माँ की पाती संपादक के नाम A Letter to Editor By Mother Land
हर पत्रिका की तरह हमारे पास भी ढेरों पत्र आते हैं। उन में से कुछ पत्र का उत्तर तो ज्योतिषाचार्य जी, तो कुछ का स्वास्थ्य- विशेषज्ञ देते हैं। कभी- कभी पारिवारिक अथवा सामाजिक समस्याएं भी आती हैं। तो कानूनी सलाह मांगने वालों की भी कमी नहीं होती। प्रयास रहता है कि उस विषय के ज्ञाता से उसके समाधान की प्रार्थना की जाए। इस तरह से यह स्तम्भ सुचारू रूप से चल रहा था। मगर पिछले सप्ताह प्राप्त एक पत्र को समाधान के लिए किस विशेषज्ञ के पास भेजा जाए, यह निर्णय हम नहीं कर पाये तो हमने अनेक विद्वानों से राय- मशविरा किया। परंतु वे सब जाने बूझते हुए खामोश बने रहें। ऐसे में जब बात चारदीवारी से बाहर पहुंच ही गई है, तो फिर आपसे ही क्या छिपाना। पत्र का मजबून कुछ इस प्रकार से है-
प्रिय संपादक बेटा
कैसे कहूं कि जुग-जुग जिओ?
काफी दिनों से परेशान थी, सोचा मेरी समस्या किसी बुखार की तरह खुद ही ठण्ड़ी हो जाएगी। इसीलिए, कभी किसी से शिकायत नहीं की। फिर शिकायत भी करूं तो किसकी करूं। मुझे अपमानित करने वाले भी तो गैर नहीं हैं, ‘पर गैरों के बहकाए हुए जरूर हैं। मेरे अपने ही कुछ बच्चे मुझे हर समय नीचा दिखाने की कोशिश करते रहते हैं। आज से 70 वर्ष पहले जब मैं दुष्टों के चंगुल से छूट कर आजाद होने की तैयारी कर रही थी कि जालिमों ने मेरे अंग-भंग करने की कोशिश की जो कामयाब भी हुई। मैं हैरान परेशान हूं कि अपनी लाश पर मेरे टुकड़े होने का वादा करने वाले ने मेरा नोंचा जाना क्यों स्वीकार किया। जवाब देने के लिए आज वह इस दुनिया में नहीं हैं, पर उसं अपमान की पीड़ा आज भी आग की तरह मेरे और हर भुगतभोगी के दिल में सुलग रही है।
बात सिर्फ वहीं तक रहती, तो भी मैं खामोश रहती। उसके बाद भी मेरे बेटों ने मेरे मान-अपमान का ध्यान नहीं रखा। सत्ता की राजनीति के लिए बार-बार मेरा सौदा करते रहे। मुझे डायन कहने वाला मंत्री बना रहा। उसकी हरकतों का विरोध करने वाले साम्प्रदायिक कहकर दुत्कारे जाते। गालियों और लांछन से उसका मुंह बन्द करवाने की कोशिशें शुरू हुईं। मेरे कुछ लायक बेटेे यहां के माहौल से नाउम्मीद होकर यूरोप, तो कोई अमेरिका की कामयाबी में अपना योगदान कर रहे हैं। इधर घर पर कुछ बेटें मेरी जय -जयकार करते रहे लेकिन तब उनके स्वर में स्वर मिलाने वाले बहुत कम थे। समय ने उनकी सुनी पर मेरी पीड़ा अब भी नहीं सुनी जा रही है। सुनती हूं कि वर्षों से मेरी जय-जयकार करने वालो की कोई महबूबा है जो मेरी शान में गुस्ताखी कर रही है तो मुंबई का एक माननीय देश से उठाकर बाहर फेंक दिये जाने पर भी अपनी मातृभूमि की जय नहीं बोलने पर गर्व करता हैं तो मुझे ऐसा लगता हैा मानों किसी ने मेरे सीने पर हजारों-लाखों साँप -बिच्छू छोड़ दिए गए हों। मेरे बहादुर बेटों को पत्थर मारने वालों इतने बेशर्म और अहसान फरामोश क्यों जोें बाढ़ और हर मुसीबत में उन बहादुरो की मदद तो चाहिए पर वतन परस्ती नहीं चाहिए। वतन के रखवाले नहीं चाहिए। आप कहोंगे कि वे गैरों के भडकायें हैं। पर मेरी भड़काई हुई आत्मा की आवाज भी तो सुनो, मैं कब तक खामोश रहूं?
संपादक जी, मैंने सुना है कि बरसों हर सुबह मातृभूमि को नमस्ते करने वाला आजकल रेडियों पर अपने मन की बात करता है। क्या कोई ऐसा है जो उस तक मेरे मन की बात भी पहुंचा सके? क्या कोई उसे बता सकता है कि जहरीले नागों को दूध पिलाकर नहीं, बल्कि युक्ति से काबू किया जा सकता है।
मुझे अपने बच्चों से भी कहना है कि वे सस्ते के चक्कर में विदेशी सामान खरीद कर अपने भाईयों की रोजी-रोटी क्यों छीन रहे हैं? क्या तुम नहीं जानते कि कल तुम्हारा नंबर भी आने वाला है।
मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई मेरी जय- जयकार करता है या नहीं करता पर इस बात से फर्क जरूर पड़ता है कि मेरे बच्चे आपस में बंटे हुए क्यों है? सब मेरे बेटे हैं तो फिर कोई ऊंचा तो कोई नीचा कैसे हो गया? भाई केवल सहोदर ही नहीं, योगी और सहयोगी भी होते हैं। जो अपनी जननी और जन्न्मभूमि से प्यार करते हैं वे सभी भाई है। मातृभूमि से प्यार और विचार का नाता, रक्त और वक्त के नाते से बढ़कर हैं।
संपादक जी, मेरा सपना है कि मेरा हर बेटा खुशहाल रहे। मेरी हर बेटी को जीने का अधिकार मिले। उन्हें हर सुख सुविधा मिले, शिक्षा मिले, अधिकार मिलेे, प्यार मिले, संस्कार मिल, हर योग्य को रोजगार मिले तभी वे आजाद है वरना आजादी का कोई मतलब नहीं। परंतु उसके लिए हर देशद्रोही को फटकार मिले, उसे ऐसी मार मिले कि उसे याद कर कोई ऐसी गुस्ताखी की सोचे भी न सके।
ज्यादा क्या कहूं, बस इतना और कहूंगी कि जो मां, माटी और मर्यादा को भुला देते हैं वे दूसरों की ठोकरों के साथ- साथ इतिहास के कूड़ेदान में स्थान पाते हैं। -तुम्हारी भारत माता
Writer -विनोद बब्बर संपर्क- 09868211911, 7892170 421 (Email rashtrakinkar@gmail.com)
Writer -विनोद बब्बर संपर्क- 09868211911, 7892170
माँ की पाती संपादक के नाम A Letter to Editor By Mother Land
Reviewed by rashtra kinkar
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