पाताल में समाता जल पंचतत्वों से बने हमारे शरीर की बुनियादी आवश्यकताएं भी पांच तत्व ही है जिनमें से एक है जल। भोजन के बिना तो शायद कुछ दिन जीवन संभव भी है मगर जल के बिना तो एक दिन काटना भी मुश्किल है। पानी केवल पीने या भोजन पकाने के लिए ही नहीं अपितु नहाने एवं साफ-सफाई आदि के लिए भी चाहिए, किन्तु साफ और शुद्ध जल आज भी अधिकांश लोगों के लिए स्वप्न ही बना हुआ है। पिछले सप्ताह पर्यावरण दिवस मनाया गया तो 10 जून को विश्व भूजल दिवस है। जाहिर है हमारे नेताओं ने भी पर्यावरण संरक्षण से जल बचाने तक बड़ी-बड़ी बातें खूब की होगी और यह कर्मकांड आगामी कुछ दिनों तक दोहराया जाता रहेगा। पानी पर विभिन्न बहसों, योजनाओं परियजनाओं और आशंकाओं के बीच पहली बार सरकार ने माना है कि बीते 65 सालों में देश में पानी घटा है। जलसंसाधन मंत्री ने संसद में बताया कि अब प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता एक तिहाई कम हो गई है। पिछले कुछ दशकों से देश की नदियों को आपस में जोड़ने के नाम पर भाषण तो बहुत हुए लेकिन हुआ क्या इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है। इधर भीषण गर्मी के बावजूद देश की राजधानी दिल्ली की अनेक कालोनियों में पेयजल का संकट पसरा हुआ दिखाई देता रहा तो देश के दूरदराज के क्षेत्रों की स्थिति की कल्पना मात्र से ही रोंगते खड़े हो जाते हैं। दिल्ली की अनाधिकृत कालॉनियों में से अधिकांश में पानी की लाईन ही नहीं है वहां टेंकरों से पानी पहुंचाया जाता है। इन टेंकरों के पहुंचते ही मारा-मारी शुरू हो जाती है। कुछ बदमिस्मत मीलों दूर से पानी ढोकर लाते हैं। वहां रहने वाले बच्चों और औरतों की दिनचर्या का अधिकांश हिस्सा पानी जुटाने में ही भेंट चढ़ जाता है। राजधानी के अधिकांश कामगार मजदूर इन्हीं कालॉनियों से आते हैं। नेताओं का भाग्य बनाने या बिगाड़ने लायक संख्या के बावजूद उनकी दशा बिगड़ी हुई है। उन्हें पीने तक का पानी भी उपलब्ध नहीं होता। देशभर में पानी के लिए बढ़ता हाहाकार कुछ सोचने के लिए बाध्य करता है। कावेरी के जल बंटवारे को लेकर दो राज्यो में चला लम्बा विवाद हो या हरियाणा का दिल्ली को उसका हिस्सा न देने से पीएम हाउस तक में भी जलसंकट स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है पर आज सुबह बाहर निकलकर देखा कि गली में पानी का अंबार लगा था। ऐसा लग रहा था मानो रात को भारी बारिश हुई हो। थोड़ा निकल कर देखा तो हमारे आदरणीय पड़ोसी अपने घर के बाहर गाड़ी धो रहे थे। इसी कारण आस-पास के घरों के बाहर पानी खड़ा हो गया था। मन- मस्तिष्क में हलचल शुरु हो गई। लोग बेवजह ही सड़कों, गलियों के गढ्ढ़ों के लिए प्रशासन को कोसते हैं। दिन भर गली में पानी भरा रहेगा तो गली गढ्ढे का रूप लेगी ही। आज 80 प्रतिशत लोगों के पास साईकिल, दोपहिया वाहन और कार सहित कोई न कोई निजी वाहन है। सभी लोग रोज सुबह -सुबह अपना-अपना वाहन सड़क पर धोना शुरू कर दें तो सड़कों, गलियों की हालत क्या होगी? और जरा पानी की स्थिति पर विचार करें तो इस तरह पानी की बर्बादी से पानी मिलना कठिन हो सकता है। कल बद से बदतर होने वाली पानी की स्थिति पर आज ही विचार नहीं किया गया तोे कल पूरा देश ही मरुस्थल बन सकता है। इसके लिए केवल सरकार या प्रशासन ही नहीं अपितु पूरा समाज और हर नागरिक जिम्मेवार है। अतः हम सभी को अपना दायित्व गंभीरता पूर्वक समझना होगा। आज यदि हमारे घरों में पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध है और बाथरूम, किचेन, गार्डन, आंगन, यहां तक कि हाथ धोने के लिए डायनिंग टेबल के पास भी नल लगा है। किचेन में नौकरानी नल खोल कर खुले पानी से बर्तन धोती है। बाथरूम में निरंतर नल चलता है, क्योंकि कपडे धुल रहे हैं। आंगन में नल चल रहा है घर की धुलाई हो रही है। श्रीमानजी नल खोल कर शेविंग करते हैं। बच्चे नल खेलकर ब्रश करते हैं। घर के बड़े बुजुर्ग पाईप लगा कर गार्डन की घास को तरबतर करने में लगे हैं। परिणाम जल की कमी। क्या आप ऐसी स्थिति का सामना करना चाहेंगे? नहीं कभी नहीं। अपने घर में होने वाली ऐसी घटनाओं पर अभी से प्रतिबंध लगाएं। इसके लिए पूरे परिवार को जागरूक करें।जल संरक्षण के लिए अधिक नहीं तो इतना तो हम अवश्य कर सकते हैं कि कपड़े रोज-रोज धोने की बजाए सप्ताह में एक बार या दो बार इकट्ठे धोएं। नल खुला छोड़ने की बजाय बड़े बर्तन या बल्टी में पानी भर कर कपड़े धोएं। इस पानी के फंेकने की बजाए उससे घर या गाड़ी की धुलाई करें। नल खोल कर बर्तन धोने की बजाए बड़े बर्तन या बाल्टी में पानी लेकर बर्तन धोएं। बाथरूम के पानी की पाईप का रूख किचन गार्डन की तरफ करें। टपकने वाले सभी नलों और पानी की लाइनों को समय-समय पर ठीक कराती रहें। पानी की टंकी को अकारण न बहने दें। बच्चो को समझाएं कि वे पीने का पानी उतना ही लें जितना उन्हें पीना होता है। अक्सर बचे दो घूंट पानी पीकर बचे हुए पानी को फंेक देते हैं। जिस प्रकार पृथ्वी का तीन भाग जल है उसी प्रकार मानव शरीर का अधिकांश भाग जल है। जल की कमी से मानव के स्वास्थ्य पर भी व्यापक असर पड़ता है। इसलिए हमें अपने-अपने घर में जल के दुरूपयोग को रोकने के साथ-साथ प्रबंधन को व्यावहारिक रूप देना होगा। आने वाले कल में हमें पानी की किल्लत से दो-चार नं होना पड़े, इसके लिए आज से अपितु अभी से पैसे की तरह जल की एक-एक बूंद जोड़ना शुरू करें क्योंकि जल है तो कल है वरना सब कुछ कोरा छल हैं । हम सभी ने रहीम की सबसे लोकप्रिय कविता अवश्य सुनी होगी जो पानी पर है। ‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे मोती, मानुष, चुन।’ यह दोहा सदियों से लोगों की जुबान पर है। लेकिन जुबान पर विराजमान यह दोहा विचार और कर्म का हिस्सा आज तक नहीं बन पाया, जबकि रहीम ने सदियों पहले जब यह कविता लिखी थी तब यह सिर्फ कविता नहीं थी। कवि ने जब इस कविता की रचना की थी तब उन्होंने अपने मन मस्तिष्क में इस अवधारणा सिर्फ रखा ही नहीं था,बल्कि पानी संरक्षण की पूरी विधि का निर्माण भी किया था। जिसे आज भी ऐतिहासिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण नगर बुरहानपुर में देखा जा सकता है। रहीम की इन पंक्तियों की व्याख्या में हर बार ‘पानी रखिए’ का संदर्भ और प्रसंग छूट जाता है। हर बार इस दोहे में तीन बार पानी शब्द का आना और तीनों बार पानी का अलग-अलग अर्थ महत्वपूर्ण है। एक बार पानी ‘मानुष’ यानी मनुष्य के लिए आया है तो दूसरी बार पानी का अर्थ इज्जत या मन-मर्यादा है। तीसरी बार पानी चूना के लिए आया है। चूने की तासीर या गुण बिना पानी के उत्पन्न नहीं होता और पानी सूखने पर चूना मृतप्राय हो जाता है। ‘रहिमन पानी रखिए’ के संदर्भ और प्रसंग सहित व्याख्या में जो संदर्भ हमेशा छूट जाता है, वह पानी रखने की विधि है। पानी रखने की यह विधि मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर में आज भी बची हुई है। यहां पानी के तीन भंडारे हैं। सबसे प्रसिद्ध और पानी के सबसे बड़े भंडारे को खूनी भंडारा के नाम से जाना जाता है। खूनी भंडारे में पानी के एक सौ पाच कुंड हैं। ये कुंड बुरहानपुर शहर के कई मील के क्षेत्रफल में स्थित हैं। 101 अथवा 102 की संख्या का जलकुंड बुराहानपुर स्टेशन पर ही है। इस कुड से आज भी लोग पानी निकालते हैं। रहीम कवि होने के साथ ही अकबर ने नौ रत्नों में एक थे। वे इंजीनियर भी थे। 16वीं शताब्दी के अंतिम दशक में उन्होंने अपनी आय से पानी का अंडरग्राउंड भंडार बनवाना प्रारंभ किया, जो 17वीं शताब्दी के प्रथम दशक में बनकर पूरा हुआ। संभवतः इस तकनीक पर आधारित देश के एकमात्र जलसंग्रह और वितरण की तकनीक को जल-प्रबंधन के रूप में स्वीकार करने और उसकी हिफाजत करने का हमारा कर्तव्य बोध अभी तक सुषुप्तावस्था में है। ये सभी कुंड भूमिगत सुरंग के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े हैं। भूमिगत सुरंग के दो हिस्से हैं- एक हिस्सा मिट्टी की सुरंग का है, जिसे उस समर्य इंटों से बनाया गया था। दूसरा हिस्सा लाइमस्टोन यानी चूने के पत्थर को काटकर बनवाया गया था। लाइमस्टोन का रंग जगह-जगह रक्तिम हो गया है। इन सभी कुंडों की साफ-सफाई के लिए सुरंगों के बीच मिट्टी का एक कमरा हाल ही में ढूंढा गया है। यहां आदमी मरम्मत के अपने सामान रखता होगा। साथ ही विश्राम गृह के रूप में भी इस कक्ष का उपयोग किया जाता होगा। रहीम ने ‘पानी राखिए’ के भंडारे का नाम खैर-ए-जारी रखा था, जो आज खूनी भंडार के रूप में प्रचलित है। पानी के इन भंडारों की औसत गहराई 70 से 80 फुट है। कुंडों का निर्माण इस तरह किया गया है कि पहले कुंड की तलहटी और अंति कुंड के शीर्ष की सतह बराबर है। यही कारण है कि पहले कुंड से रिसने वाला पानी सुरंगों के जरिए अंतिम कुंड तक पहुंच जाता है। इस तरह पानी की अबाध व्यवस्था जारी रहती थी। बुरहानपुर तत्कालीन समय में दक्कन का दरवाजा के नाम से प्रसिद्ध था। बुरहानपुर के रास्ते ही दक्षिण की विजय-यात्रा की जाती थी। अकबर ने अपने बेटे मुराद के साथ सेनापति के रूप में रहीम को बुरहानपुर भेजा था। रहीम ने दक्षिण के दरवाजे पर ‘पानी राखिए’ का ऐतिहासिक कार्य किया, जो हिन्दुस्तान में अन्यत्र कहीं नहीं है। पूरे भारत में जल-प्रबंधन की इस तकनीक और संपदा को सुरक्षित एवं सतत रूप से जलप्लावित रखने के लिए बड़े स्तर पर विशेष कदम उठाए जाने की जरूरत है। यह एक कवि की कविता है, जो चूने के पत्थर के बीच जल-कुंडों और जल सुरंगों के माध्यम से पांच शताब्दी पहल रची गई थी। आज इस कविता का पानी ‘मानुष’ की मर्यादा मात्र नहीं है। अपने प्रारंभिक अर्थ में सिर्फ पानी है जो जीवन से भी अधिक है। जल पुरुष के रुप में जाने जाने वाले राजेन्द्र सिंह जी देश भर में घूम -घूम कर लोगो को आने वाले जल संकट के प्रति जागरुक कर रहे हैं उनके अनुसार अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा।आओ हम भी पानी की एक -एक बूँद को बचाने का संकल्प ले वरना एक-एक सांस के लिए तड़फना पड़ेगा
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