विदेशी घुसपैठियों के वकील
विदेशी घुसपैठियों की लगातार बढ़ती संख्या किसी भी प्रभुसत्ता संपन्न और स्वाभिमानी राष्ट्र के लिए चुनौती होती है। परंतु भारत दुनिया का इकलौता ऐसा राष्ट्र है जहाँ वोटबैंक की राजनीति राष्ट्रहित पर भारी है इसलिए घुसपैठिये न केवल सुरक्षित हैं बल्कि उन्हें देश से बाहर करने वालों की निंदा-भर्त्सना की जा रही है। ऐसे में समझा जा सकता है कि नेता राष्ट्र और राष्ट्र की जनता के हितों की नहीं, बल्कि अपने हितो की लड़ाई लड़ रहे है। ताजा मामला बांग्लादेशी घुसपैठियों का है। देश की राजधानी सहित हर नर में बंगलादेशी अपनी पैठ बना रहे है। आपराधिक और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में उनकी संलिप्तता जगजाहिर है। घुसपैठियों की बढ़ती संख्या से राज्य का सामाजिक-आर्थिक ढांचा बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। राज्यों के पुलिस प्रमुखों और खुफियों एजेंसियों की रिपोर्ट भी अनेक बार इसकी पुष्टि कर चुकी है परन्तु कोई कारवाई होना तो दूर उन्हें देश बाहर करने की बात पर भी हंगामा मच जाता है। इधर एक दल ने सत्ता में आने पर घुसपैठियों को वापस उनके देश भेजने की बात क्या की, घुसपैठी विदेशियों के नाम वोटर लिस्ट में शामिल करवाने में सफल एक राज्य की मुख्यमंत्री आग बबूला होकर दिल्ली हिलाने की धमकी देती है। आखिर उनके वोटों को अपने पक्ष में करने का सवाल जो ठहरा।
असम के बोडो क्षेत्र में ताजा हिंसा व अशांति का कारण तेजी से बढ़ती बंगलादेशी घुसपैठ है। आश्चर्य है कि असम जो कभी अपनी संस्कृति, आध्यात्मिक परंपरा और वीरता के लिए जाना जाता है। वहां के अहोम राजाओं की शक्ति से विदेशी आक्रांता भी घबराते थे। आज उसी असम मेंँ बंगलादेशी घुसपैठिये स्थानीय बोडो आदिवासियों का जीना हराम किये हैं। लाखों लोगों के बेघर होने से यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि सरकार साप्रदायिक हिंसा पर रोक लगाने में बुरी तरह नाकाम रही।
दो वर्ष पूर्व एक गैर सरकारी संगठन, असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू) ने सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए कहा- 25 मार्च, 1971 के बाद असम में बसे लोगों को बाहरी घोषित करे। इतना ही नहीं, राज्य के विभिन्न संगठनों ने सत्ताधारी दल पर अपना वोट बैंक तैयार करने के लिए बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ को प्रोत्साहित करने का आरोप लगाया। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पुराने विवादास्पद अवैध प्रवासी पहचान ट्रिव्यूनल अधिनियम (आईएमडीटी) को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त करते हुए इसके नियमों को संविधान की भावना से परे बताया। इससे पूर्व भी देश की एकाधिक हाई कोर्ट भी बंगलादेशी घुसपैठियों को केवल असम से ही नहीं, बल्कि पूरे देश से निकालने का निर्देश दे चुकी हैं।
1985 के असम समझौते पर अमल में आए इस विशेष कानून (आई.एम.डी.टी एक्ट) की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसके तहत किसी को विदेशी सिद्ध करने की जिम्मेवारी पुलिस पर डाल दी गयी है। जबकि सन् 1946 के विदेशी कानून में यह जिम्मेवारी आरोपित व्यक्ति की होती है। यही नहीं सिर्फ असम के लिए विदेशियों के बारे में पुलिस को रिपोर्ट करने वाला तीन किलोमीटर की सीमा के भीतर रहने वाला व्यक्ति स्थानीय निवासी होना चाहिए। पुलिस में रिपोर्ट करने के लिए उसे 25 रूपये का शुल्क भी अदा करना आवश्यक था और अगर कोई धमकाये तो पुलिस उसे कोई सुरक्षा भी प्रदान नहीं करती थी। नतीजतन ये कानून बांग्लादेशियों की पहचान और निष्कासन में सहायक बनने की बजाय बाधक बन गया। वाजपेयी सरकार ने इस बारे में विधेयक पेश किया था, लेकिन संसद भंग होने से मामला ठंडे बस्ते में चला गया। बाद में मनमोहन सरकार ने इस कानून को बनाये रखने का फैसला किया गया था।
असम के अधिकांश क्षेत्रों में इन घुसपैठिये के नाम मतदाता सूची में हैं। उनके पास राशनकार्ड हैं, पासपोर्ट हैं, बैंक खाते हैं- नौकरियां हैं और इस सबके लिए संरक्षण देने वाले राजनीतिज्ञ हैं। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. हितेश्वर सैकिया ने एक बार विधानसभा में कहा था कि असम में करीब 40 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिये मौजूद हैं। इस पर तूफान उठ खड़ा हुआ। राज्य के अल्पसंख्यक नेताओं ने सैकिया को धमकी दी कि वे अपना बयान वापस लें, अन्यथा 5 मिनट में सरकार गिरा देंगे। और तब सैकिया ने अपना बयान वापस लेते हुए कहा था कि उन्होंने केन्द्र की रिपोर्ट के आधार पर बयान दिया था जो गलत भी हो सकता है।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार आज असम के अनेक विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां घुसपैठिये बहुमत हैं। लूट, हत्या, बोडो लड़कियां भगाकर जबरन धर्मांतरण और बोडो जनजातियों की जमीन पर अतिक्रमण वहां की आम वारदातें मानी जाती हैं। ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारे पर बोडो क्षेत्र है, जहां बोडो स्वायत्तशासी परिषद् र्है, जिससे कोकराझार, बक्सा, चिरांग और उदालगुड़ी जिले हैं। इस परिषद् का मुख्यालय कोकराझार में है। बोडो लोग लगातार बांग्लादेशी घुसपैठियों के हमलों का शिकार होते आए हैं।
बंगलादेश जिसके उदय होने से अब तक लगातार भारत ने मदद की। उत्तर -पूर्वी प्रदेश में सक्रिय अलगाववादियों शरण देने से बंगला देश राइफल्स के सिपाहियों द्वारा अनेक बार भड़काने वाली कारवाईयां करना हो या कुछ वर्ष पूर्व हमारी सीमा सुरक्षा बल के जवानों की निर्दयता से हत्या के बाद उनके शवों को टांगने की शर्मनाक घटना हो, उनकी अहसान फरामोशी के प्रमाण हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि ये बांग्लादेशी घुसपैठिये एक व्यापक साजिश के तहत धीरे-धीरे चरणबद्द तरीके से भारत के विभिन्न हिस्सो विशेष कर उत्तर-पूर्व में अपनी तादात बढाते जा रहे है। हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि वोट बैंक व तुष्टीकरण के राजनीति के कारण हमेशा से इस पर परदा डाला जाता रहा है लेकिन असम की वर्तमान स्थिति ने इसका असली चेहरा सबके सामने रख दिया है।
दरअसल बांग्लादेशी घुसपैठिए बड़े पैमाने पर असम, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, नागालैंड, दिल्ली और जम्मू कश्मीर तक लगातार फैलते जा रहे हैं। जिनके कारण जनसंख्या असंतुलन बढ़ा है। सबसे गंभीर स्थिति यह है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों का इस्तेमाल आतंक की बेल के रूप में हो रहा है, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ और कट्टरपंथियों के निर्देश पर बड़े पैमाने पर हुई बांग्लादेशी घुसपैठ का लक्ष्य भारत की एकता को तोड़ने और भारत के अन्य हिस्सों में आतंकी घटनाओ को अंजाम देने के लिए भी इनका प्रयोग किया जा रहा है जिसके लिए भारत के सामाजिक ढांचे का नुकसान व आर्थिक संसाधनों का इस्तेमाल हो रहा है।
सीमा पर तैनात रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार पिछले एक दशक में सीमावर्ती क्षेत्रों में साजिश के तहत बांग्लादेश से सटे क्षेत्रों में कोयला, लकड़ी, जाली नोट, मादक पदार्थ तथा हथियारों की तस्करी की जा रही है। इन क्षेत्रों में अलगाववादी संगठनों को लगातार मजबूत किया जा रहा है। इन देशद्रोही तत्वो से क्षेत्र को मुक्त करना जरूर्री है। अगर अलगाववादी तत्व किसी प्रकार से असम में अपना प्रभुत्व स्थापित कर पाने में सफल हो गए तो उत्तर-पूर्व के राज्यों को भारत से अलग करने के षड़यंत्र तेज हो सकते है। असम ही तो उत्तर-पर्व को शेष भारत से जोड़ता है।
चुनवी लाभ के लिए जो कुछ भी कहा, सुना गया लेकिन आज की सबसे बड़ी जरूरत है कि सभी राजनैतिक दल देश की एकता से जुड़े इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करें कि ऐसे तत्वों को बढ़ावा देने का परिणाम क्या होगां? भारत भूमि को असामाजिक तत्वों का आश्रय स्थल बनाने वालों को समझना होगा कि दुनिया भर के हिन्दुओं की स्वाभाविक पुण्य भूमि को अशान्त बनाना आत्मघाती होगा। आज पाकिस्तान में हिन्दू नरकीय जीवन जीने को विवश हैं लेकिन उन्हें शरण की बात सोचते तक नहीं। धार्मिक आधार पर भेदभाव और तुष्टीकरण की नीति त्याग संविधान के आधार पर कार्य करना चाहिए। क्या यह आश्चर्य कि बात नहीं कि जो दूसरों को न्यायालय का सम्मान करना सिखाते हैं वे स्वयं देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसलों की अनदेखी करने के दोषी हैं?
हमारे ही कुछ राजनीतिज्ञ बंगलादेशी घुसपैठियों को मानवीय आधार पर भारत में रहने देने की वकालत करते हैं। उन्हें चाहिए कि वे इन घुसपैठियों को वापस बंगलादेश भेज कर उनके माध्यम से बंगलादेश के भारत में विलय का आंदोलन चलवाये। अपनी सफलता के बाद वे पूर्ण रूप से वैध भारतीय बन कर कहीं भी रह सकेगे। - डा. विनोद बब्बर 09868211911
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