विशेष आकर्षण का चक्कर





विशेष आकर्षण का चक्कर
बचपन में सर्कस के प्रचार के लिए शहर भर में जगह-जगह लगाये बैनरों, पोस्टरों में विशेष आकर्षण शब्द देखते थे तो हमारे लिए उस का एक विशेष अर्थ होता था। विशेष आकर्षण यानी हाथी साईकिल चलेगा या भालू कार चलेगा अथवा जोकर कुछ विशेष करेगा। उस विशेष आकर्षण पर आकर्षित होकर केवल हम अकेले ही नहीं, बल्कि हमारे जैसे सैंकड़ों, हजारों सर्कस की तरफ खिंचे चले जाते थे। कई बार विशेष तो क्या साधारण आकर्षण जैसा भी कुछ नहीं होता था लेकिन हां, सर्कस वाले विशेष माल बटोर लेते थे।
समय बदला लेकिन आज भी विशेष आकर्षण का आकर्षण कम नहीं हुआ। हर बाजार में बारहमासी  ‘सेल’ और ‘भारी छूट’ का विशेष जलवा देखने को मिलता है। यह बात अलग है कि वहां विशेष के नाम पर ‘शेष’ माल निपटान अभियान चलता है।
चुनावी रैलियों में नेताओं के ‘जवाब का सवाल’ देने कौन आता है इसलिए आजकल वहां भी फिल्मी ंहीरों या हीरोइन को विशेष आकर्षण की तरह प्रस्तुत कर भीड़ बटोरी जाती है। जहां नेता खुद हीरो न हो वहां वह जोकर की तरह व्यवहार कर लोगों को लुभाता यानी विशेष आकर्षण बनता है। किसे याद न होगा ‘भैसिया के सींग पे गोड रखने’ की उक्ति ने महान प्रदेश के एक महाभारती को पन्द्रह साल गद्दी दिलवाई थी।
शादी-पार्टियों में बैंड, डीजे, शहनाई, नाचने वाले, छप्पन भोग का अपना विशेष स्थान है लेकिन आजकल वहां भी विशेष आकर्षण का दौर चल निकला है। जिसकी अंटी में दम और दाम होता है वे किसी हीरो या हीरोइन को विशेष आकर्षण बनाते हैं। कई बार ऐसा आकर्षण इतना विशेष हो जाता है कि दूल्हे की बजाय किराये का दूल्हा सारी मालाएं बटोर ले जाता है और बेचारा दूल्हा और दूल्हे का बाप दुही हुई बकरी की तरह एक कोने में खड़े नजर आते हैं।
आज विशेष आकर्षण पर चर्चा के प्रायोजन पर प्रकाश डालने से पहले यह बातना जरूरी है कि सड़क से संसद तक हर जगह विशेष आकर्षण का विशेष महत्व है। अनेक बार किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार और सदन का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित करने के लिए कुछ सदस्य ‘ध्यानाकर्षण प्रस्ताव’ प्रस्तुत करते हैं। प्रस्ताव मंजूर हो या न हो, हंगामा जरूर विशेष ध्यानाकर्षण करता नजर आता है। सदन के कुछ लोगों का ध्यान आकर्षित करने में असफल माननीय अगली सुबह देशभर के अखबारों की सुर्खियां बनकर विशेष आकर्षण  बन जाते हैं।
किसी ने बताया था कि मनुष्य के स्तर का मापदंड उसके प्रति  आकर्षण को माना जाता है। छुटभैये के लिए चार तो छुटे घुमने वाले के लिए चालीस का नियम तो बहुत पुराना है। इसीलिए आकर्षण का केन्द्र बनने के लिए कोई कुर्ता फाड़ता है तो कोई बार-बार कुर्ते बदलता है। कोई साधन संपन्न होते हुए भी फटी जिन्स पहने घूमता है तो पुरुष होकर भी कानों में झुमका बरेली वाला लटकाये घुमता है। आज जिस नेता के लिए ज्यादा भीड़ उमड़े वह बड़ा। जिसकी रैली बड़ी उसके लिए कुर्सी आरक्षण बड़ा। जिसकी रैली फीकी यानी जिसका आकर्षण विशेष नहीं, समझो उसका भविष्य भी अब शेष नहीं।
भगवान की कृपा से सूरत से सीरत तक, जेब से क्रैडिट कार्ड तक, शब्द से आवाज तक, हम में ऐसा कुछ भी नहीं जिसपर कोई विशेष तो क्या साधारण आकर्षित भी हो सके। हां, इस जानकारी को आप अधिकृत अैर विश्वस्त मान सकते हैं कि कभी-कभी कुछ लोग अपने भोले से अधिक भाले बच्चों को डराने के लिए हमारी तस्वीर का इस्तेमाल करते हुए पाये गये हैं। जो बच्चे उनकी नहीं सुनते, वे हमारी तस्वीर दिखाकर उन्हें अपनी सुनाना चाहते हैं। ज्योमिति प्रमेय के अनुसार बच्चो तो नहीं लेकिन उन माता- पिता का हमसे जरूर कुछ आकर्षण है। आपकी सहमति के बिना इसे विशेष आकर्षण कहना कठिन है।
 हमें किसी ने पंसद नहीं किया तो आप इसका मतलब यह भी नहीं लगा सकते कि केवल हमारी तस्वीर की ही उपयोगिता है। इसे समय का खेल ही कहा जायेगा कि आज स्वयं के लिए भी ‘विशेष आकर्षण’ शब्द का उपयोग देखकर अभिभूत  (कृपया अभी भूत शब्द का सही अर्थ लगाये। क्योंकि अभी मैं वर्तमान ही  हूं) हमारे अति प्रिय मित्र (?) ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा हैं- ‘मित्रों, फलां नवम्बर को दोपहर इत्ते बजे ‘लेखक मित्र मंडल’ एक लघुकथा गोष्ठी का आयोजन करने जा रहा है। विशेष आकर्षण-  विनोद बब्बर। कृपया समय पर पधारे।’ इसे देख खुशी का ऐसा झटका लगा कि अक्ल ने काम करना बंद कर दिया। (अगर आप किसी को न बताये तो मैं आपको बता सकता हूं कि अक्ल इसे पहले भी आउट ऑफ आर्डर ही थी)  समझ नहीं पा रहा था कि आज मुझे ‘विशेष आकर्षण’ का पात्र किस गुण के कारण से माना गया है क्योंकि मुझे न तो सर्कस के भालू की तरह कार चलाता आता हूै और न ही हाथी तरह की तरह साइकिल चला सकता हूं। शायद जोकर जैसा कुछ कर सकूं।
कुछ मित्रों से इस विषय पर चर्चा की लेकिन वे भी इस गुत्थी को सुलझाने में असफल रहे। तो प्रदूषण से परेशान दिल्लीवालों की तरह एनजीटी यानी अपने घसीटा राम जी की शरण में जाने के अलावा कोई विशेष मार्ग शेष न था।
घसीटाराम जी किसी पराली प्रदेश के वजीरेआला नहीं हैं और न ही किसी कैप्टन की तरह संगदिल  कि मिलने तक से इंकार कर दें। संकेत पाते ही फौरन हाजिर हो गये। पर हां, अपनी शर्ता पर। शर्ते में ‘नो हार्दिक’ बस आते ही चाय, पकौड़े। जाते हुए चाय बिस्कुट। बीच में धुआंधार।
गर्म चाय के हल्के-हल्के घूंट भरते हुए घसीटाराम जी ने फरमाया,  ‘विशेष आकर्षण के भी कई आकार प्रकार होते हैं। तुम क्यों भूलते हो कि एक बार तुम्हें बाल साहित्य सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था। तुम भी बहुत चाव से वहां जा पहुंचा थे। जबकि विषय से तुम्हारा दूर-दूर तक कोई संबंध न था। वहां से लौटने पर तुमने अपनी समस्या मेरे सामने रखी थी। याद है कि नहीं।’
‘ठीक है। तो यह भी याद होगा कि उस दिन भी एक नहीं, बल्कि दो कप चाय चढ़ाने के बाद यह बात समझ में आई थी कि सम्मेलन में देशभर से आये साहित्यकारों में तुम्हारे  बाल सबसे बड़े थे। अतः बालों के कारण तुम्हें बाल साहित्य सम्मेलन में विशेष रूप से आमंत्रित किया गया।’
‘ऐसा करो, एक चाय और मंगवाओं तब तक मैं सुराख लगाता हूं कि इस बार तुम्हारे लिए ‘विशेष आकर्षण’ जैसे शब्द का दुरपयोग क्यों किया गया है।’
मैं चाय की जुगत भिड़ा रहा था तो घसीटाराम जी उस संगोष्ठी में आमंत्रितों की सूची का छिन्द्रान्वेषण  कर रहे थे। आखिर वे इस नतीजे पर पहुंच ही गयेे कि आखिर किस विशेष योग्यता के कारण मुझे बाल साहित्यकारों के सम्मेलन  की तरह  इस बार के आयोजकों ने मुझ में क्या विशेष गुण देखा है।
उनके अनुसार, ‘सभी आमंत्रित लघुकथाकार हैं। जाहिर है कि वे सभी अपनी-अपनी लघुकथा सुनाने के लिए ही ‘स्मोग दिल्ली’ में प्रवेश का रिस्क ले रहे हैं। ऐसे में उन्हें एक ऐसा व्यक्ति चाहिए जो प्रथम तो लघुकथाकार न हो। यानी सुनाने नहीं केवल सुनने वाला हो। दूसरा वह कानो से कम सुनता हो। भगवान की कृपा से ये दोनो गुण तुम में हैं। इसका सफल उपयोग किशोर जी भी अक्सर अपने कार्यक्रमों में सफलतापूर्वक करते रहते हैं। तुम्हारी इस ख्याति  ने तुम्हें विशेष आकर्षण का अधिकारी बनाया है। समझा करो।’
दो कप चाय पीकर भी घसीटा राम जी ने धोखा किया। उन्होंने दिल तोड़ दिया। लेकिन उससे भी बड़ा झटका तब लगा जब मालूम हुआ कि जिस विद्वान ने विशेष आकर्षण लिखा था दरअसल उसे विशेष आमंत्रित लिखना था।
हाय री किस्मत! मैं जिसे विशेष आकर्षण समझकर इतरा रहा था वहां आकर्षण- फाकर्षण जैसा कुछ नहीं, कोरा निमंत्रण है। अब आप ही बताये कि एक कप चाय और एक समोसा के लिए तीन घंटे चुपचाप बैठे लम्बी’लम्बी लघुकथाएं  सुनना घाटे का सौदा है या मुनाफे का? अगर आपको इसमें भी कोई विशेष तो क्या साधारण आकर्षण भी दिखाई देता है तो कृपया अपना मौन् तोड़े ताकि मैं अपने फैसले पर एक बार फिर से विचार कर सकूं। --विनोद बब्बर 7982170421 1vinodbabbar@gmail.com


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