कहां मिलता है खोया? Kahn Milta hai Khoya (Where to find Lost ...........)

विश्व सांस्कृतिक महोत्सव में भाग लेने दिल्ली आना हुआ तो एक सुबह धीरे-धीरे टहलते हुए एक  बोर्ड देखकर चौंका। उसपर लिखा था- यहां खोया मिलता है। 
अखबारों में ‘खोया- पाया’ देखा करता हूं। जिसमें ‘प्रमाण पत्र और अंक सूची के वास्तव में खोने’ का दावा होता है तो दिल्ली सहित लगभग हर नगर की दीवारों पर  फलां खानदानी हकीम से  ‘खोई जवानी फिर से प्राप्त करे’ के दावे भी देखे है। लेकिन यहां केवल खोये के मिलने की बात कही गई थी इसलिए मैंने सबसे पहले वह सूची तैयार करने की तैयारी की जिससे पहले यह सुनिश्चित किया जा सके कि आखिर अब तक हमने क्या-क्या खोया है।
पहले ही  ‘धीरे-धीरे टहलते हुए’ का उल्लेख कर चुका हूं इसलिए  अपने बचपन और जवानी को खोये हुए की सूची में सबसे ऊपर दर्ज किया। स्मृतियों को झकझोड़ते हुए  धूल, प्रदूषण और ईवन- ऑड के  शोर से त्रस्त आज को भुलाते हुए अपने बचपन के नीले आसमान, हरी-भरी धरती, शुद्ध सुगन्ध समीर, नदियों में कल-कल कर बहते प्रदूषण रहित जल को भी सूची में तत्काल दर्ज करने का मन बनाया। माँ की लोरी, पिता की डांट, भाई की घुडकी, बहन का स्नेह, गरीबी में भी नवाबों जैसे ठाट, अभावों में सारे जहां के अपना होने का भाव, कागज की किश्ती और बारिश के पानी की तरह हमें कब छोड़ गये, क्यों छूट गये कहना मुश्किल है। मन कहता है मन मांगी मुराद मिलने वाली सूची में इन्हें भी शामिल करों। 
स्मृतियां जीवान्त हो उठी, फ़ैज़ के इस शेर की तरह-
रात यूं दिल में तिरी खोई हुई याद आई, जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाये।
जैसे सहरायों में चले हौले से वादे -नसीम, जैसे बीमार को बे-वजह करार आ जाये।।
आज हम आपाधापी, हडबड़ाहट, तनाव को अपना साथी बना चुके हैं। याद आया कभी थोड़े में ही संतुष्टि हमारी बहुमूल्य सम्पत्ति हुआ करती थी। तभी तो कहा गया था- गौधन, गजधन, बाजधन और रतन धन खान। जब आवे संतोष धन, सब धन धूल समान।। बिना देरी किये हमने सब्र, संतोष, धैर्य, संयम को सूचीबद्ध करने का निर्णय लिया।
एक नहीं, अनेकों अंतरंग मित्रों को हमने अपने स्वार्थ के कारण खोया है तो अनेको ने अपने स्वार्थ के कारण हमें भी अपने दिल की गहराईयों में कहीं दफन किया होगा। दूसरे के कब्रिस्तान में खनन करना संभव नहीं है इसलिए केवल अपने  दिल में दबे प्रिय मित्रों की सूची बनाने लगे ताकि उम्र के इस दौर में एक बार उनमें मिलकर पुराने- गिले शिकवे दूर कर सकूं। 
राजनीति, मुखौटे और छीना झपटी, हेराफेरी,  धोखेबाजी वर्तमान आकाश के नक्षत्र हैं लेकिन कभी सहजता, सरलता, मानवता, प्रेम, भाईचारा, ईमानदारी हमारे साथी थे। बरसों से इनकी खोज खबर का समय ही कहां मिला है हमें आपको। क्यों न खोये की सूची में इन्हें भी दर्ज किया जाए? लेकिन समस्या यह है कि धनदौलत, बंगला, गाड़ी, दूसरों से आगे निकलने की होड़ तथा सदा हमारी हां में हां मिलाने वाले चापलूसों से घिरे होने के कारण यह तय करना कठिन होगा कि सूची में इनका क्रम कहां हो- सबसे ऊपर या सबसे नीचे?
सूची बनती रही, बढ़ती रही। इच्छाओं की तरह, उम्र की तरह। यूं तो यह जिंदगी ही चार दिन की है परंतु हमें तो वास्तव में ही केवल चार दिन दिल्ली में रहना था इसलिए जल्दी से आधी- अधूरी सूची को समेट, लपेट अपुन जा पहुंचे उस शोरूम में। अभिवादन के बाद ‘खोये के  मिलने’ का शुल्क पूछा तो उसने मुस्कुराकर उत्तर दिया, ‘साहब! जैसा माल वैसे रेट। ज्यादा लेने पर छूट है। त्यौहार का स्पैशल डिस्काऊंट भी मिलेगा। पहले  यह बताये कितना खोया चाहिए।’ हमने सूची उसके हाथ में थमाते हुए कहा, ‘बन्धु! बस खोया मिल जाए, दाम की परवाह नहीं। मुंह मांगे दाम मिलेंगे।’
उसने सूची पढकर मुंह बनाते हुए कहा, ‘ओह तो आप होली से पहले ही होली मनाने चले आये। बन्धु क्यों मजाक करते हो। हम वो खोया नहीं बेचते जिसकी तलाश आपको है। यहां तो गुजिया के लिए खोया मिलता है। बुरा मत मानना, आज आदमी की पशुता ने जानवरों तक के लिए जगह नहीं छोड़ी। मनुष्य की अक्ल ही सारी घास चर गई ऐसे में गाय, भैंसों के लिए घास और भूसा कहां बचता है। जब दूध-घी की नदियां बहने वाले देश में दूध नहीं तो हमारे जैसे दुकानदार, दुनियादार असली कम, सैथेटिक मिल्क से बने खोया ही ज्यादा बेचते है। और हां, आप जिस खोये की सूची लिए फिरते हो, उसे कहीं बाहर नहीं, सच्चे मन से अपने अंदर टटोलो। शायद मिल जाए। अगर वह खोया वहां नहीं मिला तो अपने घर में रखी किसी एलबम की तस्वीरों को देख अपना मन बहला लेना लेकिन मेरे भाई उसे किसी बिजनेसमैन के दिल से आफिस तक हर्गिज मत तलाशना। वहां माल मिल सकता लेकिन, माल्या नहीं मिल सकता। किसी नेता से उसकी फरियाद मत करना क्योंकि वहां जुमले मिल सकते हैं अपने नहीं मिल सकते। वहां अपना नासमझ पप्पू मिल सकता है, किसी गरीब का होनहार बेटा नहीं मिलेगा। उनके पास बांटने के लिए देश है, समाज है, दिल हैं,लेकिन किसी का दर्द नहीं। वो मुसीबत बांटते हैं, बलाएं बांटते है। वे राहत और दुआएं बांटने की बातें करते हुए शब्दों से छल कर सकते हैं पर अपने ही शब्दों पर चल नहीं सकते। मैं तो एक छोटा सा दुकानदार हूं लेकिन मेरा दिल विशाल है। काश मैं आपको आपका ‘खोया’ दिलवा पाता।’
बोर्ड टांगने वाला जमाने का तो कुछ नहीं बिगाड़ सकता था इसलिए बेचारा कभी खुद को तो कभी हालात को कटघरे में टांगने लगा। उसकी भावनाओं को प्रणाम करते हुए आगे बढ़ा तो  अचानक मन- मस्तिष्क में बचपन और जवानी एक साथ  हिलोरे लेने लगे। बुद्धि कहती है मन को स्फटिक की तरह निर्मल बना लो। बचपन लौट आएगा। इस होली पर अपने खोये बचपन को पाने का इरादा लिए पिचकारी और रंग खरीद रहे हैं तो ‘फाल्गुन में बाबा देवर लागे’ को आत्मसात करते हुए जवानी से मिलन के लिए पुराने मित्रों के फोन नम्बर और पते तलाशने में लगे हैं।  गोपियों संग होली खेलने वाले ने गीता के नवें अध्याय के 22वें श्लोक में कहा  है- योगक्षेमं वहाम्यहम।। अर्थात्  अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति करना योग हैं और प्राप्त सामग्री की रक्षा करना  क्षेम हैं। पुराने बैर-भावों को होली संग जलाने का संकल्प लिए हम तैयार है प्राप्त की रक्षा करने अर्थात् ‘खोया’ हुआ पाने को। यही तो है ‘आर्ट ऑफ लिविंग’। आओ हर हाल में मुस्कारा कर दुनियादारी निभाते हुए अपने पूर्वजों द्वारा सदियों से जारी ‘जीने की कला’ से स्वयं को जोड़ें।
होली की अनन्त शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए अपनी तरह खोये की तलाश में दिल जला रहे मित्रों के गुनगुनाने के लिए इन पंक्तियों के साथ विदा लेता हूं-
हमने अपना सब कुछ खोया, प्यार तेरा पाने को। 
छोड़ दिया क्यो प्यार ने तेरे, दर दर भटकाने को।
वो आँसू जो बह नहीं पाए
वो बातें जो कह नहीं पाए
दिल में छुपाये फिरते हैं हम घूटकर मर जाने को।
उस की रहे तू जिस की हो ली
तुझ को मुबारक प्यार की डोली
बैठ गये हम ग़म की चिता पर, ज़िंदा जल जाने को। Vinod Babbar 9868211911
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