आतंकवादः क्या अब भी जारी रहेगा तुष्टीकरण ? # Atankvaad # Brussel

आतंकवाद अमेरिका में टिविन टावर और भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले से वर्तमान में पेरिस के बाद बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में हवाई अड्डे तथा और मेट्रो स्टेशन पर में होने वाले 13वें भारतीय -यूरोपीय सम्मेलन  तक आ पहुंचा है। इसका संकेत स्पष्ट है कि यदि अब भी आतंकवाद के प्रति प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष उदारता बरती गई तो यह भस्मासुर अपने आकाओं को भी निगल सकता है। आईएस द्वारा इस हमले की जिम्मेवारी लेने से यह भी साफ हो जाना चाहिए कि उन्हें कमतर नहीं आंका जाना चाहिए अतः अब उनके प्रति पूर्ण असहिष्णुता से कम की कोई गुंजाइश शेष नहीं है।
आतंकी भस्मासुरों ने इस बार मानवता पर प्रहार कर विश्व को एक गंभीर चुनौती दी है। यदि ईमानदारी से आत्म मूंल्यांकन किया जाए तो यह तथ्य उभर कर आता है कि इस अति दयनीय स्थिति के लिए अपने स्वार्थों के कारण दुनिया के बड़े देश ही जिम्मेदार हैं। ज्ञातव्य है कि पेरिस हमले के सूत्रधार आतंकी सालेह अब्देसलाम को 4 दिन पहले ही मोलिनबेक को  बेल्जियम के एक मोहल्ले से गिरफ्तार किया गया है। पेरिस में हमलों को शामिल 3 आतंकियों का संबंध  मोलिनबेक  से बताया जाता है जिसके बारे में कहा तो यहां तक जाता है कि पुलिस भी यहां जाने से डरती है। तभी से आतंकी हमले की आशंका थी। अरबी भाषा में जिहादी नारे लगाते हुए ब्रसेल्स पर हमला करने वाले आतंकियों ने पूरे यूरोपियन यूनियन की 50 करोड़ लनता को कभी भी और कहीं भी आतंकी हमले की चेतावनी दी हैं। स्थानीय सूत्र पिछले कुछ वर्षों में मोलिनबेक में  जेहादी नारों औऱ मुस्लिम शरणार्थियों की बढ़ती संख्या के प्रभाव के साथ-साथ कट्टर सोच का समर्थन करने वाली शक्तियों को जिम्मेवार ठहराते हैं। पुलिस से मुठभेड़, नशे का व्यापार, अपराध, आतंकियों को ट्रेनिंग औऱ धर्मस्थानों से भड़काऊ भाषणों ने स्थिति को इतना विषाक्त बनाने में मदद की है।
 आखिर तमाम सुरक्षा चौकसियों के बावजूद 34 की मौत और लगभग 200 का घायल होना आतंकवाद की गहरी घुसपैठ को प्रमाणित करता है। यह आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि आतंकवादी संगठन अमेरिका में भी कुछ कर दिखाने की ताक में है। ऐसे में विश्व समुदाय को अपने तमाम मतभेद भुलाकर मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरे अति आधुनिक और मजबूत संगठन इस्लामिक स्टेट को खत्म करने के एकमत और एकजुट होने के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प शेष नहीं है। विशेष रूप से भारत को अति सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि हम पहले से ही सीमापार के आतंक का सामना कर रहे हैं। उसे आईएस का सहयोग मिलना जबरदस्त खतरे की घंटे है।
यह मानवीय स्वभाव है कि जब भी कहीं आग लगती है अथवा बाढ़ आती है तो हम अपने परिवेश को सुरक्षित बनाने के उपाय सोचने लगते हैं। अनेक बार दूसरों का दर्द हमारी बेचौनी का कारण बन जाता है। यह बेचौनी और असुरक्षा का भय ही समाधान बनता है। अतः इस बर्बर घटना को केवल बेल्जियम अथवा यूरोप की समस्या बताने बिल्ली को देख कबूतर द्वारा आंखे बंद करने जैसा होगा। वर्तमान स्थितियां इस बात की समीक्षा की मांग भी करती हैं कि क्या शरणार्थी मामले में बेल्जियम को अपनी सहनशीलता की सज़ा मिल रही है? भारत के संदर्भ में हमें विशेष रूप से विचार करना होगा कि क्या घुसपैठियों के प्रति हमारी निष्क्रियता अथवा वोट बैंक के लिए उनका समर्थन हमारी सुरक्षा पर भारी तो नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे कुछ क्षेत्रों में भी उसी तरह का वातावरण बन रहा हो जहां सुरक्षा बल जाने में संकोच करे।  देशद्रोही नारों, देश को टुकड़े- टुकड़े करने की सरेआम मंशा प्रकट करने वालों और देश के संविधान से अपने व्यक्तिगत विश्वास को बड़ा बताने को आखिर क्यों और कब तक सहन किया जाता रहेगा? देशहित और राजनैतिक हितों में अंतर करने की सोच विकसित किये बिना खतरे को टाला नहीं जा सकता। ध्यान रहे आज की जरा सी लापरवाही, तुष्टीकरण कल हमारे ही अस्तित्व के लिए संकट खड़ा कर सकती है। ऐसे तत्वों को तत्काल पूरी तरह कुचलने की सर्वसम्मत राष्ट्रीय नीति ही अंकुश लगा सकती है। इस सर्वसम्मति में न केवल सभी राजनैतिक दलों को बल्कि सभी धार्मिक समुदायों को न केवल अपना स्वर मिलाना होगा बल्कि वाणी से व्यवहार तक संयम बरतना होगा। वरना अपनी बर्बादी का जिम्मेवार कोई दूसरा नहीं हम स्वयं होंगे।
 देश मंे अफरा-तफरी फैलाने की कोशिश करने वालों को  व्यवस्था की ओर से साफ-साफ बताना चाहिए कि जहाँ भी राष्ट्र-हित को क्षति पहुंचाने वाले लोग प्रशिक्षण अथवा आश्रय लेंगे, वहीं पहुँच कर उनका सफाया करने के लिए यह राष्ट्र वचनबद्ध हैं। वरना, देश के परमाणु शक्ति होने, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना होने पर गर्व करने की बजाय शर्म ही महसूस की जाती रहेगी। फ्रांस  के राष्ट्रपति जिन्होने दुश्मन के घर में घुसकर सबक सिखाने का जज्बा दिखाया था, उनका अनुसरण ही आतंकवाद से निबटने का एकमात्र रास्ता है।
केवल आतंकवाद से लड़ने के संकल्प दोहराकर आतंकवाद को परास्त करने का सपना देखने से बात बनने वाली नहीं है। अमेरिका को विशेष रूप से सोचना होगा कि उसकी  दोहरी नीति का आतंकवाद को बढ़ावा देने में क्या भूमिका है। आज अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए ट्रम्प को जो बढ़त मिल रही है क्या वह भी उसी की दोहरी नीति का परिणाम है या समस्या को गलत ढ़ंग से देखने का नजरिया?
‘आतंकवाद का सख्ती से मुकाबला किया जाएगा, दोषी बख्शे नहीं जाएंगे’ का रटा-रटाया टेप आखिर कब तक बजाा जा सकता है। जिन परिवारों ने अपना एक भी सदस्य खोया है, उन्हें इस तरह के आरोपों-प्रत्यारोपों से संतुष्टि नहीं मिल सकती। न ही कुबेर के खजाने के रूप में प्राप्त मुआवजा उनके घावों को सहला सकता है। उन्हें न्याय तो उस दिन मिलेगा, जब ऐसे अमानवीय कृत्य करने वाले अपराधियों को जल्द से जल्द सरेआम फांसी पर लटकाया जाएगा। वर्तमान परिस्थितियों की मांग है कि देशद्रोहियों के समर्थकों को भी परिभाषित किया जाए। अभी दोषियों को देशभक्त बताने का जो प्रचलन चल रहा है उसपर अंकुंश लगाने की जरूरत है। यह काम जहां कानून के माध्यम से हो वहां समाज को भी अपनी भूमिका निभानी चाहिए।  आतंकवाद शांति का दुश्मन है। क्योंकि निर्दाेषों की जान लेने वाले को दुनिया का कोई भी धर्म समर्थन नहीं कर सकता। यदि कोई स्वयं को धार्मिक बताते हुए ऐसा करता है तो सबसे पहले उसके अनुयायिायों को अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए। क्या यह उचित नहीं होगा कि हम शिक्षा के पाठ्यक्रम और शिक्षा संस्थाओं को धार्मिक आधार पर बांटने की परिपाटी पर फिर से विचार किये जाने की आवश्यकता महसूस करें।
आज की सबसे बड़ी बावश्यकता है कि कानून -व्यवस्था को मजबूत किया जाएगा कि देशद्रोहियों को पलक झपकते ही काबू कर लिया जाएगा। पुलिस और सुरक्षा बलों को अति आधुनिकतम हथियार और प्रशिक्षण दिये जाये। मैट्रो तथा सभी रेलवे स्टेशनों पर तलाशी पद्धति की समीक्षा की जानी चाहिए। शीघ्र न्याय और निष्पक्ष व त्वरिक जांच के लिए हर संभव प्रयास हो। तभी आतंक से लड़ाने के हमारे इरादों की गंभीरता है अन्यथा यह केवल गाल बजाने का कर्म कांड ही होगा।--विनोद बब्बर संपर्क-  09458514685, 09868211911

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