देवी लक्ष्मी का इंतजार--डा. विनोद बब्बर

जब से होश संभाला, लक्ष्मी की चरणरज पाने के लिए क्या-क्या नहीं किया। मां से लेकर दादी मां तक ‘ओम जय लक्ष्मी रमण‘ करतीं, तो हमारा स्वर भी उनका साथ देता तो जैसे हमारे घर का पता ही भूल गई। ऐसा लगता हैं कि ड़ाकिया गलत पते पर चिट्ठी, मनीआर्डर पहूंचा देता हैं, पर जब तक कोई सबूत न हो, कुछ कहना लक्ष्मी जी के साथ-साथ उनके स्टाफ को भी नाराज करने जैसा लगा। इसलिए मन मार कर रह गए। पिछली दिवाली पर भी हमारी इंतजार हमेशा की तरह अधूरी रही क्योंकि उन्हें हमारे यहां न आना था, इसलिए नहीं आईं, पर उनका कोई भक्त जरूर हमारी आंगन में झांक गया। सुबह देखा तो हमारा एकलौता लोटा गायब था। यह दृश्य देखकर हमारा मन भर आया। काश! यहां कुछ होता, तो बेचारे चोर की मेहनत इस कदर बेकार न जाती। दिवाली के दिन मेरे जैसे टुच्चे के घर में सेंध लगाने के कारण चोर के घर भी लक्ष्मी कहां पाई होगी ? अपनी चिंता भूल हमें चोर की पीड़ा सताने लगी।
पर इस बार हमारी तैयारियां जोरों पर हैं। दिवाली से महीनों पहले ही हमने लक्ष्मी के लिए पलक पाँवड़े बिछाने शुरू कर दिये हैं। दरअसल, हमारे एक मित्र ने हमें समझाया कि तुम्हारे घर रद्दी बहुत है, बेकार किताबों में उलझे रहते हो, लक्ष्मी ऐसे स्थानों और ऐसे लोगों के पास जाना पसंद नहीं करती। इसलिए, सबसे पहले अपने और अपने घर का हुलिया बदलो। बरसों से जिन पुस्तकों को अपने प्राणों से भी कीमती मानकर संभाले रखा, वे एक ही झटके में तराजू पर चढ़ ंगईं। जो मिला उससे अपने इकलौते कमरे की सफेदी का विचार बनाया। पर सफेदी करने वाला भी इसी दिवाली पर अपने घर में लक्ष्मी जी को प्रवेश करवाने की ठाने बैठा था। उसने इतनी मजदूरी मांग ली कि हमें सफेदी का इरादा छोड़, साफ सफाई से ही काम चलाना पड़ा। आखिर, लक्ष्मी जी का स्वागत जो करना था, इसलिए हम कुछ भी करने के लिए तैयार हैं।
एक शुभचितंक की राय है, लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू है, इसलिए सबसे पहले अपने आपको उल्लू घोषित करो। तभी उल्लू तुम्हें अपना बिरादरी भाई मानते हुए लक्ष्मी जी को तुम्हारे घर ला सकता हैं। बस, फिर क्या था, हम पर उल्लूगिरी का भूत सवार हो गया, हर ऐरागैरा हमसे मतलब साधने लगा, जिसे देखो वही अपने घर के काम से लेकर दुनिया जहान का बोझ हम पर लादने को तैयार रहता है। कभी-कभी तो ऐसा लगता हैं कि चले थे उल्लूूू बनने, पर गधे बनकर दुनिया और अपनी महत्वाकांक्षा को ढो रहे हैं। एक ने समझाया, उल्लू को उजाला पंसद नहीं, इसलिए अंधेरों को अपना साथी बनाओ, पर उन्हें कौन समझाये कि हम तो आज तक अंधेरों में ही जी रहे हैं। तभी तो जिसे देखो, वही हमें राह दिखने का पुण्यफल अर्जित करने को तत्पर रहता है। फिर अंधेरों को हमसे ज्यादा कौन समझ सकता है? बचपन से आज तक भूख, भय, गरीबी का अंधेरा, तो आज बिजली का बिल अदा करने की सामर्थ्य न होने के कारण अंधेरा। बेशक अंधेरा हमारा साथी बन चुका है, पर हम अंधेरों से बाहर निकलने की जुगत भिडा़ना चाहते हैं लेकिन, जमाना है कि हमें और गहरे अंधेरे में धकेलकर जमाने भर की रोशनियां हथिया लेना चाहता है।
यह सत्य है कि उल्लू अंधेरों में रमण करते हैं, पर अपने अंधेरे कामों से दुनिया को और अधिक अंधकारमय बनाने वाले ही लक्ष्मी को अपनी दासी बनाये रखने में सफल होते हैं। मगर, हम भी लक्ष्मी की राह देखना बंद नहीं कर सकते क्योंकि हम जन्मजात उल्लू हैं। इसलिए, समझकर भी नहीं समझते कि लक्ष्मी तो विष्णु प्रिया हैं। विष्णु प्रिया हैं। विष्णु अर्थात् पालन करने वाले। आज नेता, गुण्डे, तस्कर, माफिया और न जाने कौन-कौन इस समाज के पालनहार बने हुए हैं, ऐसे में लक्ष्मी मुझ नाचीज़ के द्वार पर आने का सोच भी कैसे सकती हैं?
काश ! हमारा संसार भी काला होता, काला मन, काले धंधे, काले कारनामे, काला धन। पर फिर भी हमारा मुखमंडल तेजोमय होता, हमारे वस्त्र झकाझक सफेद तो हमारी लंबी गाड़ी के आगे पीछे ब्लैक कैट होते। संतरी से मंत्री तो सब हमें सलाम करते, आखिर वे भी हमारे मौसेरे भाई हैं।
हे माँ लक्ष्मी ! एक बार, बस एक बार, मुझे अपनी झलक दिखा जा। फिर देखना, मैं भी तेरे वरद पुत्रों मंे शामिल होने के लिए दुनिया में कितना अंधेरा फैला सकता हूँ? मॉ को धोखा देना पड़े या मातृभूमि को, वीरप्पन बनना पड़े या अफजल, हर्षद बनूं या तेलगी, नेता बनूं या अभिनेता, अपनी दिवाली के लिए मैं घर-घर आग लगा सकता हूं। पूरी दुनिया को तेरा वाहन बना सकता हूं। बस, एक बार अपनी कृपा की जरा-सी झलक दिखा जा क्योंकि सरस्वती की वीणा बजाते-बजाते मेरी सांस फूलने लगी हैं। उसके हंस को तो बहुत निहारा। अब तो तेरे और तेरे वाहन के दीदार की आखिरी तमन्ना ही बाकी हैं। बस, इस अमावस की रात मेरे घर का पता मत भूलना, हे देवी लक्ष्मी! ---डा. विनोद बब्बर 09868211911

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