जाम ही जाम

जाम ही जाम
आज महानगरीय जीवन का सबसे लोकप्रिय शब्द है जाम। जाम बहुत से कामों में रूकावट उत्पन्न करता है तो अनेक ऐसे काम भी हैं जो जाम की वजह से आम हो जाते हैं। कल ही मैट्रो में सफर करते हुए आराम से सीट पर परसे एक सज्जन को फोन पर कहते सुना, ‘सर, जाम में फंसा हूँ इसलिए कुछ देरी हो सकती है।’ दिल्ली मैट्रो जाम से मुक्ति का प्रतीक मानी जाती है लेकिन चतुर सुजान मैट्रो की सवारी के दौरान ही जाम को मुक्तिदाता घोषित करते हैं तो जाम की महानता के सामने नतमस्तक होना ही पड़ेगा।
आज जिधर देखो, जाम ही जाम। सड़क पर जाओं तो टैªफिक जाम, फोन मिलाओं तो नेटवर्क जाम। इंटरनेट की ओर बढ़ें तो सर्वर डाऊन। सड़क इसलिए भी जाम है क्योंकि जलूस निकल रहा है। धरना-प्रदर्शन चल रहा है। आप लाख जाम को कोसो लेकिन यह है पूरा समाजवादी। गरीबी के विरूद्ध जाम लगता है तो रईसों की लम्बी गाड़ियों को भी जाम का स्वाद चखना पड़ता है। बारात जाम का कारण बनी है तो जनाजे को भी जाम के नाम दर्ज होते देखा जा सकता है। महंगाई के विरोध में जाम आम है लेकिन किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य न मिलना भी जाम लगा सकता है। शायद इसी कारण कभी कवि धूमिल ने कहा था-
हे भाई! अगर चाहते हो
हवा को रूख बदले तो
हे भाई! एक काम करो
संसद जाम करने से बेहतर है
सड़क जाम करो!
जाम का अपना जलवा है इसीलिए तो हाईवे से तंग गली तक इसी का साम्राज्य है। क्या कहा? ‘पानी नहीं आ रहा’ तो लेकर खाली बर्तन लगा दो जाम। ....और आप की समस्या, ‘गली में गंदा पानी भरा है’ तो आप भी लामबंद होकर जाम बंद कर दिखाओ। समस्याएं चलती रहेगी, आप तो अपनी नेतागिरी चमकाओ। मीडिया वालों को खबर कर टीवी चैनल न सही, दो-चार अखबारों की सुर्खियां बन जाओ। ‘आप अंधेरों में कब तक पड़े रहोगे, बिजली नहीं है तो कुछ करो। हिम्मत नहीं तो चढ़ा के जाम, लगा दो जाम! बिजली के दाम बढ़ गए तो अपना करंट दिखाओ, जाम की ऐसी मानव रेखा खींचो कि सरकार का सारा नषा उतर जाए। जोर का झटका धीरे से लगाना हो तो याद रखो एक ही मंत्र जाम। कोई भी हो मर्ज-एक ही राम बाण दवा-जाम।
वैसे मैं तो जाम का पुराना फैन हूँ (आप गलत न समझे, मैं साकी के जाम की बात नहीं कर रहा हूंँ) फैन भी इसलिए कि गर्मी-सर्दी हर मौसम में जाम चलता है। जाम के नाम मेरे बहुत से सुखद अनुभव दर्ज हैं। एक बार विदेश जाने के लिए कई घंटे पहले घर से निकला लेकिन रास्ते भर जाम का सामना करते हुए मात्र कुछ मिनट पहले ही हवाई अड्डे पहुंच सका। गार्ड मुस्तैद था, नियमों का हवाला देने लगा तो वापसी में जाम का वायदा कर जैसे-जैसे जहाज तक पहुंचा तो क्या देखता हूँ कि वहाँ भी जाम। मैं परेशान था लेकिन कई मित्र जाम पर जाम चढ़ा रहे थे। उस पर भी सितम ये कि जाम को वैलकम ड्रिंक बता रहे थे।
जाम वास्तव में ही वैलकम डिंªक है। आप लाख जल्दी में हो, आपके पास समय नहीं है, लेकिन जाम आपका हर मोड़ पर स्वागत करता है। एक बार जाम के लिए जाम का अनुभव हुआ। जाम के ठेके के पास गुजरते हुए जाम देखा तो मानना ही पड़ा कि जाम स्थान, परिस्थिति, निरपेक्ष है। वैसे जाम पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष भी है। हर धार्मिक जलूस की शोभा जाम से होती है। जितना बड़ा जाम, उतना ज्यादा सफल माना जाती है शोभायात्रा।
नारा कोई भी हो, जाम सबके साथ है, सबका है। अब हमें ही देखिये न। जीवन भर चप्पले घसीटते- घसीटते एक बार जब किश्तों में कार खरीद लाए तो श्रीमती जिद्द कर बैठी कार की सैर करवाईए। दरअसल वे नई कार पर सवार हो अपने पड़ोसियों को जलाते हुए अपनी शान दिखाना चाहती थी। पत्नीव्रता के लिए इंकार शब्द वर्जित है इसलिए इकरार ही करना था सो किया। अभी कुछ ही मील गए थे कि कार जाम में जा फंसी। जाम भी ऐसा कि न आगे जा सकते और न ही वापस लौट सकते थे। पड़ोसियों को अपनी शान दिखाने निकली मैडम जी की सारी हेकड़ी हवा हो गई और पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा। जाम का तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता था इसलिए हम ही निशाना बन गए। खूब बरसी और हमें थे कि अपनी किस्मत से ज्यादा कार और जाम को कोस रहे थे-
आगाज को ही तुमने, यह अंजाम दे दिया।
मांगी थी एक घूंट, क्यों पूरा जाम दे दिया।।
वैसे जाम सदा हंगामापूर्ण होते हैं। दंगों के कारण जाम लग सकता है तो जाम के कारण भी दंगे हो सकते हैं। इधर कन्या विद्यालय के बाहर छुट्टी के समय न चाहते हुए भी जाम लग जाता है क्योंकि कई मनचले वहाँ जमा होकर जाम लगाते हैं। जाम भी ऐसा कि घर पहुँचने की जल्दी में बच्चों की हड़बड़ाहट से ज्यादा बचे हुओं की हड़बड़ाहट सिर चढ़ बोलती है। हाँ, कभी-कभी खाकी वाले जरूर इन्हेें हवालात में जमा कर सड़क से हवालात तक जाम की स्थिति उत्पन्न कर देते है।
अब यह कोई रहस्य नहीं रहा कि जाम जगाता है, जाम कमाता है। जाम धुंए का दोस्त है, लेकिन डीजल-पेट्रोल का दुश्मन है। तेल की खपत बढ़ाता है। बिल ही नहीं तनाव भी बढ़ाता है। जाम राम नाम सत्य भी करवा सकता है। अपनों को बेगाना बना सकता है। तन्दुरुस्त को डाक्टर का परमानेंट ग्राहक बनाकर सांस के रोगों की दवा की खपत बढ़ा सकता है। जहाँ घंटों जाम लाता है वहां खूब बिकते हैं जामफल यानी अमरूद, केले, ब्रेड पकौड़ा और न जाने क्या-क्या। पानी की नकली बोतलें बिल्कुल एकदम खरे नोटों को इधर से उधर करती है। नो उधार, नो झंझट, ओनली फटाफट, जाम फैस्टिवल हैवी बनोनज़ा!
वैसे भी सारी दुनिया जानती है कि हम उत्सवधर्मी है। जीवन से मृत्यु तक हर अवसर हमारे जीवन उत्सव होता है। त्यौहार हो तो बात ही अलग है। ऐसे मौकों पर बाजारों में रौनक होती ही है। बाजार की रौनक भीड़-भाड़ से मानी जाती है। जाम उसमें चार चाँद लगाता है। यकीन न हो तो आप किसी भी दिन रौनक की चाँदनी का लुत्फ लेने चांदनी चौक से रू-ब-रू हो सकते हैं। बाजार में ग्राहक होते हैं, तो गिरहकट भी होते हैं। जाम एक को धक्का देता है तो दूसरे की रोजी-रोटी का जुगाड़ करता है। होली जैसे कुछ त्यौहारों में तो जाम का महत्व आम होता है। सनद रहे हम रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर अपने- अपने घर जाने के लिए उतावलों की भीड़ की बात नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनकी चर्चा तो कभी की जा सकती है। होली से एक सप्ताह पहले जाम के लिए जाम आपने जरूर देखा होगा। जाम का नशा जब चढ़ेगा तब चढ़ेगा, जाम के लिए पागलपन के नशे का अपना सरूर देखते ही बनता है।
होली ही क्यों, जाम के नाम अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले मौका ढूंढ़ा करते हैं। आज साल का आखिरी दिन है इसलिए हो जाए जाम!ं कल साल का पहला दिन होगा तब तो जरूर छलकेंगे जाम। दोस्त मिला है तो जाम, बिछड़ा है तो भी जाम। जुआ जीते हैं तो जाम, जुआ हारे तो भी जाम। नौकरी मिली है तो जाम होगा ही लेकिन नौकरी छूटी है तो जाम के अलावा विकल्प ही क्या है? खुशी का मौका हो तो डबल जाम । गम है तो भी जाम ही एकमात्र सहारा है। कहाँ तक गिनाए जाम हर मौके पर सीना ताने मिलता है।
एक बार अपने मित्र के पुत्र की शादी में गया तो उनके भाई बाजु पकड़कर एक तरफ ले गए और पेशकर दिया जाम। हमने हाथ जोड़े तो वे बिफर पड़े- ‘जाम नहीं लेते तो बारात में आए ही क्यों? क्या इतना भी नहीं समझते कि बारात नाचने-कूदने वालों से सजती है या तुम्हारे जैसे जाम लगाने वालों से?’ उस दिन अहसान हुआ कि हम भी जाम के कर्ता और कारण हैं। वैसे बहुत से लोगों के लिए जाम तारण भी होता है।
इधर सर्दी शुरू होते ही जोड़ दर्द करने लगे हैं। डाक्टर बोला, ‘इस मौसम में जोड़ जाम हो ही जाते हैं। गरम पानी में थोड़ा जाम मिलाकर ले लिया करो, दर्द नहीं सतायेगा।’ डाक्टर का काम है सलाह देना लेकिन वह कहाँ जानता है कि मेरे जैसे कलम घिस्सु का विदेश तो क्या, अपने देश में भी कोई खाता नहीं है। उसे कौन जिसका खाता न हो, वह क्या खाता ‘पीता’ होगा? डाक्टर की फीस नहीं दे सकता इसलिए सरकारी अस्पताल की ओर जाने वाली बस में बैठा हूँ। बस है कि घर भर से एक ही जगह अटकी है क्योंकि कुछ बारातियों का जाम सिर चढ़ बोल रहा है। इधर दर्द है कि घुटनों से दिल तक पहुँच चुका है-
हम अपनी शराफत को ढ़ो रहे हैं
कांटों की सेज पर नंगे सो रहे हैं
दुनिया तो डूबी है इस या उस जाम में
अपने राम तो जाम में फंसे रो रहे हैं!
Vinod Babbar, Editor-Rashtra kinkar Mob 09868211911
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