फिजा में जहर घोलने वालो से सावधान

बेशक धर्म की सबकी अपनी-अपनी परिभाषाएं हो सकती हैं लेकिन भारतीय मनीषा के अनुसार नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है। जो हमारी चेतना का शुद्धिकरण करें,  जिसके आचरण से हम अपने जीवन को चरितार्थ कर सके अर्थात् मानवीय गुणों के विकास का सत्संकल्प ही धर्म है। हिन्दू दर्शन के अनुसार धर्म के दस लक्षण हैं- धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो , दशकं धर्म लक्षणम्।। अर्थात्  धृति (धैर्य), क्षमा (दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ कर देना, क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अन्तरङ्ग और बाह्य शुचिता), इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश मे रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा), सत्य (मन वचन कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध न करना) ; ये दस धर्म के लक्षण हैं। इसी प्रकार इस्लाम शब्द अरबी भाषा का सल्म से उच्चारित बताया जाता है जिसका अर्थ है- शान्त होना है। इसी प्रकार शेष धर्मो ने भी आत्म सुधार को प्राथमिकता दी है। 
क्या यह दुःखद आश्चर्य की बात नहीं कि जब सभी धर्म सच्चाई, नैतिकता, अहिंसा, और आत्मसुधार की बात करते हैं तो दुनिया में सबसे ज्यादा खून धर्म के नाम पर क्यों बहाया गया? बेशक भारत का रिकार्ड इस मामले में शेष दुनिया से बेहतर रहा है क्योंकि हमारे पूर्वजों ने बाहर से आने वाले हर मत को सम्मान दिया है। यह सर्वविदित है कि बाहर से आने वाले व्यापारियों की सुविधा के लिए भारत की प्रथम मस्जिद का निर्माण एक हिन्दू राजा ने करवाया था। आज भी मजारों पर जाने वालों में अधिकांश हिन्दू होते हैं। धर्म के आधार पर हुए देश के विभाजन के बावजूद भारत धर्मनिरपेक्ष रहा। बेशक ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द को हमारे संविधान में काफी बाद में जोड़ा गया लेकिन लोक व्यवहार में भारत सदा से ही सद्भावना के प्रति प्रतिबद्ध रहा है क्योंकि हमारे लिए राष्ट्रधर्म सर्वोपरि है। एक क्षण को हम बेशक अपने धार्मिक आचरण के प्रति उदासीन हो सकते हैं लेकिन जहां राष्ट्रधर्म का प्रश्न है, उसके लिए हम अपनों को भी त्याग कर सकते हैं। लेकिन  देश में एकता, अखंडता, शांति, सद्भावना से समझौता नहीं कर सकते। 
इधर कुछ ऐसी घटनाएं हुई जिसने  सदियों से कायम भाईचारे को प्रभावित करने की कोशिश की। ओवैसी, आजम खां के बाद कन्हैया और उसके साथी साम्प्रदायिक तनाव उत्पन्न कर अथवा देशद्रोहियों के पक्ष में नाम पर इस देश के बहुसंख्यक समाज को नीचा दिखाने की कोशिश करते नजर आते हैं। सर्वाधिक दुखद यह है कि ऐसे तत्वों के विरूद्ध एकजुट होने की बजाय कुछ लोग राजनैतिक गणित साधने के कारण उनके पक्ष में खड़े नजर आते हैं। 
जहां तक पाकिस्तान का पक्ष है, भारत हमेशा से ही उसका हित चाहता है।गत दिवस श्री श्री रविशंकर द्वारा आयोजित विश्व सांस्कृतिक महोत्सव में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के एक नेता के उद्बोधन के समय इन पंक्तियों का लेखक भी मंच पर उपस्थित था। कार्यक्रम के पश्चात उनके द्वारा ‘पाकिस्तान जिंदाबाद!’ कहने पर मेरी प्रतिक्रिया पूछी गई तो मैंने स्पष्ट किया, ‘केवल पाकिस्तान ही क्यों, पूरी दुनिया जिंदाबाद! वसुधैव कुटम्बकम का हमारा दर्शन जय जगत का पक्षधर हैं। लेकिन ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे हजार  इंसाअल्ला!’ के साथ पाकिस्तान जिन्दाबाद हर्गिज  स्वीकार नहीं हो सकता है।’ 
जहां तक  ‘भारत माता की जय’ का प्रश्न है। कुछ लोगों के लिए भारत जमीन का एक टुकड़ा हो सकता है लेकिन इस देश के अधिकांश लोग के लिए धरती माता है। वेद सूक्त ‘माता मन्त्रा भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ उनकी प्रेरणा है। ऐसे में जब कोई भारत माता के प्रति असम्मान प्रकट करें तो उसके प्रति आक्रोश होना स्वाभाविक है। यह सुखद है कि भारत माता की जय कहने से इंकार करने वालो की राज्यसभा के रिटायर हो रहे अभिनेता जावेद अख्तर ने ससंद में जमकर खबर लेते हुए कहा, ‘जिनकी हैसियत एक शहर या एक मुहल्ले से ज्यादा नहीं है। वह कहते हैं कि वह किसी भी कीमत पर ‘भारत माता की जय’ नहीं बोलेंगे क्योंकि यह संविधान में नहीं लिखा है। वह बताएं कि संविधान में शेरवानी और टोपी पहनने की बात कहां लिखी है। बात यह नहीं है कि भारत माता की जय बोलना मेरा कर्तव्य है या नहीं, बात यह है कि भारत माता की जय बोलना मेरा अधिकार है। मैं कहता हूं, भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत माता की जय।’’ भारत माता की जय बोलने को लेकर चल रहे विवाद के बीच संघ प्रमुख  श्री मोहन भागवत का यह कथन, ‘पवित्र नारे भारत माता की जय को किसी पर थोपने की जरुरत नहीं है। अपने आदर्शों और कार्यों को इतनी ऊंचाई देनी है कि लोग मजबूर होकर भारत माता की जय बोलें’ सामयिक, सार्थक और राष्ट्र धर्म की वास्तविक अभिव्यक्ति है। बहुत संभव है कि  भागवत जी का यह कथन समाज में जहर घोल रहे लोगों को प्रभावित न करें लेकिन  जो तत्व हर छोटी से छोटी घटना को भी साम्प्रदायिक नजरीये से तोलने के की कोशिश करते ह, उन्हें बेनकाब करने में सक्षम अवश्य है। 
ऐसे लोग वे चाहे किसी भी धर्म अथवा सम्प्रदाय के हो मानवता के दुश्मन है। ऐसे लोगों का घोला जहर जब प्रभावी होने लगता है तो उस समाज का अहित होना स्वाभाविक है। इस संदर्भ में मैं कुछ वर्ष की एक घटना का उल्लेख करा चाहूंगा। जब मैं एक बस्ती के रास्ते कहीं जा रहा था। ठीक उसी समय एक स्कूल की छुट्टी हुई। स्कूल से बाहर निकले बच्चों ने मेरी लम्बी दाढ़ी देख मुझे मुस्लिम समझा और अपशब्द तक कहे। जल्दी में होने के कारण  वहाँ रूक नहीं सका। मानसिक पीड़ा लिए अभी कुछ दूर ही गए थे कि एक मदरसे के बाहर खड़े कुछ बच्चों ने मेरी दाढ़ी के साथ मेरे कुर्ते के रंग को भी देखा और ‘बाबाजी’ घोषित करते हुए उसी प्रकार के अपशब्द कहे। जाहिर है मन परेशान हो उठा। मेरी वेशभूषा न हिन्दुओं का प्रिय हैं और न मुसलमानों को तो आखिर मैं कौन हूं? मन में सवाल उठा- अब तक तो वयस्क ही धर्म के नाम पर बवाल करते थे लेकिन इन अबोध बच्चों के मन में आखिर कौन जहर घोल रहा है?अगले दिन मैंने उस स्कूल में जाकर इसका कारण जानना चाहा तो प्राचार्य महोदय ने अपना पल्ला झाड लिया। वह इसे बेकार की सिरदर्दी मानते हैं। विश्वास में लेकर कुछ लोगों से चर्चा की तो उन्नके अनुसार, ‘अल्पसंख्यक छात्रों को नकद राशि, स्कूल न आने पर  भी उनका नाम नहीं काटना,  अनिवार्य रूप से पास करना, अनुदान राशि देने उनके घर तक जाने जैसी परिस्थितियां भी जिम्मेवार हो सकती है। क्योंकि गरीब हिन्दू व गरीब मुसलमान के रहन-सहन, शिक्षा-स्वास्थ्य, कार्य-स्थितियों समान है तो विशेष व्यवहार का कोई औचित्य नहीं है।
अपना दर्द लिए जब मैं दूसरे पक्ष से मिला तो वेे आधुनिक शिक्षा पर धार्मिक शिक्षा को अधिमान देते नजर आए। गांधीजी के प्रिय पद ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको संमति दो भगवान!’ अर्थात सर्वधर्म समभाव के सूत्र को स्वीकार भी नहीं किया। उनके लिए ‘दुनिया में सर्वश्रेष्ठ मत केवल हमारा ही है’ पर कायम रहे। एकमात्र समाधान के रूप में ‘ईमान लाने’ सलाह देकर  वे खामोश हो गए। 
यहां यह अभिप्राय हर्गिज नहीं है कि हिन्दुओं में सब ठीक हैं। उनमें से भी कुछ लोग ‘शरारती’ हो सकते हैं लेकिन आम हिन्दू सर्वधर्म समभाव का पक्षधर है। जरूरत इस बात की है कि हर धर्म का राष्ट्रीयकरण हो अर्थात् सबसे पहले देश। जो देश के हितों के विरूद्ध है वह धर्म नहीं। जो आपसी संबंधों में दरार डाले वह भारतीय नहीं। उसकी नागरिकता समाप्त की जाए। धर्म हमारे व्यक्तिगत विश्वास का नाम है। हमारे सार्वजनिक जीवन में उसका प्रदर्शन नहीं नैतिक दर्शन होना चाहिए। केवल वोट बैंक के लिए सही-गलत की अनदेखी करने वाले ही अमन के दुश्मन हैं। हिन्दू मुसलमान होना तो दूर वे इन्सान भी नहीं हो सकते।ं उन्हें बढ़ावा देने वालों के साथ-साथ उन्हें सहने वाले भी फिजा में जहर घोलने के अपराधी है। हर समय डर बना रहता है कि कहीं इंसानियत का खून न बह जाये। कहीं फिर रिश्ते तार-तार न हो जायें। आश्चर्य है कि गरीबों को भड़का कर आपस में एक-दूसरे के खिलाफ खड़े करने वाले न जाने कब समझेगे कि लड़ाई बेरोजगारी, भुखमरी, भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़नी चाहिए। 
यदि समान धर्म ही अमन-चैन की गारंटी है तो फिर धर्म के नाम पर अलग हुए पड़ोसी मुल्क में हिंसा, दंगा, लूट, आगजनी क्यों? अफगानिस्तान की दुर्दशा क्यों? क्या यह सच नहीं कि वहाँ धर्म पर धर्मांधता हावी है इसीलिए रोजाना सैंकड़ों जानें धर्म की बलि चढ़ जाती हैं। .....और यही हमने फिजा में जहर घोलने वाले हालात को न बदला तो डर है कि ‘सारे जहां से अच्छा ये गुलसिता हमारा’ आखिर कौन और क्यों कहेगा? हमारी आज की प्राथमिकता होनी चाहिए देश की भावी पीढ़ी को नफरत के जहर से बचाए। 
इन दिनों  सुप्रीम कोर्ट में एकाधिक विवाह और तलाक पर चर्चा हो रही है। क्या यह आवश्यक नहीं है कि उस समाज के पढ़े लिखे लोगों को सामने आकर आधुनिकता के प्रति अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करना चाहिए ताकि ‘शाहबानो’ मामले की पुनावृति न हो। हमें अपना नफा-नुकसान देखकर मुंह खोलने वाले नेताओं से सावधान रहना चाहिए। हत्या किसी की हो, दुखद है। पीड़ित परिवार के लिए अपूरणीय क्षति है।
जाने-माने शायर नवाज देवबंदी ने ठीक ही कहा है-
जलते घर को देखने वालो, फूस का छप्पर आपका है
आग के पीछे तेज हवा है आगे मुकद्दर आपका है।
उसके कत्ल पे मैं भी चुप था, मेरा नंबर अब आया 
मेरी कत्ल पे आप भी चुप हैं, अगला नंबर आपका है! 
  विनोद बब्बर संपर्क-  09458514685, 09868211911
फिजा में जहर घोलने वालो से सावधान फिजा में जहर घोलने वालो से सावधान Reviewed by rashtra kinkar on 19:27 Rating: 5

No comments