व्यंग्य--मेरा भारत महानः नशाबंदी गैरजरूरी??



हम विभिन्नताओं के अभिन्न अंग है। इसीलिए हम अपनी कथनी और करनी में जानबूझकर फासला रखते हैं। कुछ ‘नासमझ’ लोग नशाबंदी को सराहते हैं पर ‘समझदार’ सरकारें शराब की बिक्री कम होने से चिंतित ही नहीं होती बल्कि ‘जिम्मेवार’ अधिकारियों के विरूद्ध कठोर कार्यवाही करके अपने ‘संवैधानिक कर्तव्य’ का पालन करती है। क्योंकि उन्हें मालूम है कि हमारे संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांत अनुच्छेद 47 में कहा गया है कि राज्य मादक द्रव्यों और हानिकर औषधियों का निषेध करेगा।
संविधान के इस सिद्धांत की लाज बनी रहे इसलिए राज्य में अनेक स्थानों पर बोर्ड लगाये जाते हैं ‘जन जन का यही सन्देश, नशा मुक्त हो अपना प्रदेश’ लेकिन सरकारें सिद्धांतों पर नहीं चला करती। उन्हें अपने भारी भरकम स्टाफ के वेतन आदि के लिए पैसा चाहिए या नहीं? आप शराफत से तो दोगे नहीं। लेकिन सरकार को प्रशासन चलाना है। इसलिए नीति निर्देशक सिद्धांतों का सम्मान करते हुए भी शराब की बिक्री बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करने पड़ते हैं। लेकिन बुरा हो उन लोगों का जो शराब के नुकसान गिनवाते हुए उसे छोड़ने की ‘गलत सलाह’ देते हैं। 
ये कम्बख्त इतना भी नहीं समझते कि देश के  महान शायरों ने क्या- क्या फरमाया है.उस्ताद शायर मिर्जा गालिब की मस्ती देखिये जो कहते  हैं-
शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर,
या वो जगह बता जहाँ ख़ुदा नहीं।
तो इकबाल का कहना है-
मस्जिद ख़ुदा का घर है, पीने की जगह नहीं ,
काफिर के दिल में जा, वहाँ ख़ुदा नहीं।
अहमद फराज नहले पर दहला मारते हुए कह रहे हैैं-
काफिर के दिल से आया हूँ मैं ये देख कर
खुदा मौजूद है वहाँ, पर उसे पता नहीं।
वासी साहिब का तर्क है-
खुदा तो मौजूद दुनिया में हर जगह है,
तू जन्नत में जा वहाँ पीना मना नहीं।
लेकिन साकी अपनी धून में गा रहे हैं-
पीता हूँ ग़म-ए-दुनिया भुलाने के लिए,
जन्नत में कौन सा ग़म है इसलिए वहाँ पीने में मजा नही।
रकार की दृष्टि में सबसे बड़ा अपराध आबकारी विभाग के उन अधिकारियों का है जो अपने अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा रहे है। जिम्मेवार अफसर होते हुए भी वे यह समझने में असमर्थ रहे है कि शराबबंदी हो गई तो उनके विभाग का क्या होगा? उनका क्या होगा? उनका क्या होगा?  उन नासमझों को शराब की बिक्री बढ़ाने के लिए प्रयास करने चाहिए थे पर उनके ‘बावजूद’ शराब की बिक्री कम हो गई। उन्हें समझना चाहिए कि ‘टारगेट’ पूरा न कर पाने पर  फिलहाल उनकी केवल उनकी सुविधाओं का तार कटा है। अगर अब भी नहीं चेते तो तार के बाद ‘गेट’ भी दिखाया जा सकता है। 
वैसे अनुभवियों के आंकड़े बताते है कि चुनावी रंगत में शराब की पंगत खूब चलती है। क्या सरकार ‘टारगेट’ पूरा करने के लिए चुनावी राग नहीं छेड़ते रहना चाहिए। कभी पंचायत तो कभी पालिका, कभी स्कूल तो कालेज, कभी इस तो कभी उस के नाम पर यदि लगातार चुनाव होते रहे तो खपत बनी रहेगी। आंकड़े प्रस्तुत करने वाले विश्वसनीय है। उनका दावा है अगर उनकी बात पर शक हो तो सरकार को समय से पहले खुद ही मैदान में आना चाहिए ताकि उसके बाद घर बैठे अपने फैसलों की अकड़ और उसके हस्र की समीक्षा करने का अवसर मिल सके।
अपुन का सुझाव है आबकारी विभाग के उन अधिकारियों के इस ‘अपराध’ के लिए उनसे गाड़ियां और स्टाफ वापस लेना पर्याप्त नहीं है। बल्कि पिछले वर्षों में दिये गये वेतन वापसी/ वसूली का आदेश भी जारी होना चाहिए। तभी दूसरे विभागों के अधिकारी भी सबक लेकर मुस्तैदी से काम करेगे। जैसे कानून व्यवस्था की जिम्मेवारी संभालने वाले ‘हालत’ को संभलेगे ताकि उनकी जरूरत बनी रहे। विवाद निबटाने वाले निबटाने की बजाय ‘लिपटाने’ में और अधिक रूचि लेंगे। डाक्टर इलाज पर कम और कमीशन पर लगाये ज्यादा दम। मास्टर की मास्टरी तभी है रेगूलर क्लास में बेशक सोये पर कोचिंग क्लास में जागे और जगाये, मोटी फीस पाकर अच्छे नम्बरों का हकदार बनाये। इसमें कुछ पाप, कुछ गलत नहीं है क्योंकि तीसरे अध्याय के 21वें श्लोक में गीताकार स्पष्ट कहता है-
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।। 
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।
 अर्थात् महापुरुष जो आचरण करता है, सामान्य व्यक्ति उसी का अनुसरण करते हैं। नेता आज के महापुरुष है, हम तो उनका अनुसरण करते है। जो कहना वो करना नहीं और करना वो कहना नहीं। जो नहीं हुआ उसका पाप दूसरों के सिर  और जो न करने पर भी ‘अच्छा’ हो गया उसका श्रेय लेने से कभी नहीं चूकना चाहिए। समस्याएं बनी रहेगी तो ‘समाधान’ के सपने बिकते रहेंगे। समस्याएं खत्म तो दुकान बंद होने की नौबत आ सकती है। 
आबकारी विभाग के अधिकारियों ने अपने ‘आकाओं’ का अनुसरण न कर जो अपराध किया है उसके लिए वे सजा के हकदार हैं। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि  मेरी तरह आप भी इस बात से सहमत होगे कि नशाबंदी बहुत खतरनाक है। शराब की खपत घटने से सरकार का परेशान होना पूरी तरह से ‘उचित’ है? लेकिन समस्या यह है कि किन शब्दों में बताया जाये कि ‘भारत को महानता’ की राह पर ‘धकेलने’ के लिए सरकार का यह कदम जरूरी था। इस विषय पर सर्वोत्तम तर्क को पुरस्कृत किया जायेगा। लेकिन आप निश्चिंत रहे- पुरस्कृत करने का हमारा तरीका उस राज्य के आबकारी विभाग वाला नहीं होगा।
. विनोद बब्बर संपर्क-   09868211911, 7892170421 rashtrakinkar@gmail.com

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