जन चेतना बिना असंभव है जल संरक्षण


‘जल है तो कल है कि बात तो बार- बार कही जाती है परंतु इसी क्रम में हमें समझना होगा कि जल है तो बल है । जल के बिना जीवन ही संभव नहीं फिर भी इसके संरक्षण में जिस तरह घोर लापरवाही बरती जा रही है उसे आत्मघाती ही कहा जा सकता है।’  उत्तम नगर के गु़डविल पब्लिक स्कूल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पश्चिमी विभाग संघचालक श्री राकेश बंसल की अध्यक्षता में राष्ट्र किंकर द्वारा आयोजित विचारगोष्ठी ‘जन चेतना- जल चेतना’  का मुख्य स्वर रहा।
इस संगोष्ठी में उपस्थित सभी वक्ताओं ने जल संरक्षण के लिए सामाजिक जन जागरण की आवश्यकता पर बल दिया। विशेष बात यह रही कि सभी वक्ताओं ने कोरे उपदेश देने की बजाय ‘जल संरक्षण के लिए मैं क्या करता हूं या मैं क्या करूंगा’ पर अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किये। 
सभी का स्वागत करते हुए कार्यक्रम संयोजक डा. अम्बरीश कुमार ने  कहा, ‘प्रकृति ने आवश्यकता की तीव्रता के क्रमश से वस्तु का मूल्य तय किया है। जैसे पीतल के बर्तन जरूरी है उसका नाम दो चार रुपये किलो लेकिन सोना के बिना काम चल सकता है इसलिए उसका दाम लाखो रुपये किलो। आटा चावल जरूरी हैं इसलिए दस से बीस रुपये किलो जबकि काजू पिस्ता बादाम चार-पांच सौ रुपये किलो। इसी क्रम में हवा पानी के सर्वाधिक जरूरी है इसलिए इन्हें प्रकृति ने सर्वसुलभ और मुफ्त रखा। लेकिन हम इन्हें मुफ्त का माल समझकर इनकी अनदेखी करने लगे। अन्जाम सामने हैं। आज भी बहुत देर नहीं हुई है। हम प्रकृति के संकेत को समझते हुए आत्म सुधार कर लें तो बिगड़ी बात बन सकती है।’ 
मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार डा विनोद बब्बर ने भारतीय संस्कृति में जल को देवता मानने, हर शुभ अवसर पर कलश की स्थापना, कुआं पूजन, नदी किनारे मेले, उत्सवों और कुम्भ का उल्लेख करते हुए भारतीय जनजीवन में रचे बसे पानी से संबंधित सैंकड़ों मुहावरों की चर्चा भी की। उनके अनुसार, ‘जिनका अपना परिवेश संपन्न नहीं हैं, उनसे नदियों और महासागरों को स्वच्छ रखने की आपेक्षा नहीं की जा सकती लेकिन उनसे इतनी आपेक्षा तो अवश्य की जा सकती है कि वे अपने आसपास टपकती टोटी को अनदेखा न करें। एक घूंट पीकर बाकि पानी बहाने से पहले एक क्षण सोचे। वाशिंग मशीन में अंधाधुंध पानी इस्तेमाल करने वाले यदि इस पानी को शौचाालय और घर की धुलाई में प्र्रयोग करने की आदत बना ले तो बहुत बड़ा परिवर्तन हो सकता है। मुझे संतोष है कि यह सब कहने से पहले मैं स्वयं ऐसा करता हूं।’
संस्कृत विद्वान श्री मुरलीधर ने  बरसात से पूर्व देशभर के सभी गांवों के तालाबों से मिट्टी निकलाने की परम्परा की चर्चा करते उसे जल संरक्षण की महत्वपूर्ण कड़ी बताया। बेशक आज भी प्रतीकात्मक रूप से यह परम्परा जारी है परंतु इस परम्परा को आधुनिक परिवेश से समन्वय करते हुए और समृद्ध करने की आवश्यकता है। यदि शहरी लोग भी केवल वर्षा के जल को फिर से धरती में पहंचाने की व्यवस्था अपने अपने स्तर पर कर लें तो लातूर जैसी स्थिति से बच सकते हैं।
श्यामाप्रसाद मुकर्जी कालेज के डा. अमित शर्मा ने एक ओर पानी की कमी तो दूसरी ओर लगभग हर बस्ती में हर सुबह ओवरफ्लो होती पानी की टंकियों को संवेदना और समझदारी का संकट बताया। डा. पूजा शर्मा ने जल संरक्षण में गृहिणियों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। इण्डियन यूथ पावर के अध्यक्ष और रेलवे सलाहकार समिति के सदस्य रहे श्री राकेश कुमार के अनुसार, ‘जल संकट अनेक समस्याओं का मूल है। यब जीव जन्तु परेशान, पर्यावरण और खराब होता है। किसान की फसल खराब तो देश की अर्थव्यवस्था खराब, उसपर साधारण लोगों द्वारा प्रदूषित जल पीने से अनेक प्रकार के रोगों की तलवार लटकी रहती है। इसलिए बहुत जरूरी है कि हम जन चेतना के माध्यम से जल की उपलब्धता सुनिश्चिित करें।’
ब्रजेश गौतम जी को जन्मदिन की शुभकामनाएं देते अम्बरीश जी
युवा चिंतक श्री दिनेश गोयल ने इवन ऑड जैसे नियम को सड़क पर ही नहीं जल उपयोग पर भी लागू करने पर बल दिया लेकिन उनका मत था कि यह कार्य कानून के डंडे की बजाय आत्मानुशासन से होना चाहिए।
दिल्ली संस्कृत शिक्षक संघ के अध्यक्ष डा ब्रजेश गौतम ने वेदों को उदधृत करते हुए जल की महता पर प्रकाश डाला। उन्होंने जगह-जगह प्याऊ वाले देश में पानी के बढ़ते व्यापार को दुःखद बताते हुए प्रकृति, पर्यावरण, प्राणी और पानी के अटूट रिश्ते को पारिभाषित किया। संयोग से इस दिन ब्रजेश जी का जन्मदिन था इसलिए मंच पर  उनका अभिनन्दन किया था तथा सभी ने उन्हें स्वास्थ्य, सक्रिय शतायु होने की शुभकामनाये दी.  
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में समाजसेवी श्री राकेश बंसल ने इस प्रकार की विचार गोष्ठियों की आवश्यकता पर बल देते हुए आत्मचिंतन, आत्मसुधार और आत्मकल्याण करते हुए विश्व कल्याण की कामना को भारतीय संस्कृति का मूल बताया। उनके अनुसार, जल के लिए जन चेतना जागृति करने के प्रयासों की सार्थकता तभी है अगर हम सब आज से और अभी से ही जल देवता को बर्बाद न करने तथा उसका संरक्षण करने को अपने आचरण का हिस्सा बनाए। अपने परिवेश के नदी, तालाबों सरोवरो को स्वच्छ रखने में अपनी भूमिका सुनिश्चित करें। अपने बच्चों को आरम्भ से ही इसके प्रति सजग करने के दायित्व का निर्वहन करें। धन्यवचाद ज्ञापन करते हुए श्री राजन शर्मा ने कहा, ‘आज की गोष्ठी एक प्रयास है। जो न प्रथम है और न ही अन्तिम। यह जारी रहना चाहिए। आप सभी के आचरण, व्यवहार भी इस विचार क्रम को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे।’
अन्य वक्ताओं में भारती मॉडल सकूल के व्यवस्थापक श्री हीरालल पाण्डेय, द्वारका जिला प्रमुख श्री यद्रपाल शर्मा, सीए  राजीव, चौ, चन्दरसिंह, स. मनजीत सिंह, श्री सुरेन्द्र जी,  श्री सचिन कुमार, श्री रामसुमेर भी प्रमुख थे। कार्यक्रम की सुचारू व्यवस्था राष्ट्रीय सिक्ख संगत के पदाािकारी स जसविन्द्र सिंह बन्टी तथा श्री जितेन्द्र कुमार सिंह द्वारा की गई। 
जन चेतना बिना असंभव है जल संरक्षण जन चेतना बिना असंभव है जल संरक्षण Reviewed by rashtra kinkar on 07:32 Rating: 5

3 comments

  1. जलजीवन जनजीवन और जग के जीवन के निमित्त स्वचेतना हो बलवती,जन्म और लय के कारणभूत पञ्चभूत जल की शुद्धि और सिद्धि हम मानवों का प्राथमिक दाय्त्व और कर्तव्य है ।

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  2. राष्ट्रकिंकर,डॉ विनोद बब्बर जी,डॉ अम्बरीष कुमार जी व अन्य विचारवान् मित्रों को ऐसे जीवन्त विषयों पर समाज को चेतना देने वाले कार्यक्रम आयोजित करने हेतु धन्यवाद व आभार ।।।

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  3. सद्प्रयास के लिए सुधीजनों को नमन

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