प्रतियोगिता का बढ़ता तनावः कितना उचित, कितना अनुचित Tention creating Compitetion
पश्चिम दिल्ली भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा कार्यालय गायत्रीधाम, उत्तमनगर में गत रविवार 28:08:2016 साप्ताहिक संगोष्ठी में ‘प्रतियोगिता का बढ़ता तनावः कितना उचित, कितना अनुचित’ विषय पर केन्द्रीय रही।
गायत्रीधाम के व्यवस्थापक श्री खैरातीलाल सचदेवा ने सभी का स्वागत करते हुए विषय पर चर्चा का श्रीगणेश किया। उनके अनुसार प्रतियोगिता से बचना संभव नहीं है। प्रतियोगिता से प्रतिभा का विकास होता है लेकिन युवा पीढ़ी को इसके तनावों तथा नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए अभिभावकों तथा शिक्षकों को सजग रहते हुए उनमें खेल भावना उत्पन्न करने का प्रयास करना चाहिए।
राजकीय बाल विद्यालय एजी-1 विकासपुरी में संस्कृत अध्यापक श्री महेन्द्र जी प्रतियोगिता, प्रतिस्पर्धा को अनुचित मानते हैं। उनके अनुसार प्रतिस्पर्धा के स्थान पर अनुस्पर्धा अर्थात् अपने वर्तमान गुणों को और आगे बढ़ाने की स्वयं से ही स्पर्धा। उन्होने प्रतियोगिता को सहज जीवन में बाधक मानते हुए जंगल की एक कथा प्रस्तुत की।
केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के अधिकारी रहे श्री रामकिशन वशिष्ठ ने प्रतियोगिता को मानव विकास का अनिवार्य अंग बताया। इससे बचना संभव नहीं है। लेकिन प्रतियोगिता के साथ-साथ बालक की वास्तविक प्रतिभा और रूचि को भी समझा जाना चाहिए। सर्वोदय सहशिक्षा विद्यालय, एफ ब्लाक विकासपुरी के अध्यापक श्री रामसुमेर यादव प्रतियोगिता को एकाएक थोपे जाने के खिलाफ थे। उनका मत था कि आरम्भ से लगातार अभ्यास के बाद प्रतियोगिता का औचित्य है वरना गधे को पीट- पीट कर घोड़ा बनाने की तरह प्रतियोगिता नकारात्मकता उत्पन्न करती है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र श्री आशुतोष प्रतियोगिता के वर्तमान तरीके से असहमत नजर आये। उनके अनुसार वर्तमान मूल्यांकन प्रणाली दोषपूर्ण है। केवल एक बार की परीक्षा के आधार पर आप किसी की प्रतिभा योग्यता निर्धारित नहीं कर सकते तो एक परीक्षा के अंकों के आधार पर विश्वविद्यालय में प्रवेश से विषय निर्धारण क्यों?
वेद व्यास डीएवी स्कूल, विकासपुरी के श्री मेधाव्रत ने जीवन के हर क्षेत्र में प्रतियोगिता की चर्चा करते हुए उसे सहजता से लेने पर बल दिया। व्यापार, व्यवसाय, नौकरी, शिक्षा ही नहीं परिवार और मित्र मंडली में भी प्रतियोगिता की भावना हो सकती है। मेधाव्रत ने विज्ञान व अर्थशास्त्र के कुछ उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अपना पक्ष प्रस्तुत किया।
कोलम्बिया फाऊण्डेशन स्कूल, विकासपुरी के श्री अक्षित गोयल ने प्रतियोगिता को वर्तमान की आवश्यकता बताते हुए कहा कि यदि आपेक्षित लक्ष्य प्राप्त न भी तो भी प्रतियोगिता के लिए किये गये प्रयास हमारी योग्यता और प्रतिभा का विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः प्रतियोगिता से भागने की बजाय उसे सहजता से लें।
पंचवटी लोकसेवा समिति के संरक्षक डा. अम्बरीश कुमार ने प्रतियोगिता और खेलभावना को निकट लाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने खेल प्रतियोगिता की चर्चा करते हुए बताया कि खेल प्रतिभागियों को पहले समझाया जाता हैं कि आप प्रतियोगी, प्रतिभागी हैं लेकिन प्रतिद्वंद्वी नहीं। इसलिए जिससे प्रतियोगिता है उसकी सुरक्षा का ध्यान रखना आपकी जिम्मेवारी है। जिस तरह प्रतियोगिता के बावजूद खेल परस्पर मित्रता का वातवरण बनाते हैं वैसा ही हर क्षेत्र में होना चाहिए उसके लिए जरूरी है- खेलभावना।
प्रतियोगिता का बढ़ता तनावः कितना उचित, कितना अनुचित Tention creating Compitetion
Reviewed by rashtra kinkar
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20:48
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