लड़खड़ाती डाक व्यवस्था


कभी दिल को दिल से जोड़ने में जिस डाक विभाग का सर्वाधिक योगदान था तथा हर व्यक्ति जिसका इंतजार रहता था आज उसकी प्रतिष्ठा ऐसी हो चुकी है कि एक केन्द्रीय मंत्री द्वारा भेजे नव वर्ष के सैंकड़ों बधाई कार्ड सही पते पर पहुंचने की बजाय जिला बार एसोसियेशन के भवन में बिखरे पाये जाने की खबर तो नहीं लेकिन  कुछ लोगों को लापरवाही के आरोप में निलम्बित करने का समाचार जरूर चौकाता है।  
कभी खाकी वर्दी, साईकिल पर या पैदल, गांव-नगर, द्वारे-द्वारे जाकर सुख-दुख की पाती पहुंचाने वाले डाकिये के आज दर्शन दुर्लभ होते जा रहे है। कुछ लोगों के अनुसार इसका कारण दूरसंचार क्रांति है जिसने  घर-घर फोन की अवधारणा को भी मीलों पीछे छोड़ते हुए हर हाथ मोबाईल और स्मार्ट फोन पहुंचा दिया है जिसने इंटरनेट के माध्यम से सारी दुनिया को मुट्ठी में कर लिया है। केवल एसएमएस ही नहीं ई-मंेल और सोशल मीडिया के माध्यम से संदेश का प्रसार इतना तीव्रगामी हो रहा है कि सैंकड़ से भी कम समय में फोटो सहित संदेश विश्व के किसी भी कोने में जा पहुंचता है तो अनेक ऐसे एप्पस भी आये है जिनके माध्यम से सीधे वीडियों वार्तालाप भी अत्यन्त सहज है। लेकिन इन सबके बावजूद डाक  का अपना महत्व है। लेकिन मंत्री महोदय के साथ अब हुआ व्यवहार आमजन कभी समय से झेल रहा है। शायद यही कारण  है कि भारत में बहुत तेजीर से कोरियर कम्पनियों अपना विस्तार करने में सफल रही है। आश्चर्यजनक बात यह है कि अनेक कोरियर कम्पनिया तो लगभग उसी खर्च पर उनसे बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करवा रही है। ऐसे में कभी सर्वाधिक विश्वसनीय रही डाक व्यवस्था से आम आदमी का मोह भंग हो रहा है। 
बेशक हमारे देश का डाक विभाग भारत ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा नेटवर्क है जो दूर-दराज के क्षेत्रों, दुर्गम पहाड़ियों पर बसे गांवों से रेगिस्तान में बसे लोगों तक अपनी पहुंच रखता है पर ऐसे अनेक कारण है जो डाकियें के इंतजार के अवसर घटा रहे हैं। 
पिछले दिनों हमारे सामने  अपने वार्षिक उत्सव के निमंत्रण पत्र देश भर में फैले अपने शुभचिंतकों ं तक समय पर पहुंचाने की चुनौती थी। सीमित साधनों के कारण कम से कम खर्च में ऐसा करना हो तो तुलनात्मक विश्लेषण अनिवार्य हो जाता है। हमने एक प्रयोग किया जिसके परिणाम आश्चर्यजनक रहे। जिस लिफाफे  को दिल्ली राज्य में कहीं भी एक कोरियर कम्पनी द्वारा समान खर्च पर अगले ही दिन पहुंचा दिया गया, उसे  डाक विभाग ने एक हफ्ते से भी अधिक समय में पहुंचाया गया। दुखद आश्चर्य तो यह है कि अनेक स्थानों पर दो सप्ताह बाद भी हमारा निमंत्रण पत्र नहीं पहुंचा तो उसे हमने ‘लापता’ मानकर संतोष कर लिया। मजेदारी यह भी रही कि जिस स्थान से उन्हें पोस्ट किया गया उसी डाकघर की सीमा क्षेत्र  में भी हमारे द्वारा द्वारा प्रेषित लिफाफा नहीं पहुंचा। बहुत संभव है उनका हश्र भी मंत्रीजी द्वारा भेजे गये बधाई पत्रों जैसा ही हुआ होगा। यह केवल हमे ही नहीं आमजन को भी डाक व्यवस्था से अनेक शिकायत हैं। 
नाले से बरामद आधार कार्ड जोकि  ++++++++++++
लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों के अखिल भारतीय संगठन के प्रवक्ता के अनुसार डाक लाईसंेस प्राप्त पंजीकृत समाचार पत्रों के डाक प्राप्ति केन्द्र लगातार कम किये जा रहे हैं। उस पर भी वहां डाक लेने वाले अधिकृत व्यक्ति गायब मिलते है। ‘छपाई’ के नाम पर अवैध वसूली होती है। उसके बावजूद आधी डाक भी अपने सही ठिकाने पर पहुंच जाए तो गनीमत। यही शिकायत आम व्यक्ति को है। पहले के मुकाबले लैटर बाक्स कम हो रहे हें। जो हैं उनमें से अधिकांश असुरक्षित है। समय पर पत्र न पहुंचना अथवा गायब हो जाना, मनीआर्डर देते समय तथा होली- दिवाली नजराना -शुकराना वसूलना, रजिस्टर्ड पत्र अनाधिकृत हाथों को सौंपना जैसे ढ़ेरों शिकायत के बीच जब डाक कर्मचारियों के रूखे व्यवहार का तड़का लग जाए तो इस विभाग की प्रतिष्ठा का प्रभावित होना लाजिम है। 
यह भी उल्लेखनीय है कि एक लेखक होने के नाते मुझे देश भर से ढ़ेरों पत्र-पत्रिकाएं भेजी जाती हैं जिनमें मेरी रचनाएं प्रकाशित होती हैं।  ऐसे में जब फोन से कोई परिचित किसी समाचार-पत्र, पत्रिका में मेरी रचना प्रकाशित होने की जानकारी देता है तो उसे प्राप्त करने की उत्सुकता रहती है। अनेक पत्रिकाएं ऐसी भी है जिनका शुल्क चुकाने के बाद भी नहीं मिलती। पड़ताल करने पर पता चलता है कि साधारण डाक से भेजी गई लेकिन.......! इस तरह से प्राप्त पत्रिकाओं की संख्या बहुत कम होती है तो कुछ अनियमित रूप से प्राप्त होती है। अनेक साधन संपन्न संस्थान तो अब डाक की बजाय कोरियर का सहारा लेने लगे है।
पिछले कुछ वर्षों में हमने एक प्रयोग किया। जिसके अनुसार जहां भी जाना हुआ, उस शहर से प्रतिदिन एक पोस्ट कार्ड अपने पते पर भेजा। मुझे यह कहते हुए अत्यन्त कष्ट है कि अधिकांश पत्र लापता हो गए। पिछले दिनों एक परिचित ने बताया कि उसके द्वारा अपनी बीमार मां को इलाज के लिए भेजा मनीआर्डर महीनों तक नहीं पहुंचा था जबकि मां की तेरहवीं भी हो चुकी थी। दिल्ली लौटकर उसने संबंधित अधिकारियों से सम्पर्क किया तो उसे कटू संवाद सुनने पड़े। आखिर क्या कारण है कि जिस विभाग की समाज में महत्वपूर्ण भूमिका थी आज वह सर्वाधिक शिकायतों का केन्द्र बन गया है। 
डाक विभाग में कार्यरत मित्रों के अनुसार पिछले अनेक वर्षों से डाक विभाग की अनदेखी की जा रही है। व्यवहारिकता का अभाव  अपमानजनक स्थिति उत्पन्न कर रहा है। हर शहर में नई-नई बस्तियां बस गई है जिसके कारण डाकिये का कार्यक्षेत्र काफी बढ़ गया है पर बरसों से नए लोगों की भर्ती नहीं हो रही है। रिटायरमेंट से या फिर मृत्यु के कारण जो स्थान रिक्त हो जाते हैं उनका काम बाकि डाकियों में बांट दिया जाता है, ऐसे में पहले से ही काम के बोझ दबे कर्मचारी से आप अति आधुनिक कम्पनियों से मुकाबले की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? स्थिति यहां तक खराब है कि प्राप्त पत्रों पर मोहर लगाने के कार्य करने वाले सहायको का भी अभाव है। अनेक बार डाकपाल अपने स्तर पर दिहाड़ी मजदूरों की व्यवस्था कर काम चलाते हैं। कभी-कभी तो बिना मोहर लगे ही पत्रों को आगे बढ़ाना पड़ता है।
उस पर भी सरकार अनेक ऐसे कामों का बोझ भी डाक विभागं पर डाल देती है जो वास्तव में उसकी जिम्मेवारी नहीं है। बुढ़ापा पेंशन, इन्कम टैक्स रिटर्न जमा, पानी के बिल, टेलीफोन बिल, मतदाता जांच, बीमा, पीएफ और न जाने क्या-क्या? बार-बार के अनुरोध और दबाव के बाद पेंशन का काम डाकघरों से बैंकों को हस्तांतरित किया जा रहा है। क्योंकि लेन-देन को वे बेहतर ढंग से कर सकते हैं। इसी प्रकार बचत योजनाओं की जो ब्याज दर डाक घर देता है, वह बैंक क्यों नही दे सकते? यदि बैंक भी किसान विकास पत्र आदि के समानानतर योजना बनाये तो डाक घरों से वर्क लोड़ कम हो सकता है। आज भी आंधी -तूफान में घर-घर दस्तक देने वाले डाकिये को जन सामान्य में जो सम्मान प्राप्त है उसकी तुलना किसी अन्य सरकारी कर्मचारी से नहीं की जा सकती। कटू व्यवहार पर कर्मचारी संघ के प्रवक्ता का दावा है कि बेशक कुछ लोग ऐसा कर सकते हैं पर अधिकांश कर्मचारी विनम्र हैं। डाक गायब होने या देर से पहुंचने पर डाक विभाग के मित्र सरकारी व्यवस्था और अपनी जिम्मेवारी दूसरों पर डालने की प्रवृत्ति को दोषी ठहराते हैं।
डाककर्मियों का पक्ष तो उनके संगठन के पदाधिकारी सरकार एवं जनता के सम्मुख रखते ही है पर जनता का पक्ष कौन सुनेगा? डाक व्यवस्था की खामियों को सुधारने की बजाय कोरियर कम्पनियों पर लगाम कसने की कोशिश भी हो रही है, पर बिना कार्यकुशलता बढ़ाये, संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग नहीं हो सकता। यह कल्पना करने मात्र से सिहरन होती है कि यदि आज भी कोरियर कम्पनियां न होती, संदेश के लिए मोबाइल फोन, इंटरनेट आदि न होते  और बैंक ने देशभर की किसी भी शाखा में धन जमा करने अथवा निकलवाने की सुविधा आरंभ न की होती तो मनीआर्डर और साधारण डाक के बढ़ते बोझ से डाक व्यवस्था की स्थिति कैसी होती?
सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए क्योंकि डाक विभाग देश की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है। एक ओर जबरदस्त बेरोजगारी तो दूसरी ओर काम करने वालों का अकाल नेतृत्व पर प्रश्न चिन्ह है। अविलम्ब नई भर्ती हो, आधुनिक संचार क्रांति का इस्तेमाल किया जाए, डाक दरों को तर्क संगत बनाया जाए जो किसी भी दशा में कोरियर कम्पनियों से अधिक नहीं होनी चाहिए क्योंकि कोरियर कम्पनियों द्वारा अत्यंत अल्प मूल्य लेने के बावजूद पावती सूचना भी दी जाती है जबकि साधारण ही नहीं पंजीकृत डाक वितरण का भगवान ही मालिक है। 
डाक कर्मियों को बेहतर सुविधाएं देने के साथ-साथ उन्हें आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रशिक्षण भी दिया जाए तो डाक विभाग की अस्मिता की रक्षा हो सके और लोग फिर से इंतजार करे डाकिये की घंटी का, पिया की चिट्ठियांे का, बाबुल के बुलावे का। आखिर जो आनंद चिट्ठी पढ़ने में है वह एसएमएस में कहां?, अनेक पत्र इतिहास की धरोहर है तो कुछ खुद में इतिहास हैं। इन्हें संजोकर रखा जा सकता है। बार-बार पढ़ा जा सकता है। दिल से लिखा पत्र हर बार दिल के तार झंझनाता है। यह सिलसिला जारी रहे अर्थात डाक विभाग के अच्छे दिन आये इसके लिए जरूरी है कि डाक विभाग को आवश्यक सुविधाएं और स्टाफ उपलब्ध कराया जाए लेकिन लापरवाही करने वालों के ढ़ीले तार कसे जाये।
--विनोद बब्बर संपर्क-  09458514685
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