दिल्ली ने देखा दिनकर का तेज

ज्येष्ठ की भीषण गर्मी में जब पशु-पक्षी भी सुरक्षित स्थानों में दुबक जाते हो तब राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की दो कालजयी कृतियों ‘संस्कृति के चार अध्याय’ तथां ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ की स्वर्ण जयन्ती पर आयोजित कार्यक्रम में  देशभर के साहित्यकारों और दिनकरप्रेमियों से खचाखच भरे दिल्ली के विज्ञान भवन और बाहर प्रवेश के लिए मचलती भारी भीड़ का दृश्य सुखद आश्चर्य ही कहा जा सकता है। मंच पर दिनकर जी के सुपुत्र श्री केदारनाथ सिंह सहित परिवार के सभी सदस्यों को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी  द्वारा  सम्मानित किया जाना राष्ट्रवादी सांस्कृतिक चेतना के उस महान ओजस्वी शब्द शिल्पी के प्रति सम्पूर्ण राष्ट्र की भावना का प्रकटीकरण था।
कभी लोकनायक जयप्रकाश, बाबू गंगाशरण और दिनकर जी के चिकित्सक रहे  पद्मश्री डा. सी. पी. ठाकुर अक्सर दिनकर जी की ओजस्वी कविताएं गुनगुनाते हुए  दिनकर जी से संबंधित अनेक संस्मरण सुनाते थे तो उनके साहित्यिक मित्रों ने उन्हें याद दिलाया कि  दिनकरजी  की कालजयी कृतियों  ‘संस्कृति के चार अध्याय’  एवं ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ की स्वर्ण जयन्ती मनाया जाये । यदि संभव हो तो दिनकर जी की स्मृति को स्थायी बनाने तथा युवा पीढ़ी तक दिनकर चेतना पहुंचाने के लिए कुछ किया जाए। डा. सी. पी. ठाकुर के नेतृत्व में साहित्यकारों के एक प्रतिनिधि मंडल ने प्रधानमंत्री से मिलकर इस समारोह में उपस्थित रहने का अनुरोध किया जिसे मोदी जी ने तत्काल मंजूरी दे दी। विज्ञान भवन की बुकिंग कराने गये आयोजन समिति के अध्यक्ष डा. ठाकुर को सलाह दी गई कि देश के विशालतम सभागार विज्ञान भवन में अब तक आयोजित किसी भी साहित्यिक समारोह में कुल उपस्थिति केवल प्रथम दो से तीन पंक्तियों तक ही सीमित रहती है। बेहतर होगा आप यह समारोह किसी छोटे सभागार में आयोजित करें। लेकिन अपनी धुन के पक्के डा. सी. पी. ठाकुर को इस देश की जनता के हृदय में दिनकर जी के प्रति श्रद्धा की जानकारी थी। उन्होंने इस चेतावनी को हंसी में उड़ा दिया। जब-जब लोग शंकित होते तो डा. ठाकुर ‘उर्वशी’ की ये पंक्तियां ‘मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं, उर्वशी! अपने समय का सूर्य हूँ मैं’ गुनगुनाते हुए कहते, ‘आप दिनकर (सूर्य) के तेज को महसूस कर रहे हैं लेकिन मैंने साहित्य ऋषि दिनकर की ओजस्वी वाणी के प्रत्यक्ष तेज को देखा, सुना, अनुभव किया है। जो आज भी मेरे कानों में गूंज रहा है। देखना दिनकर जी की स्मृति को समर्पित यह ऐतिहासिक समारोह विज्ञान भवन भी याद रखेंगा।’
...और 22 मई की सुबह जब आसमान पर एक दिनकर (सूर्य) अपने पूरे शबाब पर थे, विज्ञान भवन के प्रांगण में भारत माता के महान सपूत श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के चाहने वालों का रेला महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब, हिमाचल, असम, अरूणाचल, उत्तर प्रदेश, उतरांचल, झारखंड, बंगाल, बिहार सहित देश के हर भाग से उमड़ रहा था। डा. सी.पी.ठाकुर की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। 10 बजे तक ही सभागार में प्रवेश की अनुमति थी लेकिन 9ः30 बजे ही सभागर खचाखच भर गया। मुख्य सभागार के अलावा हाल न. 5 और 6 भी खोल दिये गये जहां बहुत बड़ी स्क्रीन के माध्यम से कार्यक्रम देखा जा सकता था। लेकिन इसके बाद प्रवेश द्वार बंद करना मजबूरी थीे। प्रवेश से वंचित रहें सैंकड़ों साहित्यकार  दिनकरजी के प्रति श्रद्धा का ज्वार देख बहुत आनंदित थे। यह प्रथम अवसर था जब देश का प्रधानमंत्री किसी साहित्कार के प्रति अपनी श्रद्धा समर्पण के लिए उपस्थित था। दिनकरजी  सशक्त और समृद्ध भारत के पक्षधर थे। मोदीजी भी भारत को सशक्त, समृद्ध, भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए प्राण-प्रण से लगे हैं। उन्हें भी दिनकर जी की ये पंक्तियां प्रेरणा देती हैं-
सच पूछो, तो शर में ही बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की।
सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।
इसी कविता में दिनकर जी उद्घोष करते है-
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन विषरहित, विनीत, सरल हो।
दिनकर जी के लिए जनभावनाओं का ज्वार का उमड़ना स्वाभाविक है क्योंकि उन्होंने किसी भाट या चारण की तरह राजनेताओं की जय जयकार कर अपना स्वार्थ नहीं साधा। उनके लिए सबसे पहले देश और संस्कृति थी इसीलिए संघर्ष पूर्ण जीवन जीते हुए भी उन्होंने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले अमर बलिदानी शहीदों के प्रति नतमस्तक होते हुए दिनकर जी ने अपने लेखनी से आह्वान किया था-
जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
आपातकाल में सरकार की वक्र दृष्टि से बचने के लिए माफीपत्र लिखने वाले नहीं जानते हैं क्रान्तिकारी कविता लिखने के कारण अंग्रेज़ी सरकार बार-बार उनका तबादला करती थी लेकिन दिनकर ने न सिर झुकाया, न घुटना टिकाया।  1934 में ‘एक पत्र’ शीर्षक कविता  में दिनकर जी का संकल्प व्यक्त करते हैं---
टूट नहीं सकता ज्वाला से, जलतों का अनुराग सखे!
पिला-पिला कर ख़ून हृदय का पाल रहा हूँ आग सखे!
देश की जनता की पीड़ा पर मौन सुविधाभोगी को फटकारते हुए कहा-
कहता हूँ, ओ मखमल-भोगियो। श्रवण खोलो
रूक सुनो, विकल यह नाद कहां से आता है।
है आग लगी या  कहीं लुटेरे लूट रहे? 
वह कौन दूर पर  गांवों में चिल्लाता है?
जनता की छाती भिदें और तुम नींद करो,
अपने भर तो यह जुल्म नहीं होने दूँगा।
तुम बुरा कहो या भला, मुझे परवाह नहीं,
पर दोपहरी में तुम्हें नहीं सोने दूँगा।।
हो कहां अग्निधर्मा नवीन ऋषियो? जागो!
कुछ नयी आग, नूतन ज्वाला की सृष्टि करो।
आज समाज में जाति, धर्म के नाम पर जो विभाजन रेखाएं खींची जा रही है दिनकर जी ने मई, 1962 में लिखे एक पत्र में इसे देश के विकास में बाधक बताते हुए उससे ऊपर उठने का आह्वान किया था। दुर्भाग्य से आज महामानव दिनकर जी का अपना प्रांत बिहार जातिवाद के घोर द्वंद्व में फंस अपनी स्वाभाविक गति खो रहा है। क्या यह उचित अवसर नहीं होगा कि हर तरफ से एक ही आवाज उठे, ‘बिहार को उसका खोया हुआ गौरव पुनः दिलवाने के लिए हम सब एक हैं!’ 
दिनकर जी की कालजयी कृतियों के स्वर्ण जयन्ती वर्ष पर देशभर में समारोह होंगे ही। आज दिल्ली के विज्ञान भवन ने दिनकर का तेज देखा। कल सारा देश देखेगा। उसी तेज में अपना तेज मिलाते हुए समस्त देशवासियों को संकल्प लेना चाहिए कि दिनकर जी की दिखाई राह पर चलते हुए  देश के समक्ष चुनौतियों का सामना करेगे। यह सनद रहे कि दिनकर जी ने कहा भी है-
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध 
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध!

यह भी दिनकर जी ने ही  लिखा हैं---
नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!
नमो नगाधिराज-शृंग की विहारिणी!
नमो अनंत सौख्य-शक्ति-शील-धारिणी!
प्रणय-प्रसारिणी, नमो अरिष्ट-वारिणी!
नमो मनुष्य की शुभेषणा-प्रचारिणी!
नवीन सूर्य की नई प्रभा, नमो, नमो!
नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!

हम न किसी का चाहते तनिक, अहित, अपकार
प्रेमी सकल जहान का भारतवर्ष उदार
सत्य न्याय के हेतु, फहर फहर ओ केतु
हम विरचेंगे देश-देश के बीच मिलन का सेतु
पवित्र सौम्य, शांति की शिखा, नमो, नमो!
नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!

तार-तार में हैं गुंथा ध्वजे, तुम्हारा त्याग
दहक रही है आज भी, तुम में बलि की आग
सेवक सैन्य कठोर, हम चालीस करोड़
कौन देख सकता कुभाव से ध्वजे, तुम्हारी ओर
करते तव जय गान, वीर हुए बलिदान
अंगारों पर चला तुम्हें ले सारा हिन्दुस्तान!
प्रताप की विभा, कृषानुजा, नमो, नमो!

नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!
(लेखक विनोद बब्बर 09868211911 इस समारोह की आयोजन समिति के सदस्य है )
दिल्ली ने देखा दिनकर का तेज दिल्ली ने देखा दिनकर का तेज Reviewed by rashtra kinkar on 22:33 Rating: 5

3 comments

  1. I am feeling proud to be part of that golden moment.
    Jolly JPS (Jolly Uncle)

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  2. वास्तव में ही राष्ट्र कवि दिनकर के लिए भारत की जनता के ह्रदय में बसे प्रेम को देखा जा सकता था २२ मई को विग्यान भवन में, ओजस्वी कवि को श्रद्धासुमन अर्पित किए माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपने ओजस्वी शब्दों द्वारा.... गर्व है हमें अपने प्रधानमंत्री जी पर ।

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  3. महान राष्ट्र कवि दिनकर जी को शत शत नमन,

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