हंगामा बनती राजनीति के पक्ष-विपक्ष-- डा. विनोद बब्बर
राजनीति में बढ़ती असहिष्णुता और कटुता की लम्बी श्रृंखला में सर्वश्री मणिशंकर अय्यर, दिग्विजय सिंह, बेनीप्रसाद वर्मा, लालू दी ग्रेट, गिरिराज सिंह, बिहार की नौका के वर्तमान खेवनहार मांझी,, राज ठाकरे की अनंत सूची में केन्द्रीय मंत्री निरंजन ज्योति एक नया नाम है। साध्वी ने दिल्ली की एक सभा में अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए जिन शब्दों (रामजादे बनाम हरामजादें) का प्रयोग किया वे बेशक सामान्य प्रचलन के हैं लेकिन सार्वजनिक जीवन में इन शब्दों को अससंदीय और शालीनता के विरूद्ध माना जाता है। यह बेहद संतोष की बात है कि इस बयान से स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आहत महसूस कर रहे हैं अतः उन्होंने भाजपा संसदीय दल की बैठक में इस मामले पर परोक्ष रूप से गहरी नाराजगी जताई और दो टूक कहा- ऐसी बयानबाजी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उसी दबाव का परिणाम है कि मंत्री महोदया ने संसद के दोनों सदनों में न केवल अपने कहे पर खेद जताया बल्कि माफी भी मांग ली। लेकिन लोकसभा चुनाव की पराजय के बाद से सुन्न पड़े विपक्ष ने अपनी झोली में अचानक आ गिरे इस मुद्दे को अपनी सक्रियता और एकता का अस्त्र बनाकर सरकार पर जमकर हमले बोले। लगातार संसद बाधित की गई और मंत्री के इस्तीफे का दबाव बनाया गया। वैसे संसद में शरद यादव ने यह उचित ही कहा है कि मोदी सरकार के मंत्री अपने ही नेता की बात मानने को तैयार नहीं है।
यह सत्य है कि चुनावी दौर में तीखे तेवर वाली बाते होती ही है। पिछले दिनों अमेरिका के चुनावों में एक राज्य की गर्वनर को उनके विरोधी ने ‘वेश्या’ तक कह डाला था। बाद में उन्होंने माफी मांगी पड़ी लेकिन वहां की जागरूक जनता ने उन्हें बुरी तरह हराकर सबक भी सिखाया। स्वयं अपने देश की बात करें तो स्वयं कांग्रेस अध्यक्षा ने भी कभी मोदी के लिए ‘मौत का सौदागर’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था। राजठाकरे अपनी वाणी पर नियंत्रण न होने का परिणाम भुगत रहे हैं।
निचलेे के स्तर पर तो हर दल के नेता इसी स्तर की बाते की करते हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि राजनीति में मनमाने शब्दों के इस्तेमाल की छूट है। वास्तव में इस मामले में हर दल का रवैया ‘पिक एण्ड चूज’ वाला रहा है। जब सोनिया ने कुछ कहा तो सारी कांग्रेस पार्टी एक होकर उनके बचाव में लग गई लेकिन वहीं कांग्रेस साध्वी की बर्खास्तगी से कम पर राजी नहीं है। यह भी स्मरणीय है कि तब भाजपा ने भी आसमान सिर पर उठाया था लेकिन आज उसके नेता मंत्री के बयान से पल्ला झाड़ते हुए नजर आ रहे हैं। यानि पक्ष-विपक्ष में से किसी की भूमिका नहीं बदली है। बस कुर्सियां बदल गई है। जो कल तक शोर मचाते थे आज विरोधी भी उसी भाषा में हिसाब चुका रहे हैं। लेकिन इसे कोई अच्छी परम्परा नहीं कहा जा सकता।
संसद संवाद का मंच है। लोकतंत्र में हर विवाद का समाधान संवाद से ही संभव है। उसे किसी भी कीमत पर, किसी भी काल में अखाड़ा नहीं बनाया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित होना चाहिए कि संसद का कामकाज हर हालत में चले क्योंकि संसद के न चलने से अनेक महत्वपूर्ण विधेयक अटक जाते है। बदलते दौर में भारत की तस्वीर बदलने के लिए पक्ष-विपक्ष को भी अपनी सोच बदलनी चाहिए। भविष्य में इस तरह के विवाद ही उत्पन्न न हो, इसके लिए सत्तारूढ़ दल को अपने स्तर पर प्रयास करने चाहिए। यदि उनका कोई मंत्री अथवा सदस्य मर्यादा का उल्लंघन करता है तो बिना विपक्ष की मांग के स्वयं उसके विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की परम्परा बननी चाहिए। विपक्षी दलों को भी केवल राजनैतिक लाभ के लिए हंगामा खड़ा नहीं करना चाहिए। उन्हें भी अपने दौर को याद करते हुए कोई स्वस्थ परम्परा कायम करने का प्रयास करना होगा। दोनों पक्षों को समझना चाहिए कि अब देश की जनता जागरूक हो चुकी है। संसद की कायवाही को हर मुद्दे पर ठप्प करना सार्वजनिक हित में नहीं है। ऐसा करने की कीमत जनता को ही चुकानी पड़ी तो यह तय है कि मौका मिलते ही जनता भी प्रतिकार करती है। इसलिए आज अधिक जिम्मेवार विपक्ष तो अधिक समझदार और धैर्यवान सत्तापक्ष चाहिए। आपत्तिजनक- ऊल जलूल बयानबाजी बेशक क्षणिक लाभ पहुंचाती हो लेकिन उसका अंतत नुकसान होता है।
यह दुःखद है कि हमारे सभी राजनीतिक दल जो देश के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग भूमिका में है, संसद अथवा विधानसभा के अंदर भी सड़कों पर आजमाए जाने वाले हथकंड़ों का प्रयोग करते हैं। अन्यथा तख्तियां-बैनर लेकर सदन में नारेबाजी करने का क्या औचित्य है। यह प्रवृति किसी एक दल की नहीं, कमोवेश सबकी है। वर्तमान मामले में भी विपक्ष को हठधर्मिता छोड़नी चाहिए क्योंकि वे अपने किसी नेता के अभद्र बयान पर उससे इस्तीफा ले लेने का एक भी उदाहरण प्रस्तुत नहीं कर सके। यदि सभी अपने-अपने घर में नैतिक सफाई अभियान चलाने का साहस दिखा सके तो देश की राजनीति की तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी। यह सर्वविदित ही है जिस दिन देश की राजनीति का मिजाज बदलेगा, उसी दिन अच्दे दिनों की इंतजार समाप्त हो सकती है वरना हर अच्छी बात नारे ही रहेगी।
अब जबकि प्रधानमंत्री ने स्वयं संसद में बयान देते हुए कहा कि ‘मामला संवेदनशील है, हमें इस तरह के बयानों से बचना चाहिए। ये हमसब के लिए संदेश की तरह है। हमें मर्यादा का खयाल रखना चाहिए। मंत्री नई हैं और उन्होंने अपने बयान पर क्षमा मांग ली है इसलिए मामले को खत्म कर देना चाहिए।’ ऐसे में विपक्ष को भी राज्यसभा में सरकार के अल्पमत में होने का अनावश्यक लाभ लेने की मानसिकता का त्याग करते हुए वातावरण को सहज बनाना चाहिए।
और अंत में चर्चा मध्यप्रदेश की जहां गत वर्ष एक मंत्री ने विपक्ष के नेता के लिए असंसदीय शब्द का प्रयोग किया तो माननीय सभापति जी ने उन शब्दों को कार्यवाही से हटाने का निर्देश दिया लेकिन स्वयं विपक्षी नेता ने विधानसभा अध्यक्ष से ऐसा न करने का अनुरोध करते हुए कहा था, ‘आने वाली पीढ़ियों को पता चलना चाहिए कि एक मंत्री किस हद तक गिर गए।’
हंगामा बनती राजनीति के पक्ष-विपक्ष-- डा. विनोद बब्बर
Reviewed by rashtra kinkar
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