भिखारी नहीं, विकास के वाहक

भिखारी नहीं, विकास के वाहक
राजनीति अपनी कुटिलता छोड़ नहीं सकती इसलिए भले लोग भी कब बुरी बात कह दें कहा नहीं जा सकता। जब जिम्मेवार लोग भी अपने क्षुद्र राजनैतिक लाभ के लिए गैरजिम्मेवारी का प्रदर्शन करते हैं तो लोकतंत्र की परिभाषा गड़बड़ाने लगती है। उत्तरप्रदेश चुनावों की पूर्व सन्ध्या पर कांग्रेस के कर्णधार समझे-जाने वाले राहुल गांधी ने अपनी सक्रियता को आक्रामकता प्रदान करते हुए एक सभा में युवाओं की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘कब तक आप लोग महाराष्ट्र जाकर भीख मांगोगे? कब तक दिल्ली, पंजाब में मजदूरी करोगे?’ बेशक उनके इस कथन को उनके राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी गलत बताते हुए जनता को अपने-अपने पक्ष में गोलबंद करने की कोशिश करेंगे लेकिन हम भी 120 करोड़ भारत पुत्रों के अधिकार की बात करेंगे क्योंकि हम राष्ट्र-किंकर हैं। हमारे लिए राजनीति नहीं, राष्ट्रहित सर्वोपरि है।
प्रश्न यह है कि क्या अपने ही देश के दूसरे राज्य में जाकर रोजी-रोटी कमाना भीख मांगने के समान है? क्या अपने गृह राज्य से बाहर मजदूरी करना अपमानजनक है? यदि हाँ, तो क्या जो बात आज दूसरे राज्य के लिए कही जा रही है, वह कल दूसरे नगर या दूसरे गांव तक नहीं पहुंचेगी इसकी क्या गारंटी है? इस तरह तो हम लगातार संकीर्णता का विस्तार करते रहेंगे। तब ‘कश्मीर से कन्याकुमारी तक, कच्छ से करीमनगर तक, सारा भारत एक है’ जैसी बातों का क्या अर्थ शेष रहेगा? आज रोजगार के लिए दूसरे राज्य में जाने पर ऐसी बोली बोली जाएगी तो कल शिक्षा, प्रशिक्षण, पर्यटक पर भी सवाल उठेंगे। पुलिस और अर्ध सैनिक बलों की दूसरे राज्यों में नियुक्ति पर भी कोई सिरफिरा अंगुली उठा सकता है। देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था भी यदि ऐसी बातों तक जा पहुची तो क्या होगा? आज साम्प्रदायिकता को सबसे बड़ा खतरा बताया जाता है लेकिन इस तरह की बातों तो उससे भी ज्यादा खतरनाक हो सकती है।
यह सत्य है कि हर राज्य विकसित होना चाहिए। वहाँ रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध होने चाहिए। कानून-व्यवस्था दुरूस्त हो, नागरिक सुविधाएं हो, सभी को समान रूप से विकास करने का अवसर मिलना चाहिए। लेकिन आजादी के 64 वर्षों बाद भी यदि ऐसा नहीं हो पाया है तो दोषी कौन है? क्या वर्तमान मुख्यमंत्री ही अकेले जिम्मेवार है? अब तक की सरकारों को दोषमुक्त कैसे किया जा सकता है?सांसद की विकास में क्या भूमिका होती है, इस पर बहस होनी चाहिए। जो व्यक्ति पिछले अनेक वर्षों से सांसद हो और उसकी की पार्टी की सरकार हो। उस पर भी वह स्वयं सरकार को प्रभावित करने की योग्यता, क्षमता रखता है, उसके स्वयं के क्षेत्र में रोजगार और विकास की स्थिति क्या है, इस पर चर्चा अवश्य होनी चाहिए। क्या वहाँ के युवक रोजगार की तलाश में महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली अथवा अन्यत्र नहीं जाते? यदि हाँं तो क्या यह उनकी विफलता नहीं है?
अमेठी और रायबरेली की अपनी अनेक यात्राओं के अनुभव के आधार पर कहना चाहता हूँ कि आजादी के बाद से लगातार राहुल गांधी के पूर्वजों का यह क्षेत्र आज भी उपेक्षित है। सुविधाएं इतनी न्यून हैं कि उल्लेख करना स्वयं को शर्मसार करना है। यदि ये वीआईपी क्षेत्र भी महाराष्ट, पंजाब, दिल्ली के पिछड़े क्षेत्रों की बराबरी नहीं कर सकते तो इसकी नैतिक जिम्मेवारी उन्हें लेनी चाहिए। पश्चिम और बाहरी दिल्ली में स्वयं राहुल जी और उनकी माताश्री के निर्वाचन क्षेत्र के लाखों लोग रहते हैं। जब वे अपने पैतृक क्षेत्रों के विकास की चर्चा में मौन, स्तब्ध रह जाते हैं तो निश्चित रूप से यह हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह है।
किसी प्रवासी को अपमानित को करने का अर्थ है कि स्वयं को असक्षम घोषित करना। वे लाखों भारत पुत्र जो विदेशों में रह कर न केवल जीविका अर्जित कर रहे हैं बल्कि अपनी मातृ-भूमि का गौरव भी बढ़ा रहे हैं, राहुल जी उनके बारे में ऐसा सोच भी नहीं क्योंकि वे वोट बैंक का हिस्सा नहीं हैं। प्रवासी विकास का परचम लिए चलता है। वह अपनी श्रमशीलता से केवल अपनी रोजी-रोटी ही नहीं सुनिश्चित करता बल्कि उस क्षेत्र के विकास का वाहक भी बनता है। दुनिया के सभी महानगर जिसमें राहुल जी का नगर भी शामिल है, प्रवासियों के कठोर परिश्रम और साधना का ही परिणाम है। इसलिए श्रमशीलता का अभिनंदनकरना चाहिए, नकि राजनीति के पचड़े में फंसाना चाहिए वरना यह सवाल भी उठेगा कि दिल्ली में रहते हुए अपनी राजनैतिक दुकानदारी चलाने अर्थात् चुनाव लड़ने उत्तर प्रदेश जाने के विषय में उनके विचार क्या है? मजदूर तो मेहनत करता है लेकिन नेता तो द्वारे-द्वारे कुछ (वोट) मांगने ही जाते हैं।
राहुल गांधी युवा हैं निश्चित रूप से उनमें अनुभव की कमी है। बहुत संभव है ये विचार स्वयं उनके न हो क्योंकि उनके सलाहकार उनके भाषण और नारे तैयार करते हैं। उनकी भी खबर ली जानी चाहिए कि ऐसा लिखने अथवा समझाने का दुस्साहस उन्होंने कैसे किया? चुनाव आयोग को भी ऐसे वक्तव्यों का संज्ञान लेना चाहिए। प्रथम बार चेतावनी तथा इस गलती को दोहराये जाने पर सजा देनी चाहिए।
यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि सारा भारत एक है। हर भारतीय नागरिक को देश के किसी भी प्रांत में जाने, कमाने, बसने का अधिकार है। कश्मीर में भी, जहाँ राहुलजी के पूर्वजों ने धारा 370 लगाना स्वीकार कर इस अधिकार को बाधित कर दिया है। सारा देश हमारा घर है इसलिए प्रवासी का अर्थ भिखारी हर्गिज स्वीकार नहीं किया जा सकता। भारत माता की सभी संतानों को अपनी माता की गोद में रहने के अधिकार से वंचित करना अथवा इस संबंध में ऐसी तुच्छ टिप्पणी करना देशभक्ति नहीं हो सकती। यह हम सभी के लिए गर्व का विषय है कि हमारी माँ की गोद इतनी विशाल है कि कश्मीर, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, बिहार, अरूणाचल सहित सारे भारतीय भूभाग पर हमारा पैतृक अधिकार है। उस पर सवाल उठाने वाले शिव सैनिक हो या राहुल गांधी, नासमझ हैं। इन्हें सार्वजनिक जीवन में रहने के लिए सर्वप्रथम अपनी मानसिकता का शुद्धिकरण करवाना चाहिए जो कि राजनैतिक लाभ की कामना से लगातार प्रदूषित हो रही है।
उन्हें समझना होगा कि इस देश की प्रगति में किसी एक परिवार, एक क्षेत्र अथवा एक पार्टी का योगदान नहीं है और न ही वे अकेले प्रगति का श्रेय और आनन्द लेने के अधिकारी है। हर जाति, हर समुदाय, हर क्षेत्र का व्यक्ति और हर क्षेत्र के उत्पाद, रीति-रिवाज भारत की उन्नति के घटक है। करोड़ो हाथ मिलकर देश की तस्वीर बदल सकते हैं तो ये हाथ देश की एकता पर प्रहार करने वालों की खबर भी ले सकते हैं। स्वामी रामतीर्थ भारत को एक शरीर मानते थे, जिसके किसी भी अंग पर चुभन, दर्द सारे शरीर की पीड़ा है। जब तक एक भी क्षेत्र पिछड़ा है, एक भी भारत पुत्र उपेक्षित है, हम चैन से नहीं बैठ सकते।
जो चुनावी मोर्चा जीतने के लिए अमर्यादित भाषा बोल रहे हैं वे यह नहीं जानते कि हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार देश में गरीबी तो काबू में नहीं आ पा रही लेकिन अरबपतियों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। इस समय अरब पति धनकुबेरों की संख्या 8200 बतायी गई है जिनकी कुल सम्पत्ति 47,57,000 करोड़ रूपये बतायी गई है जो पूरे देश की अर्थव्यवस्था के 70 प्रतिशत के बराबर है। राहुल जी को शायद यह भी स्मरण नहीं रहा कि स्वयं उन्हीं की केन्द्र सरकार लाख कोशिशों के बाद भी महंगाई को नियंत्रित नहीं कर पा रही है। जबकि उच्चतम न्यायालय में शपथ पत्र प्रस्तुत कर प्रतिदिन 26 रूपये कमाने वाले को गरीबी रेखा से ऊपर घोषित करती है। भ्रष्टाचार के नित नये रिकार्ड बन रहे हैं। यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहले बार है कि केन्द्रीय मंत्री तक जेल में हैं तथा कुछ अन्य संदेह के दायरे में हैं। जबकि युवानेता केवल यूपी के भ्रष्टाचार, माफिया को ही कोसते हैं। भ्रष्टाचार कहीं भी कांग्रेस शासित राज्य में या भाजपा, बसपा शासन में अक्षम्य है। बेशक सरकार लोकपाल पर अपने वायदे से बंधी है लेकिन अनेक लोगों का मत है कि केवल लोकपाल से ही व्यवस्था सुधरने वाली नहीं है। देश के प्रमुख उद्योगपतियों ने भी कहा है- हरेक नागरिक की आकांक्षाओं पर खरा उतरने के लिए सरकार को आमूल चूल परिवर्तन करने चाहिए। नीति- निर्धारण में राजनैतिक बहानेवाजी नहीं चलेगी। स्वयं कांग्रेसी सांसद उद्योगपति नवीन जिंदल ने भी तेजी से निर्णय और क्रियान्वयन हो पाने को देश की क्षति बताया है। राहुल जी को इन बातों पर ध्यान देना चाहिए। तभी बचेगी उनकी पार्टी, उनकी सरकार और उसकी साख।
जनता परिणाम चाहती है, भाषण नहीं। भाषणों से कोई भी बार-बार जनता को बहका नहीं सकता। विकास आज की जरूरत है जिन्होंने इसकी उपेक्षा की और केवल अपना ही विकास करते रहे वे इतिहास के कूड़ेदान में शोभा पाते हैं। यकीन न हो तो बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश में भी देख सकते हैं। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि अपनी गलती को स्वीकार करने का बड़प्पन राहुल दिखायेंगे, अपने नासमझ सलाहकारों की खबर लेंगे। राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह दिनकर जी की चेतावनी स्मरण करना सामयिक होगा-
जा कहो, पुण्य यदि बढ़ा नहीं शासन में,
या आग सुलगती रही प्रजा के मन में,
तामस बढ़ता यदि गया ढकेल प्रभा को,
निर्बन्ध पन्थ यदि नहीं मिला प्रतिभा को,
रिपु नहीं, यही अन्याय हमें मारेगा,
अपने घर में ही फिर स्वदेश हारेगा
भिखारी नहीं, विकास के वाहक भिखारी नहीं, विकास के वाहक Reviewed by rashtra kinkar on 21:29 Rating: 5

1 comment

  1. आपने सोलह आने सच लिखा है। बधाई।

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