पर्वतों की रानी मसूरी का सौंदर्य---Vinod Babbar
गत मई में एक सेमिनार में भाग लेने मसूरी जाना था। दिल्ली की भीषण गर्मी मंे मसूरी का नाम सुनते ही राहत मिलती है लेकिन यहां तो सचमुच मसूरी जाने का अवसर था। इधर स्कूलों में छुट्टियां थी इसलिए मेरा नन्हा दोस्त अक्षित भी तैयार था लेकिन ट्रेन में आरक्षण कठिन था परंतु धीरज ने काम सरल कर दिया और मसूरी एसी एक्सप्रेस में आने-जाने की व्यवस्था हो गई। देर रात दिल्ली से चलकर हम बहुत सुबह ही देहरादून पहुंच गये। देहरादून के मस्तक पर स्थित मसूरी जिसे पर्वतों की रानी भी कहा जाता है, जाने के लिए हमें आसानी से बस मिल गई जिसने हमें दो घंटे में ही हरे-भरे और घुमावदार रास्तों से होते हुए मसूरी पहुंचा दिया। हम माल रोड के निकट स्थित उस होटल पहुंचे जहां हमारे रूकने की व्यवस्था की गई। थी। न्यू आब्जर्वर पोस्ट के संपादक आरिफ जमाल सहित कुछ अन्य मित्र वहां पहले ही विराजमान थे।
बेहाल कर देने वाली गर्मी से दूर प्रकृति की गोद में कुछ पल सुकून के बिताने की चाहत रखने वालों के लिए मसूरी एक आदर्श हिल स्टेशन हो सकती है। पर्यटकों को आकर्षित करने वाली मसूरी सन 1826 तक वृक्षों व मंसूर झाडियों से ढंकी हुई थी। इस नगर की सुन्दरता पर मोहित होकर वेल्स की राजकुमारी ने इसे पहाडों की रानी नाम दिया था। ऐसा भी कहा जाता है कि इस जगह का नाम यहां बड़ी तादाद में उगने वाली मसूर दाल पर पड़ा। सन् 1820 में अंग्रेज कैप्टन यंग ने यहां के प्राकृतिक सौन्दर्य से मुग्ध हो अपना बंगला बनवाया था जिसके बाद यह एक हिल स्टेशन के तौर पर विकसित हुआ। यहां पुराने डाक बंगले और प्राचीन मंदिर काफी बड़ी संख्या में हैं। अब मसूरी आई.ए.एस. का प्रशिक्षण संस्थान लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के लिए भी जाना जाता है।
हर पहाड़ी पर्यटक स्थल की तरह यहां का मुख्य बाजार माल रोड है। इसे मसूरी की शान भी कहा जा सकता है क्योंकि यहां खूब चहल-पहल रहती है। सड़क के दोनो ओर कुछ स्थानों पर बेंच लगे हैं। थकान हो जाने पर यहाँ बैठ कर प्रकृति का आनंद ले सकते है। इसके अतिरिक्त पॉप कार्न तथा खानपान की वस्तुएं बेचती महिलाएं तो कलात्मक टोपियां मफलर बेचने की दुकाने भी सजी है। कुछ आगे जाने पर रिक्शों की भरमार देखकर चौंक। दरअसल ये रिक्शे कंपनी गार्डन तक ले जाते है। जो लगभग ढाई किमी की दूरी पर स्थित एक सुंदर उद्यान है जिसमे एक ग्लास हाऊस है। सुंदर पेड़ पौधे लगे है। शाम के समय मॉल रोड पर पैदल घुमने तहलने वालों की भीड़ हो जाती है इसलिए संग्रहालय के पास रोड बंद कर दी जाती है।
मसूरी का कंपनी गार्डन जिसे म्युनिसिपल गार्डन भी कहते हैं, आजादी से पहले तक बोटेनिकल गार्डन भी कहलाता था। कंपनी गार्डन की कल्पना विश्वविख्यात भूवैज्ञानिक डॉ. एच. फाकनार लोगी की थी। 1842 के आस-पास उन्होंने इस क्षेत्र को सुंदर उद्यान में बदल दिया था। बाद में इसकी देखभाल कंपनी प्रशासन के देखरेख में होने लगा था। इसलिए इसे कंपनी गार्डन या म्युनिसिपल गार्डन कहा जाने लगा।
गन हिल- यह जानना मजेदार था कि आजादी-पूर्व यहां रखी तोप प्रतिदिन एक निश्चित समय पर चलाई जाती थी ताकि लोग उसकी आवाज सुनकर अपनी घड़ियां सैट कर लें, इसी कारण इस स्थान का नाम गन हिल पड़ा। मसूरी की दूसरी सबसे ऊंची चोटी तक रोप वे से पहुंचा जा सकता है। ऊपर विशाल मैदान में बच्चों के खेल, खिलौने, खानपान तथा मनोरंजन के साधन हैं। मैंने एक स्थान पर महाराजा की पोशाक में फोटों खिंचने वालों को देखा तो अपने पौत्र को कुछ क्षण के लिए ही सही महाराजा बना दिया। यहां से हिमालय श्रृंखलाएं जैसे बंदरपुंछ, श्रीकंठ, पीथवारा व गंगोत्री ग्रुप के अनुपम सौंदर्य को निहारा जा सकता है तो पूरा मसूरी नगर का वहिंगम दृश्य भी देखा जा सकता है।
मॉल रोड पर टहलते हुए घोडी खड़ी देखी जो बाजार में घुमाने के काम आती थी। घोड़ी का मालिक पर्यटकों से दो सौ रुपए लेकर पूरा माल रोड और आसपास के क्षेत्रों की सैर करवाता है। हमारे अक्षित ने भी घोड़ी की सवारी का आनंद लिया। वहाँ बहुत से पिट्ठू (कुली) भी हैं जो मजदूरी लेकर दूसरों का सामान उनके गंतव्य तक पहुंचाते हैं। इसके अतिरिक्त एक स्थान पर छोटे बच्चों के लिए हाथ गाड़ी (वाकर) लिए बहुत से स्कूली छात्र खड़े थे। पूछने पर उन्होंने बताया, ‘बाहर से आने वाले पर्याटकों को छोटे बच्चों कों उठाकर चढ़ाई में असुविधा होती है इसलिए वे दिन में स्कूल तो शाम के समय अपनी गाड़ी लिए माल रोड़ पर पहुंच जाते हैं। इससे उन्हें कुछ आय हो जाती है।’
मसूरी में माल रोड के अतिरिक्त गांधी चौक, कुलरी बाजार व लैन्डयोर बाजार से छड़िया, हाथ के बुने आकर्षक डिजाइनों के स्वेटर बिकते हैं तो कुछ दुकानों पर परंपरागत सामान बिकता नजर आता है। और हाँ, लैन्डयोर बाजार में 150 वर्ष पुरानी मिठाई की दुकान का अपना आकर्षण है। हर सुबह हमारा नाश्ता यहीं होता था। इस रेस्टोंरंट के वर्तमान स्वामी के अनुसार उनके दादा ने 19.........में इसे आरंभ किया था। शुद्ध घी में बनी जलेबी के क्या कहने!
यूं मसूरी एक ऐतिहासिक शहर है। इसका म्युनिसिपलटी भवन बहुत पुराना है। हमारा सेमिनार उसी के मुख्य सभागार में हुआ। इसके अतिरिक्त 1853 मेँ स्थापित सेंट जॉर्ज विद्यालय, मसूरी बहुत प्रसिद्ध स्कूलोँ मेँ से एक है। यह पैट्रीशियन बंधुओं द्वारा सन 1893 से चलाया जा रहा है। 400 एकड़ में फ़ैला इसका कैम्पस मैनर हाउस के नाम से प्रचलित है। इसकी अल्युमनाई ने कई क्षेत्रों में योगदान दिया है। सेंट जॉर्ज स्कूल अपने स्थापत्य के लिये मसूरी भर में अद्वितीय है। अन्य विद्यालयों में वायनबर्ग ऐलन, गुरु नानक पंचम सेंटिनरी, मसूरी इंटरनैशनल, टिबेटन होम्स और वुडस्टॉक स्कूल हैं।
प्रसिद्ध लेखक रसकिन बांड एक बार मसूरी आए तो उन्हें यह इतना भाया कि वे यही के होकर रह गए। पिछले अनेक वर्षों से वे मसूरी भारत में रह रहे हैं।
कैमल बैक रोड- कुल 3 कि.मी. लंबा यह रोड रिंक हॉल के समीप कुलरी बाजार से आरंभ होता है और लाइब्रेरी बाजार पर जाकर समाप्त होता है। इस सड़क पर पैदल चलना या घुड़सवारी करना अच्छा लगता है। हिमालय में सूर्यास्त का दृश्य यहां से सुंदर दिखाई पड़ता है। मसूरी पब्लिक स्कूल से कैमल रॉक जीते जागते ऊंट जैसी लगती है।
एक सुबह हम मसूरी के पास के पर्यटन स्थलों को देखने के लिए निकलें। भोपाल और गुजरात के मित्र संग थे इसलिए हमने आने- जाने के लिए एक टैक्सी बुक कर ली। वह अनेक स्थानों पर घूमाता हुआ कैम्पटी फॉल ले गया।
कैम्पटी फॉल मसूरी से 15 किमी दूर 4500 फुट की ऊंचाई पर यह इस सुंदर घाटी का नामकरण कैसा हुआ यह जानना बहुत दिलचस्प है। अंग्रेज अफसर अपनी चाय दावत अकसर इस खूबसूरत स्थान पर करते थे, इसीलिए इसे कैंपटी (कैंप$टी) फाल कहा गया है। यहाँ चारों ओर की ऊंचे पहाड़ों के पांच अलग -अलग धाराओं में बहता झरना है जिसकी तलहटी में स्नान तरोताजा कर देता है। बिजली से चलने वाले रस्सों की गाड़ी (रोप वे) पर सवार होकर उस स्थान पर पहुचते हैं जहां बच्चे और युवा वाटर गेमस में ठंडे पानी की बौछारों का लुत्फ उठाते हैं। हमारे अक्षित अस्वस्थ था इसलिए नहाने से कतरा रहा था लेकिन टयूब पर सवार कर जब मैंने उसे पानी में धकेला तो वह बाहर आने को तैयार नहीं था। आसपास भी कुछ अच्छे स्थान हैं लेकिन साफ-सफाई का अभाव खटकता है।
तिब्बती मंदिर- बौद्ध सभ्यता की गाथा कहता यह मंदिर निश्चय ही पर्यटकों का मन मोह लेता है। इस मंदिर के पीछे की तरफ कुछ ड्रम लगे हुए हैं। जिनके बारे में मान्यता है कि इन्हें घुमाने से मनोकामना पूरी होती है।
चाइल्डर्स लॉज- लाल टिब्बा के निकट यह मसूरी की सबसे ऊंची चोटी है। टूरिस्ट कार्यालय से यह 5 कि.मी. दूर है, यहां तक घोड़े पर या पैदल भी पहुंचा जा सकता है। यहां से बर्फ के दृश्य देखना बहुत रोमांचक लगता है।
क्लाउड्स एंड- सन् 1838 में एक ब्रिटिश मेजर द्वारा बनवाया गया यह पुराना बंगला जो अब होटल है, के चारों तरफ घने जंगलों से घिरे इस बंगले से बर्फ की चादर ओढ़े हिमालय पर्वतमाला व यमुना नदी का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। झड़ीपानी फाल मसूरी से 8.5 कि.मी. दूर स्थित है।
नाग देवता मंदिर- कार्ट मेकेंजी रोड पर स्थित यह प्राचीन मंदिर मसूरी से लगभग 6 कि.मी. दूर है। वाहन ठीक मंदिर तक जा सकते हैं। यहां से मसूरी के साथ-साथ दून-घाटी का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
मसूरी झील- देहरादून रोड पर यह नया विकसित किया गया पिकनिक स्पॉट है, जो मसूरी से लगभग 6 कि.मी. दूर है। यह एक आकर्षक स्थान है। यहां पैडल-बोट उपलब्ध रहती हैं। यहां से दून-घाटी और आसपास के गांवों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
क्लाउड्स एंड- यह बंगला 1838 में एक ब्रिटिश मेजर ने बनवाया था, जो मसूरी में बने पहले चार भवनों में से एक है। अब इस बंगले को होटल में बदला जा चुका है, क्लाउड्स एंड कहे जाने वाला यह होटल मसूरी हिल के एकदम पश्चिम में, लाइब्रेरी से 8 कि.मी. दूर स्थित है। यह रिजार्ट घने जंगलों से घिरा है, जहां पेड़-पौधों की विविध किस्में हैं साथ ही यहां से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियां और यमुना नदी को देखा जा सकता है।
धनोल्टी- यह वह स्थान है टिहरी सड़क पर एक शांत सी जगह जहाँ ऊंचे-ऊंचे देवदार वृक्षों व खूबसूरत फलों के बगीचों है। इनके अतिरिक्त यमुना ब्रिज, चंबा, लखा मंडल व सुरखंडा देवी यहां के कुछ अन्य दर्शनीय स्थल हैं।
सुरखंडा देवी- यह स्थान मसूरी-टिहरी रोड पर मसूरी से लगभग 33 कि.मी. दूर और धनोल्टी से 8 कि.मी. दूर स्थित है। पर्यटक बस या कार द्वारा कड्डु खल (देवास -थाली) तक जा सकते हैं, जहां से आगे 2 कि.मी. पैदल चलकर यहां पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर समुद्र तल से 10,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है, यहां से हिमालय का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यहां की यात्रा का अनुभव भूला नहीं जा सकता।
चंबा (टिहरी)- धनोल्टी से लगभग 31 कि.मी. दूर है। यहां तक यात्रा बहुत शानदार है क्योंकि सड़क फलों के बागानों से होकर गुजरती है। सीजन के दौरान, पूरे मार्ग पर सेव बहुतायत में मिलते हैं। बसंत के मौसम में, फलों से लदे वृक्षों को कैमरे में कैद किया जा सकता है, क्योंकि अपने पूरे शबाब के समय इन्हें देखना आंखों को सुखद लगता है। पृष्ठभूमि में शानदार हिमालय दिखाई देता है।
लाखा मंडल- कैम्पटी फाल से गुजरने पर मसूरी -यमुनोत्री रोड पर 75 कि.मी. दूर है लाखा-मंडल। कुवा तक 71 कि.मी. की सड़क यात्रा के बाद यमुना नदी को सड़क-पुल से पार करना पड़ता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यहां पुरातत्व महत्व की सैंकड़ो मूर्तियां रखी गई हैं। कहा जाता है कि कौरवों ने यहां लाख का महल बनाया था, और यहां पांडवों को जिंदा जलाने का षडयंत्र रचा था।
मसूरी में चौथे दिन हमने अपने कमरे में रहकर ही बिताया क्योंकि वहां के पानी में कैल्शियम की मात्रा अधिक होने के कारण हमारे अधिकांश साथी उल्टियां कर रहे थे। शाम को हम वापस देहरादून के लिए रवाना हुए जहां देर रात दिल्ली की ओर प्रस्थान करना था।
कुल मिलाकर बहुत बढ़िया रहा मसूरी से यह मिलन। जानकारी से भरपूर तो मानवीय संवेदनाओं को झकझोरने वाला भी। मुझे माल रोड़ पर पॉपकार्न बेचती महिला द्वारा अपनी बच्ची को जोरदार थप्पड़ रसीद करने का का वह दृश्य शायद ही कभी भूले। सड़क के किनारे मेज पर स्टोव, कढ़ाई रखकर कर गर्मागर्म पॉप कोर्न बेचने वाली ये महिला बच्चों को साथ देखकर आवाज लगा रही थी, ‘बच्चे को दिलवा दो, गर्मागर्म कुरकुरे पॉप कोर्न!’ अधिकांश लोग उसे अनसुना कर आगे बढ़ गए क्योंकि आजकल नई-नई चीजे की उपलब्धता के कारण बच्चों को पॉपकोर्न में कोई खास रूचि नहीं रह गई है। उस महिला की बच्ची जो पास ही रखे एक स्टूल पर बैठी थी, ने अपनी माँ से पॉपकोर्न मांगे तो ग्राहक न आने से झल्लायी माँ ने उसे जोरदार चांटा लगाते हुए कहा, ‘तू ही सब खा लेगी तो रोटी कहाँ से खाएगें!’ मन बहुत दुःखी हो उठा यह दृश्य देखकर। अगर हम अभी पेट की जरूरतें ही पूरी नहीं कर पा रहे हैं तो कैसी उन्नति, कैसा विकास? आखिर कब आवश्यक जरूरतें से ऊपर उठेगा हमारा देश!
बेहाल कर देने वाली गर्मी से दूर प्रकृति की गोद में कुछ पल सुकून के बिताने की चाहत रखने वालों के लिए मसूरी एक आदर्श हिल स्टेशन हो सकती है। पर्यटकों को आकर्षित करने वाली मसूरी सन 1826 तक वृक्षों व मंसूर झाडियों से ढंकी हुई थी। इस नगर की सुन्दरता पर मोहित होकर वेल्स की राजकुमारी ने इसे पहाडों की रानी नाम दिया था। ऐसा भी कहा जाता है कि इस जगह का नाम यहां बड़ी तादाद में उगने वाली मसूर दाल पर पड़ा। सन् 1820 में अंग्रेज कैप्टन यंग ने यहां के प्राकृतिक सौन्दर्य से मुग्ध हो अपना बंगला बनवाया था जिसके बाद यह एक हिल स्टेशन के तौर पर विकसित हुआ। यहां पुराने डाक बंगले और प्राचीन मंदिर काफी बड़ी संख्या में हैं। अब मसूरी आई.ए.एस. का प्रशिक्षण संस्थान लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के लिए भी जाना जाता है।
हर पहाड़ी पर्यटक स्थल की तरह यहां का मुख्य बाजार माल रोड है। इसे मसूरी की शान भी कहा जा सकता है क्योंकि यहां खूब चहल-पहल रहती है। सड़क के दोनो ओर कुछ स्थानों पर बेंच लगे हैं। थकान हो जाने पर यहाँ बैठ कर प्रकृति का आनंद ले सकते है। इसके अतिरिक्त पॉप कार्न तथा खानपान की वस्तुएं बेचती महिलाएं तो कलात्मक टोपियां मफलर बेचने की दुकाने भी सजी है। कुछ आगे जाने पर रिक्शों की भरमार देखकर चौंक। दरअसल ये रिक्शे कंपनी गार्डन तक ले जाते है। जो लगभग ढाई किमी की दूरी पर स्थित एक सुंदर उद्यान है जिसमे एक ग्लास हाऊस है। सुंदर पेड़ पौधे लगे है। शाम के समय मॉल रोड पर पैदल घुमने तहलने वालों की भीड़ हो जाती है इसलिए संग्रहालय के पास रोड बंद कर दी जाती है।
मसूरी का कंपनी गार्डन जिसे म्युनिसिपल गार्डन भी कहते हैं, आजादी से पहले तक बोटेनिकल गार्डन भी कहलाता था। कंपनी गार्डन की कल्पना विश्वविख्यात भूवैज्ञानिक डॉ. एच. फाकनार लोगी की थी। 1842 के आस-पास उन्होंने इस क्षेत्र को सुंदर उद्यान में बदल दिया था। बाद में इसकी देखभाल कंपनी प्रशासन के देखरेख में होने लगा था। इसलिए इसे कंपनी गार्डन या म्युनिसिपल गार्डन कहा जाने लगा।
गन हिल- यह जानना मजेदार था कि आजादी-पूर्व यहां रखी तोप प्रतिदिन एक निश्चित समय पर चलाई जाती थी ताकि लोग उसकी आवाज सुनकर अपनी घड़ियां सैट कर लें, इसी कारण इस स्थान का नाम गन हिल पड़ा। मसूरी की दूसरी सबसे ऊंची चोटी तक रोप वे से पहुंचा जा सकता है। ऊपर विशाल मैदान में बच्चों के खेल, खिलौने, खानपान तथा मनोरंजन के साधन हैं। मैंने एक स्थान पर महाराजा की पोशाक में फोटों खिंचने वालों को देखा तो अपने पौत्र को कुछ क्षण के लिए ही सही महाराजा बना दिया। यहां से हिमालय श्रृंखलाएं जैसे बंदरपुंछ, श्रीकंठ, पीथवारा व गंगोत्री ग्रुप के अनुपम सौंदर्य को निहारा जा सकता है तो पूरा मसूरी नगर का वहिंगम दृश्य भी देखा जा सकता है।
मॉल रोड पर टहलते हुए घोडी खड़ी देखी जो बाजार में घुमाने के काम आती थी। घोड़ी का मालिक पर्यटकों से दो सौ रुपए लेकर पूरा माल रोड और आसपास के क्षेत्रों की सैर करवाता है। हमारे अक्षित ने भी घोड़ी की सवारी का आनंद लिया। वहाँ बहुत से पिट्ठू (कुली) भी हैं जो मजदूरी लेकर दूसरों का सामान उनके गंतव्य तक पहुंचाते हैं। इसके अतिरिक्त एक स्थान पर छोटे बच्चों के लिए हाथ गाड़ी (वाकर) लिए बहुत से स्कूली छात्र खड़े थे। पूछने पर उन्होंने बताया, ‘बाहर से आने वाले पर्याटकों को छोटे बच्चों कों उठाकर चढ़ाई में असुविधा होती है इसलिए वे दिन में स्कूल तो शाम के समय अपनी गाड़ी लिए माल रोड़ पर पहुंच जाते हैं। इससे उन्हें कुछ आय हो जाती है।’
मसूरी में माल रोड के अतिरिक्त गांधी चौक, कुलरी बाजार व लैन्डयोर बाजार से छड़िया, हाथ के बुने आकर्षक डिजाइनों के स्वेटर बिकते हैं तो कुछ दुकानों पर परंपरागत सामान बिकता नजर आता है। और हाँ, लैन्डयोर बाजार में 150 वर्ष पुरानी मिठाई की दुकान का अपना आकर्षण है। हर सुबह हमारा नाश्ता यहीं होता था। इस रेस्टोंरंट के वर्तमान स्वामी के अनुसार उनके दादा ने 19.........में इसे आरंभ किया था। शुद्ध घी में बनी जलेबी के क्या कहने!
यूं मसूरी एक ऐतिहासिक शहर है। इसका म्युनिसिपलटी भवन बहुत पुराना है। हमारा सेमिनार उसी के मुख्य सभागार में हुआ। इसके अतिरिक्त 1853 मेँ स्थापित सेंट जॉर्ज विद्यालय, मसूरी बहुत प्रसिद्ध स्कूलोँ मेँ से एक है। यह पैट्रीशियन बंधुओं द्वारा सन 1893 से चलाया जा रहा है। 400 एकड़ में फ़ैला इसका कैम्पस मैनर हाउस के नाम से प्रचलित है। इसकी अल्युमनाई ने कई क्षेत्रों में योगदान दिया है। सेंट जॉर्ज स्कूल अपने स्थापत्य के लिये मसूरी भर में अद्वितीय है। अन्य विद्यालयों में वायनबर्ग ऐलन, गुरु नानक पंचम सेंटिनरी, मसूरी इंटरनैशनल, टिबेटन होम्स और वुडस्टॉक स्कूल हैं।
प्रसिद्ध लेखक रसकिन बांड एक बार मसूरी आए तो उन्हें यह इतना भाया कि वे यही के होकर रह गए। पिछले अनेक वर्षों से वे मसूरी भारत में रह रहे हैं।
कैमल बैक रोड- कुल 3 कि.मी. लंबा यह रोड रिंक हॉल के समीप कुलरी बाजार से आरंभ होता है और लाइब्रेरी बाजार पर जाकर समाप्त होता है। इस सड़क पर पैदल चलना या घुड़सवारी करना अच्छा लगता है। हिमालय में सूर्यास्त का दृश्य यहां से सुंदर दिखाई पड़ता है। मसूरी पब्लिक स्कूल से कैमल रॉक जीते जागते ऊंट जैसी लगती है।
एक सुबह हम मसूरी के पास के पर्यटन स्थलों को देखने के लिए निकलें। भोपाल और गुजरात के मित्र संग थे इसलिए हमने आने- जाने के लिए एक टैक्सी बुक कर ली। वह अनेक स्थानों पर घूमाता हुआ कैम्पटी फॉल ले गया।
कैम्पटी फॉल मसूरी से 15 किमी दूर 4500 फुट की ऊंचाई पर यह इस सुंदर घाटी का नामकरण कैसा हुआ यह जानना बहुत दिलचस्प है। अंग्रेज अफसर अपनी चाय दावत अकसर इस खूबसूरत स्थान पर करते थे, इसीलिए इसे कैंपटी (कैंप$टी) फाल कहा गया है। यहाँ चारों ओर की ऊंचे पहाड़ों के पांच अलग -अलग धाराओं में बहता झरना है जिसकी तलहटी में स्नान तरोताजा कर देता है। बिजली से चलने वाले रस्सों की गाड़ी (रोप वे) पर सवार होकर उस स्थान पर पहुचते हैं जहां बच्चे और युवा वाटर गेमस में ठंडे पानी की बौछारों का लुत्फ उठाते हैं। हमारे अक्षित अस्वस्थ था इसलिए नहाने से कतरा रहा था लेकिन टयूब पर सवार कर जब मैंने उसे पानी में धकेला तो वह बाहर आने को तैयार नहीं था। आसपास भी कुछ अच्छे स्थान हैं लेकिन साफ-सफाई का अभाव खटकता है।
तिब्बती मंदिर- बौद्ध सभ्यता की गाथा कहता यह मंदिर निश्चय ही पर्यटकों का मन मोह लेता है। इस मंदिर के पीछे की तरफ कुछ ड्रम लगे हुए हैं। जिनके बारे में मान्यता है कि इन्हें घुमाने से मनोकामना पूरी होती है।
चाइल्डर्स लॉज- लाल टिब्बा के निकट यह मसूरी की सबसे ऊंची चोटी है। टूरिस्ट कार्यालय से यह 5 कि.मी. दूर है, यहां तक घोड़े पर या पैदल भी पहुंचा जा सकता है। यहां से बर्फ के दृश्य देखना बहुत रोमांचक लगता है।
क्लाउड्स एंड- सन् 1838 में एक ब्रिटिश मेजर द्वारा बनवाया गया यह पुराना बंगला जो अब होटल है, के चारों तरफ घने जंगलों से घिरे इस बंगले से बर्फ की चादर ओढ़े हिमालय पर्वतमाला व यमुना नदी का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। झड़ीपानी फाल मसूरी से 8.5 कि.मी. दूर स्थित है।
नाग देवता मंदिर- कार्ट मेकेंजी रोड पर स्थित यह प्राचीन मंदिर मसूरी से लगभग 6 कि.मी. दूर है। वाहन ठीक मंदिर तक जा सकते हैं। यहां से मसूरी के साथ-साथ दून-घाटी का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
मसूरी झील- देहरादून रोड पर यह नया विकसित किया गया पिकनिक स्पॉट है, जो मसूरी से लगभग 6 कि.मी. दूर है। यह एक आकर्षक स्थान है। यहां पैडल-बोट उपलब्ध रहती हैं। यहां से दून-घाटी और आसपास के गांवों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
क्लाउड्स एंड- यह बंगला 1838 में एक ब्रिटिश मेजर ने बनवाया था, जो मसूरी में बने पहले चार भवनों में से एक है। अब इस बंगले को होटल में बदला जा चुका है, क्लाउड्स एंड कहे जाने वाला यह होटल मसूरी हिल के एकदम पश्चिम में, लाइब्रेरी से 8 कि.मी. दूर स्थित है। यह रिजार्ट घने जंगलों से घिरा है, जहां पेड़-पौधों की विविध किस्में हैं साथ ही यहां से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियां और यमुना नदी को देखा जा सकता है।
धनोल्टी- यह वह स्थान है टिहरी सड़क पर एक शांत सी जगह जहाँ ऊंचे-ऊंचे देवदार वृक्षों व खूबसूरत फलों के बगीचों है। इनके अतिरिक्त यमुना ब्रिज, चंबा, लखा मंडल व सुरखंडा देवी यहां के कुछ अन्य दर्शनीय स्थल हैं।
सुरखंडा देवी- यह स्थान मसूरी-टिहरी रोड पर मसूरी से लगभग 33 कि.मी. दूर और धनोल्टी से 8 कि.मी. दूर स्थित है। पर्यटक बस या कार द्वारा कड्डु खल (देवास -थाली) तक जा सकते हैं, जहां से आगे 2 कि.मी. पैदल चलकर यहां पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर समुद्र तल से 10,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है, यहां से हिमालय का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यहां की यात्रा का अनुभव भूला नहीं जा सकता।
चंबा (टिहरी)- धनोल्टी से लगभग 31 कि.मी. दूर है। यहां तक यात्रा बहुत शानदार है क्योंकि सड़क फलों के बागानों से होकर गुजरती है। सीजन के दौरान, पूरे मार्ग पर सेव बहुतायत में मिलते हैं। बसंत के मौसम में, फलों से लदे वृक्षों को कैमरे में कैद किया जा सकता है, क्योंकि अपने पूरे शबाब के समय इन्हें देखना आंखों को सुखद लगता है। पृष्ठभूमि में शानदार हिमालय दिखाई देता है।
लाखा मंडल- कैम्पटी फाल से गुजरने पर मसूरी -यमुनोत्री रोड पर 75 कि.मी. दूर है लाखा-मंडल। कुवा तक 71 कि.मी. की सड़क यात्रा के बाद यमुना नदी को सड़क-पुल से पार करना पड़ता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यहां पुरातत्व महत्व की सैंकड़ो मूर्तियां रखी गई हैं। कहा जाता है कि कौरवों ने यहां लाख का महल बनाया था, और यहां पांडवों को जिंदा जलाने का षडयंत्र रचा था।
मसूरी में चौथे दिन हमने अपने कमरे में रहकर ही बिताया क्योंकि वहां के पानी में कैल्शियम की मात्रा अधिक होने के कारण हमारे अधिकांश साथी उल्टियां कर रहे थे। शाम को हम वापस देहरादून के लिए रवाना हुए जहां देर रात दिल्ली की ओर प्रस्थान करना था।
कुल मिलाकर बहुत बढ़िया रहा मसूरी से यह मिलन। जानकारी से भरपूर तो मानवीय संवेदनाओं को झकझोरने वाला भी। मुझे माल रोड़ पर पॉपकार्न बेचती महिला द्वारा अपनी बच्ची को जोरदार थप्पड़ रसीद करने का का वह दृश्य शायद ही कभी भूले। सड़क के किनारे मेज पर स्टोव, कढ़ाई रखकर कर गर्मागर्म पॉप कोर्न बेचने वाली ये महिला बच्चों को साथ देखकर आवाज लगा रही थी, ‘बच्चे को दिलवा दो, गर्मागर्म कुरकुरे पॉप कोर्न!’ अधिकांश लोग उसे अनसुना कर आगे बढ़ गए क्योंकि आजकल नई-नई चीजे की उपलब्धता के कारण बच्चों को पॉपकोर्न में कोई खास रूचि नहीं रह गई है। उस महिला की बच्ची जो पास ही रखे एक स्टूल पर बैठी थी, ने अपनी माँ से पॉपकोर्न मांगे तो ग्राहक न आने से झल्लायी माँ ने उसे जोरदार चांटा लगाते हुए कहा, ‘तू ही सब खा लेगी तो रोटी कहाँ से खाएगें!’ मन बहुत दुःखी हो उठा यह दृश्य देखकर। अगर हम अभी पेट की जरूरतें ही पूरी नहीं कर पा रहे हैं तो कैसी उन्नति, कैसा विकास? आखिर कब आवश्यक जरूरतें से ऊपर उठेगा हमारा देश!
पर्वतों की रानी मसूरी का सौंदर्य---Vinod Babbar
Reviewed by rashtra kinkar
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