एफिल टावर है खूबसूरत पेरिस की पहचान Hello Paris!


एफिल टावर है खूबसूरत पेरिस की पहचान फ्रांस की अपनी भाषा में पारि कहलाने वाला पेरिस विश्व के सुंदरतम, सुव्यवस्थित और मनोरम शहरों में से एक है। इस स्वप्न नगरी के बीचो-बीच बहती है सीन नदी और उसके एक तट पर स्थित है विश्व विख्यात एफिल टावर। पेरिस अपनी सदियों पुरानी ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण के लिए भी जाना जाता है। इस नगरी से साक्षात्कार का स्वप्न साकार हुआ जब हमारी बस ने ब्रिटेन में इंगलिश चैनल को पार कर फ्रांस में प्रवेश किया। तीन तरफ से इंग्लिश चैनल से घिरा फ्रांस प्राचीनता और आधुनिकता का अनोखा मेल है। लगभग चौकोर भूखंड वाला यह देश कई मामलों में अनोखा है। वहाँ पहुंच कर जानकारी मिली कि फ्रांस का प्राचीन नाम गॉल था। यहाँ अनेक जंगली जनजातियों के लोग, मुख्य रूप से, केल्टिक लोग, निवास करते थे। 57-51 ई.पू. में जूलियस सीजर ने उन्हें परास्त कर रोमन साम्राज्य में मिला लिया। 1461 तक फ्रांस पर अंग्रेजी आधिपत्य रहा। यह भी पता चला कि 16वें लूई (1774-93) के समय में जनता में असंतोष फैलने लगा तब राजा ने स्टेट्स- जनरल की बैठक बुलाय़ी लेकिन जनता के प्रतिनिधियों ने अपनी सभा अलग बुलाकर उसे ही राष्ट्रसभा घोषित कर दिया। राजधानी पेरिस संपूर्ण विश्व के लोगों के दिलों में एक खास स्थान रखता है। आज से लगभग तीस वर्ष पूर्व दिल्ली के तालकटोरा में जब मैंने फ्रैंच फेस्टिवल देखा तो तभी से पेरिस को नजदीक से देखने की इच्छा थी। पार्को एवं सड़क के किनारे लगे पेड़ों की कटाई चौरस आकार की देखकर चौंका। ये छटे हुए वृक्ष बहुत आकर्षक प्रतीत हो रहे थे। विशेष बात यह है कि पेरिसवासियों को अपनी भाषा और संस्कृति का अभिमान है। हर अभिमान बुरा हो ऐसा जरूरी नहीं है और भाषा या संस्कृति का अभिमान तो बहुत हद तक अच्छा ही है। वे लोग अंग्रेजी में पूछे गए किसी प्रश्न का उत्तर देने की बजाय खामोश रहते हैं या इस तरह घूरते हैं मानो बहुत बड़ा अपराध हो गया हो। उनके इस व्यवहार से हमें भी सबक लेना चाहिए और अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति अपने मन में प्रेम जगाना चाहिए। पेरिस के दर्शनीय स्थलों में सबसे पहले एफिल टावर का नाम आता है। नेपोलियन की विजय के प्रतीक स्वरूप बनाए जाने वाले इस टावर के लिए अनेक प्रस्ताव आए लेकिन फ्रांसीसी इंजीनियर एलेक्जेंडर गुस्ताव एफिल द्वारा किये गये डिजाइन को स्वीकारा गया। 985 फुट ऊंचे इस टावर के ठीक नीचे गुस्ताव एफिल की मूर्ति भी लगाई गई है। इस टावर की ऊंचाई 324 मीटर है। इसका निर्माण मात्र 2 वर्ष में कर लिया गया था। रोचक तथ्य यह है कि जर्मनी द्वारा फ्रांस पर हमला और पेरिस पर कब्जा कर लिए जाने के दौरान एफेल टावर की लिफ्ट के तार काट दिए गए थे, ताकि नाजी सेना को झंडा फहराने के लिए सीढियाँ चढकर जाना पड़े। कहा जाता है कि आरंभ में इस टावर को बीस वर्षों बाद हटा दिया जाना था लेकिन जल्द ही एफिल टावर पेरिस की पहचान बन गया तो इसे हटाने का विचार ही हमेशा के लिए भुला दिया गया। इस तीन मंजिले टावर पर जाने के लिए चारो ओर लिफ्ट की सुविधा है। इन दिनों दो लिफ्ट कार्य नहीं कर ही थी इसलिए हमें घंटों इंतजार के बाद ही प्रवेश की अनुमति मिली। नीचे से प्रथम तल ताने वाली लिफ्ट बड़ी है उसमें 60 लोग आ सकते हैं लेकिन द्वितीय जल और उसके बाद सबसे ऊपर जाने वाली लिफ्ट छोटी है जिसमें अधिकतम 10 लोगों के लिए ही स्थान है। एफिल टावर के टॉप पर खडे होकर मीलों दूर दूर तक का विहंगम दृश्य देख सकता है। जब हम नीचे उतरे तो हल्का अंधेरा हो चुका था और एफिल टावर रौशनी से जगमगा उठा तो ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ का नजारा देचाने वालों में हम भी शामिल थे। उस पल लोहे का वह टावर एक खूबसूरत दृश्य में बदल चुका था। एफिल टावर के नजदीक ही सीन नदी है। पेरिस इसी नदी के दोनो ओर बसा हुआ है। नदी में छोटे बड़े क्रूज चलते है। हमने भी एक क्रूज से पेरिस को देखा। ़सीन नदी के किनारे बसा यह शहर वाकई बेहद खूबसूरत है और ज्यादातर दर्शनीय इमारतें इसी नदी के दोनों तरफ बनी हुई हैं जिन्हें आपस में पुराने बने हुए दर्शनीय पुल जोड़ते हैं। हर सीट के पास इयर फोन टंगा था जिससे नौका के पास वाले हर स्थान की जानकारी दी जाती है। नदी में क्रूज से सैर के दौरान एक स्थान पर हरे- हरे बॉक्स दिखाई दिये, नजदीक जाकर देखा तो ये पटदी पर लगने वाली किताबो की दुकाने थी. पेरिस के लोग अपनी संस्कृति और साहित्य के प्रेमी है वे पुस्तके खरीदते और पढ़ते भी है कॉनकोर्ड चौक वह स्थान है जहाँ फ्रांस की क्रांति हुई। चारों दिशाओं से आने वाली सडकों के बीच स्थित चौक पर वर्ष पुरानी और लगभग 225 टन वजनी एक ऐसी मूर्ति स्थापित है। अठारहवीं सदी में फ्रांस में अत्याचारी लुई सोलहवें के शासनकाल में बैस्तिले एक दुर्ग था, जिसे कैदखाने के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। 14 जुलाई 1789 को फ्रांसीसी जनता सम्राट के विरुद्ध सड़कों पर उतर आई तथा बैस्तिले के किले को ध्वस्त कर बंदियों को मुक्त करा लिया। इसी घटना से फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत मानी जाती है। बैस्तिले दुर्ग का पतन फ्रांस में राजशाही के अंत व आधुनिक फ्रांस के जन्म का प्रतीक माना जाता है, जिससे आगे चलकर फ्रांस के गणतांत्रिक राष्ट्र बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ इसीलिए आज भी 14 जुलाई बैस्तिले दिवस अर्थात् फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। यहाँ मीलों क्षेत्रफल में फैला विश्व का सबसे बड़ा चित्र संग्रहालय है, जहाँ मध्य युग तथा उसके बाद की हजारों कलाकृतियाँ संरक्षित है। पास ही नोर्त्दाम फ्रांस का प्रमुख गिरजाघर है। रोमन साम्राज्य में यहाँ जुपिटर मंदिर था, जिसे बाद में गिरजाघर बना दिया गया। हमारा पेरिस में कार्यक्रम सिर्फ तीन दिन का था। प्रथम दिन एफिल टावर और नगर भ्रमण में बीत गया। दूसरा दिन डिज़नीलैंड में बिताया। बच्चों के लिए तरह-तरह के झूले और खेलों की यह नगरी प्रथम दृष्टि में ही प्रभावित करती है। बच्चों के लिए स्वर्ग जैसा डिज़नीलैंड ऐसा स्थान है जो एक अद्भुत दुनिया की सैर करता है। इन दिनों गर्मी की छुद्दियां होने के कारण भारी भीड़ थी। हम जहाँ भी गए, घंटों इंतजार लायक लाइनें थी इसलिए हमने वहाँ के खेलों की बजाय शानदार भवनों को देखना ज्यादा अच्छा समझा। मेरे साथी खुराना जी ने पॉप क्रॉन खरीदे तो उसके दाम भारत से सौ गुना से भी अधिक। सच पूछा जाए तो डिज़नीलैंड महंगे बाजार का ही नाम है। हमारा अगला पड़ाव था दिल्ली में बने इंडिया गेट जैसा विजयद्वार ;।तब कम ज्तपवउचीमद्ध जिसे अठारहवीं शताब्दी के आरंभ में नेपोलियन द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में बनवाया गया था। यहीं पास के मैदान में कबूतरों के झुंड थे जिन्हें मैंने भारत से अपने साथ ले जाए गए नमकीन और मसालेदार चने खिलाए तो वे मेरे आसपास एकत्र हो गए। एक कबूतर तो मेरे कंधे पर आ बैठा।



इसके ठीक सामने की सडक ब्ींउचे - म्सलेममेको फैशन स्ट्रीट कहा जाता है। इसके दोनों ओर बडे ब्रान्ड्स के कपडों, गहनों और घडियों के शोरूम, सिनेमाघर, काफी हाउस इत्यादि हैं। उसी शाम यही हमारे लिए लूडो शो का आयोजन था लेकिन मैंने वहाँ जाने के बजाय आराम करना बेहतर समझा। यहाँ साइकलें किराये पर मिलती हैं. दिन भर के लिये . साइकल पर घूमने वाले विशेष हेलमेट भी पहनते हैं। वैसे यह शौक सिर्फ पेरिस या फ्रांस में ही नहीं पूरे यूरोप में है। सडक किनारे वाले काफी या बीयर बार बहुत है जो एक प्रकार से यहाँ की संस्कृति के अंग हैं। एक स्थान पर बना गोल्डन स्मारक था। यह वही स्थान है जहाँ ब्रिटेन की त्जात्य राजकुमारी डायना की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हुई थी। पेरिस में ही द लूव्र नामक दुनिया का एकमात्र ऐसा संग्रहालय है जहाँ सर्वाधिक 380000 अमूल्य कलाकृतियों को रखा गया है। यहीं रखी है लादो द विंची की बनाई विश्व प्रसिद्ध कलाकृति मोनालिसा और द विनस दे माइलो जैसी कलाकृतियाँ। इस संग्रहालय का निर्माण फिलिप द्वितीय ने 1190 से लेकर 1202 के बीच करवाया था। 14वीं शताब्दी में इसे राजशाही निवास बना दिया गया. 1750 में लुइस 15वें ने इसे फिर से संग्रहालय का रूप दिया। फ्रांस की क्रांति के बाद इसे नागरिक संग्रहालय बना दिया गया। यहाँ एक काँच का पिरामिड है, यह मूल स्थापत्य का हिस्सा नहीं है। 1983 में फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांकोइस मिटरलैंद ने आई.एम.पेई नामक वास्तुकार की मदद से संग्रहालय परिसर के बीच में काँच का यह पिरामिड बनाया। कुल मिलाकर पेरिस का यह प्रवास अच्छा रहा। भारतीय रेस्टोरेंट ‘भोजनम्’ में स्थानीय लोगों की उपस्थिति उनके भारत प्रेम का साक्षात प्रमाण था।
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