ओ सांभा! कितने व्यंजन थे! Tale of Indian Foods & Fools
जरूरी नहीं कि आप ही सेर हो। कभी-कभी सवा सेर भी मिलते है। उसने भी मुसकुराते हुए कहा, ‘लेकिन आपने भी तो ससुराल आने का धर्म कहां निभाया है। ससुराल आते हुए बच्चों के लिए मिठाई भी नहीं लाये और हमें याद दिला रहे हो कि...............!’ खैर बहुत अच्छा लगा उसका हाजिर जवाब होना। मुझे नहीं मालूम कि उनके व्यंजन कितने रसीले थे लेकिन उसकी जबान निश्चित रूप से रसीली और लाजवाब थी।

ध्यान रहे उपरोक्त व्यंजन तो ‘ट्रैलर’ मात्र है। पूरी फिल्म देखें तो तीन घंटें के एक शो में बात बनने वाली नहीं है। लगातार कई शो के बाद भी कोई न कोई स्वाद छूट ही जायेगा। मैं शादी- पार्टियों में बहुत कम ही जाता हूं। पिछले वर्ष दिसम्बर में एक शादी समारोह में उपस्थित होने का निमंत्रण नहीं आदेश था तो विवशता थी। उस दिन में मैंने हमेशा की तरह रात्रि 8 बजे अपना भोजन ग्रहण कर कुछ देर आराम किया। लगभग 10 बजे मुझे करोलबाग के अजमलखा पार्क तक ले जाने के लिए अम्बरीश जी आ गए। मैंने इतनी देरी का सबब जाना चाहा तो उन्होंने मेरी तरफ ऐसा घूरा मानो मैंने असामान्य प्रश्न किया हो। जब मैंने अपना प्रश्न दोराया तो उनका उत्तर था- देरी से नहीं जल्दी आया हूं। बारात तो बारह के बाद ही पहुंचेगी।
खैर प्रिय अम्बरीश जी और मैं अजमलखा पार्क पहुंचे तो सर्दी अपना रंग दिखा रही थी। उसदिन दोपहर में अच्छी बारिश भी हुई थी। अपना ‘डिनर’ तो संपन्न हो चुका था इसलिए मैंने अम्बरीश को कलैंडर में तारीख बदलने से पहले ही अपना काम करने की सलाह देते हुए ‘पंडाल भ्रमण’ शुरु किया। एक, दो, तीन, चार,......एक सौ सत्ताईस। जी हां. मेरी गिनती सही है। वहां केवल एक सौ सत्ताईस तरह के व्यंजन ही मौजूद थे। मजेदार बात यह कि लगभग हर जगह भीड़। अचानक एक स्टाल पर नजर गई जहां शानदार वर्दी और पाग वाला व्यक्ति बिल्कुल खाली खड़ा था। मैं उसके पास जा पहुंचा और पूछा- ‘ये क्या है?’ उसने परात में सजे व्यंजन की ओर इशारा करते हुए उत्तर दिया, ‘ये है साहब!’ मैंने फिर पूछा, ‘ये क्या? इसका नाम भी तो बताओं।’ उसका उत्तर था, ‘साहब नाम तो मैं नहीं जानता पर ये मीठा है।’ मैंने चश्मा लगाकर देखा, सीमेन्ट के रंग का कुछ था। जब मैंने उस परात में रखे खोमचे से उसे हिलाया तो लगा कि बाजरे का दलिया है। मैंने उसे डोने में थोड़ा सा देने को कहा। वह बाजरे का दलिया ही था जिसे हम अपने बचपन में सर्दियों में अक्सर शुद्ध घी में डूबोकर खाया करते थे। भरे पेट में भी दलिया स्वादिष्ट लगा। उस समय रात के बारह बज चुके थे। उस स्टाल पर तैनात व्यक्ति के अनुसार भारी भीड़ के बावजूद मैं उस दलिया की तरफ देखने वाला पहला और शायद अंतिम व्यक्ति था। पर उसे कहां मालूम था कि मैं खाने नहीं गिनने आया हूं।
एक बार एक मित्र ने जबरदस्ती व्यवस्था मुझे ही सौंप दी। मैंने अपने ढ़ंग के मीनू के शर्त पर यह चुनौती स्वीकर कर ली। प्रवेशद्वार के ठीक सामने स्वागत के फौरन बाद जलजीरा, विभिन्न फलों का ताजा रस, ठंडाई, अनेक तरह के स्वाद और सुगंध वाले दूध, लस्सी, सहित लगभग बीस तरह के भारतीय पेय उपलब्ध थे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बोतलबंद पेय नदारद थे। हर बहुराष्ट्रीय कम्पनी के ‘साफ्ट डिंªक’’ वहां थे लेकिन इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि किसी ने भी ‘साफ्ट डिंªक’’ को छुआ तक नहीं। जबकि ताजा रस को खूब पसंद किया गया। दरअसल पास ही एक बैनर टंगा था जिसपर लिखा है- ‘कोला स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यदि फिर भी चाहो तो हाजिर है’
खाने में चाउ-मिन, बर्गर को ‘नो-एन्ट्री’ परंतु कश्मीर से कन्याकुमारी तक के अनेक व्यंजन उपलब्ध थे। हमारे नये प्रयोग को कम से कम हमारे सामने किसी ने नहीं कोसा। लेकिन दो बाद हमारे एक मित्र (अब स्वर्गीय) ने आते ही मुझे बुरा-भला कहना सुनाना शुरु किया, ‘तुमने हमारे साथ इतना बड़ा धोखा किया। पूरी तरह से मजा ही नहीं ले सके। अगर पहले मालूम होता तो......!’ मैंने उनकी बात बीच में काटते हुए पूछा, ‘कौन सा व्यंजन आपको अच्छा नहीं लगा?’ अगर जरूरत पड़ी तो भविष्य में उसे शामिल नहीं किया जायेगा।’ स्वर्गीय कृष्णलाल जी तुनक कर बोले, ‘कौन सा बताऊं। मैंने जितने खाये सब बहुत स्वादिष्ट थे। मजा आ गया लेकिन जो छूट गये उनका स्वाद तो मुझे पता ही नहीं चला। अरे भले मानुष अगर यह सब कर रहे थे तो कम से कम पहले बता देते तो मैं सुबह से संयम कर उनके लिए भी थोड़ी जगह बचा लेता। अब अगर कभी ऐसा करना हो तो अपने खास मित्रों को जरूर पहले बता देना।’’
स्वाद के साथ एक समस्या है कि जरूरत पीछे रह जाती है। पेट भर जाने पर भी मन नहीं भरता और हम ठोके जाते हैं। थोड़ा ये भी। थोड़ा वो भी। आज भी तो मेरे साथ यही हो रहा है। स्वाद-स्वाद में बात इतनी दूर तक पहुंच गई लेकिन बात है कि किसी सिरे पर पहुंच ही नहीं आ रही है। बुरा मानो या भला लेकिन तो चलते- चलते एक कड़वी बात जरूर कहूंगा। हम भारतीय खाने और बातों के इतने शौकीन है कि हमे कोई सलाह, कोई सीमा, कोई नियंत्रण स्वीकार नहीं होता। चारा तक चट करने की मिसाल है। खैर आपके दिल में हमसे बातचीत की चाह आज के बाद भी बची रहे इसलिए फिलहाल इतना ही।।
- विनोद बब्बर 9868211911
ओ सांभा! कितने व्यंजन थे! Tale of Indian Foods & Fools
Reviewed by rashtra kinkar
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