पाकिस्तानी मानसिकता और अमेरिका -- डा. विनोद बब्बर
‘पाकिस्तान राष्ट्र है या धृतराष्ट्र? उसके कोई स्वीकृत आदर्श है या केवल विकृत मानसिकता ही उसे लगातार गर्त में ले जा रही है? दुनिया आगे बढ़ रही है मगर जमीन का यह बदनसीब टुकड़ा पीछे की ओर लौट रहा है। यदि सब कुछ अस्त- व्यस्त ही रहना है तो कोई वजह नहीं कि उसे पाकिस्तानं कहा जाए। आखिर है हालात तो नापाकिस्तान होने के हैं। रहनुमाओं की हरकतों के वज़ह से हम खुद को पाकिस्तानी बताते हुए शर्मसार होते है। शायद यही वज़ह है कि हमारे अपने लोग भी इज्जत बचाने के लिए खुुद को हिन्दुस्तानी बताते हैं।’ ये शब्द मेरे नहीं, यूरोप प्रवास के दौरान पाकिस्तानी मूल के एक लेखक ने कहे थे। आखिर सच ही तो है जिन्ना के जन्नत के दावे पर यकीन करके जो लोग अपनी जन्मभूमि छोड़कर पाकिस्तान गए थे वे भी मुहाजिर बने पछता रहे है क्योंकि उनका अनुभव है कि जहन्नुम भी शायद इससे बेहतर होता हो।
पाकिस्तान सचमुच एक अजूबा है। न कोई दिशा, न दशा। न कोई नीति, न रीत। जनता चुनती किसी भुद्दो या शरीफ को है पर राज करते हैं जिया या मुशर्रफ है। कहने को जम्हुरियत है पर वास्तव में वहां है क्या ये खुद उन्हें भी नहीं मालूम जो उसे ढ़ो रहे है। सारी दुनिया में इसकी पहचान आतंकवाद की एक नर्सरी के रूप में है जिसने कभी खाद पानी देने वाले अमेरिका तक को आतंकवाद का स्वाद चखाया। अमेरिका आज तक पाकिस्तान की ऐसी भूलभलैया में उलझा है कि उसे सही राह पर लाने के लिए उसे और ज्यादा मदद देने को मजबूर है। अमेरिका जानता है कि उसके द्वारा दी गई मदद का नापाक इस्तेमाल ही होगा लेकिन फिर भी अमेरिकी मंत्री ने इसी सप्ताह उसे अरबों डॉलर देने का ऐलान किया सो किया साथ ही वहां की सरकार को आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने वाली होने का सर्टिफिकेट भी दिया। इसे अमेरिका मजबूरी से ज्यादा उसकी छल नीति भी कहा जा सकता है जो एक तरफ आतंकवाद के समूल नाश का संकल्प दोहराती है तो दूसरी ओर भारत को लगातार परेशान करने वाले घोषित आतंकी राष्ट्र को मदद भी देती है।
क्या इसे अमेरिका की डल नीति माना जाए या उसका पाकिस्तानी फोबिया जो ओबामा द्वारा दिए गए एक इन्टरव्यू में झलकता है। दिसंबर 2012 में ओबामा से पूछा गया था कि कौन-सी चीज उनकी नींद उड़ाती है? उन्होंने कहा था, ‘जोभी काम मेरे सामने आता है, वह सब नींद उड़ानेवाला होता है।’ यह पूछने पर, ‘कोई एक ऐसा काम बताइए जिसने आपकी नींद उड़ा दी है?’ ओबामा का उत्तर था- ‘पाकिस्तान’। यह कोई बताने को तैयार नहीं कि यह डर पाकिस्तान के पास परमाणु बम का होना है या भारतीय महाद्वीप को संतुलित रखने में पार्किस्तान की महत्वपूर्ण भूमिका हाथ से निकल जाने का है।
खैर अमेरिका तो बहुत दूर है लेकिन भारत का दुर्भाग्य है कि उसकी हजारों किमी सीमा ही भस्मासुर बने पाकिस्तानी से जुड़ी हुई है। पाकिस्तानी मानसिकता हर उस भारतीय की नींद हराम भी करती है। जो पाकिस्तान के हर दर्द को अपना समझता है। पिछले दिनों स्कूल में हुए आतंकी हमले में मारे गए बच्चों को भारतीय संसद से हर गांव गली तक श्रद्धांजलि दी गई। गोलियों से छलनी होते उन बच्चों की चीख से उनके माता-पिता का क्रन्दन हर भारतीय हृदय को घायल करता है। वास्तव में पाकिस्तान एक असफल राष्ट्र है। नियति ने उसे एक नहीं, अनेक धृतराष्ट्र दिए। वहां न पारदर्शिता है न औद्योगिकीकरण। जहां युवाओं को रोजगार न मिलने के कारण उनका गलत हाथों में जाने का खतरा काफी ज्यादा है। उसपर रही सही कसर आधुनिकता पर मजहबी मानसिकता और भारत विरोध का मुलम्मा पुरी कर देता है।
पाकिस्तान को लेकर जो भ्रम अमेरिका का है, वही हमारा भी है। हम जानते हैं कि पाकिस्तान एक ऐसी मानसिकता का नाम है जो भारत विरोध के बिना जिन्दा नहीं रह सकती परंतु फिर भी उससे दोस्ती की कभी न पूरी होने वाली उम्मीद करते हैं। कई जंग हारने के बाद भी जिसने अपनी जंग लगी मानसिकता पर फिर से विचार तक नहीं किया वह पाकिस्तान कभी पंजाब तो कश्मीर में अपने गुर्गंे भेजता है। आतंकवाद की ट्रेनिंग के कैम्प लगाता है। मुंबई पर हमले के लिए कसाब भेजता है तो मुंबई के माफिया दाउद को शरण देता है। बार- बार जख़्म खाने के बावजूद हम कभी बस लेकर तो कभी बैट बल्ला लेकर अमन का दीया जलाने निकलते हैं पर उसपार से हमेशा नश्तर ही भेजा गया। इसमें कोई हैरानी की वजह भी नहीं है क्योंकि जो मानसिकता अपने मासूम बच्चों तक का खून बहा सकती है उसके लिए पड़ोसी के मायने क्या हो सकते हैं।
पिछले हफ्ते से सीमा पर अकारण जारी गोलाबारी की पाकिस्तानी हरकत हो या समुद्री रास्ते अपनी एक नौका से बदअमनी का सामान भेजने की नाकाम साजिश। इसने एक बार फिर सारी दुनिया के सामने साबित किया कि बेशक कुत्ते की दुम सीधी हो जाए पर पाकिस्तान अपनाी हिन्दुस्तान विरोधी मानसिकता छोड़ ही नहीं सकता। पाकिस्तान सीमा पार से लगातार सीजफायर का उल्लंघन भारत में आतंकी घुसपैठ कराने के लिए हो रहा हैं। यह राहत की बात है कि नई सरकार गलत हरकत का मुंहतोड़ जबाव देने की नीति अपना रही है।
भारत को विश्व जनमत को पाकिस्तान की हरकतों के बारे में लगातार जागरूक ही नहीं करना चाहिए बल्कि भारत यात्रा पर आ रहे अमेरिकी राष्ट्रपति को भी दोटूक बताना चाहिए- पाकिस्तान को सहन करना उनकी मजबूरी हो सकता है लेकिन भारत के लिए अब यह असहनीय है। हम युद्ध नहीं चाहते परंतु आत्मसम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस अंतिम विकल्प से भागने वाले भी नहीं हैं। हम पाकिस्तान द्वारा छेड़े गए अघोषित युद्ध का मुंह तोड़ जवाब देने को विवश हैं।
और अंत में पेशावर के कुफ्र पर एक भारतीय मुसलमान की पंक्तियां-
खून के ये नापाक धब्बे, खुदा र्से िछपाओंगे कैसे
मासूमों के कब्र पर चढ़कर, कौन से जन्नत जाओंगे?
पाकिस्तानी मानसिकता और अमेरिका -- डा. विनोद बब्बर
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