भारतपुत्रों का देश है मोरीशस

अक्टूबर 2015 में एक प्रतिनिधि मंडल संग मोरीशस जाना हुआ। यूं तो इससे पूर्व भी दुनिया के अनेक देशों में जाने का अवसर मिला। लेकिन मोरीशस रवाना होते हुए विदेश नहीं, बल्कि अपनो से मिलन की अनुभूति  हो रही थी। क्योंकि वह भारतवंशियोें का देश है। भारतवंशियोें ने अपने पुरुषार्थ से न केवल उस धरती को स्वर्ग बनाया बल्कि पर्याप्त यश भी अर्जित किया। गंगा सा पवित्र अपनत्व मोरीशस की विशेषता है। उस धरती को प्रणाम करने और अपने बन्धुओं की यशोगाथा को बार-बार सुनने के बाद स्वयं अपनी आंखों से देखने, अनुभव करने के इस अवसर पर गौरवांवित महसूस करते हुए दिल्ली के इन्दिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट के टर्मिनल-3 से प्रातः 8 बजे एयर मोरीशस की फ्लाइट पर सवार हुए।
साढ़े सात घंटे की सुखद यात्रा के बाद पोर्ट लुइ के सर शिवसागर रामगुलाम अन्तर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर पहुंचे। दिल्ली के एयरपार्ट के मुकाबले काफी छोटा। मात्र कुछ विमान ही वहां खड़े दिखाई दिये। औपचारिकताओं में भी अधिक समय नहीं लगा क्योंकि हर काऊंटर पर हमारे ही साथी थे। यहां और भारतीय समय में डेढ़ घंटे का अंतर। बाहर निकले तो अनेक मित्रांे संग  रिमझिम फुहार ने किया स्वागत। हमें ली ग्रान्ड ब्लयू होटल ले जाने के लिए वाहन तैयार थे। एयरपोर्ट दक्षिणी छोर पर तो हमारा होटल उत्तर में समुन्द्र के बिल्कुल पास था। लगभग 40 किमी की दूरी तय करते हुए पहली नजर में मॉरीशस साफ़ सुधरा, सड़के ओमपुरी नहीं, सचमुच हेमामालिनी के गाल जैसी दिखी। गन्ने के देश में चारो ओर हरियाली। होटल में भी पूरी तरह से प्राकृतिक वातावरण। बढ़िया हिंदी बोलते भारतीय मूल के भले लोग। रात्रि में सुन्दर भोजन, घर जैसा अपनापन।
अगली सुबह जल्दी समुन्द्र की ओर सैर के लिए जाना हुआ। बहुत खुशनुमा मौसम। हल्की सर्दी। तट पर नारियल के घने ऊंचे पेड़, विस्तृत नीले समुन्द्र में कहीं-कहीं काली पत्थर की चट्टानें आकर्षित कर रही थी। समुन्द्र तट पर सफेद रेत। कहीं-कहीं शंख, सिप्पी भी। दूर से हड्डियों जैसे दिखाने वाले क्रीम रंग के पतले- कमजोर पत्थरों के ढ़ेर भी। वहां से लौटकर स्नान और फिर यज्ञ। होटल में बनी एक विशाल कुटिया में आचार्य चन्द्रशेखर शास्त्री के ब्रह्मत्व में प्रतिदिन यज्ञ की व्यवस्था थी। साढ़े आठ बजे होटल के विशाल डाइनिंग हाल में नाश्ता। फल, ब्रेड-बटर, जैम, दूध, दही के अतिरिक्त राजमा, पूरी भी। 
लगभग 10 बजे मुद्रा विनिमय (आश्चर्य की मोरीशस रुपये का मूल्य भारतीय रुपये से लगभग दुगना है) मोरीशस में 25 रुपये का नोट चलन में तो 200 और 2000 का भी। नये नोट प्लास्टिक के है तो पुराने हमारी तरह कागज के ही। लेकिन वहां पैसे को सेन्ट कहा जाता है। प्रथम दिवस अनेक समुन्द्र तटांे का अवलोकन। एक स्थान पर  अम्बरीश जी ने समुन्द्र में डूबी रेल की पटरी की ओर ध्यान आकर्षित किया जो ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव था। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ती जनसंख्या से बिगड़ते पर्यावरण के कारण केवल मोरीशस में ही नहीं, हमारे समुन्द्र तटों को भी खतरा बढ़ रहा है। विशेषज्ञ जिस ग्लोबल वार्मिंग को मुंबई सहित अनेक नगरो के अस्तित्व के लिए खतरा बताते हैं, उसका साक्षात्कार समुन्द्र में डूबी रेल की वह पटरी करा रही थी।
वहां से हम एक मॉल का अवलोकन करते हुए बोटानिकल गार्डन पहुंचे। द्वार से 200 रूपये का टिकट लेकर विशाल गार्डन में प्रवेश हुआ। अनेक प्रकार के विशाल वृक्ष। कुछ तो सैंकड़ो वर्ष पुराने भी। कुछ की जड़े इतनी विशाल और अजीब आकृतियों वाली की आंखे फटी रह गई। विशेष बात यह कि इस बाग में एक ऐसा पेड़ है जो साठ से सत्तर साल में एक बार फूलता है और इस का नाम ‘तालीपो’ है।  एक स्थान पर विशाल कछुए। भारत में पाये जाने वाले कछुओं से बिल्कुल भिन्न। आकार में किसी बछड़े से बिल्कुल कम नहीं लेकिन वजन निश्चित रूप से उससे भी अधिक। चाहे तो सवारी भी कर सकते हैं। एक बाड़े में कुछ बारहसिंघे विचरण कर रहे थे। इसी गार्डन में मोरीशस के राष्ट्रपिता सर शिवसागर रामगुलाम की समाधि है जिसपर पत्थर का विशाल कमल बना है तो देवनागरी लिपि में लिखा है- ‘राष्ट्रपिता की पुण्यस्मृति में’।  इसी गार्डन के छोर पर गन्ने के देश मोरीशस में स्थापित प्रथम शुगर मिल मशीने प्रदर्शित की गई थी। अनेक घंटे इस मनोहरम पार्क में बिताने के बाद थके हुए हम अपने होटल की ओर रवाना हुए। रास्तें में हर तरह गन्ने के खेत तो कुछ स्थानो पर अन्नानास की फसल देखने को मिली। 
यहाँ का यातायात अनुशासन प्रशंसनीय है। कहीं कोई हड़बड़ाहट नहीं, कोई आगे निकलने की होड़ नहीं, लाल बत्ती उल्लंघन नहीं। यहाँ तक कि दूसरी तरफ की सड़क खाली हो तब भी चुपचाप लाइट ग्रीन होने का इन्तजार। ख़ास बात यह कि पुलिस की उपस्थिति भी न के बराबर। कहीं कोई हॉर्न नहीं बजाता, सामने  वाहन आते देख उसे पहले निकलने का संकेत। एक स्थान पर ट्रैफिक जाम दिखा लेकिन आश्चर्य कि दूसरी ओर की सड़क खाली होते हुए भी कोई भी हम भारतीयों की तरह ‘पूर्ण’ जाम का कारण नहीं बना इसलिए कुछ  मिनटों में स्थिति सामान्य हो गई। यातायात प्रबंधन के लिए अति आधुनिक संसाधनों की मदद ली जाती है। जैसे स्थान-स्थान पर कैमरे लगे होना। सड़क विस्तार अथवा मरम्मत वाले स्थान पर विशेष व्यवस्था।   मोरीशस पुलिस की वर्दी भी हमसे भिन्न। खाकी के स्था पर आसमानी रंग की कमीज तो नेवी ब्ल्यू रंग की पेंट, इसी रंग की कैप। रात्रि में दूर से चमकने वाले बेल्ट। कारों की भरमार परंतु दोपहिया वाहन यहां बहुत कम हैं। दोपहिया पर दोनो सवारियों के लिए हेल्मेट जरूरी तो अंधेरे में दूर से चमकने वाली क्रास बेल्ट। मजाल कि कोई नियम का उल्लंघन करने की सोचे भी। एक मित्र हमसे मिलने आये तो उन्होंने त्रियोले स्थित सर्वोदय आश्रम और ऐतिहासिक शिव मंदिर चलने का आग्रह किया। उनके साथ चलने को तैयार हुआ लेकिन उन्होंने दूसरे हेल्मेट की व्यवस्था करने के बाद ही बाइक पर बैठाया। इतनी ही नहीं अपने दो सप्ताह के प्रवास के दौरान हमें कहीं भी कोई नशे में ‘टुल’ नहीं मिला- न झूमना, न हंगामा, न सड़क पर लेटना। हाई वे किनारो पर दुनिया भर की तरह विशाल होर्डिंग तो हैं लेकिन हमारे तथाकथित ‘सुसंस्कृत’ विज्ञापनों से पूरी तरह अलग। कहीं भी नारी देह नहीं। सब शालीन, स्पष्ट। यह सब देख हृदय गद्-गद् हो उठा। आखिर यह जरुरी हो कि लघु भारत ही भारत से सीखेगा। क्या बड़ा भाई छोटे भाई कुछ नहीं सीख सकता? क्या भारत को एक विशाल मोरीशस नहीं बनाया जा सकता?
भारत से दूरी 5815 किमी है। हिन्द महासागर भारत और मॉरीशस को जोड़ता है।  छोटे चमकदार मोती जैसा  प्राकृतिक सौंदर्य का पर्याय है यह देश है। चारो ओर समुन्द्र घिरा हुआ। हर तरफ हरियाली ही हरियाली। नारियल के पेड़ो के झुण्ड है तो चीड़ के पेड़ भी बहुत है। हर समुन्द्र तट विशेषता लिए हुए। बिलकुल साफ चमकदार पारदर्शी है समुन्द्र का पानी, सफ़ेद रेत। मजेदार बात यह है कि यहाँ न तो कोई जहरीले जीव जंतु (सांप, बिच्छु आदि) हैं और न ही शेर, चीते जैसे हिंसक जीव।  लेकिन एक बात विशेष रूप उसे उल्लेखनीय है कि नारियल पानी का स्वाद हमारे यहाँ से बिलकुल कुछ अलग, लगभग फीका सा है। पहली बार ऐसा महसूस हुआ मानो सादा पानी पी रहे हों।   
लोग शांत स्वभाव के मेहनती और  ईमानदार है। उनकी मेहनत और सरकार की नीतियाँ चहुँ ओर दिखाई देती है। आश्चर्य कि हर वरिष्ठ नागरिक को 5000 रु. पेंशन मिलती है। वो भी बिना किसी सांसद,विधायक की शरण गये बिना। दफ्तरो ंके चक्कर लगाये बिना।  सभी का बैंक खाता है। 60 वर्ष का होते ही  उसके खाते में पेंशन आना सुनिश्चित करना बैंक मैनेजर की जिम्मेवारी है। वरिष्ठ नागरिकों को कहीं भी बस से मुफ्त यात्रा की सुविधा। निःशुल्क उपचार। हर तरफ पक्के खूबसूरत मकान। हर घर में रंग-बिरंगे फूल। आश्चर्य कि कहीं भी कोई कच्चा घर, झुग्गी दिखाई नहीं दी। जिन्हें गांव कहा गया वे भी हमारे महानगरों की बस्तियों से बेहतर। शानदार पक्के मकान। साफ-सुथरी सड़के। कहीं गंदगी के ढेर नहीं, कहीं हुल्लड़, हंगामा नहीं। हैट लगाये सब अपने काम में मस्त। महिलाये भी सजग, कामकाजी है, यहाँ सभी हिंदी तो बोल सकते है लेकिन देवनागरी लिपि में लिखा एक भी बोर्ड दिखाई नहीं दिया। फ्रंेच और अंग्रेजी का प्रभाव है- अनेक ऐसे युवा भी मिले जो हिंदी समझ तो सकते है पर बोल नहीं सकते इसीलिए नई पीढ़ी को संस्कृति से जोड़े रखने पर बल दिया जा रहा है। उन्हें अपने  भारतीय मूल पर गर्व है। हमारे यहां कुछ लोग स्वयं को बिहारी कहे जाने पर बिगड़ते हैं लेकिन एक पर्यटन स्थल पर एक महिला ने नमस्ते किया तो मैंने उससे पूछा- क्या  आप भारतवंशी हैं? उसने उत्तर दिया- नहीं हम तो बिहार के है। मैंने उसे समझाना चाहा- बिहार भारत में ही है लेकिन उसने कहा- होगा, लेकिन मैं तो बिहारी हूँ।
 बेशक प्रथम रात्रि को जमकर बारिश हुई लेकिन उसके बाद धूप जरूर कुछ तीखी लगती है परंतु मौसम लगातार खुशनुमा बना रहा। तीसरी सुबह हमने गंगा तालाब जाने का निर्णय किया। ऊंचाई पर बनी इस प्राकृतिक झील का नाम परी तालाब था लेकिन जब भारत की गंगा नदी से जल लाकर इस सरोवर में मिलाया गया और इसका नाम गंगा तालाब रखा गया। अब यह स्थान भारतवंशियों की गंगा है। हम भी भारत से अपने साथ गंगाजल ले गए। मंत्रोचारण के बीच गंगा तालाब को अर्पित करते हुए अपने बिछुड़े हुए भाइयो को श्रद्धा से स्मरण किया तो वहां उपस्थित सभी लोग यह दृश्य देखकर अभिभूत थे। अपने साथ भारत लाने के लिए हमने गंगा तालाब का जल भी लिया जिसे  प्रयाग में संगम में प्रवाहित किया जाएगा।  गंगा तालाब के एक ओर ऊँची पहाड़ी पर हनुमान मंदिर है तो दूसरी ओर कांशी विश्वनाथ मंदिर है। इसी परिसर में विशाल शिव मूर्ति है, बिलकुल गुडगाँव रोड वाले शिव जैसी। वही कॉपर कलर। वही दिव्यता। पिछले दिनों भारतीय प्रधानमन्त्री मॉरीशस आये तो वह एयरपोर्ट  से सीधे गंगातालाब गए थ। मंगल महादेव पर लगा एक पत्थर मोदी जी की उपस्थिति गवाही देता है। विशेष बात यह कि शिवमूर्ति के उस पार सिंह सवार दुर्गा की विशाल मूर्ति भी लगभग तैयार होने को है। गंगा तालाब मंदिर के मुखिया पं जगदीश दयाल ने हमारा स्वागत किया और अपना साहित्य भेंट किया। ज्ञातव्य हो पं जगदीश दयाल के भाई श्री राम दयाल वर्तमान सरकार में महत्वपूर्ण मंत्री है। यह जानकारी भी मिली कि इस प्रकृति झील का नाम परी तालाब था लेकिन जब भारत की गंगा नदी से जल लाकर इस सरोवर में मिलाया गया और इसका नाम गंगा तालाब कर दिया गया।
मोरीशस हिन्दु बहुल्य देश है। लेकिन यहां गौरे, मुस्लिम, ईसाई और अफ्रीकी (क्रोयली) भी है। जमीन गौरे की है तो बड़े व्यापार पर भी उन्हीं का अधिपत्य है। छोटे व्यापार पर मुस्लिम हावी है। मुस्लिम महिलाएं बाजार पर पटरी पर फल, सब्जी तथा अन्य घरेलु सामान बेचती है। हिन्दु नौकरी करना पसंद करते हैं। हिन्दु  आर्यसमाज, सनातन धर्म, जिसे पौराणिक कहा जाता है, में बंटे हुए है। इसके अतिरिक्त सांई सहित अनेक मत बहुत तेजी से पनपे हैं।  सरकार की ओर से सभी धार्मिक संस्थाओं को  अनुदान दिया जाता है। चर्च को अनुदान देने की परम्परा सदियों से थी। लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात इसे समाप्त करने की बजाय सभी संस्थाओ को अनुदान दिया जाने लगा जो उनके सदस्यों की संख्या के अनुसार दिया जाता है। आर्य समाज का काम केवल धर्म प्रचार-प्रसार तक सीमित नहीं है बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान है। यहां अनेक डीएवी कालेज, महर्षि दयानंद इन्टीच्यूट, विंकलांगों के लिए स्कूल, प्रशिक्षण केन्द्र तथा स्कूल संचालित किये जाते हैं।  
कभी भारत से एक पत्रिका का संपादन करने के लिए बुलाये गये श्री राजेन्द्र अरुण  और उनकी पत्नी डा. वीनू अरुण पूरी तरह मोरीशस के हो चुके है और विश्व स्तरीय रामायण सेन्टर चलाते हैं जिसमें शोध की व्यवस्था है तो विशाल सभागार है। पिछले दिनो यहां विश्व रामायण मेले का आयोजन भी हुआ। कछुए के आकार के विशाल मंदिर का निर्माण कार्य जारी है। नवरात्र के अवसर पर प्रतिदिन वहां विशेष आयोजन होता है जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं। एक शाम हमें भी व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया।
अपने प्रवास के चौथे दिन आर्यसमाज पोर्ट लुइस में हमारा स्वागत किया गया। यहां 400 आर्य समाज है। यह उन सभी समाजों की मुख्य संस्था है। संस्था के महामंत्री श्री हरिदेव रामधनी ने मॉरीशस के इतिहास भूगोल की जानकारी दी। उनके अनुसार, ‘जब देश आजाद हुआ तो श्री शिवसागर रामगुलाम जी कार्यभार संभालने से पहले इस ऐतिहासिक आर्यसमाज में परम्परागत भारतीय वेशभूषा में यज्ञ करने आये। यहाँ से लौटकर उन्होंने सामने के विशाल मैदान में गुलामी का प्रतीक यूनियन जैक उतारा और स्वतंत्र मॉरीशस का ध्वज फहराया।’ तो मैं सोच रहा था कि आखिर हमारे देश में आज तक कोई प्रधानमंत्री ऐसा क्यों नहीं कर सका? धर्मनिरपेक्षता का अर्थ तुष्टिकरण क्यों हो गया? लोकतंत्र में बहुमत का शासन होता है लेकिन यहां अल्पमत हावी क्यों रहता है? तभी रामधनी जी ने मुझे कुछ शब्द बोलने के लिए कहा, तो मैं केवल इतना ही कह सका, ‘दुनिया का हर आदमी उस पत्थर को तलाशता है जिसके नीचे सोना दबा हो। अधिकांश को ऐसा पत्थर कभी नहीं मिलता लेकिन हमारे बन्धु वे भारतवंशी जिन्हें छली मारीच सोना मिलने का झांसा देकर मोरीशस लाये थे। उन्होंने अपार कष्ट सके और अपने पुरुषार्थ  से यहां जिस पत्थर को भी स्पर्श किया उसे सोने का बना दिश। उनके खून,पसीने और आंसूओं ने इस धरती की तकदीर और तस्वीर दोनो बदल दी। धन्य थे वे मेरी धरती के पुत्र जिन्होंने दुःख सहकर भी अपनी संतानों को भारतीय संस्कृति से जोड़े रखा और जाते-जाते भी उनके लिए सुख की फसल छोड़ गये। हम भारतवंशियों के लिए गंगा अपनी पवित्रता और हल्दीघाटी शौर्य का प्रतीक है। हम कहीं भी रहे इनके प्रति श्रद्धा होना स्वाभाविक है। मेरे देश के महापुरुष जो कभी गिरमिटिया बनकर मोरिशस आए थे आज वे गोरमिन्ट तक पहुंच कर स्वयं अपने भाग्य विधाता बने हैं। उनका संघर्ष राणा प्रताप और अकबर के संघर्ष जैसा था। आज जब वे अपने संघर्ष  में विजयी हुए है। हल्दीघाटी की माटी स्वयं उनका अभिषेक करने आई है।’ यह कहते हुए मैंने गंगाजल और हल्दीघाटी की माटी उन्हें भेंट की। जिसे उन्होंने अपने पूर्वजों के स्मारक पर तथा उसके आसपास लगे पौधों पर छिड़कने का आग्रह किया। वहां उपस्थित जनसमुदाय की करतल ध्वनि के बीच मैंने तथा मेरे साथियों ने उस स्मारक का अभिषेक किया। उस अवसर समाज के पुरोहित मंडल के मंत्री पं. श्याम धनेश्वर दायबू ने अपने सुमधुर स्वर में गीत ‘हम लाये है हिन्दुस्तान से संस्कृति निकाल के, इस संस्कृति को रखना मेरे बच्चो संभाल के।’  प्रस्तुत कर सभी को भावविभोर कर दिया। उनके अनुसार यह गीत यहाँ बहुत प्रचलित रहा है। 
पांचवे दिन हमारा दल मॉरीशस के दक्षिणी समुद्र गिर-गिर (Gris-Gris) देखने गया।  यहाँ समुद्र गुजरात के तट की तरह खूब दहाड़ता है। उसके निकट जाना खतरे  खाली नहीं है. इस स्थल को सुसाइड प्वाइंट भी कहा जाता है। इस साफ सुधरे स्थान पर ठंडी और तेज हवाये चल रही थी।  हमने दोपहर का भोजन निकट के मैदान की खिली हुई धूप में किया। यहाँ हमारी मुलाकात दो लोक कलाकार बहनो सुश्री प्रियंवदा और जानकी से हुई। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज आजमगढ़ के थे। दोनों बहनो का स्वर बहुत मधुर है। उन्होंने अनेक भजन, गीत, गजले प्रस्तुत कर सभी का दिल जीत लिया। वे दिल्ली सहित भारत के  अनेक नगरो में भी प्रस्तुति दे चुकी है। मजेदारी यह रही कि उन्होंने हमसे  कुछ लेना तो दूर बल्कि उल्टा हमें ही मूंग पकोड़े और घर की बनी चटनी खिलाई तथा  अपने घर के निकट मंदिर में होने वाले कार्यक्रम का निमंत्रण भी दिया। 
उसी दिन हमने शामारेल नामक स्थान पर कुदरत का चमत्कार सतरंगी मिट्टी देखने का अवसर भी मिला। यहां 150 रुपये टिकट लगती है। बताया जाता है कि ज्वालामुखी के प्रभाव से ऐसा हुआ। कभी इस स्थान की खुदाई कर इसे खेती के लिए तैयार किया जा रहा था परंतु जब उन्हें कुदरत के इस चमत्कार की जानकारी मिली तो इसे यथावत संरक्षित रखने की फैसला किया गया। लगभग सूर्यास्त तक हम उसी स्थान पर रहे। केवल हम ही नहीं दुनिया के विभिन्न देशों के पर्यटकों की वहां भीड़ थी।
एक दिवस नेशनल म्यूजियम जाना हुआ। यह स्थल कभी महल था लेकिन अब इसमें मोरीशस के पूरे इतिहास की झलक देखी जा सकती है कि किस तरह पुर्तगाली, डच, फ्रांसिसी और उनके बाद अंग्रेजों ने वहां अपना अधिपत्य जमाया। वहां से लौटते हुए हुए हम कुछ देर मिडलेंस मॉल में रूके। जब बाहर निकले तो एक युवक ने ‘सतश्री अकाल’ कहा। मैंने उससे पूछा- किसने सिखाया? उसने पास ही फुटपाथ पर काम कर रहे एक युवक की ओर इशारा किया। तभी इन्द्रजीत नामक उस युवक ने हाथ जोड़कर अभिवादन किया तो मैंने उससे पंजाबी में बातचीत आरंभ की। नवांशहर पंजाब निवासी वह युवक बहुत प्रसन्न होकर बोला, ‘मैं पिछले 6 साल से यहां काम करता हूं लेकिन पहली बार किसी अपरिचित ने मेरी मां बोली में बात की।’ उसने बताया कि पोर्ट लुइस में एक गुरुद्वारा भी है। वैसे मोरीशस में पंजाबी बहुत कम है। क्योंकि वे व्यापार में रूचि रखते हैं लेकिन यहां परिस्थितियां   बहुत अनुुकूल नहीं है। मैं उस समय निरूत्तर रह गया जब रोजवैल गांव में रह रहे इन्द्रजीत ने हमें पंजाब की ताजा घटनाओं से परिचित कराते हुए कहा, ‘यहां इतने धर्मो के लोग बिना झगड़े रहते हैं लेकिन हमारा ज्यादा समय तो धर्म के नाम पर झगड़ों में क्यों बर्बाद करते हैं।’ 
महर्षि दयानन्द इन्स्ट्रीच्यूट में आयोजित एक समारोह के बाद मैंने प्रवेश की औपचारिकताओं और फीस के बारे में जानकारी लेना चाहा तो कालेज के डीन डा. उदयनारायण गंगू ने बताया के मोरीशस में शिक्षा निःशुल्क है। स्कूल ही नहीं कालेज मेें भी। सरकारी ही नहीं प्राईवेट स्कूल कालेज फीस नहीं लेते। सरकारी मान्यता के बाद वेतन तथा अन्य खर्चे सरकार वहन करती है। इसी प्रकार चिकित्सा सुविधाएं भी निःशुल्क है। सर शिवसागर रामगुलाम अस्पताल तथा जवाहरलाल नेहरु अस्पताल वहां के प्रमुख अस्पताल है।
समय के साथ बहुत बदलाव हुआ है। अतः अब युवक ही नहीं अधिकांश युवतियां भी कामकाजी है। मोरीशस में इन दिनांे विवाह का प्रचलन बदला है। अधिकांश बच्चे अपनी इच्छा से  शादी करते हैं। जिसे अभिभावक और समाज भी सहज स्वीकार कर लेता है। खास बात यह कि वर्ष के केवल पितृपक्ष को छोडकर सारा साल शादियां होती है। लेकिन भारत की तरह रात में नहीं  दिन में। कार्यक्रम भी तय है। शुक्रवार को तेल- उबटन, शनिवार को महिलाओं के गीत और रविवार को शादी। अगर कोई चाहे तो उसी शाम बहुभोज (रिस्पशन) अगले सभी अपने अपने काम पर। 
मोरीशस क्षेत्रफल में लगभग दिल्ली जितना लेकिन जनसंख्या मात्र 12 लाख। इसलिए कहीं भीड़-भाड़, प्रदूषण नहीं। इन दो सप्ताहों में पूरे मोरीशस की कई बार परिक्रमा हो गई। शामारेल की वह रहस्यमयी रंगबिरंगी धरती और पापिलेमूस के थालीदार पत्तोंवाले शतदल कमल और सैकत तटों के जादू रेखाओं वाले शंख और चीड़ वनों के बारहसिंगे. काजेला चिड़िया घर, कोदाँ वाटर फ्रन्ट, ले गोर्ज सहित बहुत कुछ देख। एक प्रातः जाने-माने हिन्दी साहित्यकार श्री रामदेव धुरन्धर जी हमें अपने घर जाने अपनी गाड़ी से पहुंचे। रास्ते भर उन्होंने हमे मोरीशस के इतिहास के विभिन्न पक्षों तथा वर्तमान समाज की परम्पराओं की जानकारी दी। लगभग 40 किमी की दूरी तय करते हुए उन्होंने अनेक मनोहरम स्थलो को भी दिखया।  हम साउसिस नामक स्थान पर भी रूके जहां ग्रान्ड रिवर पर पुल बनाये जाने की योजना था लेकिन अध्ययन के बाद यह पाया गया कि इससे जहाजो, नावों के आवागमन में बाधा उत्पन्न होगी तो सरकार ने दोनो की बस्ती के लोगों के नदी पार करने के लिए निःशुल्क नाव उपलब्ध कराई। यह परम्परा सदियों बाद आज भी जारी है। जब हम वहां पहुंचे तो एक युवती ने हमसे पूछा, ‘उह पार जायबे’ तो धुरंधर ने बताया कि यहां दोनो ओर भोजपुरी भाषी लोग का बहुल्य है। वैसे मोरीशस में आम बोलचाल की भाषा क्रोयली है। । 
यह स्मरणीय है कि यात्रा के दूसरे चरण में हमारा प्रवास प्रेन माया गांव के पास अभी हाल में बने अति आधुनिक वैदिक सेन्टर में था। पास के एक गांव का नाम त्रिबुचिक है। इसी गांव के नाम निवासी श्री रामधनी जी ने बताया कि  क्रयेाली में दुकान को बुचिक कहते हैं। यहां कभी तीन दुकाने थी। उसी से इसका नामकरण हुआ।  
 प्रतिदिन अनेक कार्यक्रमों में सहभागिता, व्यस्तता के बीच बहुत कुछ देखा लेकिन अप्रवासी घाट को नमन करने का सपना अब भी अधूरा था। इसलिए अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव पर हठ करके हम अप्रवासी घाट जाना पड़ा क्योंकि उस स्थान को प्रणाम किये बिना अधूरा रहता मोरीशस प्रवास। कुली घाट भी कहा जाने वाले इसी स्थान पर 2 नवंबर 1834 को कोलकाता से आये समुन्द्री जहाज अत्लास पर सवार होकर भारतीयों ने अपने प्रथम कदम रखे थे। उसके बाद निरन्तर भारत के भिन्न-भिन्न प्रान्तों, जैसे आंध्र प्रदेश, बिहार, बम्बई, उत्तरप्रदेश के विभिन्न स्थानों से लाये जामे रहे। अधिकांश हिन्दु थे तो कुछ मुसलमान भी थे। अब विश्वविरासत घोषित किये जा चुके इस स्थल पर पहुंचते ही मन-मस्तिष्क स्मृतियों में खो जाता है। वे तंग सीढ़ियां, जिन्हें चढ़कर मेरे भारतपुत्र मारीशस की धरती को अपने खून पसीने से सींचने के लिए आये। वह नहाने का हौदा, वे कोठरियां सुरक्षित हैं, जहां उन्हें सैकड़ों-हजारों की संख्या में ठूंस दिया जाता था। वे कक्ष जहां उन्हें कुछ दिन रखा जाता था। इतिहास के उस काले अध्याय के मौन साक्षी है। मैंने उन सीढ़ियों को छूकर अपने माथे से लगाया और उन सभी की स्मृति को प्रणाम किया। पिछले दिनों हमारी विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने उस घाट का दौरा किया तथा अप्रवासी घाट पर सोये हुए इतिहास को जीवान्त करते संग्रहालय का उद्घाटन किया। उस समय की अनके वस्तुए वहां आज भी सुरक्षित रखी गई है। झोपड़ियों का प्रारूप, पत्थर का सिल बट्टा, चक्की, बर्तन अपने समय की कहानी कहते हैं।  विशेष स्मरणीय है कि मोरीशस में 2 नवंबर 1834 की स्मृति को नमन करने के लिए अप्रवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यहां इसदिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है। इस संग्रहालय के अधिकारी संजय ने हमारा स्वागत किया और हमें विस्तृत जानकारी देती पुस्तक भेंट की। उन्हें भारत से बहुत स्नेह है क्योंकि वह दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय के छात्र रह चुके हैं।  यहां के अधिकांश गांवों के नाम फ्रांसिसी नाम है तो अनेक स्थानों पर भारतीयता की छाप भी दिखाई देतह है जब  टैगोर स्ट्रीट, शांति निकेतन, महर्षि दयानंद मार्ग दिखाई दें।  कहने को बहुत कुछ है लेकिन फिलहाल इतना ही. अंत में इतना कि वहां के लोग हर छोटी बात पर भी ‘मैसी’ कहकर आभार व्यक्त करना नहीं भूलते। आशा है आप संक्षिप्त लेख को पढ़ने के बाद ‘मैसी’ कहना चाहेंगे लेकिन मुझे कहना होेगा ‘द्वे-रिया’   विनोद बब्बर संपर्क-09868211911


गन्ने के देश में





प्रथम प्रवासियों के स्मारक पर
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