नियम बदलेे बिन कालेधन की उत्पति पर रोक असंभव To Stop Black Money, change Rules

पिछले कुछ वर्षों से कालेधन पर लगातार चर्चा से अधिक शोर है। पिछली सरकार इसे सामने लाने के लिए कुछ प्रयास कर रही थी लेकिन उन्हें अपर्याप्त मानते हुए अन्ना से बाबा तक अनेक आंदोलन हुए लेकिन नतीजा शून्य ही रहा।  लोकसभा चुनाव में भी कालेधन और उसके आंकड़ों पर खूब चटखारे  लिए गए। एक गणना में बताया गया कि यदि सारा कालाान विदेश ये वापस आ जाये तो हर व्यक्ति को पन्द्रह लाख मिल सकते है। अब इस गणना को भी चुनावी वादा मानते हुए बार-बार ताना कसा जाता है,:कहां है मेरे पन्द्रह लाख’ आमतौर पर चुनावी बातें, चुनावी वादे माहौल बनाने तक ही सीमित रहती हैं। लेकिन वर्तमान सरकार की हरकतों से लगता है कि वह इस विषय कुछ गंभीर है। इसी लिए गत दिवस मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने 30 सितंबर तक खुद कालेधन रूपी घोषित आय का ब्यौरा न देने वालों पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है।  प्रधानमंत्री जी ने टैक्स अदा करना आसान बनाने की बात कही है लेकिन अधिकतम बढ़ाये बिना यह दावा कमजोर है। 
प्रधानमंत्री जी ने ठीक कहा है कि कहा, ‘विश्वास करना मुश्किल है कि सवा सौ करोड़ के देश में सिर्फ डेढ़ लाख लोगों की कर योग्य आय 50 लाख रु. से ज्यादा है।लेकिन यह कहना कि, ‘बड़े शहरों में लाखों ऐसे लोग हैं, जिनके पास एक-दो करोड़ के बंगले हैं।’ अव्यवहारिक है क्योंकि महानगरों में बंगले नहीं साधारण छोटे से मकान की कीमत भी एक करोड़ होना सामान्य बात है। परंतु हमें यह देखना होगा कि दशकों पहले बाप दादा द्वारा बनाया गया मकान कुछ हजार कीमत का था लेकिन अब करोड़ का है। हां, जायज, नाजायज तरीके से कमाकर अब खरीदने वालों की गणना की जा सकती है।  वर्तमान की प्रत्यक्ष करनीति की समीक्षा करने पर इसे व्यवहारिक नहीं माना जा सकता। आज देश के सैंकड़ो नहीं हजारो ऐसे स्कूल हैं जहां की वार्षिक फीस पांच से दस लाख है। शेष खर्च अलग। क्या इन बच्चों के अभिभावकों के आय के स्रोत और उनके द्वारा उचित कर भुगतान की जांच वित्त मंत्रालय और पीएमओ कर चुका है? महंगे क्लबों में जाने वाले लोग की संख्या कितनी है? फार्म हाउसों में लाखों का किराया देकर शादी- पार्टी करने वालो की सही संख्या कानून की बातें करने वाले जानते हैं? इन सबसे बढ़कर इस देश में महंगी कारों के बारे में ही सही जांच कर ली जाए तो कर वंचको की एक बड़ी खेप सामने आ सकती है? 
यह अजीब विराधाभास है कि एक ओर तो हम भारत को सोने की चिड़िया घोषित करते हैं तो दूसरी ओर हमारे राजनैतिक दल एक दूसरे को जिम्मेवार ठहराते हुए गरीबी का रोना भी रोते हैं। गरीबी दूर करने की योजनाएं बनाते हैं। विदेशों से भी सहायता आती है लेकिन स्थिति जस की तस ही रही। स्पष्ट है कि गरीबी हटाओं के नाम पर नेता- अफसर गठजोड़ ने गोलमाल किया है। अतः सोने चिड़िया को भारत भूमि से दूर,विदेशी बैंकों की तिजोरियों में कैद कर दिया गया। यह  अनुमान कितना सत्य है कहना मुश्किल है लेकिन बार-बार दोहराया जाता है कि विदेशों में जमा कालेधन का सालाना ब्याज ही केन्द्र सरकार के बजट से ज्यादा होता है। यदि इस राशि को वापस लाकर देश के विकास कार्यों में लगाया जाए तो काया-कल्प हो सकती है। विकिलिक्स सहित कुछ अन्य संस्थाओं ने ऐसे लोगों के नामों की सूची भी जारी की लेकिन कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई। हालांकि अब यह कोई रहस्य नहीं रहा कि अपने ही देश को लूटकर बेईमान उद्योगपतियों, दलालों, भ्रष्ट नेताओं, भ्रष्ट अफसरों, फिल्मी सितारों, क्रिकेट खिलाड़ियों आदि ने स्विस बैंकों में जमा किया है। इन बदनाम बैंकों में पूरी दुनिया का काला पैसा जमा होता है, क्योंकि यहाँ टैक्स नहीं लगता है और जमाकर्ताओं के नाम व खातों की जानकारी गोपनीय रखी जाती है। वर्तमान सरकार ने ‘30 सितंबर तक 40 प्रतिशत कर चुकाओं और अपने कालेधन को वैध बनाओं’ अभियान चलाया है। इसी की चर्चा प्रधानमंत्री जी ने मन की बात कार्यक्रम में की है।
 यह सही है कि कालाधन देश के विकास में बाधक है। अवैध है। इसे रोका ही जाना चाहिए लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि काले धन की उत्पति कैसे और क्यों होती है? जिस आय पर समुचित आयकर का भुगतान नहीं होता है, वह धन काला धन कहलाता है। काला धन वैध तथा अवैध दोनों स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है। चूंकि आय के अधिकांश वैध स्रोत राज्य को ज्ञात होते हैं,  इस कारण कालेधन के मुख्य स्रोत अवैध आय के स्रोत होते हैं। भारत में काला धन अवैध आय स्रोतों से प्राप्त होता है। व्यवसायियों के पास उपलब्ध काला धन उनके व्यवसाय में लगा रहता है इसलिए उसका उत्पादक उपयोग होता है, जबकि अवैध आय स्रोतों से प्राप्त काला धन बहुधा किसी उत्पादक उपयोग में न लगाकर किसी अन्य काले धंधे में लगाया जता है। इस तरह का काला धन देश की राजनीति, सामाजिक व्यवस्था और अर्थव्यवस्था के लिए घातक सिद्ध होता है। 
शुरुआती दौर में नेता राजनैतिक गतिविधियों  के लिए व्यवसायियों के काले धन में से धन प्राप्त करते थे, प्रशासकों को इसमें सम्मिलित नहीं किया जाता था और अधिकांश राजनेता भी इसमें व्यक्तिगत भागीदारी नहीं रखते थे। अतः यह काला धन केवल राजनैतिक दलों का होता था। इस कारण से राजनेता राज्यकर्मियों पर अपना नियंत्रण बनाये रखते थे जिससे उनका भ्रष्ट होना कठिन था। व्यवसायियों के पास के काले धन का लाभ कुछ अफसरशाहों ने भी उठाया जिससे वे भी उसके हिस्सेदार बनने लगे और कालांतर में इसके हिस्सेदार हो गए। वे इस काले धन को उपयोग अपने वैभव भोगों के लिए किया करते थे। 
सत्तर के दशक में काला धन कमाने और ऊपर हिस्सा देने की परम्परा शुरु हुई। सत्ता का अभयदान पाकर  भ्रष्ट से भ्रष्टतम होकर निर्विघ्न रूप से जनता का शोषण करने लगे। 
देश में काले धन के अर्थ -व्यवस्था पर नियंत्रण के लिए अनेक वैधानिक प्रावधान किये गए हैं जो केवल आम नागरिकों जिनमें नौकरीपेशा कर्मचारी और छोटे व्यवसायी प्रमुख हैं, पर ही सख्ती से लागू किए जाते हैं। जबकि काले धन के मुख्य वाहक नेता और अफसरशाह तमाम वैधानिक बंधनों से मुक्त ही रहते हैं क्योंकि इन प्रावधानों को वे इतनी चतुराई से बनवाते हैं कि स्वयं बच निकलें।  व्यवसायियों के काले धन का उत्पादक उपयोग होता है। किन्तु नेताओं और अफसरशाहों के काले धन का बड़ा भाग विदेशी बैंकों में जमा किया जा रहा है। अतः इसका लाभ देश को न होकर विदेशों को हो रहा है। सब जानते हैं कि राजनीति आज कितना महंगा व्यसन बन चुका है जो कालेधन की बिना पर ही फल-फूल रहा है। 
जहाँ तक काले धन की उत्पति का प्रश्न है। अगर वह काला बाजारी, रिश्वत, घोटालांे से आया है तो उसमें और आयकर की सीमा असामान्य रूप से कम होने के कारण मजबूरी में अपनी आय कम दर्शाने में अंतर करना होगा।  यथा छोटे व्यवसायी का काला धन सरकार की गलत आर्थिक नीतियों और दोषपूर्ण व्यवस्था के कारण ही होता है वरना जो व्यक्ति ढंग से जी नहीं पा रहा, अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने में असमर्थ है, उसके पास घोषित से अधिक धन क्यों है? सच्चाई यह है कि आज भी आयकर की छूट सीमा (मात्र दो लाख) इतनी कम है कि उससे दो जून की रोटी खाकर, बच्चों की परवरिश,, मकान का किराया या किश्त भरना आसान नहीं है। यह तो ऐसा हुआ जैसे किसी बच्चे को अपने ही घर पर चुराकर रोटी खाते पकड़ा जाए। स्पष्ट है कि खाने की कमी नहीं है पर भूखे रखे जाने के कारण ही उस बच्चे को (दूसरे के घर से नही) चोरी के लिए मजबूर किया गया। ऐसे में दोषी बच्चा है या अभिभावक? इससे स्पष्ट है कि व्यवस्था भी काले धन को खत्म नहीं करना चाहती। यह धन हेराफेरी का कमाया हुआ नहीं है। मेहनत के कमाये धन को अपनी जरूरतें पूरी किये बिना सरकार को देना संभव नहीं है।
अर्थशास्त्री कौटिल्य (चाणक्य) ने भी कहा है कि कर आटे में नमक से कम होना चाहिए। काले धन से लड़ाई को कारगर बनाने के लिए अवैध स्रोतों से प्राप्त धन और मेहनत की कमाई में अन्तर करना पड़ेगा। मेहनतकश लोगों को छूट दिये बिना अर्थात आयकर छूट सीमा वर्तमान में पाँच लाख तक बढ़ाये बिना सारे प्रयास नकारा और निष्प्रभावी साबित होंगे। वर्तमान राजनैतिक और खर्चीली चुनावी व्यव्स्था के जारी रहते कालेधन पर पूर्ण रोक की बात चुटकुले सरीखी ही कही जा सकती है। कौन नहीं जानता कि आज संसद, विधानसभा अथवा नगर निगम चुनाव ही नहीं छोटे छोटे गांवों के पंचायत चुनावों में भी धन का प्रभाव बुरी तरह बढ़ गया है। चुनावी खर्च को अनियंत्रित होना भी काले धन की उत्पति और संरक्षण का बहुत बड़ा कारण है। जरूरत है इस भस्मासुर को काबू में किया जाए। देश को मोदी सरकार से बहुत आशाएं हैं। उनका सफाई अभियान यदि इस गंदगी तक पहुंच सका तो इतिहास उन्हें श्रद्धा से स्मरण करेगा। ...और यदि दुर्भाग्य से वे भी राजनीति के दांवपेच में उलझकर असफल रहे तो इतिहास का कोई कूड़ेदान उनके लिए भी सुरक्षित रहेगा। यक्ष प्रश्न यह है कि क्या हम आय और सम्पत्ति से संबंधित नियमों को व्यवहारिक बनाने के लिए तैयार है?  विनोद बब्बर संपर्क-  09458514685, 09868211911
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