‘लगी है आग गंगा में, झेलम में, बताओं अब कहाँ जाके नहाया जाए!’


डा. विनोद बब्बर सत्ता के प्रति असहमति का स्वर कोई नई बात नहीं है। कभी सुप्रसिद्ध कवि धूमिल ने कहा था- वे सब के सब तिजोरियों के दुभाषिये हैं वे वकील हैं। वैज्ञानिक हैं। अध्यापक हैं, नेता है, दार्शनिक हैं। लेखक हैं, कवि हैं, कलाकार हैं। यानी-कानून की भाषा बोलता हुआ अपराधियों का एक संयुक्त परिवार है। (संसद से सड़क तक पृ. 139) इस बार एक कवि की बजाय एक बाबा ने कहा है कि ‘देश की संसद के भीतर हत्यारे, लुटेरे और जाहिल बैठे हैं।’ तो हंगामा मच गया। संसद में अक्सर आपस में लड़ते रहने वाले दल एकमत होकर बाबा रामदेव की निंदा आलोचना में लग गए। उन्हें विशेषाधिकार का नोटिस तक भेज दिया गया। वास्तव में छत्तीसगढ़ के दुर्ग में बाबा रामदेव ने सांसदों पर निशाना साधते हुए कहा, ‘वहां लुटेरे और हत्यारे बैठे हैं.। सत्ता की कुर्सी पर इंसान की शक्ल में हैवान बैठे हैं। हमने उन्हें कुर्सी पर बैठा दिया, लेकिन उन्हें कुर्सी पर बैठने का अधिकार नहीं हैं वो सत्ता करने की पात्रता नहीं रखते. वो देश चला हैं क्योंकि हमने ऐसा ही सिस्टम बना दिया है. हमने भी मान लिया कि 543 रोगी हिंदुस्तान चलाएंगे. हालांकि उनमें कुछ लोग अच्छे भी हैं।’ तमाम विरोधों के बावजूद रामदेव अपने बयान पर कायम हैं। उन्होंने दोहराया है, ‘देश के 121 करोड लोगो को हक दिलाने के लिय हमने जो आंदोलन शुरू किया है उसको देखकर भ्रष्ट व बेईमान लोगो में हलचल मची हुई है। हमने जब सबके सामने सच को कहा कि संसद में जो अच्छे लोग बैठे हैं उनका हम सम्मान करते हैं लेकिन जो इस देश में हुई लूट के जिमेदार हैं और जो लुटेरे हैं भ्रष्ट हैं उन्हं संसद से हटाना है तो चारो तरफ से बयान आने लगे कि स्वामी रामदेव को यह नहीं बोलना चाहिये, वो नही बोलना चाहिये। मैं पूछना चाहता हूं कि चुनाव आयोग जब यही बात जो मैं कह रहा हूं कहता है तो आपति क्यों नही होती है ? लगभग 182 लोग संसद में ऐसे बैठे हैं जिन पर मामले दर्ज हैं उनकी छवि अच्छी नहीं है, तो क्या वो हमसे जबरदस्ती सम्मान करवाएंगे। देश के 121करोड लोगो के खून पसीने कि कमाई को लूट कर ये लोग जब इस देश के मजदूर का, किसान का कारीगर का, अपमान करते हैं और भारत के लोगो को अभाव व गरीबी में जीने को मजबूर करते हैं तो क्या तब इन लोगो को संसद का अपमान नही दिखता ? रामलीला मैदान में देश भक्त लोगो पर आधी रात को जब लाठियां बरसाकर लोगो का अपमान किया जाता है और राजबाला जैसी देशभक्त बहन को मार दिया जाता है द्य जब संसद व सरकार के लोग ऐसा कृत्य करते हैं तो ये शैतान नही तो और क्या हैं ?? ऐसा कार्य करने के बावजूद क्या इनको हम देवता कहें ? जो संसद देश के लोगो को एक अच्छा व समृद्ध शासन व समानता देने के लिये बनी है उसमे बैठे लोग यदि देश के लोगो को अच्छा शासन न देकर अपमान करे तो हम उनका बहिष्कार न करके क्या उनका सम्मान करेगें ? मैं मेरे बयान पर पूरी तरह से कायम हूं और वह रिकार्डेड भी है। मेरे बयान को कई लोगो ने पूरा नही सुना है और टिप्पणी कर दी है मैं ऐसा सोचता हूं कि यदि वे पूरा सुनते तो शायद वो भी मेरी बात से सहमत होते। जो अच्छे संसद हैं उनका हम सम्मान करते हैं और वो हमारी बात का बुरा भी नही मानेगें ऐसा मैं सोचता हूं लेकिन जो इस देश कि लूट के जिमेदार हैं उनसे इस देश के लोग हिसाब लेंगे और जो लूटा है उसको वापस दिलवाएंगे। हमारा आंदोलन देश के लोगो को उनका हक दिलाने के लिये है और यह हक उनको किसी भी कीमत पर दिलाकर रहेंगे।’ बाबा रामदेव से पहले टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल भी सांसदों के खिलाफ इसी प्रकार की टिप्पणी कर चुके हैं। आज जब कोई अपने विरूद्ध कुछ भी नहीं सुनना चाहता तो स्वाभाविक है कि सांसद भी इसका अपवाद नहीं है। आखिर वे देश के ‘चुने हुए’ शासक हैं। अपने विशेषाधिकार के प्रति सजग भी। एक तरफ लोकसभा में बाबा रामदेव के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दे दिया गया है। वहीं, दूसरी ओर संसद के अंदर और बाहर नेताओं ने स्वामी रामदेव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मजेदार बात यह है कि लालू प्रसाद यादव ने बाबा रामदेव को मानसिक तौर पर अस्थिर तक करार दिया है। उनकी दृष्टि में योगगुरु कुंठित और मेंटल हैं। लेकिन स्वयं लालू की पत्नी राबड़ी देवी भी उनसे असहमत है। राबड़ी देवी ने मीडिया से बात करते हुए कहा है, ‘स्वामी रामदेव ने क्या गलत कहा है? उन्होंने किसी एक नेता के लिए कुछ नहीं कहा है।’ समाजवादी सांसद शैलेंद्र कुमार ने रामदेव के खिलाफ नोटिस देते हुए कहा कि सांसदों को संसद के बाहर लगातार अपमानित किया जा रहा है। सांसद महोदय के अनुसार पिछले 1-2 वर्षों में सार्वजनिक मंचों से कभी कोई संत तो कभी कोई सामाजिक कार्यकर्ता सांसदों को चोर, लुटेरा, शैतान, हैवान कह रहा है। बीजेपी के नेता यशवंत सिन्हा के अनुसार, ‘कोई कितना बड़ा भी संत हो, समाजसेवी हो, उसे सांसदों के लिए आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है।’ कांग्रेस सांसद जगदंबिका पाल के अनुसार, ‘अन्ना द्वारा संसद और सांसदों पर की गई टिप्पणी हो या स्वामी रामदेव की टिप्पणी, ये सांसदों पर टिप्पणी नहीं है बल्कि जनता की समझ पर सवाल है। सांसदों को जनता ही चुनती है। सरकार ने पारदर्शिता पर जोर दिया है। सरकार ने अन्ना और स्वामी रामदेव की भावनाओं की कद्र की है। भारत में जिस तरह से चुनाव हो रहे हैं, उससे लोकतंत्र मजबूत होगा।’’ समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सदस्य मोहन सिंह ने कामना की कि ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दें और वे साधु की तरण आचरण करें। यही क्यों रामदेव की निंदा आलोचना करने वालों की सूची बहुत लम्बी है, लेकिन वे लोग यह नहीं जानना चाहते कि इस देश के आम आदमी के मन से राजनीतिज्ञों का मान क्यों कम हो रहा है? क्यों ऐसा मान जाने लगा है कि आज कोई भला, ईमानदार आदमी राजनीति कर ही नहीं सकता? बार-बार के अध्ययन इस बात की पृष्टि करते हैं कि लगातार गलत चरित्र के व्यक्ति भी माननीय बन रहे हैं। क्या ऐसे करोड़ों लोगों को कोई सदन विशेषाधिकार के हनन अथवा मानहानि पर सजा दे सकता है? यह सत्य है कि संसद सर्वोपरि है लेकिन जिस जनता ने उसे चुना है यदि वही अपने प्रतिनिधियों से असंतुष्ट है तो उसके असंतोष को 1975 में इमरजेन्सी लगाकर भी नहीं दबाया जा सका तो लोकतंत्र में यह कैसे संभव है? यह प्रसन्नता की बात है कि आज आम आदमी भी भ्रष्टाचार के विरूद्ध बोलने लगा है। उसे ज्यों ही मौका मिलता है तो वह भ्रष्टों को मजा चखाने में भी देर नहीं लगाता। जनता के आक्रोश की अभिव्यक्ति पिछले वर्ष हुए सभी आंदोलनों में प्रकट हुई। क्या जनाक्रोश के बिना अन्ना का दिल्ली आंदोलन सफल हो सकता था? क्या रामदेव के आह्वान पर जुटी भीड़ देश के जनमानस का प्रकटीकरण नहीं था? आज जरूरत है हमारे नेता दीवार पर लिखे सत्य को पढ़ने की कोशिश करें कि अब उनकी मनमानी ज्यादा दिन चलने वाली नहीं है। कोई भी दल अथवा नेता ज्यादा समय तक जनता को बेफकूफ नहीं बना सकता। आज नेताओं, अधिकारियों के विरूद्ध ही नहीं, अनेक बाबाओं के विरूद्ध भी लोग मुंह खोलने लगे हैं। केवल लच्छेदार बातों से जनता को ठगने वालों की अब खैर नहीं। यह बात किसी एक बाबा को नहीं सभी को समझनी चाहिए कि उन्हें प्राप्त श्रद्धा और धन मूलतः जनता का ही है। वे इसे प्राप्त कर इसके निरंकुश स्वामी नहीं बन सकते। उन्हें इसे वापस जनता के कल्याण पर ही खर्च करना होगा। जो इसे अपनी बपौती मानेगा, उसे किसी तरह की रियायत की आपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए। बाबा हो या नेता वे स्वयं को जनता के प्रतिनिधि बनकर कार्य करना होगा, न कि निधिपति बनकर नहीं। एक विशेष बात यह भी कि अब तक बाबा रामदेव समर्थन करने वाले भी इस बार उनके साथ नजर नहीं आ रहे हैं तो इसका जरूर कोई कारण होगा। कालेधन के मुद्दे पर दिल्ली के रामलीला मैदान में धरना देने से पहले सरकार से समझौता करने के आरोपों के बीच पुलिस ज्यादतियों के बीच महिला के कपड़े पहन कर फरार होने की कोशिश ने बाबा रामदेव की प्रतिष्ठा को भारी आघात पहुँचाया। रामदेव के व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के विषय में भी लगातार अनेक प्रकार की बातें की जाती हैं। देश की किसी भी प्रतिष्ठित दवा कम्पनी से उनकी कम्पनी की दवा के दामों में कई गुना का अंतर होने जैसे अनेक आरोप भी लगाये जाते हैं। कुछ ही वर्षों में विशाल पूंजी एकत्र करने वाले रामदेव संन्यासी है तो उनके निकट स्वयं उन्हीं के भाई-भतीजें क्यों हैं, इसका उत्तर देने अथवा अपने व्यवहार में किसी सकारात्मक सुधार की जरूरत रामदेव ने अब तक क्यों महसूस नहीं की? गलती गलती है, बाबा की हो या नेता की। यदि सब दूसरों के पाप ही गिनवाते रहे तो क्या जनता पद्मभूषण गीतकार नीरज की इन पंक्तियों को ही गुनगुनाते हुए उन्हें अपनी मनमानी करने दे- ‘लगी है आग गंगा में, झेलम में, बताओं अब कहाँ जाके नहाया जाए!’
‘लगी है आग गंगा में, झेलम में, बताओं अब कहाँ जाके नहाया जाए!’ ‘लगी है आग गंगा में, झेलम में,  बताओं अब कहाँ जाके नहाया जाए!’ Reviewed by rashtra kinkar on 21:02 Rating: 5

1 comment

  1. इससे सबकी आंखें खुलनी चाहिये।

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