ओलांद और गणतंत्र दिवस
इस बार हमारे गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि फ्रांस के राष्ट्रपति श्री फ्रांस्वा ओलांद रहे। उन्होंने हमारे समर्पित जवानों के शौर्य और वैज्ञानिकों के कौशल से सुसज्जित परेड़ देखी। इसी दौरान ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ और ‘न भय काहू को देत, न भय काहू का मानत’ के हमारे संस्कृति सूत्र की एक झलक भी उनके समक्ष प्रस्तुत थी। देशभर में कड़ी सुरक्षा के बीच आयोजित ऐसे ही समारोहों में ‘तंत्र’ की ओर से ‘गण’ को विश्वास दिलाया गया, ‘हम किसी से कम नहीं।’
निश्चित रूप से हम किसी से कमतर नहीं है लेकिन इतिहास और भुगोल ने लगातार परेशान करने वाला पड़ोसी दिया। भारत का नहीं यह दुनिया का दुर्भाग्य है कि यहां पाकिस्तान नामक एक राष्ट्र है जिसके सैंकड़ों मुख है। हर मुंह अलग बोली बोलता है। एक तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ता तो दूसरी ओर आतंक की पूरी खैप भेज दी जाती है। एक मुंह ‘खुशामदीद’ कहता है तो हम खुश होकर ‘शांति के कबूतर उड़ाने लगते हैं। इस बार तो कबूतर नहीं बल्कि खुद हमारे प्रधानमंत्री ही अचानक उड़कर पाकिस्तान जा पहुंचे। सारी दुनिया ने उनके साहस की प्रशंसा की। ‘शरीफ’ ने भी खूब शराफत भरी बाते की। अमन और दोस्ती का विश्वास दिलाया। अभी दुनिया भारतीय उपमहाद्वीप की बदलती तस्वीर का अनुमान ही लगा रही थी कि ‘पठानकोट’ ने उस तस्वीर को बदनुमा बना दिया। जाहिर है कि वहां अमन की ख्वाहिश को दमन करने वाले किसी की परवाह नहीं करते। ऐसे में इस सहस्रमुख वाले भस्मासुर पर विश्वास किया भी जाये तो आखिर कैसे?
प्रधानमंत्री ने मौके पर जाकर मुआयना किया। सीमा का हवराई सर्वेंक्षण किया तो रक्षामंत्री ने एक कड़ा बयान दिया। श्री पार्रिकर के अनुसार, ‘ये होना नहीं चाहिए, ये सहन नहीं कर सकते, बहुत हो गया. सहने की जो क्षमता देश की है, वो ख़त्म हो गई. रक्षा मंत्री के तौर पर मेरी क्षमता ख़त्म हो गई है।’ जिस देश का रक्षामंत्री यह कहने को विवश हो कि ‘जो भी व्यक्ति या संगठन भारत को दर्द देगा, उसे उसी तरह का दर्द देना चाहिए लेकिन यह कैसे, कब और कहां होगा, वह भारत की पसंद के अनुरूप होना चाहिए’ उस देश के जनमानस के मिजाज को समझा जा सकता है। जनता पाकिस्तान से दोस्ती और अमन चाहती है लेकिन स्वाभिमान की कीमत पर अमन का कोई अर्थ नहीं होता। लोकतंत्र में जनभावनाओं की अनदेखी करना एक सीमा के बाद असंभव होता है। इस बात को हमारे राजनेता ही नहीं अमेरिका भी समझता है इसीलिए अमेरिका सहित सारी दुनिया ने पठानकोट पर हुए आतंकी हमले की निंदा की। पाकिस्तान पर कार्यवाही का दबाव बनाया गया। लेकिन पाकिस्तान में नवाज शरीफ का इकबाल कितना है इसकी एक बानगी पाकिस्तानी चैनल एआरवाई न्यूज ने बताया कि ‘पठानकोट वायुसेना स्टेशन पर हमले के सिलसिले में भारत की तरफ से मुहैया कराए गए साक्ष्यों के आधार पर खुफिया एजेंसियों ने बहावलपुर से मसूद अजहर सहित कुछ संदिग्धों को उठाया है और पूछताछ के लिए उन्हें अज्ञात स्थान पर ले गई है।’ लेकिन अलग-अलग स्रोत ऐसी किसी गिरफ्तारी से इंकार ही नहीं करते रहे बल्कि भ्रमित करने वाली बातें कहते रहे। एक ने कहा गिरफ्तारी नहीं, हिरासत में लिया गया है। दूसरे ने कहा ‘रोका गया है।’ न जाने क्या-क्या अनाप- शनाप कहा गया। लेकिन परिणाम के नाम पर अब तक हाथ खाली ही हैं।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब पाकिस्तान में परस्पर विरोधी ही नहीं बल्कि भारत विरोधी बयान आये हो। कुछ दिन पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति रहे जनरल परवेज मुशर्रफ ने सार्वजनिक रूप से स्वीकारा है कि पाकिस्तान आतंकवादियों को पैसा और ट्रेनिंग देता है, जिससे वे जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा दें। उन्होंने ही लश्कर- ए-तैयबा और हक्कानी बनाए तथा मुंबई हमलें के अपराधी हाफिज सईद को हीरो जैसा सम्मान दिया। मुशर्रफ ने यह भी स्वीकारा कि सोवियत संघ से लड़ने के लिए उन्होंने मुजाहिदीन तैयार किए। धार्मिक आतंकवाद को पाला-पोसा क्योंकि यह पाकिस्तान के लिए बहुत फायदेमंद था। उनसे पूर्व वहां के विदेश सचिव रहे एजाज चौधरी ने लगभग धमकी के अंदाज में कहा था, ‘हमारे परमाणु कार्यक्रम का एकमात्र आयाम है- भारत।’ उनके रक्षा मंत्री भी शेखी दिखाते हुए कह चुके है कि ‘पाकिस्तान के परमाणु हथियार सजावट के लिए नहीं हैं, हम हथियारों का भारत के खिलाफ इस्तेमाल करेंगे।’ आश्चर्य है कि भारत को संयम रखने की सीख देने वाले विश्व नेताओं ने मुशर्रफ अथवा पाकिस्तान के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की।
भारत लम्बे समय से दाउद के पाकिस्तान होने के सबूत प्रस्तुत कर उसकी मांग करता रहा है लेकिन आज तक कोई परिणाम सामने आना तो दूर उन्होंने इस तथ्य को स्वीकारा तक नहीं। हर बार पुख्ता सबूतों को नकारना पाकिस्तान की विवशता है। क्योंकि उसका अस्तित्व ही भारत विरोध पर टिका हुआ है। कई जंग हारने के बाद भी जिस देश के हुक्मरानों ने अपनी जंग लगी मानसिकता पर फिर से विचार तक करने की नहीं सोची। वे कभी पंजाब तो कश्मीर में अपने गुर्गंे भेजते हैं। आतंकवाद की ट्रेनिंग के कैम्प लगाते है। जब-तब कश्मीर का राग अलापते अलापते अब वेे हैदराबाद को भी अपना बताने लगे हैं। और हम है कि बार- बार जख्म खाने के बावजूद कभी बस लेकर तो कभी बैट बल्ला लेकर अमन का दीया जलाने निकलते हैं पर उसपार से हमेशा नश्तर ही भेजा गया। इसमें कोई हैरानी नहीं ंकि जो अपने मासूम बच्चों तक का खून देखकर भी नहीं सुधरे उनके लिए पड़ोसी के मायने क्या हो सकते हैं।
फ्रांस के राष्ट्रपति की उपस्थिति में मोदी जी ने बताया कि ‘पेरिस हमले के बाद ही उन्होंने तय कर लिया था कि इस बार गणतंत्र दिवस समारोह में श्री फ्रांस्वा ओलांद ही मुख्य अतिथि बनाया जायेगा।’ लेकिन यह देश मोदी जी से यह पूछने का अधिकार रखता है कि वे श्री फ्रांस्वा ओलांद से प्रेरणा कब लेंगे? पेरिस हमले के फौरन बाद जिस दृढ़ता से उन्होंने दुश्मन के ठिकाने नेस्तानबूद किये, क्या उससे कोई सबक नहीं लिया जा सकता? हमे विश्व जनमत को पाकिस्तान की हरकतों के बारे में लगातार जागरूक करते रहने के साथ-साथ यह स्पष्ट करना होगा कि - पाकिस्तान को सहन करना उनकी मजबूरी हो सकता है लेकिन यह सब भारत के लिए असहनीय है। हम युद्ध नहीं चाहते परंतु आत्मसम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस अंतिम विकल्प से भागने वाले भी नहीं हैं। हम पहर अघोषित युद्ध का मुंह तोड़ जवाब देने को विवश हैं।
यही वह समय है जब हमें आत्म चिंतन और आत्म मूल्यांकन भी करना चाहिए। क्या पठानकोट वायुसेना स्टेशन पर हुआ हमला पाकिस्तान की साजिश से अधिक हमारी अपनी व्यवस्था का दोष नहीं है जिसने यह सब करने का मौका उपलब्ध कराया? इस हमले को नाकाम करने में जितना समय लगा उससे यह स्पष्ट है कि दुश्मन के ‘लिंक’ अंदर तक थे। इस बात से भी कोई विवेकशील व्यक्ति इंकार नहीं कर सकता कि इस दुस्साहसिक कृत्य की तैयारी लम्बे समय से चल रही थी। ऐसे में सबसे पहले हमारे सुरक्षा बलो की ‘स्क्रीनिंग’ आवश्यक है। बिना किसी का लिहाज किये गद्दारो को सामने लिये बिना दोस्ती और दुश्मनी को परिभाषित करना असंभव है।
आगामी बजट में सीमाओं को सुरक्षा करने के लिए आधुनिकतम तकनीक के लिए प्रावधान होना चाहिए। सेना की जरूरतों की अनदेखी अपराध है। रिक्त पदों को भरने के लिए तुरन्त प्रभाव से भर्ती के लिए विशेष अभियान चलाया जाना चाहिए। केवल इतना ही नहीं गांव-शहर के हर विद्यालय में एनसीसी अनिवार्य की जाये। जिससे देश की युवा पीढ़ी को जागरूक एवं हर संकट के लिए तैयार किया जा सकता है।
ध्यान रहे- दूसरों के भरोसे राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने की सोच न केवल दिवास्वप्न है बल्कि आत्मघाती भी है। सुरक्षा इस देश के हर नागरिक की जिम्मेवारी है। लेकिन उनमें यह कर्तव्यबोध जागृत करना तथा उसके लिए वातावरण का निर्माण करना सरकार का धर्म है। स्वयं को देश का प्रधान सेवक कहलाने वाले व्यक्ति से इस बात की आपेक्षा जरूर की जा सकती है कि वह राजनैतिक लाभ-हानि को तिलांजलि देते हुए राष्ट्र के लाभ-हानि को सर्वोंपरि रखें। स्पष्ट आह्वान करना होगा कि ‘यह देश अब अमन के दुश्मनों और देश में छिपे गद्दारों को किसी भी कीमत पर सहन नहीं करेगा। बिना देरी मुंह तोड़ जवाब देकर ही हम अपने सीने को नापे जाने योग्य साबित कर सकते हैं। वरना सीना तो पुतलों का भी होता हैं! -- विनोद बब्बर संपर्क- 09458514685, 09868211 911
ओलांद और गणतंत्र दिवस
Reviewed by rashtra kinkar
on
04:56
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EXCLUSIVE AND STUNNING ARTICLE . एक बेहतरीन लेख
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