‘सांस्कृतिक राष्ट्र की अवधारणा और कुम्भ’




सांस्कृतिक राष्ट्र की अवधारणा और कुम्भ’    संगोष्ठी और कवि सम्मेलन





 हमेशा की तरह इस बार भी मकर-संक्रांति के अवसर पर साहित्यिक- सांस्कृतिक संस्था राष्ट्र-किंकर की ओर से समसामयिक विषय पर संगोष्ठी और कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह समारोह दो सत्रों में राष्ट्र-शक्ति विद्यालय, हस्तसाल रोड, उत्तम नगर में आयोजित किया गया। प्रथम सत्र में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी (भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय) द्वारा स्वच्छता अभियान पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। 


कार्यक्रम संयोजक श्री अम्बरीश कुमार के अनुसार -
 कुम्भ के आयोजन के महत्व, उसकी प्रासंगिकता, उसकी वैज्ञानिक जैसे अनेकानेक प्रश्न जो हर काल के युवा मन में उठते हैं, उसपर व्यापक चर्चा और संगोष्ठी की आवश्यकता महसूस की जा रही थी जिसमें स्वयं युवाओं की भागीदारी भी हो। इस बात को ध्यान में रखते हुए हमने ‘सांस्कृतिक राष्ट्र की अवधारणा और कुम्भ’ विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जिसमें देश के विभिन्न भागों के विद्वानों और युवाओं की प्रतिभागिता सुनिश्चित की। कुम्भ विषय चर्चा संग ‘स्वच्छता अभियान’ पर कवि सम्मेलन आयोजित करने का उद्देश्य इस बात को रेखंकित करना है कि सदियों से जारी कुम्भ जब न कोई सरकारी व्यवस्था होती थी, औपचारिक निमंत्रण तो दूर सूचना तक का अभाव था। तब लाखों लोगो की उपस्थिति के बावजूद स्वच्छता सहित हर व्यवस्था रहती थी।’
श्री अखिलेख द्विवेदी अकेला द्वारा सरस्वती वंदना के बाद कवि सम्मेलन मेंभाग लेने वाले कवियों में पद्मश्री डा रमाकान्त शुक्ल, नार्वे से पधारे डा सुरेश चन्द शुक्ल, श्री विजय प्रकाश भारद्वाज, डा शमीम देवबंदी, डा. घमंडीलाल अग्रवाल, डा. सादिक देवबंदी, श्री जितेन्द्र कुमार सिंह, श्री नत्थी सिंह बघेल,श्री शांति कुमार स्याल, श्री मेहताब आजाद, बाल कवि देवांश, माणिक, श्रीमती रितु मिगलानी सहित अनेक कवि शामिल थे। 
श्री देवेन्द्र वशिष्ठ द्वारा भजन प्रस्तुति के बाद दूसरे सत्र में ‘सांस्कृतिक राष्ट्र की अवधारणा और कुम्भ’ 
विषयक चर्चा का शुभारम्भ गायत्री परिवार के तत्वावधान में संचालित भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के प्रदेश संयोजक और राष्ट्र-किंकर संपादक श्री खैराती लाल सचदेवा ने कहा कि ‘देश छोटी-छोटी रियासतों में बंटा था तब भी उत्तर से दक्षिण और पश्चिम से पूर्व का सामान्यजन प्रातः स्नान के समय देशभर की पवित्र नदियां का स्मरण करता था। कुम्भ के अवसर पर एकत्र हो अपने परिवेश की चुनौतियों पर  संवाद कर समाधान की आशा रखता था। सर्वदा भिन्न परिवेश में रह रहे लोग जिनका खानपान, बोली भाषा, पहनावा, रीति रिवाज  भिन्न था वे ऐसे अवसरों पर एक दूसरे को निकट से जानते थे। एक दूसरे से कुछ सीखते थे। इसी सदभावना और समन्वय ने भारत को सांस्कृतिक राष्ट्र बनाया। आज भी कुम्भ हमें एक स्थान पर सम्पूर्ण  भारत का दर्शन कराता है।’

आईटी विशेषज्ञ श्री मिथिलेश कुमार सिंह ने वेदों, पुराणों, रामचरित मानस में कुम्भ की चर्चा का उल्लेख करते हुए आंकड़ों की दृष्टि में कुम्भ पर अपने विचार प्रस्तुत किये। उनके अनुसार, ‘पिछले कुम्भ में 12 करोड़ लोगों ने भाग लिया। इस बार 15 करोड़ का अनुमान है। जबकि विश्व में मात्र 8 देश ही ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या 15 करोड़ से अधिक है। इससे कुम्भ की व्यापक स्वीकार्यता समझा जा सकता है।’
इस महत्वपूर्ण चर्चा में भाग लेने वालों में लब्धप्रतिष्ठ विद्वान पद्मश्री डा रमाकान्त शुक्ल, श्री महेश चन्द शर्मा (पूर्व महापौर एवं अध्यक्ष गौशाला फेडरेशन तथा दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन),  हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष रहे पूर्व विधायक डा गौरीशंकर भारद्वाज,  राष्ट्रपति सम्मानित शिल्प गुरु गिर्राज प्रसाद, सांस्कृतिक गौरव संस्थान के  डा महेश चंद गुप्त, शिक्षाविद् डा शशि त्यागी, पंचवटी लोकसेवा समिति के संरक्षक श्री अम्बरीश कुमार भी शामिल थे।  
पद्मश्री डा रमाकान्त शुक्ल ने विभिन्न ग्रन्थों में वण्रित श्लोकों के माध्यम से कुम्भ और मकर -संक्रांति के महत्व को रेखांकित किया। श्रोताओं की विशेष मांग पर जब उन्होंने अपना विश्व प्रसिद्ध गीत ‘भाती मे भारतम्’  प्रस्तुत किया तो पूरा सभागार झूम उठा।

 

इस सत्र की एक अन्य उल्लेखनीय बात कि इसका कुशल संचालन कोलम्बिया फाउन्डेशन स्कूल, विकासपुरी के ग्यारहवीं कक्षा के छात्र अक्षित ने किया। 
हमेशा की तरह इस बार भी साहित्य, कला, सेवा, संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाली विभूतियों को सम्मानित किया गया।   सम्मानित होने वालो में बाल साहित्यकार श्री घमंडीलाल अग्रवाल, गुड़गांव,  रायपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मनोज चतुर्वेदी,  कमल  स्कूल के व्यवस्थापक श्री वी.के.टंडन, डॉ. सी.बी.शर्मा, डॉ. महेशानंद, श्री नत्थी सिंह बघेल, इण्डियन यूथ पावर के अध्यक्ष और रेलवे सलाहकार समिति के सदस्य रहे श्री राकेश कुमार, दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी से संबंद्ध सुप्रसिद्ध गायक श्री देवेन्द्र वशिष्ट,  प्रत्यक्ष भारत के संपादक श्री शशिधर शुक्ल, देवबंद से प्रकाशित खिलाफत बुलेटिन के संपादक श्री ओमबीर सिंह, ओज के कवि विजय प्रकाश भारद्वाज, हास्य कवि डा. शमीम देवबंदी, युवा पत्रकार कवि श्री  मेहताब आजाद, डा. सादिक देवबंदी, चांद अंसारी, युवा कवयित्री रितु मिगलानी, राजभाषा पत्रिका के पूर्व संपादक श्री शांति कुमार स्याल भी शामिल थे। सभी को कलश के आकार का विशेष स्मृति चिंह, अंगवस्त्रम्, सम्मान पत्र भेंट किा गया। धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ साहित्यकार श्री विनोद बब्बर ने किया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ वंदेमातरम तो समापन शांति पाठ से हुआ।  तत्पश्चात सभी अतिथियों ने मकर संक्रांति के परंपरागत खिचड़ी प्रसाद का आनंद लिया।


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