इजराइल से सीखने का अभियान कब से?
इजराइल से सीखने का अभियान कब से?
भारत के प्रधानमंत्री की इजराइल यात्रा की गूंज अलग-अलग कारणों से पूरी दुनिया में है, वहीं दोनो देशों को एक दूसरे को और निकट से जानने अवसर भी है। रूम सागर के पूर्वी तट पर स्थित इजराइल के बारे में प्रायः सभी जानते हैं कि 14 मई 1948 को स्वतंत्र हुआ दक्षिण पश्चिम एशिया के इस देश के उत्तर तथा उत्तर पूर्व में लेबनान एवं सीरिया, पूर्व में जार्डन, दक्षिण में अकाबा की खाड़ी तथा दक्षिण पश्चिम में मिस्र है। मात्र 20,700 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल जिसे कुछ ही घंटो में एक कोने से दूसरे कोने तक नापा जा सके। दिल्ली से लगभग आधी जनसंख्या वाले इस निडर देश की राजधानी तेल अवीब है। इसे ईश्वर का इजराइल के साथ अन्याय नहीं बल्कि विश्वास ही कहेंगे कि उसे प्राकृतिक संसाधन न के बराबर मिले। उसके चहूं ओर तेल के भंडार लेकिन उसके हिस्से में कुछ भी नहीं, जल भंडार मात्र दो प्रतिशत। पूरा मुस्लिम जगत उसका शत्रु लेकिन यहां के बच्चे-बच्चे में कमाल का जुझारूपन और जीवंतता कि कोई इनका बाल भी बांका न कर सके। सीमित साधनों के होते हुए भी विश्व के सर्वाधिक उन्नत राष्ट्रों में शामिल इस देश ने रेगिस्तान में अपने विशिष्ट ‘ड्रिप इरीगेशन सिस्टम’ के माध्यम से दुनिया को उन्नत कृषि तकनीकी प्रदान की जिससे हमंे बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। यह कोई आश्चर्य नहीं कि इजराइल दुनिया का इकलौता ऐसा रेगिस्तानी देश है जो न केवल अपनी कृषि आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर है बल्कि प्रतिदिन सैंकड़ों टनों फूल और सब्जियां यूरोप को निर्यात भी करता है।
भारतीय प्रधानमंत्री की इजराइल यात्रा की सार्थकता तब है जब हम इजराइल से प्रेरणा लेकर अपने देश को भी बुलन्दियों पर ले जाने के लए संकल्पित हो। इसके लिए सबसे जरूरी है हमारे राजनैतिक दलों का बौद्धिक शुद्धिकरण। जब तक हमारे नेता अपनी आंखों पर तुष्टीकरण और संकीर्णता की पट्टी बांधे रहेंगे वे नहीं जान सकते कि इस छोटे से देश के 12 दलों में से आज तक कोई भी दल अपने बलबूते पर सरकार नहीं बना सका हैं। लेकिन जहां तक देशहित, सुरक्षा, सम्मान, स्वाभिमान का प्रश्न है हम तो केवल ‘वयं पंचाधिक शतं’ के गाल ही बजाते रहे परंतु इजराइल में अनेक बातों पर सब दल एक हैं। राष्ट्र हित के मुद्दों न समझौता और न ही सरकार गिराने की धमकी क्योंकि यह उस देश का सर्वसम्मत राष्ट्रीय एजेंडा है।
लगभग साथ-साथ स्वतंत्र हुए भारत और इजराइल अनेक मामलों में हमसे कोसो आगे है। हम आजतक एक सम्पर्क भाषा के नाम पर बयानबाजी में ही लगे रहे जबकि उन्होंने मृतप्रायः हिब्रू को इजराइल की जीवान्त और व्यवहारिक भाषा बना दिया। हमे यह जानना चाहिए कि स्वतंत्रता के पश्चात दुनिया भर में बिखरे यहूदी अनेक बोली भाषाएं लिए वहां वापस आये तो प्रश्न उठा कि देश की भाषा क्या होना चाहिए? उनकी अपनी हिब्रू भाषा तो पिछले दो हजार वर्षों से मृतवत पडी थी। न कोई साहित्य, न भाषा विशेषज्ञ। मात्र कुछ लोग ही इसे जानते थे। अंग्रेजी को देश की संपर्क भाषा बनाने के सुझाव को ठुकराते हुए उस देश के स्वाभिमानी कर्णधारों ने हिब्रू को ही राष्ट्रीय भाषा बनाने का निर्णय किया। मात्र दो महीने में हिब्रू सिखाने का पाठ्यक्रम और एक अभियान सामने आया। इसके अंतर्गत हिब्रू जानने वाला हर व्यक्ति दिन में 11 से 1 बजे तक तीन घंटे अपने निकट के स्कूल में जाकर हिब्रू सिखाता। स्कूली बच्चे अपने घर और आसपास सिखाते। इस तरह पांच वर्षों में पूरा इजराइल हिब्रू मय हो गया। आज इंजीनियरिंग, मेडिकल, शोध कार्य सहित हर उच्च शिक्षा उनकी अपनी भाषा में है। इजराइल की जीवटता, जिजीविषा और स्वाभिमान को नमन करते हुए हमे आत्म विवेचन करना चाहिए कि हम भाषा के मामले में आखिर कहां और क्यों है?
इज़राइली प्रधानमन्त्री का पुत्र सेना में |
इजराइल दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो पूर्ण रुप से एंटी बेलिस्टिक मिसाइल सुरक्षा प्रणाली से लैस है। वहां अनेक आतंकवादी संगठन राकेट से हमला करते ही रहते हैं, लेकिन सारे रॉकेट इनकी अभेद्य सुरक्षा व्यवस्था के कारण रास्ते में ही नष्ट हो जाते हैं। अपने किसी भी दुश्मन को जीवित न छोड़ने का उनका अटल संकल्प है। उसकी खुफिया व्यवस्था (मोसाद) देश के हर दुश्मन को पाताल से भी खोज निकालती है। बेशक हमारे पास उच्च तकनीक है लेकिन हमारे नेताओं के पास इजराइल जैसी संकल्प शक्ति नहीं है इसीलिए तो हम उन देशद्रोहियों की सुरक्षा पर भी करोड़ों रुपये खर्च करते है, जो दिन रात भारत की बर्बादी के नारे लगाते हैं।
किसी से तभी सीखा जा सकता हे जब हम स्वयं को तुलनात्मक अध्ययन की कसौटी पर कसें। यह जानना जरूरी है कि इजराइल विश्व में सौर ऊर्जा का सर्वाधिक उपयोग करने वाला देश है लेकिन हम अभी आरंभिक अवस्था में ही है क्योंकि सौर ऊर्जा के प्रचार-प्रसार में जितने संसाधन चाहिए थे वे हम नहीं लगा सके हैं और न ही हम आपेक्षाकृत महंगे उपकरणों को जन -जन तक पहुंचा सके हैं। उनकी पर्यावरण के प्रति सजगता ऐसी कि वृक्षों की संख्या लगातार बढ़ रही है। लेकिन हमारा जोर फोटो खिंचवाने पर ही। वृक्षारोपण से अधिक महत्वपूर्ण बाद का रख रखाव है जिसमें हम लगभग नकारा साबित हुए हैं।
वहां जनसंख्या के अनुपात में हमसे कई गुना अधिक विश्वविद्यालय है जहां शिक्षा और शोध का स्तर हमसे कई गुना बेहतर है। अत्याधुनिक विश्वविद्यालय और गुणवत्ता शिक्षा, औद्योगिक विकास, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी के बल पर मशीनरी और उपकरण, सॉफ्टवेयर, कटे हीरे, कृषि उत्पादों, रसायन और वस्त्र और परिधान के निर्यात में जबरदस्त वृद्धि करने की इजराइल की कामयाबी की स्वयं से तुलना का प्रश्न ही नहीं क्योंकि हम लगातार बढ़ते चीनी आयात पर निर्भर हैं। हमारा जोर स्वदेशी से अधिक विदेशी पूंजीनिवेश को आकर्षित करने पर है। हम विदेशियों के लिए पलक पांवड़े बिछा रहे हैं लेकिन अपने किसान और उद्यमी को आधुनिक तकनीक और प्रौद्योगिकी से जोड़ने में बहुत सफल नहीं हो सके हैं।
अंत में इजराइल की आक्रामकता एवं देशभक्ति की चर्चा। 1972 के म्यूनिख ओलंपिक खेलों के दौरान फिलिस्तीनी आतंकवादियों ने 12 इजरायली खिलाड़ियों की जान ले ली। तत्कालीन इसराइली प्रधानमंत्री ने इस घटना की ‘कड़ी’ निंदा करने या शांति बनाये रखने का वक्तव्य जारी करने की बजाय अपनी खुफिया एजेंसी ‘मोसाद’ को इस घटना में शामिल आतंकवादियों को विश्व के किसी भी कोने से भी ढ़ूंढकर मारने का आदेश दिया जिसे मोसाद ने पूरा कर दिखाया। लेकिन इस मामले में हमारा रिकार्ड खराब ही कहा जायेगा। हम दशकों तक सर्जिकल आपरेशन की बातें ही करते रहें। जब किया तो गैरों से अधिक अपनो ने सवाल उठाये। अब जबकि चहूं ओर ‘इजराइल-इजराइल’ हो रहा है हमे यह तय करना है कि हम इजराइल की प्रशंसा ही करते रहेंगे या स्वयं भी कुछ प्रशसनीय भी करेंगे?
इजराइल से सीखने का अभियान कब से?
Reviewed by rashtra kinkar
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