मिजोरम है मिजो==पर्वत और रम==भूमि Mizoram Land of Mountains



मिजोरम है मिजो==पर्वत और रम==भूमि
यूं तो भारत के हर प्रांत विशेष और विशिष्ट है लेकिन जब बात पूर्वाेत्तर की आती है तो सामने सामने एक नहीं, आठ राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम की तस्वीर उभरती है। पांच देशों बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्यांमार और तिब्बत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से जुड़े ये सभी राज्य एक से बढ़कर एक प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है क्योंकि आज भी यहां के  52 प्रतिशत भूभाग पर हरे भरे वन हैं। बल खाती नदियां, गहरी घाटियां, पर्वतमालाओं और घने वनों का ही प्रभाव है कि यहां असंख्य प्रकार के वन्य प्राणियों,, दुर्लभ प्रजाति की वनस्पति तथा औषधीय जड़ी बूटियां मिलती है। एक खास बात यह है कि यहां लगभग 400 जनजातियों समुदायों के लोग रहते हैं जो 200 बोलियों भाषाओं में अपने लोगों से संवाद करते हैं। यहां की लोक संस्कृति (बोलियों,  रहन-सहन, खान पान, रीति-रिवाज, पर्व त्योहार, वेशभूषा धार्मिक विश्वास) इतनी समृद्ध है कि कोई भी इस क्षेत्र में बार-बार जाना चाहेगा। इसीलिए अनेक बार पूर्वाेत्तर को निकट से देखने के बाद भी जब मिजोरम में एक कार्यशाला में भाग लेने का अवसर मिला तो तत्काल तैयार हो गया।
आइजोल रेल नेटवर्क पर नहीं है। लेकिन 2018 तक इसके जुड़ने की संभावना है। अतः गुवाहाटी से वहां पहुंचना ‘टेढ़ी खीर’ से कम नहीं है। सड़क मार्ग से आइजोल से शिलांग 450 किमी तथा गुवाहाटी से 506 किमी की दूरी के लिए भी सरकारी बसे तथा कुछ अन्य साधन भी उपलब्ध हैं। लेकिन गुवाहाटी और कोलकाता से आइजोल वायु मार्ग से पहुंचना आसान है।
मिजोरम म्यांमार, बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय सीमा के साथ साथ  भारतीय राज्यों त्रिपुरा, असम और मणिपुर के बीच हरी-भरी घाटियों, और खूबसूरत झरना की धरती है। 1972 में केंद्र शासित प्रदेश तो 20 फ़रवरी,1987 को पूर्ण राज्य बनने से पूर्व मिजोरम का का यह भूभाग असम का ही एक ज़िला था। जबकि ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान उत्तर का लुशाई पर्वतीय क्षेत्र असम  और आधा दक्षिणी भाग बंगाल के अधीन रहा। जिसे  1889 में दोनों को मिलाकर लुशाई हिल्स ज़िला बनाकर असम का भाग बना दिया गया। लेकिन अंग्रेजों के काल से जारी ‘इन्नर परमिट’ व्यवस्था आज भी जारी है। इसलिए आइजोल एयरपोर्ट पर पहुंचते ही पहले से ही तैयार एक सप्ताह मिजोरम प्रवास के इस अनुमति पत्र वहां के अधिकारी के सम्मुख प्रस्तुत करने पर मोहर लगा दी गई। 
मिजोरम में मौसम बहुत अच्छा रहता है। औसत वार्षिक वर्षा 250 सेंमी होती है। समुद्र तल से 4000 फीट की ऊंचाई पर राजधानी आइज़ोल, मिज़ोरम का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। तंग सड़के, ज्यादा वाहन होने के कारण बहुत भीड़ भाड़ वाला स्थान है आईजोल यातायात अनुशासन में शेष भारत के समान ही है इसलिए विमान पत्तन से विश्व विद्यालय पहुंचने में कई घंटें लगे। पूर्वाेत्तर में सूर्यदेव जल्दी प्रकट होते हैं इसलिए अंधेरा भी जल्दी होने लगता है। 6 बजे ही दूर पहाड़ी के घरो में चमचमाते बल्ब बहुत सुंदर दिखाई दे रहे थे।
मिजोरम विश्वविद्यालय, आईजोल के विशाल परिसर में बने अतिथि गृह में हमारे रूकने की व्यवस्था थी। उसी परिसर के विशाल सभागार में ‘पूर्वाेत्तर भारत के हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय तत्व’ विषयक त्रि दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में महामहिम राज्यपाल लें- जनरल निर्भय शर्मा ने कुलपति प्रो.लियानजेला, संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड के अध्यक्ष डा रामशरण गौड़ की उपस्थिति में किया। इस अवसर पर मिजो लड़कियों ने शानदार लोकनृत्य प्रस्तुत कर सभी का मन मोह लिया।  विभिन्न राज्यों के विद्वानो, आचार्याे, शोधार्थियों, छात्रों की उपस्थिति में मंच संचालन मेरे पास था। कार्यक्रम पश्चात मिजोरम की प्रथम महिला (महामहिम राज्यपाल जी की पत्नी) ने मेरी मातृभाषा हिंदी न हाने के बावजूद मेरे शुद्ध हिंदी उच्चारण की प्रशंसा करते हुए हमारे साथ एक चित्र भी लिया। 
‘पूर्वोत्तर के सभी राज्यों के नाम विशेष अर्थ वाले है। यथा मेघालय- मेघो का घर, अरुणाचल अरुण का आचल, नागालैंड नागाओं की भूमि है तो मिज़ोरम का अर्थ क्या है’ यह पूछने पर एक मिजो विद्वान ने बताया कि मिज़ो का अर्थ पर्वतवासी और रम का अर्थ भूमि। अर्थात् पर्वतवासियों की भूमि।
मिजोरम की राजधानी आइज़ोल स्वयं में एक आकर्षण है। यहां का बड़ा बाजार तो मुख्य है ही साथ ही रित्ज मार्केट, बर्मा लेन, बाजारा बंगकान, थैकथिंग बाजार, न्यू मार्केट, सोलोमन केव भी खरीदारी के लिए बहुचर्चित स्थान हैं।  राज्य के प्रथम नागरिक अर्थात् राज्यपाल का निवास राजभवन शानदार है। काफी ऊंचाई पर स्थित व्यू प्वाईंट से पूरा आइज़ोल नगर दिखाई देता है। लेकिन पास ही 1907 में बने शानदार आइज़ोल धार्मिक कालेज (Aizawl Theological College ) देख आश्चर्य हुआ कि उस समय भी ईसाई मिशनरी ईसाई प्रशिक्षण के लिए इतने भव्य और विशाल संस्थान बना सकी। आइज़ोल के अतिरिक्त कोलासिब, चम्फाई, ममित,  लुंगलेई, लॉन्गतलाई, सइहा और सेरछिप आठ जिले है।
चम्फाई के बारे में कहा जाता है कि मिजो के पूर्वज सदियों पहले यहाँ आकर बसे थे। इसे प्राचीन अवशेषों और स्मारकों के लिए भी जाना जाता है जो देश के समृद्ध अतीत का साक्षी हैं। मुरलेन राष्ट्रीय पार्क, रिह डील झील, फवंगपुई पीक, लेंगतेंग वन्य जीव अभयारण्य, कौलकुल आदि चम्फई के दर्शनीय स्थल हैं। विशेष बात यह है कि इसे मिजोरम का ‘फल का कटोरा’ भी कहा जाता है।  
आइजोल के बाद लुंगलेई मिजोरम का दूसरा सबसे बड़ा शहर है जिसका नामकरण एक चट्टान के नाम से हुआ। हरे भरे  पहाड़ और समृद्ध संस्कृति बयहां का सबसे बड़ा आकर्षण है। आइज़ोल से लगभग 80 किलोमीटर दूर तामदिल एक प्राकृतिक झील है जहां मनोहारी वन हैं। वानतांग जलप्रपात मिज़ोरम में सबसे ऊंचा और अति सुंदर जलप्रपात है। यह थेनजोल कस्बे से पांच किलोमीटर दूर है। जोबौक के निकट जिला पार्क में अल्पाइन पिकनिक हट तथा बेरो त्लांग में मनोरंजन केंद्र भी बनाए गए हैं।  छिमतुईपुई या कलादान राज्य में बहने वाली सबसे बड़ी नदी है। इसके अतिरिक्त तुआलचांग, सिबुता लुंग, वोनहिमाइलयन की कब्र, फॉनगुई, मांगकहिया लुंग, लुंगवानडॉट, टाडमिल, वांतवांग फॉल्स, डम्पा सेंचुरी भी प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। 
यहां बोली जाने भाषाओं में अंग्रेजी,लुशई, जहाओ, लखेर, हमार, पैते, लई और राल्ते तथा कुछ आदिवासी भाषाएं तो हैं ही, कुछ लोग हिंदी भी बोल, समझ लेते हैं लेकिन फिलहाल हिंदी की स्थिति का अच्छा नहीं कहा जा सकता। आइजोल का अनुभव बताता है कि आज मिजो लोग आपेक्षाकृत संपन्न हैं, हर जगह शानदार बहुमंजिला मकान हैं लेकिन मिजो कल्चर सेन्टर में परम्परागत घर देखे जा सकते हैं जो केवल यादगार रुप में हैं। मिज़ो लोगों आकर्षक रंग-बिरंगे वस्त्र पहनते हैं। गीत व संगीत में गहरी रुचि रखते हैं।  एक खास तरह का ड्रम जिसे वेें खौंग कहते बजाते हैं। बसंत में आगम पर मनाये जाने वाले त्योहार चापचुर कुट प्रसिद्ध बांस नृत्य (चेरौ) होता है।
यहां के 85 प्रतिशत लोग ईसाई, 8 प्रतिशत बौद्ध तो 7 प्रतिशत हिन्दू हैं। हमें एक सप्ताह के प्रवाह के दौरान सैनिक ठिकानों के अतिरिक्त कहीं हिंदू मंदिर दिखाई नहीं दिया नहीं परंतु दोपहर में वापसी लौटते हुए एक गुरुद्वारा में लगा निशान साहिब दिखाई दिया। हम वहां पहुंचे तो रविवार होने के कारण बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। कुछ देर गुरुवाणी का श्रवण करने के बाद जब आगे बढ़ने के लिए बाहर आये तो उस गुरुद्वारे के प्रधान श्री तेजासिंह जी ने हमें  देर और रूकने का आग्रह किया। जब मैंने उनसे मिजोरम में सिक्खा की संख्या के बारे में पूछा तो उन्होंने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, ‘केवल दो।’
‘केवल दो और फिर भी इतना भव्य गुरुद्वारा! यह गुरुद्धारा कब बना? सिने बनवाया?’ के जवाब में उन्होंने बताया कि मिजोरम में बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीदने के सख्त कानून है। वास्तव में यह जमीन सड़क सीमा संगठन की है। वे राज्य में काम करने के लिए बाहर से भी कर्मचारियों और अधिकारियों को लाते हैं। वे यही पास ही रहते हैं। हमने उनसे गुरुद्धारे के लिए जमीन देने का अनुरोध किया तो उन्होंने हमें यह जमीन दे दी। जिसका स्वामित्व आज भी उन्हीं कर है। रविवार को मिजोरम में छुट्टी रहती है। ईसाई लोग चर्च जाते हैं तो सड़क सीमा संगठन के लोग और कुछ स्थानीय हिंदू 1980 से इस पुष्पक गुरुद्वारा में एकत्र होते हैं। यहां नियमित गुरूवाणी का पाठ तो होता ही है लंगर की व्यवस्था भी है। अन्यत्र य कार्यक्रम के बावजूद हमने पुष्पक गुरुद्वारे में ही  गुरु का लंगर ग्रहण किया। उल्लेखनीय बता यह है कि गुरुद्वारे के प्रधान स तेजासिह सहजधारी सिक्ख है।
पूरेे पूर्वाेत्तर की तरह मिजोरम की भी हस्तशिल्प की समृद्ध परंपरा है। मिजो लोग बेहतरीन बुनकर होते हैं। वहां बांस बहुतायात में होता है इसलिए बांस और बेंत की बनी बेहतरीन कलात्मक वस्तुएं मिलती है। एक दिन हम लोग सुबह ही टैक्सी से मिजो विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस से  आइजोल बाजार खरीददारी के लिए रवाना हुए। उस समय मौसम बहुत अच्छा था लेकिन ज्यों ही हम मार्किट पहुंचे अचानक तेज आंधी, तूफान बारिश ने हमें घेर लिया। जैसे तैसे एक पहाड़ी ओट में बनी पार्किंग में बीएसएफ के पूर्व अधिकारी रहे साहित्यकार मित्र श्री शांति कुमार स्याल संग घंटों बिताने पड़ें। तूफान शांत होने पर हम पास के ‘टीचर्स इन’  के प्रथम तल स्थित कैन्टीन में गये तो सीढ़ियों में भी लोगों को बैठे देखा। हमने उनके बारे में जाना चाहा तो कैन्टीन के प्रबंधक ने बताया कि मिजोरम के हिंदी शिक्षक भूख हड़ताल पर हैं। उसने हमें मिजोरम सी.एस.एस. हिंदी शिक्षक संघ के सचिव श्री अजारिया ललथ्लेड़लियाना (9862237271) से मिलवाया। श्री अजारिया ने बताया कि केन्द्र सरकार हिंदीतर राज्यों में सीएसएस के अंतर्गत पांच वर्षों के लिए हिंदी शिक्षकों का वेतन देती है। उसके बाद यह जिम्मेवारी राज्य सरकार को निभानी होती है। यह योजना मिजोरम सहित अनेक राज्यों में लागू की गई लेकिन मिजोरम के अतिरिक्त सभी राज्य सरकारों ने तय अवधि के बाद इस जिम्मेवारी को संभाल लिया। बार- बार अनुरोध के बावजूद मिजोरम सरकार ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। अतः कार्यकाल (फरवरी, 2011 से फरवरी 2017) समाप्त होने के बाद इन 1305 शिक्षकों का वेतन बंद कर दिया गया है। हिंदी शिक्षण भी बंद होने के कगार पर है। ऐसे में हजारों बच्चों को हिंदी से जोड़ने वाले मिजोरम केे इन 1305 हिंदी शिक्षकों के सामने आंदोलन के अतिरिक्त कोई रास्ता शेष नहीं है। लगातार भूख हड़ताल के कारण 53 लोग अस्पताल में पहुंच चुके है। 4 महिला शिक्षिकाओं का गर्भपात हुआ तो शेष की स्थिति भी अच्छी नहीं है। केन्द्र और राज्य सरकार को भेजे प्रतिवेदनों की प्रति भी देते हुए बताया कि इन शिक्षकों की नियुक्ति डीपीसी (डिपार्टमेंट प्रमोशन कमेटी) ने की। लेकिन अब कहीं भी उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। मिजोरम विश्वविद्यालय में आयोजित समारोह में वहां कुलपति ने जरूर उनकी स्थिति पर चिंता व्यक्त की परंतु राज्य सरकार का मौन है। जबकि हिंदी किसी जाति, धर्म, प्रांत की नहीं बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र की एकता की महत्वपूर्ण कड़ी है। 



अपने इस प्रवास के दौरान हमने अनुभव किया कि इय राज्य में हिंदी के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। किसी भी व्यवसायिक स्थल को तो दूर सड़क पर लगे संकेत चिन्ह, नाम आदि भी घोषित त्रिभाषा फार्मुले को धता बता रहे थे। मिजोरम में दो केन्द्रीय विश्वविद्यालय हैं लेकिन उपलब्ध सीटों से आधे ही छात्र हैं। एक विश्वविद्यालय में शोध कार्य करने वाले दोनो छात्र विभिन्न प्रान्तों के हैं। कारण स्पष्ट है कि मिजोरम में स्कूली स्तर तक हिंदी की अनदेखी किया जाना है। एक कार्यक्रम में मिजोरम के हिंदीसेवी डा. वी. आर. राल्टे ने इसके अनेक कारण बताये। यथा- मिजो ‘भाई’ शब्द का मनमाना अर्थ लगाते रहे हैं क्योंकि मिजो भाषा में ‘भ’ नहीं है। वे लोग ‘भ’ के बदले ‘व’ उपयोग करते हैं इसलिए ‘भाई’ उनके लिए ‘वाई’ हो जाता है जिसे वे ‘शत्रु’ मानते रहे हैं। एक अन्य मिजो विद्वान श्रीमती रिबाका ने स्वीकार किया कि उन्हें भी हिंदी और हिंदी बोलने वालों से नफरत थी लेकिन जब वे हिंदी के करीब आई तो अपनी मानसिकता पर प्रायश्चित हुआ। उन्होंने मिजोरम में धैर्यपूर्वक हिंदी को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया। मिजो बहुत प्यारी भाषा है। अभिवादन के लिए यहां ‘चिबाई’ तो धन्यवाद के लिए ‘क्लोमे’ शब्द का उपयोग किया जाता है। खास बात यह  कि किसी अजनबी व्यक्ति को सम्मान से पुकारने के लिए उसे ‘मामा’ कहा जाता है। --विनोद बब्बर rashtrakinkar@gmail.com
संपर्क-   09868211911, 7892170421 

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