पिलपिले आम !! PilPile Aam Vyangy



मिश्री आम और मिश्रा
हर आम भारतीय की तरह मुझे भी लंगड़ा, चोंसा, दसेरी, मालदा, तोतापरी, सफेदा, सुनेहरी जैसे अनेक आमों के नाम ही नहीं स्वाद भी मालूम है। बचपन में दो पैसे लिए पास के लालू के बाग में जाते तो बाग का मालिक दो पैसे अपनी जेब के हवाले करते हुए निर्देश देता, ‘जा उस पेड़ पर चढ़कर दो आम तोड़ लें।’ 
इस देश में चोरी, बेइमानी पाप और अपराध मानी जाती है लेकिन जब बात आम की हो तो आम के विविध प्रयोगों में आम के स्वाद की तरह यह नियम भी बदल जाता है। बाग से चुराकर आम खाने के आनंद के सामने किसी राजा महाराजा के छप्पन भोग बेकार, बेस्वाद हैं। सो हम चढ़ जाते आम के पेड़ पर। दो आम वहीं पेट में, दो निकर की जेब में और दो हाथ में लिए जब बाग के मालिक के सामने हाजिर होते तो वह सब कुछ जानते हुए भी भारतीय जनता की तरह अपने पास रखे टपके हुए आमों के ढ़ेर में से दो आम और देते हुए कहता, ‘तुम ईमानदार हो। लो यह भी लो।’ तो मन  फिर चुनाव जीते भ्रष्टाचारी नेता की तरह प्रसन्न हो उठता। उन दिनों आम पार्टियां हुआ करती थी। डाल पर पके तरह के तरह के आमों और उनके व्यंजनों का मजा  तो कभी बर्फ में लगे ठण्डे आम संग काजू पिस्ते वाले मलाईदार दूध। वाह! दिल मांगे मोर लेकिन अब बचा है ओनली शोर!   
आम और बचपन की वह जुगलबंदी इधर खास हो गई है। हालात ऐसे हो गये कि हम बाते तो  अल्फान्सों आम की कर सकते हैं लेकिन हालात ने असली लंगड़े से भी महरूम कर दिया। दाम ने आम को खास बना दिया लेकिन सच यह भी है कि अब आम में आमतौर पर आम सा कुछ भी न रहा। मसाले से तैयार आम बाहर से देखने में तो आज के राजनैतिक नेता की तरह पूरे ठाठ परंतु अंदर से सोलह दुनी आठ। कई बार जिसे बढ़िया समझकर चुना वहीं बाद में बेसुरा, बेस्वाद ही नहीं हाजमा तक बिगाड़ देने वाला साबित हुआ।
लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि अब आम के प्रति हमारी आशक्ति कम हो गई। इधर आम मेले लगने लगे तो महंगी टिकट लेकर भी स्वयं को सैंकड़ों तरह के आमों के बीच पाकर बहुत प्रसन्नता होने लगी। ढ़ाई सेर का आम तो ढ़़ाई ग्राम का अंगूर जैसा आम भी। हर स्टेट का आम। मजेदारी यह कि सबके दावे एक समान- ‘हमारा आम बेमिसाल!’ एक बार खाकर तो जानों। इन आम मेलों में आम खाओं प्रतियोगिता भी होती जहां प्रतिभागियों को एक समान वजन के आम दे दिये जाते और कुछ मिनटों बाद बचे छिलके, गुठलियों आदि का वजन कर परिणाम तय किये जाते तो प्रतियोगिता देखने का मजा भी कम न था। समझना मुश्किल होता कि आम खाये जा रहा हैं या निपटाये जा रहे हैं। हाथ से मुंह तक, कपड़ों से बर्तन तक सब आममय जो आपने भी अनेकों बार देखा होगा परंतु दिल पर हाथ रखकर कहों कि क्या आपने इन सबमें देश की राजनीति के आममय बनाने की संभावनाओं की कल्पना की थी? नहीं न।
आपके, मेरे और हमारे मित्रों, परिजनों के पिछड़ेपन का कारण ‘आम खाने हैं या पेड़ गिनने हैं’ जैसे सवालों से बंधे होना रहा। जिन्हें ‘आम के आम, गुठलियों के दाम’ बनाने आते हैं वे अपने पिछड़ेपन को कब का पीछे छोड़ राजनीति के मैंगो शैक का आनंद ले रहे हैं। हम तो ‘आंधी के आम’ तलाशते रहे लेकिन महंगाई की आंधियों ने आम को हमसे दूर कर दिया। इधर फिर से आम मुलाकात भी हुई तो जरा बदले हुए रूप में। फलों का राजा आम राजनीति का राजा बनने की तैयारी में था तो अनेक लोगों ने कहा, ‘हूं ये सड़ियल आम भला भला क्या राजा बनेगा?’
सच ही सडियल आम में संभावनाएं कम ही होती हैं लेकिन अडियल आम का भविष्य उज्ज्वल माना जाता है। किसी अनुभवी अन्ना का हाथ लग जाये तो चटक रंग और दावों के साथ बाजार पर छा सकता है। पाल का यह आम डाल के रसदार आमों की छुट्टी कर सकता है। यकीन करना ही पड़ता है कि एक बार ‘पांच साल, बेमिसाल’ होकर यह सब पुराने आमों का स्वाद तक भुला देगा। 
 अडियल आम के बारे मे अनेक भ्रम होते हैं। ये भ्रम उसकी उपयोगिता बढ़ाये या न बढ़ाये लेकिन संभावनाये जरूर बढ़ा और भड़का देते हैं। कुछ लोग ऐसे आम को कच्चा लेकिन अच्छा समझ कर उसका आचार बनाने की जुगत भिड़ाने लगते हैं। ऐसा बेमिसाल आचार जो चले सालों साल, दाम में कम लेकिन स्वाद में हो दम’। कोई ऐसी चटनी बनाने की सोचता है जो अच्छो- अच्छों के दांत खट्टे कर दे। 
तो कुछ लोग उसमें ऊँची कुर्सी तक पहुंचने वाले टिकाऊ मुरब्बे की संभावनाएं तलाशने लगते हैं। यह बात अलग है कि ऐसे अडियल आम को चुनने वाले प्रबुद्ध जन बाद में अकेले में सिर धुनते हैं क्योंकि वे उसके गुणों की इतना बखान कर चुके होते हैं कि बहुत चाव से तैयार किये़े आचार या मुरब्बे के  बिगड की कहानी कहना खुद को मूर्ख साबित करने के समान समझते हुए खामोश रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
इधर आमों की पार्टियों का प्रचलन समाप्त या कम हो गया तो  कुछ आम किसम के खास लोगों ने  एक आम पार्टी बनाने की सोची। यह आम भी सब पर भारी पड़ा और इस बार फलों के राजा से छलांग लगाकर भाग्यफल का राजा बन बैठा। लेकिन ऊपर से अडियल समझा जाने वाला यह आम कुछ ही दिनों में पिलपिले आम की तरह मौका-बेमौका पिचपिचाने लगा। अपने साथी आमों को अपनी पंगत से बाहर करने से सदाबहार सेव तक को गरियाने हुए गले में खिच खिच करने वाला यह आम जब बेकाबू होने लगा। तो किसी ने उसे मिश्री का सेक बनाने की सलाह दी लेकिन जल्दबाजी में उसने मिश्रा को मिश्री समझ लिया। मिश्रा खुद कलमी आम रहा है इसलिए वह  आमों के बारे में बेहतर जानता था। उसने कुछ ऐसा मंत्र फूंका कि खास होते हुए भी आम का पिलपिलाना एकदम गायब हो गया।
वैसे सबसे बड़ा धर्म संकट यह है कि अब जब कोई पूछता है कि आम कितने प्रकार के होते हैं? तो बहुत मुश्किल में पड़ जाता हूं क्योंकि यह खास किस्म का आम अपने अलावा किसी को आम मानने को तैयार ही नहीं है। बदले हुए वातावरण में कुछ लोग उस Spray का इंतजार कर रहे हैं जिसके छिडकाव से आम फिर से स्वाद देने लगेगा या फिर कूड़ेदान की शोभा बढ़ायेगा। इधर पंजाब ने चेताया है कि आंधी चुनावी हो या मायावी, आम के बारे में खास भविष्यवाणी करना खतरे से खाली नहीं है। इसलिए अपुन तो खामोश ही रहेगे क्योंकि हमें आंधी भी चाहिए  और आम भी!
--विनोद बब्बर संपर्क-   09868211911, 7892170421 Email--rashtrakinkar@gmail.com


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