भारत का स्कॉटलैण्ड है शिलांग Shillong- The Scotland Of India



शिलांग पीक
पिछले दिनों पूर्वोत्तर राज्य मेघालय की राजधानी शिलांग के साहित्यिक कार्यक्रम में भाग लेने  का निमंत्रण मिला। अनिश्चय में था पर जब पोते अक्षित ने किसी हिल स्टेशन  चलने की बात की तो अनिश्चितता समाप्त हो गई। शिलांग देखने की इच्छा इसलिए भी थी कि गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर 1919 में छुट्टियां बिताने के लिए शिलांग आए और एक माह तक यहाँ रहे थे। यहीं उन्होंने एकती चाउनी और एकती दिन जैसी संक्षिप्त रचनाएं लिखीं और कुछ अनुवाद किये थे। उनके साथ उनके बड़े पुत्र, पुत्रवधु तथा निजी सहायक  भी थे। शहर के रीलबोंग इलाके में स्थित ब्रुकसाइड बंगले में रहते हुए टैगोर ने शिलांग की खूबसूरती का वर्णन अपने उपन्यास शेशेर कबिता में किया है जिसे उन्होंने 1928 में लिखा था। इस उपन्यास के 17 अध्यायों में से 13 में यहां का  चित्रण है। गुरुदेव टैगोर के जन्म के 150 वर्ष पूरे होने पर जब विश्वभर में उन्हें स्मरण किया जा रहा था, शिलांग में उस स्थान पर जाकर मैं भी उन्हें अपनी भावांजलि प्रस्तुत करना चाहता था। 2 जून, 2011 को हमें किंगफिशर की प्रातःकालीन उडान से गुवाहाटी जाना था लेकिन दिल्ली हवाई अड्डे पर लम्बी इंतजार के बाद दिन ढले गुवाहाटी पहुँचाया गया। उस दिन के हमारे सारे कार्यक्रम रद्द हो गये। हमने दिल्ली से गुवाहाटी तथा वापसी का वायुयान से आरक्षण करवाया। गुवाहाटी विमानपत्तन से शिलांग की टैक्सी सेवा है। गुवाहाटी की जबरदस्त गर्मी, भीड़-भाड़, जाम और प्रदूषण से शिलांग के वातावरण के प्रति भी आशंका होने लगी। हरे भरे घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर हमारी कार लगातार ऊँचाई की ओर बढ़ रही थी। यह सफर आनंददायक रहा क्योंकि जहां गुवाहाटी में गर्मी थी वहीं कुछ देरी बाद ठण्डी हवाएं आने लगी। पहाड़ीदार रास्तों से शिलांग पहुंचते- पहुंचते फिज़ा पूरी तरह बदल गई। रास्ते में एक स्थान पर  जलपान के लिए रूके तो वहाँ भी वहीं सब कुछ बिक रहा था जो दिल्ली सहित हर नगर- महानगर में भी मिलता है। हाँ, एक साथ पर ताजे पके हुए केले जरूर आकर्षित कर रहे थे। बहुत मीठे ये केले महानगरों में तो देखने को भी नहीं मिलते। लगभग 4 घंटे की सड़क यात्रा के बाद हम शिलांग पहुचें। शिलांग की खूबसूरती और ठंडक का अहसास एक घंटा पूर्व होने लगा थ। हमारे रुकने की व्यवस्था श्री राजस्थान विश्राम गृह में थी, जो शिलांग के प्रथम पड़ाव गाड़ी खाना के ठीक सामने है। हनुमान मंदिर के साथ स्थित यह विश्रामगृह तीन मंजिला है। प्रथम तल पर रहने के कमरे, द्वितीय पर हाल व कुछ कमरे है।  तो दिल्ली की प्रदूषित वायू और यहां की शुद्ध समीर का अंतर महसूस हुआ। 
असम को पूर्वोत्तर भारत का प्रवेशद्वार कहा जाता है। गुवाहाटी से लगभग हर पूर्वोत्तर राज्य पहुँचा जा सकता है। वैसे मेघालय की यह मेरी तीसरी यात्रा थी और इससे पूर्व अरुणांचल, नागालैंड, मणिपुर की यात्रा भी कर चुका हूं।  अरुणाचल चीन की सीमा से स्पर्श करता है। एक  कार्यक्रम में  ईटानगर (अरुणाचल) में  सभी को हिंदी बोलते, समझते देख सुखद आश्चर्य हुआ। खैर फिलहाल चर्चा शिलांग की। 
भारत के पूर्वाेत्तर में बसा शिलांग हमेशा से पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। इसे भारत का स्कॉटलैण्ड भी कहा जाता है जो गलत नहीं है। जो अंतर है वह साधनों का है। यहाँ से गुजरते हुए सड़क किनारे के किसी  गाँव और यूरोप के गाँव में अद्भुत समानता है। एक जैसे मकान, एक ही जैसा फूलों का शौक। प्रकृति ने अपनी ओर से कोई कमी नहीं छोड़ा। काश! हमारे देश का काला धन लौट आए तो पहाड़ियों पर बसा छोटा और खूबसूरत शहर को स्कॉटलैण्ड से भी बेहतर बनाया जा सकता है। यह शहर पहले असम की राजधानी था जो विभाजन के बाद मेघालय की राजधानी बना। लगभग 1695 मीटर की ऊँचाई पर बसे इस शहर में मौसम हमेशा खुशगवार बना रहता है। मानसून के दौरान जब यहाँ खूब बारिश होती है, तो पूरे शहर की खूबसूरती और निखर जाती है और शिलांग के चारों तरफ के झरने जीवंत हो उठते है। शिलांग के अधिकांश लोग खासी जनजाति के हैं। अधिसंख्यक लोगों की आस्था ईसाई धर्म मंे है। खासी जनजाति के बारे में दिलचस्प बात यह है कि शेष भारत से उलट यहाँं महिला को घर का मुखिया माना जाता है। परिवार की सबसे बड़ी लड़की को जमीन जायदाद की मालकिन बनाया जाता है। यहाँ माँ का उपनाम ही बच्चे के नाम के आगे लगाता है। सांस्कृतिक क्रियाकलापों के अंतर्गत यहाँ कुश्ती, फुटबॉल रस्साकशी, भारोत्तोलन और गोल्फ़ जैसे खेल लोकप्रिय हैं। पश्चिमी देशों की तरह हर मैदान में फुटबाल खेलते सैंकड़ों फुर्तीले युवा देखे जा सकते हैं। नृत्य त्योहार शहरी जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। यहाँ पर प्रत्येक वर्ष महोत्सव का आयोजन होता है। ख़ासी जनजाति के लोगों ने अपनी संस्कृति व परंपरा को सुरक्षित रखा है।
1,520 मीटर की ऊँचाई पर स्थित शिलांग 1864 ई. तक एक छोटा-सा गांव था। जोकि खासी और जेन्तिया पहाड़ियों से घिरा हुआ है। 1864 में यह पहली बार महत्त्वपूर्ण बना, जब इसे चेरापूंजी की जगह ज़िला मुख्यालय बनाया गया। 1874 में इसे असम के नए प्रांत की राजधानी बनाया गया। इसने पूर्व-कैंब्रियन काल के एक प्रमुख पटिताश्म समूह पर अनूठी स्थिति हासिल की है। 1897 में आए भूकंप ने इस शहर को पूरी तरह तबाह कर इसे बिल्कुल नए ढंग से निर्मित करने के लिए विवश कर दिया। यह बंगाल और असम की गर्मी के दिनों में राजधानी हुआ करती थी। आगे चलकर शिलांग को जनवरी 1972 में नवनिर्मित राज्य मेघालय की राजधानी बनाया गया।
शिलांग पूर्वाेत्तर राज्यों के बड़े शहरों में से एक और कृषि उत्पादों का महत्त्वपूर्ण व्यापार केंद्र हैं। यहाँ वाहनों की भीड़ की एक वजह यह भी है कि असम के विभिन्न स्थानों से मिज़ोरम और त्रिपुरा जैसे पूर्वाेत्तर राज्यों को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग इसी शहर से होकर गुजरता है। शिलांग में भारतीय वायु सेना का पूर्वी कमांड का मुख्यालय है।  बहुत ऊँची चोटियों पर बडे बडे रडार लगाए गये हैं । यह देश की सुरक्षा के लिये अत्यंत संवेदनशील है। यहाँ के अनेक अनुसंधान केंद्रों में डेरी विज्ञान, उद्यान विज्ञान रेशम उत्पादन संस्थान शामिल हैं। शहर से कुछ मील की दूरी पर उत्तर दिशा में बरपानी जल विद्युत घर स्थित है। यहाँ पर पाश्चर संस्थान मेडिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट और दो अस्पताल हैं। यहाँ नार्थ-ईस्टर्न पर्वतीय विश्वविद्यालय जो एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, के मुख्य परिसर की स्थापना की गई तथा पूर्वाेत्तर परिषद व इंडियन काउसिंग ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के क्षेत्रीय मुख्यालय भी हैं। 
इस कार्यक्रम में वन-विहार तय था। सीमा सुरक्षा बल की  बस गाड़ी खाना में हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। जैसा कि मुझे सांस की समस्या रहती है इसलिए सदा खिड़की के साथ की सीट प्राप्त करने की कोशिश करता हूँ। मेरे साथ वाली सीट पर आचार्य राधा गोविंद थोड़ांग थे। बस आगे बढ़ी तो मैंने पूर्वोत्तर के इतिहास-भूगेाल पर चर्चा छेड़ दी। आचार्य ने बताया कि कभी हिन्दू बहुल्य रहा पूर्वोत्तर आज ईसाई बाहुल्य है। इसके अनेकानेक कारणों में स्वयं हमारे धर्माचार्यों की निष्क्रियता भी कम जिम्मेवार नहीं है। आज भी बहुत कम ही ऐसे हैं जो धर्म और संस्कृति के बदल जाने के बावजूद भाषा को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। हैिंगंग ब्रिज के पास मुनीष ने गुजरात से लाई सिंहदाना (नमकीन मुंगफली) सहयात्रियों को वितरित की तो चर्चा का क्रम बदल गया। शिलांग और उसके आसपास अनेक दर्शनीय स्थल में प्रमुख हैेे-
शिलांग पीक- यह शिलांग का सबसे ऊंचा प्वाइंट है। इसकी ऊंचाई 1965 मीटर है। यहाँ से पूरे शहर का विहंगम नजारा देखा जा सकता है। रात के समय यहां से पूरे शहर की लाईट असंख्य तारों जैसी चमकती है।
लेडी हैदरी पार्क- यह लगभग हर प्रकार के फूलों से सुसज्जित खूबसूरत पार्क है। इसमें एक छोटा चिड़ियाघर और अनेक प्रजातियों की तितलियों का संग्रहालय है।
कैलांग रॉकमेरंग- नोखलॉ रोड पर ग्रेनाइट की एक ऊँची और विशाल चट्टान है जिसे कैलांग रॉक के नाम से जाना जाता है। यह एक गोलाकार गुम्बदनुमा चट्टान है जिसका व्यास लगभग 1000 फुट है। वार्डस में कृत्रिम झील है जो घने जंगलों से घिरी है।
मीठा झरना- हैप्पी वैली में स्थित यह झरना बहुत ऊँचा और बिलकुल सीधा है। मॉनसून में इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है।
हाथी झरना- यह अपर शिलांग में स्थित है, जहाँ वायुसेना का ईस्टर्न एयर कमान्ड है। यहाँ कई छोटे- छोटे झरने एक साथ गिरते हैं। ं एक छोटे से रास्ते के सहारे नीचे जाकर झरने को निहारा जा सकता है, जहां एक छोटी झील बनी हुई है। विश्व प्रसिद्ध आस्ट्रिया के वाटर फाल्स का सौंदर्य इससे कमतर ही है।
पहाड़ी रास्तों पर बस आगे बढ़ रही थी तो हर मोड़ पर रोमांच हो उठता। दूर ऊंची पहाड़ियों पर बहते झरने, हरे-भरे वन तो कहीं-कहीं छोटा सा गांव देखने को मिलता। अचानक दूर एक विशाल इमारत दिखाई दी जिसकी सीमेंट की चादरों वाली छत्त पर रोमन में RKM लिखा दिखाई दिया। हमंे बताया कि यह रामकृष्ण मिशन आश्रम है जहाँ अनेक प्रकार के सेवा प्रकल्प चलते हैं। सरकार ने इस आश्रम की पानी की सप्लाई बंद कर दी तो विवेकानंद के अनुयायियों ने हार नहीं मानी और अपने लिए पानी की व्यवस्था स्वयं कर ली। 
चेरापूंजी
शिलांग से 65 किलोमीटर की दूरी पर चेरापूंजी है। पूर्वी खासी पहाड़ियों पर स्थित इस स्थान को स्थानीय लोग सोहरा नाम से पुकारते हैं। यह स्थान दुनियाभर में सर्वाधिक बारिश के लिए जाना जाता है। यहाँ औसत 11,872 मिमी वर्षा होती है। इसके नजदीक ही नोहकालीकाई झरना है। यहाँ अनेक गुफाएं तो कई किलोमीटर लम्बी हैं। पिछले दिनों जानकारी मिली कि भारतीय नौसेना के कमांडर के नेतृत्व में अमेरिका, स्विट्जरलैंड, आस्ट्रिया, रोमानिया और जर्मनी के 21 गुफा खोजकर्ताओं द्वारा यहाँ चार पुरानी गुफााओं की खोज को पूरा करने के अलावा 11 नयी गुफाएं खोजी गयीं। साथ ही नौ नयी गुफाओं के बारे में सूचना एकत्र की गयी। 
उमड़ते-घुमड़ते मेघ बचपन से ही बहुत आकर्षित करते रहे हैं। वर्षा के दिनों की मस्ती आज भी नहीं भूलती। बारिश में घंटों मसती से नहाना, घर लौटने पर गर्मागर्म पकौड़े या मालपूए खाना आज जैसे स्वप्न हो। उन दिनों जब अपनी स्कूली किताबों में यह भी पढ़ा करते थे कि चेरापूंजी दुनिया का सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान है, तो सोचते थे कि क्या हम भी कभी चेरापूंजी के दर्शन कर सकेंगे? क्या वहाँ की वर्षा का आनंद ले सकेंगे? बचपन का वह स्वप्न तब साकार हुआ जब मेघों के घर अर्थात मेघालय में आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने शिलांग जाने का अवसर मिला। इसे विडम्बना ही कहेगे कि चेरापूंजी में हम भीगे तो जरूर पर वर्षा से नहीं, पसीने से। बढ़ते पर्यावरण संकट ने चेरापूंजी का स्वरूप बिगाड़ दिया है। यह सुनी-सुनाई कथा नहीं है, आप बीती है। पसीने से भीगते हुए मन बेहद दुःखी था। 
मौसिनराम- यह मनोरम पहाडियों के बीच में एक प्राकृतिक गुफा है । गुफा के मध्य बिल्कुल गौ थन के आकार की शिला से लगातार नीचे बने प्राकृतिक शिवलिंग पर बूंद बूंद गिरता पानी लगता है जैसे भगवान शिव का जलाभिषेक हो रहा हो ।
थांगखांग पार्क  पहुँचकर हमने जाना कि चेरापूंजी बंगलादेश सीमा से काफी करीब है।  वहां की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि जो बादल उस घाटी में प्रवेश कर जायेगा वह बरसे बिना निकल नहीं सकता।टिकट लेकर ही थागखांग पार्क में प्रवेश होता है। इस हरे-भरे पार्क में अनेक झूले हैं लेकिन उमस और गर्मी के कारण हम ज्यादा देर नहीं रुक सके। 
थांगखांग पार्क
मियाम- शिलांग से 20 किलोमीटर दूर स्थित यह एक वाटर स्पोट्स कॉम्प्लेक्स है, जो उमियाम हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट की वजह से बनी झील पर स्थित है। यहाँ कई प्रकार के वाटर स्पोर्ट्स का आनन्द लिया जा सकता है। इसी प्रकार जैकरम, हाट सप्रिंग प्रकृति की अदभुत देन यह स्थान बहुत ही सुंदर है। सल्फर युक्त गर्म पानी जो कि झरने से निकलता है चरम रोंगो के लिये बहुत चमत्कारिक औषधि का कार्य करता है । 
महादेव खोला मंदिर सुरंगमय पहाडियों के बीच में गोरखा रेजीमेंट द्वारा निर्मित एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर से भगवान शंकर की अनेक दंत कथाए जुडी हुई है। शिलांग के मारवाडी समाज के लिये यह श्रद्धा का केन्द्र है। शिवरात्रि के दिन यहाँ बडा मेला लगता है। इसके अतिरिक्त देवी के शक्तिपीठों में शामिल जयन्तियाँ शक्तिपीठ यहाँ की जयन्ती पहाड़ियों में स्थित है।
मेघालय में जयन्तिया शक्तिपीठ की चर्चा में कई बार सुन चुका था। इससे पूर्व वहां नहीं जा सका लेकिन इसबार एक अतिरिक्त दिन लेकर आया था। हमने पहले से ही एक टैक्सीवाले से बात कर ली थी जो अगली सुबह बहुत जल्दी हमारे पास पहुंच गया।  आश्चर्य कि शिलांग से जयन्तिया हिल्स की ओर बढ़ते हुए हर गांव बेहद खूबसूरत। हर घर के आगे रंगबिरंगे फल। ठीक यही दृश्य मैंने यूरोप की अपनी यात्राओं में देखा। वहां की तरह मेघालय के लोगों को भी फूलों से प्रेम है। वहां की तरह यहां भी फुटबाल खेलने का प्रचलन है। थोड़ी- थोड़ी दूरी पर घास के मैदानों में हर शाम फुटबाल खेलते बच्चे, युवा दिखाई देते है। हाँ अंतर है तो संसाधनों का। उनके पास पैसा है। आबादी कम है लेकिन भारत फिलहाल उनकी बराबरी की स्थिति में नहीं है उसपर भी जनसंख्या का घनत्व बहुत ज्यादा होना। 
जयन्तिया शक्तिपीठ
नोरटिंग मोनोलिथ
नोरटिंग गांव में स्थित जयन्तियाँ शक्तिपीठ एक छोटा सा मंदिर है। जहां महाराष्ट्र के ब्राह्मण कई पीढ़ियों से रहते हैं। उन्होंने उस शक्तिपीठ के बारे में विस्तार से बताया। मंदिर के मुख्य कक्ष में एक गहरा चौरस स्थान देखकर उसके बारे में जानने की उत्सुकता हुई।  उनके अनुसार- यहां कभी नरबलि की परम्परा थी। उस गांव में सभी घर पक्के और शानदार है। कुछ दूरी पर रामकृष्ण मिशन का सकूल दिखाई दे रहा था। विशेष बात यह कि यहां पत्थरों का एक ऐसा पार्क है जहां विभिन्न आकृतियों, आकारों के पत्थर बहुत करीने से खड़े है। एक विशाल पत्थर को राजा की संज्ञा दी गई।
मनोहरम् वाटरफाल्स
मानवता की सेवा रामकृष्ण मिशन स्कूल
कुछ देर नोरटिंग गांव के नोरटिंग मोनोलिथ पार्क में बिताने के बाद हम वापस शिलांग की तरफ लौट आए। चूंकि आज वहां अंतिम दिन था इसलिए शेष स्थानों का भ्रमण और  वहां के बाजार से कुछ खरीददारी भी करनी थी। शिलांग में खरीददारी करने के लिए प्रमुख स्थान पुलिस बाजार ,पलटन बाजार, बारा बाजार और लैटूमुखराह है। पूर्वी मेघालय से भी लोग यहां अपना सामान बेचने आते हैं। पुलिस बाजार के मध्य में कचेरी रोड़ के किनारे बहुत-सी दुकानें हैं जहाँ हाथ की बुनी हुई विभिन्न आकारों की सुन्दर टोकरियाँ मिलती हैं। हाथ से बुनी हुई शॉल, हैंन्डीक्राफ्ट, संतरी शहद और केन वर्क की खरीददारी की जा सकती है।
हमारी वापसी की उड़ान अगले दिन थी इसलिए उसी शाम हम गुवाहाटी आ गए।  मुनीष परिवार सहित ब्रह्मपुत्र में नौका विहार के बाद वहाँ के पर्यटन स्थल देखने चले गये लेकिन मैंने  आराम किया। अगली सुबह प्रातः 5 बजे हम  कामाख्या मंदिर  में दर्शनों के लिए पहुँच गये जहाँ पहले से ही लम्बी लाईन थी।  दक्षिण की तरह यहाँ भी शुल्क चुकाकर अलग दर्शनों की सुविधा है। मंदिर के अंदर रोशनी का अभाव है लेकिप पंडों की भरमार है जो कबूतर, मुर्गा आदि पक्षी हाथ में लिए कुछ पाने के लिए तरह-तरह के प्रयास करते नजर आते है। उत्तर से हटकर इस मंदिर में बलि आम बात है। मंदिर प्रांगण में एक युवा भैंसे की बलि का दृश्य देख मन विचलित हो उठा। प्राप्त जानकारी के अनुसार कुछ जनजातियां बलि मांस को प्रसाद की तरह ग्रहण करती है। जून में आयोजित होने वाले अंबूवासी महोत्सव के दौरान तो देश-विदेश से बहुत बड़ी संख्या में साधु व तांत्रिक वहाँ पहुँचते हैं।
गुवाहाटी से महज 32 किमी की दूरी पर स्थित सुआलकुची अपने सिल्क उत्पादों एंडी व मूंगा के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। इस गांव को पूरब का मैनचेस्टर कहा जाता है। पूरी दुनिया में मूंगा सिल्क का उत्पादन सिर्फ इसी गाँव में होता है।  गुवाहाटी में शिलांग से बिल्कुल उल्ट काफी गर्मी थी। सबसे बड़ी समस्या यहाँ निरामिष भोजन की थी। जैसे-तैसे फल आदि से काम चलाया और  हमने गुवाहाटी के पलटन बाजार से वहाँ की मशहूर चाय  लेकर हम एयरपोर्ट के लिए रवाना हुए। -विनोद  बब्बर





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