आज अवशेष ही सही लेकिन कभी जाना जाता था रोम Vinod Babbar Rome


आज अवशेष ही सही लेकिन कभी जाना जाता था रोम रोम शब्द से परिचय बचपन से ही था क्योंकि इकबाल की पंक्तियों ें ‘यूनान, मिस्त्र, रोमां सब मिट गए जहां से, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’ बार-बार सुनते थे। इसके अतिरिक्त एक कहावत ‘रोम जल रहा था तो नीरो बंसी बजा रहा था’ भी अनेकों बार सुनी थी। सुना करते थे कि एक बार रोम में भयंकर आग लगी थी जो लगभग छह दिन तक जलती रही और इस आग में रोम के चौदह में से दस शहर बर्बाद हो गए। इस बर्बादी के लिए उस समय के रोम सम्राट नीरो को जिम्मेदार ठहराया जाता था। बस तभी से कहा जाने लगा- रोम जल रहा था सम्राट नीरो सब कुछ जानते हुए भी स्वयं में मगन बांसुरी बजा रहा था। यह भी कि Rome was not built in a day
कभी पाठ्य पुस्तकों से जानकारी मिली थी कि विश्व प्रसिद्ध जूलियस सीजर, नीरो और मुसोलिनी की स्मृतियों से जुड़े ऐतिहासिक नगर रोम की स्थापना लगभग 753 ईसा पूर्व में हुई थी। रोम की स्थापना से जुड़ी एक कहानी के अनुसार, मंगल देवता के दो जुड़वां पुत्र थे - रोमुलस और रिमस। एक बार ताइबर नदी में बाढ़ आने से ये दोनों बहते हुए पेलेटाइन पहाड़ी के पास पहुंच गए। इन बच्चों को एक मादा भेड़िया ने दूध पिलाया व एक चरवाहे ने दोनों को पाला। बड़े होकर इन दोनों भाइयों ने एक नगर की स्थापना की, जिसका नाम रोमुलस के नाम पर रोम रखा गया व रोमुलस इसके सम्राट बने। प्राचीन रोम सात पहाड़ियों पर बसा हुआ था। चौथी शताब्दी में इसके चारों ओर एक दीवार, सरवियल वॉल बनाई गई। जिसके अवशेष आज भी रोम के आस-पास देखे जा सकते हैं। ताइबर नदी पर बसा रोम, रोमन कैथलिक धर्म के अनुयायियों के लिए तीर्थ स्थान है, क्योंकि इस धर्म के प्रमुख पोप का निवास रोम में ही है। जब इस तरह की बातें मन में घुमड़ा-उमड़ा करती हो तो रोम के बारे में जिज्ञासा और उत्सुकता होना स्वाभाविक थी। पिछले दिनों जब वहाँ जाने की योजना बनी तो रोम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, वहां के वास्तुशिल्प और प्राचीन भवनों के साथ- साथ आधुनिक रोम के बारे जानना शुरू किया। रोम अब इटली की राजधानी है। हमें बताया गया था कि वहां सावधान रहना आवश्यक है वरना पलक झपकते ही सामान गायब जाएगा। चोरी और उठाईगीरी आम है इसका प्रत्यक्ष अनुभव भी हुआ जब हमारे एक साथी का कैमरा गायब हो गया। विश्व के इस ऐतिहासिक नगर में पहुंचते ही हमने अनुभव किया कि रोम में इतिहास और आज में कोई विभाजन रेखा नहीं है। एक गली पार की तो सामने सैंकड़ों साल पुरानी इमारत थी। ऐसा एक स्थान नहीं शहर के हर नुक्कड पर था जहां पुराने भवनों के रूप में इतिहास नजर आता है। आश्चर्य तो यह है कि इतनी पुराने भवनों को न केवल सुरक्षित रखा गया है बल्कि आज भी इनका उपयोग हो रहा है। हजारों सालों से सर्दी-गर्मी, धूप, बरसात, प्राकृतिक विपदा और राजनीतिक संकटों से गुजरने के बाद भी इसकी भव्यता प्रभावित करती है। ईसा से 700 साल पहले इस शहर की नींव रखी गई थी और तब केवल तीस हजार की आबादी थी। 70-75 ई में वेस्पेसियन राजा के काल में कोलोसियम के निर्माण की शुरुआत हुई और टाइटस के जमाने में यह पूरा हो सका। कोलोसियम वास्तव में प्राचीन स्टेडियम की तरह है, जहां खेल-कूद और मनोरंजन का आयोजन हुआ करता था। यहां योद्धा अपनी युद्धकला का प्रदर्शन करते थे तथा समय-समय पर जंगली जानवरों की प्रदर्शनी भी लगाई जाती थी। इसके लिए अफ्रीका से शेर, हाथी, हिप्पोपोटेमस, शुतुरमुर्ग लाए जाते थे। उस समय हिंसक पशुओं के सामने निरीह मनुष्यों को छोड़कर क्रूर दृश्य देखने का प्रचलन यहां बहुत ज्यादा था। दिल दहला देने वाली ये लड़ाइयां, चाहें दूसरे तलवारियों से हो या जानवरों से, तब तक जारी रहती थीं, जब तक कि लड़नेवाले में से एक की मौत न हो जाए। लोगों की उत्सुकता का केन्द्र और भारी भीड़ उमड़ने के कारण इसके आसपास का क्षेत्र एकं व्यापारिक स्थल के रूप में स्थापित हुआ होगा। देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि इसमें हजारों लोग एक साथ बैठ सकते थे। कोलोसियम के इतने द्वार रखे गए थे कि विभिन्न तबके के दर्शक अलग-अलग रास्तों से सुनिश्चित सीटों तक पहुंच सकें। उन्हें एक-दूसरे की राह नहीं काटनी पडती थी। भूकंपों के बाद कोलोसियम अब आधा-अधूरा बचा है। कोलोजियम को युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। यह दुनिया के सात अजूबों में शामिल है। कुछ देर यहाँ रूक कर हमने तस्वीरें ली। कोलोजियम के पास ग्लेडस मेग्नस भवन में योद्धाओं को प्रशिक्षण दिया जाता था। वहाँ से कोलोजियम तक पहुँचने के लिए भूमिगत मार्ग का उपयोग किया जाता था। लुडस मैचुटिनस में योद्धाओं को जानवर से लड़ना सिखाते थे, साथ ही हथियार और मशीनें रखने के लिए भी अलग से भवन बनाए गए। घायल सैनिकों की चिकित्सा और शहीद होने वाले सैनिकों के शवों को रखने की अलग से व्यवस्था थी। मध्य युग तक कोलोजियम का उपयोग एक किले के रूप में किया जाता था। 16वीं तथा 17वीं शताब्दी में इस स्थान को ईसाई धर्म का पवित्र स्थल माना जाने लगा। पोप पाइअस ने तीर्थयात्रियों को यहाँ की मिट्टी एकत्रित करने के लिए कहा। उनका मानना था कि यह स्थान शहीदों के रक्त से सिंचित होकर पवित्र हो गया है। इस तरह इसका धार्मिक महत्व धीरे-धीरे बढ़ता गया। प्राचीन इमारतों और उनके अवशेषों के लिए दुनिया भर में मशहूर रोम में कोलोजियम के अतिरिक्त भी बहुत कुछ है। आलीशान राजमहल, भव्य चर्च, खूबसूरत फव्वारों वाला यह शहर प्रथम साक्षात्कार में ही जादू सा करता है। शहर के बीचो-बीच इटली का मशहूर और शानदार चौक पिएजा वेनेजिया है जो नई दिल्ली के विजय चौक जैसा ही प्रसिद्ध है। इसके अलावा, पियात्सा डी स्पाग्ना भी पर्यटकों में खूब लोकप्रिय है और जहां लोग शाम को एक-दूसरे से मिलने आते हैं। कैपिटोलाइन हिल पर बने एक अद्वितीय भवन की शोभा देखते ही बनती है। काफी उंचाई पर स्थित इस इमारत की सीढ़ियों को मशहूर मूर्तिकार माइकल एंजलो ने 1536 में बनाया था। कैपिटोलाइन के सामने घोड़े पर सवार सम्राट मार्कस ओरेलिअस की पीतल की भव्य मूर्ति है, जिन्होंने 160-180 ई. तक रोम पर शासन किया था। कैपिटोलाइन पर बना टॉवर भी इस इमारत की अलग पहचान है। कैपिटोलाइन कॉम्प्लेक्स में एक चर्च, म्यूजियम और पुराना मंदिर भी बना हुआ है। सैंकड़ों सीढ़ियां चढ़ने में असमर्थ होने के कारण हम ऊँचाई तक नहीं जा सके और दूर से ही इस की नजारा लिया। रोम में मिलने-जुलने की जगहों को फोरम कहा जाता है। इन फोरमों में सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा हर तरह की गतिविधियां हुआ करती थीं। सबसे ज्यादा प्रसिद्ध फोरम रोमैनम था और इस जगह पर आज भी राजभवन, मंदिरों और स्तंभों के अवशेष मौजूद हैं। बेशक इन्हें देखकर प्राचीन रोम की भव्यता का अंदाजा बखूबी हो जाता है। इन अवशेषों को संरक्षित रखने के लिए सरकार निकट जाना प्रतिवंधित कर दिया है। रोम में अनेक गार्डन हैं,तो फव्वारे भी कम नहीं है। यहां लगभग 300 स्थानों पर शानदार फव्वारे बने हुए हैं। यहां का सबसे प्रसिद्ध फव्वारा है त्रेवी फांउंटेन। एक पतली गली को पार कर हम वहाँ पहुंचे तो देखा एक रंगमंच जैसा बना था जिस पर अनेक आकर्षक मूर्तिया विद्यमान है, पर फव्वारे चल रहे है। यहां भारी भीड़ थी। लगभग सभी ने फव्वारे के सम्मुख बने तालाब में सिक्के डाले। यहां ऐसी मान्यता है कि एक सिक्का डालने से मनोकामना पूर्ण होती है। चूके मैं ऐसी बातों में विश्वास नहीं करता इसलिए चुपचाप नजारा देखता रहा। एक मित्र ने सिक्का न डालने का कारण पूछा तो मेरा कहना था, ‘मेरी मनोकामना साधारण नहीं है इसलिए मैं हर जगह उसके लिए मन्नत नहीं मांगता।’ ‘आखिर आपकी मनांेकामना है क्या?’ के जवाब में जब मैंने कहा, ‘रोम पर तिरंगा.....’ तो सभी खिलखिलाकर हंस पड़े। इस फव्वारे के पास ही एक व्यक्ति पुराने रोमन सैनिकों जैसी वेशभूषा में घूम रहा था। चमड़े का अंगरखा, सिर पर चमड़े की बनी अजीब सी टोपी, हाथ में तलवार। लोग उसके साथ फोटो खिंचवा रहे थे लेकिन यह सब मुफ्त नहीं क्योंकि उसके लिए उस कलाकार को दो यूरो का भुगतान करना पड़ता था। कुछ दूरी पर अनेक चित्रकार बैठे थे जो उसी समय आपका पोट्रेट बनाकर देते हैं। उनके पास भीड़ लगी थी। ध्यान रहे यह सब भी मुफ्त नहीं, दो सौ से पांच सौ यूरो के भुगतान के बाद ही संभव है। रोम में बहुत कुछ है लेकिन समय अभाव के कारण देखना संभव नहीं हुआ। सब थक चुके थे इसलिए रात्रि भोजन के बाद विश्राम और अगली यात्रा के ख्वाब बुनने लगे।
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