर्यावरण में वरण है तो -रण- भी
ऐसा रण जहां बहुत कठिन है ‘एक क्षण’ भी
श्रम साधना का वरण करने पर
हरियाली- खुशकाली आक्सीजन मिलेगी
गर सोचते ही रहे तो
रण भेरी बजेगी- स्मॉग- धुआं- जहरीली गैसे
बताओं सांस लोगे फिर कैसे??
इसलिए मेरे दोस्त-
गमला-पौधा-कलिया-फूल
कूंची- कलम से बेशक लिखो- बनाओ
शब्दों और रंगों से उन्हें मन भर सजाओ
पर पर्यावरण बचाने के लिए मन से सामने आओं
पेड़ लगाओं ही नहीं, बचाओ भी
PAID बनकर नहीं, स्वयंसेवक बनकर
PAY करके भी प्लाट ट्रीस, सेव ट्रीस
घड़ी की टिक-टिक
समय की चिक-चिक
कह रही है-
इस धरा पर गर टिकना है तो
पर्यावरण पर नजर टिकाओ
पर्यावरण पर नजर टिकाओ
- विनोद बब्बर 7982170421
शब्द आक्सीजन है
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