।। अथ श्री चमचा पुराण ।। # Chamcha Puran


।। अथ श्री चमचा पुराण ।।
इधर तेज गर्मी और फिर बरसात के बाद पहली बार घर से निकले घसीटाराम जी ने आते ही शुरु हो गए, ‘चमचो की बहुत महिमा है। लेकिन कारण? कारण बताने को कोई तैयार नहीं। अगर कुछ प्रकाश डाल सको तो डालो लेकिन उससे पहले चाय के लिए आवाज दे दो।’
अपने घसीटाराम जी का दर्शन बिल्कुल स्पष्ट है, ‘चाय पहले’ और ‘चाह बाद में’। लेकिन समस्या यह कि आज घर पर कोई नहीं इसलिए खुद ही चाय बनाने की चुनौती थी। कितनी चीनी, कितनी चाय, कितना दूध? हिसाब में अपुन शुरु से ही कमजोर रहे हैं इसलिए शिकायत से बचने के लिए पानी उबाला, एक कप में डाला, दूसरे बर्तन में गर्म दूध, कटोरी में चीनी, और डिप-डिप वाली चाय लिए  आदरणीय की सेवा में जा पहुंचा।  लेकिन इसे देखते ही वे भड़क उठे, ‘चम्मच कहां है? बिन चम्मच के क्या अंगुली जलाऊ अपनी?’
मैंने फौरन गलती सुधारी और भाग कर अंदर से चम्मच लाया। आधा कप गर्म पानी, आधा दूध, एक चम्मच चीनी को चम्मच से घोकर डिप -डिप को डीप-डीप डूबकी लगाई और सिप-सिप शुरु, ‘हां, तो क्या कह रहा था मै? अरे हां, आज के जमाने में चमचो की इतनी महिमा क्यों है?’
इस बंदे के मुख से चमचा पुराण प्रवाहित होने लगा,  ‘यह आपकी महानता है कि  सबकुछ जानते हुए भी  मुझ अनाड़ी के मुख से कहलवाना चाहते हो। आज चमचा न होता तो चाय आपकी अंगुली जला सकती थी। इससे सिद्ध हुआ कि चमचे का सबसे पहला परिचय यही है कि वह अपने आका के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है। दूसरा वह हाथ गंदे होने से भी बचाता है। इसीलिए भ्रष्टाचार के फलने- फूलने का श्रेय किसी महाप्रतापी नेता या अफसर को नहीं दिया जा सकता। गीले को विनम्र चमचे ही स्पर्श कर ‘सूखे ईमानदार’ तक पहुंचाते हैं। क्या आप अब भी जानना चाहोंगे कि हर नेता अपने आसपास एक नहीं, अनेकों चमचे क्यों रखता है?’
‘अलग-अलग स्थानों पर चमचे के विभिन्न प्रयोग होने के कारण नाम भी भिन्न है। यथा बाबाओं के ईद-गिर्द  चेले होते है। तो बाजार में एजेंट, दलाल, कमीशनखोर। स्कूल कालेज में दबंग मनिटर के कमजोर छात्र तो काम जी चुराने वाले कुछ मास्साहब बड़े मास्साहब यानी प्रिसिंपल साहब के चमचे की भूमिका का सहजता पूर्वक निर्वहन करते है। घाट पर पंडे धर्मराज के अथराईज्ड डीलर हैं तो दफ्तर में बॉस, इलाके में दादा के इर्द-गिर्द चेले चपाटों का होना इसी चमचावाद का विस्तार है।
यूं चमचों के अनेक आकार, अनेक प्रकार होते हैं पर उपयोग अवधि की दृष्टि में ये मोटे तौर पर दो प्रकार के होते हैं। एक डिस्पोजेबल चमचे तो दूसरे परमानेंट चमचे। अस्थाई भीड़ यथा रैली, चुनाव विशेष समारोह आदि में डिस्पोजेबल चमचो का उमड़ना और उसके बाद सिमटना ‘मांग और पूर्ति’ के सिद्धांत का उदाहरण हैं। ये चमचे आमतौर पर कमजोर होते हैं इसलिए एक ही बार इस्तेमाल किये जा सकते हैं। लेकिन कुछ चतुर लोग एक से अधिक बार भी उनकी उपयोगिता बना लेते हैं।
परमानेंट उपयोगिता वाले चमचांे को डिस्पोजल चमचों की तरह कूडेदान के हवाले नहीं किया जाता बल्कि इन्हें करीने से संभाल कर रखा जाता है। इन चमचों में कुछ कांटेदार भी होते हैं। जो पंचभूत साधारण चमचो की भाषा नहीं समझते उन्हें टांगने के लिए कांटेदार चमचों का अपना महत्व है। जो चमचे ज्यादा चमकदार होते हैं वे पूरे सेट के साथ डाईनिंग टेबल तक अपनी पहुंच बना लेते है। उपयोगिता और गुणों के अनुसार कुछ चमचे डाईनिंग टेबल के डोगे तक पहुंच बनाकर दाता बन जाते है। अनपढ़ चमचे ऐसे शातिर चमचे के चमचे बनकर भी धन्य होते हैं। वैसे छोटे चमचे ज्यादा मुंह लगे होते हैं। जब कभी कोई चमचा बार-बार दांत तले आने की गुस्ताखी करता है तो तत्काल उसी तरह विशेष डाइनिंग सेट से बाहर भी कर दिया जाता है, जैसे.......!’ हमारे व्याख्यान के बीच व्यवधान डालते हुए घसीटाराम जी ने जरा जोर से कहा, ‘लेकिन चमचागिरी पर भी तो थोड़ा प्रकाश डालों।’
‘आपने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। चमचागिरी विशुद्ध व्यवहारिक ज्ञान का दर्शन हैं। इस दर्शन में प्रदर्शन से अधिक पराक्रम पर ध्यान दिया जाता है। इसे प्रायोजित पराक्रम प्रदर्शन भी कहा जा सकता है। इस गूढ़ शास्त्रीय विद्या को गंभीरता से ही समझने पर ही समझा जा सकता है। आप जानते ही हैं कि साधारण चमचे मात्र कुछ दिन ही चलते हैं यानी अपना काम निकाल कर चलते बनते हैं।ं लेकिन जो शुद्ध स्टैनलेंस स्टील के संस्कारित चमचे होते हैं, उनकी चमक ही नहीं, कार्यक्षमता भी गजब होती है। अपने हिडन एजेंडे के तहत वे हरे नारियल से जल तो पाते ही है, मलाई और गिरी प्राप्त करना उनके लिए चुटकियों का खेल हैं। कुछ जो इस कला के विशारद होते है वे सूखे नारियल तक से गिरी प्राप्त कर लेते हैं। गंजे को कंघी बेचने में महारथ हासिल शोमैन आवश्यकतानुसार चमचे से फावड़ा बनकर सफलता की बुलंदियों पर सवारी करते हैं।’
‘और हां, चमचा पुराण के रहस्यों में महत्वपूर्ण यह है कि चमचागिरी में ठोकर खाया व्यक्ति इतना ईष्यालु होता है कि खुद को एकमात्र सिद्धांतवादी घोषित करता है तो साहिब को सलाम करने वाले अपने से अलावा हर व्यक्ति को ‘चमचे’ के खिताब से नवाजता है। चमचागिरी में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ करने वाले स्वयं के पीछे छूट जाने को अपना ‘त्याग’ और आगे वालों को ‘स्वार्थी और मक्कार’ बताकर अपनी खीज मिटाते हैं। अगर विश्वास न हो तो इतिहास के पन्ने पलटकर देख लो, बीरबल की प्रतिभा, योग्यता से ईर्ष्या करने वाले दरबारी उसे अकबर का चमचा घोषित करते थे। तो बीरबल के भक्त खुद अकबर को बीरबल का चमचा बताते थे। सच तो सच ही जानता है पर चमचे के भी चमचे होते हैं ये सब जानते हैं।
चमचा पुराण का एक बेहद  दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय भी है। इसके अनुसार चमचागिरी जैसी महान कला जो कठिन से कठिन काम को चुटकियों में करवाने की ताकत रखती है, उसे स्थाई सामान तो खूब मिलता है पर वह इतने युगों के पश्चात भी स्थाई सम्मान प्राप्त नहीं कर सकी है। यह विडम्बना नहीं तो और क्या है कि डाक्टर को डाक्टर कहलवाने में गर्व महसूस होता है। यहां तक ‘दादा’ भी बड़ी शान से दादा कहलवाता है परंतु दुनिया को कोई चमचा खुद को चमचा कहवाने को तैयार ही नहीं होता।’
हर युग में प्रभवित करने वाली इस कला की विशेषता यह है कि दुनिया भर में इसका एक भी प्रशिक्षण संस्थान नहीं। एक भी घोषित गुरु तो क्या छोटा मोटा टयूटर तक नहीं। लेकिन दुनिया के हर समाज, हर जाति, हर धर्म, हर प्रांत, हर भाषा, हर मौसम, हर परिस्थिति में इसका अस्तित्व महसूस किया जा सकता है। विश्व की सर्वाधिक प्रभावी इस कला को कुछ लोग कूटनीति का नाम भी देते हैं लेकिन आपने  अनेक लोगों को इसी नीति के तहत ‘कुटते’ भी देखा होगा। 
अंदर की बात यह है कि हर ईमानदार आदमी अपनी ईमानदारी के प्रचार के लिए कुछ ईमानदारों को अपने इर्द गिर्द पालकर रखता है जो पूरी ईमानदारी से उसकी ईमानदारी का प्रचार करते हैं। यदि ईमानदारी से कहा जाये तो यह एक ईमानदार किस्म की चमचागिरी है। वैसे इधर गुरु-शिष्य के स्थान पर गुरु-चमचा की नई अवधारणा विकसित हुई है। कई बार पता ही नहीं चलता कि गुरु कौन है और चमचा कौन। 
चमचा पुराण अनन्त है। ‘वन डे’ अथवा पंचदिवसीय टैस्ट मैच में इसका परायण पूरा नहीं हो सकता। यह कार्य ‘बारहमासी’ से कम में पूरा होने वाला नहीं है। इसलिए मात्र ट्रैलर दिखाकर इस छद्म पुराण को मद्म करता हूं। इतनी बात तो मेरी समझ में आ ही गई है कि चमचा बिना गति नहीं। इसके बिना उन्नति नहीं। इसलिए हे घसीटाराम जी, मैं आपका एक  अदना सा चमचा आपको बारम्बार प्रणाम करता हूं। आशा है इस स्तुति से प्रसन्न होकर आप मुझे ऐसा आशीर्वाद प्रदान करेंगे जिससे आपके गुट के मठाधीश मुझ अपात्र को ‘पोटलीपुत्र’ पुरस्कार प्रदान कर स्वयं ही धन्य होंगे। अति श्री चमचा पुराण! बोलो सब चमचों की जय!
-विनोद बब्बर 7982170421 , 9868211911 


।। अथ श्री चमचा पुराण ।। # Chamcha Puran ।। अथ श्री चमचा पुराण ।। # Chamcha Puran Reviewed by rashtra kinkar on 02:53 Rating: 5

No comments