क्या आप भी धर्मनिरपेक्ष हैं? Are You secular?? What is secularism??


एक मित्र ने पूछा- ‘क्या आप धर्मनिरपेक्ष (secular) हैं?’ बिना लाग लपेट मेरा सीधा उत्तर था- नहीं। हर्गिज नहीं। केवल मैं ही नहीं कोई भी धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता।  आईये सबसे पहले हमें धर्म और निरपेक्ष के अर्थ समझें।  धर्म किसी बाहरी प्रतीक यथा तिलक लगाना, दाढ़ी बढ़ाना या खास तरह की टोपी पहनना नहीं है। धर्म को किसी पूजा, उपासना, यज्ञ, नमाज, अरदास आदि से बांधना अनिवार्य नहीं है। किसी मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि जाने या न जाने से धर्म का दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। धर्म का अर्थ है जिसे धारण किया जाता है। जीव से मुनष्य बनने के लिए आवश्यक है वह मनुष्यता, मानवता को धारण करें। परिस्थितियों द्वारा सोचे गये कर्तव्य का शु़द्ध अंतकरण से पालन करना धर्म है। गीता के अनुसार--
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्। कार्यते ह्यशः कर्म सर्व प्रकृतिजैर्गुणै-।।
(कोई भी मनुष्य क्षण भर भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। सभी प्राणी प्रकृति के अधीन हैं और प्रकृति अपने अनुसार हर प्राणी से कर्म करवाती है और उसके परिणाम भी देती है)
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः।। (अपने धर्म के अनुसार कर्म कर, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा)
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्म संगिनाम्। जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन्।।
(ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे किंतु स्वयं परमात्मा के स्वरूप में स्थित हुआ और सब कर्मों को अच्छी प्रकार करता हुआ उनसे भी वैसे ही कराए) इस तरह धर्म के निकट यदि अंग्रेजी का कोई शब्द लिया जाए तो वह डयूटी (Duty) है न कि रिलीजन (Religion)। 
धर्म और नियम पालन समानार्थक भी माने जा सकते है। सूर्य का अपना अर्थ है कि वह पूर्व में उदय होकर सारे संसार को अपना प्रकाश, उष्मा और ऊर्जा प्रदान करे। ऋ़तएं सूर्य के धर्म के कारण होती है। इसी तरह चन्द्रमा, पृथ्वी, जल, वायु, वनस्पति सभी का अपना धर्म है। उनके द्वारा धर्म पालन से ही इस पृथ्वी पर जीवन संबंध है।  यदि वे अपने धर्म का पालन न करें तो किसी भी जीव के लिए जीवन धर्म संभव ही नहीं है।  जिस प्रकार किसी भाषा को सम्यक ढ़ंग से समझने, बोलने, ठीक पढ़ने तथा ठीक लिखने के लिए व्याकरण की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार मानव को सामाजिक जीवन के निर्वाहन के लिए जिस अनुशासन की आवश्यकता पड़ती है उसे धर्म कहा जा सकता है। व्यवहारिक अर्थ में धर्म मन, वचन तथा कर्म के अनुशासन का विषय है। भारत भूमि को अपना मानने वाला हर व्यक्ति प्रकृति पूजक है। अतः धर्म निरपेक्ष वह हो ही नहीं सकता। 
निरपेक्ष क्या है अब इसकी चर्चा। निरपेक्ष को अंग्रेजी में unconcern कहा जाता है। Concern वास्ता, संबंधित होना, लगाव रखना, दिलचस्पी होना। अतः निरपेक्ष का अर्थ हुआ कोई संबंध-लगाव न होना। जो धर्म को मानता है वह धर्म निरपेक्ष कैसे हो सकता है। जो सांस लेता है क्या वह आक्सीजन निरपेक्ष कैसे हो सकता है? जल बिन जीवन संभव नहीं अतः मैं कैसे दावा करूं कि मैं जल निरपेक्ष हूं? संक्षेप में कहे तो मैं धर्म निरपेक्ष नहीं हूं। नहीं हूं। नहीं हूं।
यहां यह भी समझ लें कि सर्वधर्म समभाव, सामाजिक होना, सभी के जीने के अधिकार को बाधित न करना हमारे रक्त में है। हम सबके मंगल की कामना करते हैं। हमने कभी भी किसी को अपने अभारतीय सम्प्रदाय को छोड़ भारतीय परम्परा अपनाने के लिए नहीं कहा है। हम यह भी नहीं कहते कि ‘केवल हमारा मार्ग ही श्रेष्ठ है, शेष सब काफिर हैं।’  हमने (हमारे पूर्वजों ने) तलवार को नोंक पर सारी दुनिया को अपने विश्वास के परचम तले आने अथवा अन्जाम भुगतने की धमकी नहीं दी क्योंकि वे वैचारिक स्वतंत्रता के पक्षधर थे। यह भी विशेष उल्लेखनीय हे कि हमने कभी किसी अभारतीय सम्प्रदाय के उपासना स्थल को नष्ट कर अपने मंदिर नहीं बनाये। जबकि हमारे हजारों मंदिर अक्रांताओं द्वारा तोड़े गये। देश भर में मंदिर तोड़कर वहां मस्जिद बनाने के अनेक प्रमाण है। राजधानी दिल्ली में कुतुब मीनार परिसर में बनी मस्जिद के बाहर लगे के बाहर लगे शिलालेख  के अनुसार यह मस्जिद ....... हिन्दू और जैन मंदिरों को तोड़कर उनकी सामग्री से बनाई गई है। अंदर जाकर इस कथन की सत्यता की पुष्टि भी की जा सकती है। हम एकं सद्विप्राः बहुधा वदन्ति ऋग्वेद (1.164.46.) अर्थात् ‘एक ही ईश्वर का वर्णन अनेक ढ़ंग से विद्वान करते हैं’ में विश्वास रखने वाले न तो किसी धर्म के विरोधी होते हैं और न ही धर्म निरपेक्ष।
 शाब्दिक अर्थ से कोई भी धर्म निरपेक्ष हो ही नहीं सकता।  कुछ लोग धर्मनिरपेक्षता का मनमाना अर्थ लगा लगा सकते है। जैसे हम अपने घर को  महल, घोसला, झोपड़ा कुछ भी कह सकते हैं पर हर शब्द का अपना एक निश्चित अर्थ होता है। हमारे कहने मात्र से ही उसका वास्तविक अर्थ बदलने वाला नहीं है।
अब सेकुलर शब्द की पड़ताल करें। यह शब्द लैटिन भाषा के सेकुलो (seculo) शब्द से निकला है। जिसका अंग्रेजी अर्थ है ‘इन दी वर्ल्ड (In the world) दरअसल कैथोलिक ईसाई सम्प्रदाय में संन्यास की परम्परा रही है। वहां पुरुष संन्यासी (Monk) और महिला संन्यासी नन (Nun) कहे जाते हैं। जो व्यक्ति पुरुष संन्यासी (Monk) अथवा  महिला संन्यासी नन (Nun) बने बिना समाज में रहते हुए संन्यासियों के धार्मिक कामों में मदद करे उसे  सेकुलर (secular) कहा जाता था।  यह भी उल्लेखनीय है कि 15 वीं सदी में पोप अपने असीमित अधिकारों के तहत यूरोप के किसी भी राजा को हटाने तथा नए राजा को नियुक्त करने अथवा किसी को भी धर्म से बहिष्कृत कर सकता था।  पोप की अनुमति के बिना कोई राजा शादी भी नहीं कर सकता था। एक बार इंग्लैंड के राजा हेनरी 8वें (1491-1547) ने 1533 में अपनी रानी कैथरीन को तलाक देने और एन्ने बोलेन्न  नामक विधवा से शादी करने के लिए पॉप क्लीमेंट 7जी से अनुमति मांगी तो पॉप ने न केवल उसे यह अनुमति देने से इंकार कर दिया बल्कि हेनरी को ईसाई धर्म से ही निकाल बाहर कर दिया। इस पर इंग्लैंड के राजा हेनरी ने 1534 में इंग्लैंड की संसद में ‘एक्ट ऑफ़ सुप्रीमैसी (Act of suprimacy) नामक कानून पारित करा अपने देश को पोप की सत्ता से अलग करके चर्च ऑफ़ इंग्लैंड की स्थापना कर दी।  सेपरेशन ऑफ़ चर्च एंड स्टेट (Separation of church and state) के अनुसार चर्च न तो राज्य के कामकाज में हस्तक्षेप करेगा और राज्य भी चर्च के काम काज से दूर रहेगा। अतः इंग्लैंड में चर्च और सत्ता के अलगाव को सेकुलरिज्म (Secularism) का नाम दिया। कालान्तर में जार्ज जाकोब ने 1851 में सेकुलर शब्द का प्रयोग चर्च से अपने मतभेद में बचाव के लिए किया। आज भी पश्चिमी देशों में सेकुलरिज्म का यही अर्थ माना जाता है परन्तु भारत में सेकुलर शब्द का अर्थ धर्मनिरपेक्ष कर दिया जिसका मूल अंग्रेजी शब्द से दूर का भी सम्बन्ध नहीं है। सेकुलर शब्द का एक विलोम शब्द भी गढ़ लिया साम्प्रदायवाद। दरअसल इंग्लैंड की संस्कृति से प्रभावित और वहाँ पलं-पढ़े कुछ लोगों ने यह शब्द लिया जरूर लेकिन गलत अर्थ में। वास्तव में धर्मनिरपेक्षता वैचारिक ढोंग है अवैज्ञानिक, अव्यवहारिक है। आजकल भारत और भारतीय संस्कृति को नकारा, पिछड़ा हुआ, बताने वाले कुछ ‘विवेक रहित’ लोगों  के लिए धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा मंत्र है जिसके जाप करने से उन्हें लाभ होने की उम्मीद रहती है। अनुभव प्रमाण है कि अनेक अवसरों पर ये तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक लोग सामान्यजन को इस वैचारिक भ्रम में डालने में सफल भी रहे हैं। वैसे यह स्मरणीय है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने धर्मनिरपेक्षता शब्द नहीं जोड़ा। इसे आपात काल (1976) में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया।
--विनोद बब्बर संपर्क-   09868211911, 7892170421 rashtrakinkar@gmail.com

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