विकास के ध्वजवाहक हैं प्रवासी-- डा. विनोद बब्बर

      महर्षि वेदव्यास महाभारत के स्वर्गारोहण पर्व में कहते हैं-
ऊर्ध्वबाहुर्विरौम्येष न च कश्चिच्छृणोति मे। धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थ न सेव्यते।
अर्थात् मैं अपने दोनों हाथ उठाकर कह रहा हूं, लेकिन मेरी बात कोई नहीं सुनता। धर्म से ही अर्थ और काम हैं, तो धर्म का पालन क्यों नहीं करते? आज भी स्थिति लगभग वहीं है। राजनीति अपने धर्म का पालन करने की बजाय कुटिलता में लगी  है। अपने तुच्छ राजनीतिक लाभ के लिए कोई कब क्या कह दें; कहा नहीं जा सकता। अपनी गिरती छवि को चमकाने के लिए कुछ राजनेता लोकतंत्र की परिभाषा तक बदलने पर उतारू हो जाते हैं। ताजा मामला महाराष्ट्र का है जहां चुनाव प्रचार अपने अंतिम दौर में है। परप्रांतीयों के विरोध पर राजनीति चमकाने वाले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष फायर ब्रांड नेता राज ठाकरे के अनुसार, ‘महाराष्ट्र में काम कर रही निजी सुरक्षा एजेंसियां बड़े पैमाने पर दूसरे प्रांतों से आने वाले युवकों को नौकरी देती हैं। यदि मैं सत्ता में आया तो इन एजेंसियों को बंद कर राज्य सरकार की सुरक्षा एजेंसियां शुरू करूंगा, जिसमें सिर्फ महाराष्ट्र के युवाओं को नौकरियां दी जाएंगी।’
 यह पहली बार नहीं है जब राज ठाकरे ने उत्तर भारत के लोगों के खिलाफ कुछ कहा है। वह मुंबई में होने आपराधिक घटनाओं के लिए तो कभी अन्य समस्याओं के लिए परप्रातीयों को दोषी ठहराकर स्वयं को सबसे बड़ा मराठा नेता घोषित कर ध्रुवीकरण के प्रयास करते रहे हैं। राज अपनी संकीर्णता से मराठा शिरोमणि शिवाजी महाराज के सम्मान को जाने-अनजाने ठेस पहुंचा रहे हैं। सम्पूर्ण देश शिवा को क्षेत्रवाद से हटकर अपने आदर्श के रूप में देखता है। वैसे महाराष्ट्र की जनता समझदार है। वह ऐसे लोगों को हर्गिज मुंह नहीं लगाएगी। 
वैसे राज ठाकरे ऐसे इकलौते नेता नहीं हैं जिसने क्षेत्रवाद उभार वोट बटोरने का प्रयास किया है। इससे पूर्व उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार में भाग लेते हुए कांग्रेस युवराज ने युवाओं की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘कब तक आप लोग महाराष्ट्र जाकर भीख मांगोगे? कब तक दिल्ली, पंजाब में मजदूरी करोगे?’  दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री ने भी स्थानीय समस्याओं के लिए बाहर से आने वालों को दोषी ठहरा अपयश बटोरा और चुनावी मैदान में मुंह की खाई। अब बारी राज ठाकरे को समझाये जाने की है कि भारत का हर प्रांत यहां रहने वाले हऱ भारत-पुत्र का है। अपने ही देश के दूसरे राज्य में जाकर रोजी-रोटी कमाना न तो भीख मांगना है और न ही अपराध। आज जो तर्क दूसरे राज्य के लोगों के लिए दिए जा रहे हैं कल दूसरे नगर या दूसरे गांव के लिए प्रयोग में आने लगे तो स्वयं ऐसा दुष्प्रचार करने वाले भी कल बहुत दुःखी होंगे।
कश्मीर से कन्याकुमारी तथा कच्छ से करीम नगर तक विभिन्न बोलियों, भाषाओं, विभिन्न खानपान-रहन सहन, विभिन्न जलवायु और परिस्थितियो के होते हुए भी हम एकसूत्रता से बंधें है क्योंकि विभिन्न प्रांतों,  जाति, धर्म, समुदायों के होते हुए भी हम सभी भारत माता की सन्तान हैं। हमारी एकता को तोड़ने की कोशिशें सदियों से होती रही हैं। विशेष रूप से विदेशी हमलावरों ने इस देश की सांस्कृतिक एकता को छिन्न-भिन्न करने का भरसक प्रयास किया। दुर्भाग्य की बात यह है कि आजादी के बाद वोटों के सौदागरों ने समाज को बांटने की जिम्मेवारी संभाल ली।  ‘एक भारत’ में रोजगार हो या शिक्षा, प्रशिक्षण, पर्यटन के लिए भारत में कहीं भी जाना, रहना, सबका अधिकार है। एकता को छिन्न-भिन्न करने वाले तत्वों को सख्ती से कुचल दिया जाना चाहिए वरना उनका दुस्साहस कल पुलिस और अर्ध सैनिक बलों की दूसरे राज्यों में नियुक्ति पर भी अंगुली उठा सकता है। देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था भी यदि ऐसी बातों तक जा पहुंची तो क्या होगा? इस तरह की खतरनाक मानसिकता देश के विकास में तो बाधक है ही, देश के दुश्मनों को अपने इरादे पूरे करने का अवसर देती है।
यह सत्य है कि हर राज्य विकसित होना चाहिए। वहाँ रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध होने चाहिए। कानून-व्यवस्था दुरुस्त हो, नागरिक सुविधाएं हांे, सभी को समान रूप से विकास करने का अवसर मिलना चाहिए। किसी प्रवासी को अपमानित करने का अर्थ है कि स्वयं को असक्षम घोषित करना। लाखों भारत-पुत्र जो विदेशों में रह कर न केवल जीविका अर्जित कर रहे हैं बल्कि अपनी मातृभूमि का गौरव बढ़ा रहे हैं, वे देश की अर्थव्यवस्था में भी अपना योगदान कर रहे हैं तो परप्रांतीयों के योगदान को भी कमतर नहीं आंका जा सकता। परिस्थितियों के कारण जब कोई प्रवासी बनता है तो वह स्वयं के विकास से पहले उस राज्य के विकास का परचम उठाता है। वह अपनी श्रमशीलता से केवल अपनी रोजी-रोटी ही नहीं सुनिश्चित करता, बल्कि उस क्षेत्र के विकास का वाहक भी बनता है। दुनिया के सभी महानगर जिसमें राज ठाकरे की मुंबई भी शामिल है, प्रवासियों के कठोर परिश्रम और साधना का ही परिणाम है। इसलिए श्रमशीलता का अभिनंदन करना चाहिए। वह अपना खून पसीना बहाकर कुछ  पाता है लेकिन नेता तो द्वारे-द्वारे कुछ (वोट) मांगते नजर आते हैं और फिर भी स्वयं को ‘भारत भाग्य विधाता’ समझते है। आश्चर्य है कि हमारा चुनाव आयोग जो आजकल बहुत ‘सक्रिय’ बताया जाता है ऐसे विभाजक वक्तव्यों का संज्ञान तक नहीं लेता। उसे न केवल प्रचार करने वाले, बल्कि जिसके लिए प्रचार किया जा रहा है उसे भी तत्काल प्रभाव से अयोग्य घोषित कर समस्या के मूल पर प्रहार करना चाहिए। इन दिनों देश भर में ‘स्वच्छता अभियान’ चलाया जा रहा है। क्या सबसे पहले सार्वजनिक जीवन में रहने वालों की मानसिकता के शुद्धिकरण का अभियान नहीं चलाया जाना चाहिए?
यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि सारा भारत एक है। हर भारतीय नागरिक को देश के किसी भी प्रांत में जाने, कमाने, घूमने, बसने का अधिकार है। एक ओर कश्मीर में जहाँ अस्थायी कहे जाने वाला अनुच्छेद 370 शेष राज्यों के लोगों के अधिकार बाधित करता है, को समाप्त करने की मांग हो रही है तो दूसरी ओर कुछ ‘भस्मासुर’ हर राज्य में स्थिति गंभीर बना रहे हैं। हर भारत-पुत्र को  भारत भूमि की गोद चाहे वह कश्मीर हो या पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, बिहार, अरुणाचल अथवा अन्यत्र कहीं भी रहने का जन्मसिद्ध अधिकार हैं। 
हर जाति, समुदाय, क्षेत्र का व्यक्ति और क्षेत्र के उत्पाद, रीति-रिवाज भारत की उन्नति के घटक है। करोड़ों हाथ मिलकर देश की तस्वीर बदल सकते हैं तो ये हाथ देश की एकता पर प्रहार करने वालों की खबर भी ले सकते हैं। स्वामी रामतीर्थ भारत को एक शरीर मानते थे, जिसके किसी भी अंग पर चुभन, दर्द सारे शरीर की पीड़ा है। जब तक एक भी क्षेत्र पिछड़ा है, एक भी भारत-पुत्र उपेक्षित है, हम चैन से नहीं बैठ सकते। राष्ट्र देवो भवः की सद्भावना कायम रखना हम सभी का राष्ट्रीय कर्तव्य है। शांति व सौहार्द्ध की रक्षा करना सम्पूर्ण राष्ट्र की जिम्मेवारी है। जरूरत है इस दिशा में गंभीरता से चिंतन के बाद ही मजबूती से कदम बढाये जाए। आज जिस तरह से  केवल राजनैतिक लाभ-हानि के लिए वातावरण को दूषित किया जा रहा है ऐसे मे स्वामी अड़गड़ानंद जी की संस्था द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘दिव्य-प्रभा’ के सम्पादक मुनीर बख्श आलम की ये पंक्तियाँ चिंतन की मांग करती हैं-
वक्त की खाइयों से पूछूँगा
दिल की गहराइयों से पूछूँगा
सूखने लग गये क्यों सुर्ख गुलाब
घर की अंगनाइयों से पूछूँगा
खून किसका बहा है सड़कों पर
शहर के भाइयों से पूछूँगा
रात भर थे कहाँ अंधेरे में
स्याह परछाइयों से पूछूँगा
दोस्त ही दोस्त का हुआ दुश्मन
वजह बलवाइयों से पूछूँगा
कोयलों की सदा कहाँ खोई
सब्ज अमराइयों से पूछूँगा
पल में सच तो हलाक करती हैं
राज रूस्वाइयों से पूछूँगा
इतनी खूँखार क्यों हुई सियासत 
मुल्क के सांइयों से पूछूँगा। 
सम्पर्क- ए-2/9ए, हसतसाल रोड, उत्तमनगर, नई दिल्ली-110059, मोबाइल- 09868211911 ई-मेल rashtrakinkar@gmail.com
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