विश्वप्रसिद्ध पर्यटक स्थल है गोवा GOA"s Wordfame


गोवा या गोआ (कोंकणी में गोंय), क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का सबसे छोटा और जनसंख्या के हिसाब से दूसरा सबसे छोटा राज्य है। गोआ का क्षेत्रफल 3,702 वर्ग किलोमीटर है। पिछले दिनों नागरी लिपि परिषद् और अखिल भारतीय कोंकणी परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सेमिनार में भाग लेने गोवा जाने का अवसर मिला। गोवा के प्रति अनेक उत्सुकताएं मन में थी। एक ओर तो गोवा आधुनिक रहन-सहन वाला माना जाता है जबकि दूसरी ओर उसके मुख्यमंत्री की सादगी के बारे में जुलाई, 2012 में जानकारी मिली थी कि मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर जब मुख्य अतिथि रूप में एक पंच सितारा होटल में एक कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे तोे गार्ड ने उन्हें रोक दिया था। उन्होंने स्वयं कहा कि यह जरूरी नहीं हर गार्ड उन्हें पहचाने। यह पहली नहीं बल्कि पांचवीं घटना थी। सेमिनार में उनकी उपस्थिति उल्ल्लेखनीय रही। बिना इस्त्री वाले कपड़े पहने श्री मनोहर पार्रिकर सुरक्षा पर होने वाला भारी-भरकम खर्च बचाने के लिए वह सिर्फ एक पीएसओ लेकर चलते हैं। इसकी वजह से उन्हें कभी-कभी परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। यह भी जानकारी थी कि बढ़ती महंगाई से बिगड़े रसोई के बजट से राहत प्रदान करने के लिए उन्होंने तीन लाख रुपये से कम आय वाले परिवारों की गृहणियों को प्रति माह एक हजार रुपये भत्ता देने की घोषणा की है। इसके अतिरिक्त पैट्रोल के मूल्यों में वृद्धि का जनता पर बोझ डालने की बजाय वैट हटाकर राहत प्रदान की।
हम दिल्ली निजामुद्दीन सेे मडगांव जाने वाली मंगला एक्सप्रेस में सवार होकर गोवा की ओर बढ़ रहे थे। दिनभर बातों में बीत गया तो अगली सुबह मुम्बई के पास स्थित पनवेल से ट्रेन ने गोवा की ओर रूख कर लिया। यहाँ से शुरु हुआ कोंकण का खूबसूरत हरा-भरा क्षेत्र। लबालब भरी नदियां और फलों से लदे वृक्ष. सड़क-मार्ग पर दोनों ओर आम, इमली और नीम जैसे बड़े वृक्ष मुसाफ़िरों को भरपूर छाया देते हैं और पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाते भी हैं।
हमारी गाड़ी लगभग चालीस घंटे बाद देर रात मंडगांव स्टेशन पर पहुँची तो सभी थक चुके थे। वहाँ से हम दो टैक्सियों में गोवा विश्वविद्यालय के गेस्ट हाडस पहुँचे लेकिन तब तक रात्रि के लगभग बारह बज चुके थे और कैन्टिन बंद हो चुकी थी इसलिए उस रात्रि भोजन के बिना ही बिस्तर पर जाना पड़ा। वैसे देवबंद के डा. महेन्द्रपाल काम्बोज के पास कुछ बिस्कुट आदि थे अतः हमें कोई परेशानी नहीं हुई।
गोवा विश्वविद्यालय के परिसर का स्थापत्य पुर्तगाली स्थापत्य-शैली का है। परिसर चारों ओर से हरियाली से घिरा हुआ है। इसका अतिथि गृह जहाँ हमें ठहराया गया था, वह भी इसी शैली का है। बाहर से देखने में अत्यन्त साधारण, बहुत छोटा लेकिन भीतर अनेक कमरे, अनेक उतार-चढ़ाव। सुरंग जैसे रास्ते। बाहर से कुछ दिल्ली के जंतर-मंतर जैसा। हरियाली पक्षियों को आकर्षित करती है इसीलिए हर सुबह अनेक प्रकार के पक्षियों का संगीत सुनने को मिला।
दो दिवसीय सेमिनार मुख्यमंत्री, उपकुलपति, देशभर के विद्वानों की उपस्थिति और सार्थक संवाद के कारण अविस्मरणीय रहा। सूचना प्रौद्यिगिकी के सत्र का संचालन मैंने किया जिसमें आई.ए.एस. लीना महेन्दले ने प्रस्तुतीकरण दिया। कार्यक्रम के संयोजक पूर्व आई.ए.एस. श्री अरविन्द भाटीकर ने काफी मेहनत की थी इसलिए व्यवस्था निर्दोष कही जा सकती है। वे अस्वस्थता के बावजूद हर सत्र को समय पर आरंभ करने के लिए सक्रिय रहे।
प्राचीन ग्रंथों में गोवा का उल्लेख मिलता है। इसे  गोप राष्ट्र, गोपकपुरी, गोपकपट्टन, गोअंचल, गोवे, गोवापुरी, गोपका पाटन, गोमंत, चंद्रपुर और चंदौर नाम से जाना जाता था। जनश्रुति है कि गोआ (जिसका विस्तार गुजरात से केरल तक बताया जाता है) की रचना भगवान् परशुराम ने की थी। कहा जाता है कि परशुराम ने एक यज्ञ के दौरान अपने बाणो की वर्षा से समुद्र को कई स्थानों पर पीछे धकेल दिया था और लोगों का कहना है कि इसी वजह से आज भी गोआ में बहुत से स्थानों का नाम वाणावली, वाणस्थली इत्यादि हैं। उत्तरी गोवा में हरमल के पास आज भूरे रंग के एक पर्वत को परशुराम के यज्ञ करने का स्थान माना जाता है।
जिस स्थान का नाम पुर्तगाल के यात्रियों ने गोवा रखा, वह आज का छोटा-सा समुद्र तटीय शहर गोअ-वेल्हा है। बाद में समूचे द्वीप क्षेत्र को गोआ या गोवा कहा जाने लगा। पुर्तगालियों ने यहाँ ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार किया। गोवा लगभग 450 वर्ष तक पुर्तगालियों के अधीन रहा जो 19 दिसम्बर 1961को स्वतंत्र हुआ। पुर्तगालियों ने यहां के इतिहास और मूल संस्कृति से छेड़छाड़  व धर्मांतरण ही नहीं किया बल्कि यहाँ की प्राकृतिक संपदा को भी लूटा।
गोवा चारों ओर समुद्र से घिरा है। यहाँ के तट विश्व प्रसिद्ध हैं। मीरामार, कालांगुट तट, पोलोलेम तट, बागा तट, मोवोर, केवेलोसिम तट, जुआरी नदी पर डोना पाऊला तट, अंजुना तट, आराम बोल तट, वागाटोर तट, चापोरा तट, मोजोर्डा तट, सिंकेरियन, वरका तट, कोलवा तट, बेनाउलिम तट, बोगमोलो तट, पालोलेम तट, हरमल तट, मांडवी नदी जैसे अनके मोहक तट हैं। दुनिया भर से यहां लोग छुट्टियांें में मौज मस्ती और मनोरंजन के लिए आते हैं। लम्बे समुद्र तट, आकर्षक चर्च, मंदिर, पुराने किले और कलात्मक भग्नावशेषों ने पर्यटन को गोवा का प्रमुख उद्योग बना दिया है। जहाँ नाच -गाना, ड्रम और गिटार की धुनें शांत, स्वच्छ व मनोरंजक वातावरण प्रस्तुत करती हैं तो समुद्र की लहरों पर वॉटर सर्फिंग, पैरासेलिंग, वॉटर स्किइंग, स्कूबा डाइविंग, वॉटर स्कूटर आदि का लुत्फ उठाया जा सकता है।
पणजी, मडगांव, वास्को, मापुसा तथा पोंडा राज्य के प्रमुख शहर हैं। पणजी गोवा राज्य की राजधानी है, जो मांडवी नदी के तट पर स्थित है।  पणजी में बेसिलिका ऑफ बॉम जीसस चर्च और मूर्ति मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर सहित कई प्राचीन मंदिर और चर्च है। यहाँ पुरानी जेल है, जहाँ स्वतंत्रता  सेनानियों को रखा जाता था
पर्यटन के आलावा गोआ में लौह खनिज भी विपुल मात्रा में पाया जाता है जो जापान तथा चीन जैसे देशों में निर्यात होता है। गोवा मछली उद्योग के लिए भी जाना जाता है लेकिन यहाँ का काजू सउदी अरब, ब्रिटेन तथा अन्य यूरोपीय राष्ट्रों को निर्यात होता है। गोवा के दो जिले हैं- उत्तरी गोवा और दक्षिणी गोवा। शहर में शाम के समय सैलानी रिवर क्रूज का आनन्द लेने पहुँचते हैं। मांडवी पर तैरते क्रूज पर संगीत एवं नृत्य के कार्यक्रम में गोवा की संस्कृति की एक झलक देखने को मिलती है। देवनागरी सम्मेलन में भाग लेने आए सभी प्रतिनिधियों लिए गोवा के  मुख्यमंत्री द्वारा रात्रि भोज भी ‘सांता मोनिका’ नामक तैरते क्रूज पर ही थी। जहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम के पश्चात् कविताओं को दौर भी हुआ।  खुले आसमान के नीचे जहाँ तक नजर जाती हो, बस पानी ही पानी था। जिसे देखकर  ऐसा लगता मानो यह विशाल समुद्र बाँहें फैलाये हमारा स्वागत कर रहा हो और जब लहरें हमारे क्रूज को छूती तो सभी में एक नया उत्साह भर जाता था।
गोवा की अधिसंख्यक  जनसंख्या हिंदू है लेकिन लगभग 28 प्रतिशत् जनसंख्या ईसाई है । यहाँ के ईसाईयों में भी हिंदुओं जैसी जाति व्यवस्था मौजूद है क्योंकि उनके पूर्वज हिन्दू थे अतः वही व्यवस्था कायम रही। यहाँ के जनजीवन में मिली-जुली संस्कृति की झलक मिलती है।
सम्मेलन के बाद हम सभी लोग गोवा भ्रमण के लिए गए। यहाँ की   बहुत-सी यादों को अपने साथ लेकर आए। डाल्फिन जैसी मानव प्रेमी मछलियां, नारियल पानी की मिठास, समुद्र की लहरों का संगीत, विदेशी पर्यटकों की भीड़, दूर उड़ते ग्लाईडर, जैसा बहुत कुछ मीठी यादों के रूप में तरोताजा हैं।
यूँ तो नारियल हर जगह मिलता है, पर गोआ में नारियल की फसल बड़े पैमाने पर होती है, साथ ही इससे रस्सियाँ और चटाई भी बनाई जाती हैं। इसका तेल खाना बनाने में उपयोग किया जाता है। इससे मछली पकड़ने का जाल भी बनता है। इसकी पत्तियाँ छत और टोकरी बनाने के काम में ली जाती हैं, इसलिए कहा जा सकता है कि नारियल यहाँ की जीविका का प्रमुख साधन है।
गोवा के लोगो के परंपरागत परिधानों में महिलाएँ मुख्यतः नववारी साड़ी, पुरुष शर्ट और हाफ पेंट के साथ हैट का उपयोग करते थे, लेकिन अब सिर्फ कुंबी और जालमी जैसी कई जनजातियाँ इस परंपरागत वेशभूषा को पहनती हैं। मगर बदलते दौर के साथ पहनावा भी बदला। आज गोआ पश्चिमी परिवेश को अपना रहा है। यहाँ टैटूज बनवाने का चलन देखा जा सकता है। विदेशीयों पर्यटकों को भी समुन्द्र तट पर टैटू बनवाते देखा जा सकता है। विदेशी सैलानियों की बहुतायत व लुभावने समुद्र तट का मस्त नजारा भारतीय पर्यटकों को भी सहसा गोवा आने को आमंत्रित करता है। नवविवाहितों के हनीमून के लिए भी गोवा एक बढ़िया स्थान है। यहाँ किराये पर बाइक का प्रचलन हैं, जिसके लिए 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से चुकाना होता है। हाँ,  इसके लिए ड्राइविंग लाइसेंस होना जरूरी है। वैसे यहाँ की घुमावदार सड़के बहुत चौड़ी नहीं कहीं जा सकती। बिना डिवाइडर वाली सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया जाना आश्चर्य की बात है। दुनिया भर के पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र होने के कारण यहाँ की सड़कों का और सुधार किये जाने तथा अन्य सुविधाओं के विस्तार की आवश्यकता है। गोवा में फिलहाल 20 लाख पर्यटक सालाना पहुँचते हैं जिससे राज्य को 20 अरब रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। एक नेता के अनुसार 14 लाख की आबादी वाले राज्य में 50 लाख पर्यटकों का आना इस राज्य के लिए संकट भी हो सकता है।
टैक्सी वाले से दिनभर में दक्षिणी और उत्तरी गोवा घुमाने की बात तय की गई थी लेकिन दोपहर बाद उसने मंगेश मंदिर ले जाने से मना कर दिया तो हमें सख्ती करनी पड़ी और कुछ समुन्द्र तटों को देखने का इरादा त्यागना पड़ा।
दक्षिण गोवा में मंगेशी वह जगह है जहाँ भारत-कोकिला लता मंगेशकर का जन्म हुआ बताया जाता है। यहाँ के मंगेशी मंदिर को शिव-मंदिर कहा जाता है, लेकिन शिव के रूप में जो मूर्ति यहाँ स्थापित है, उसकी सूरत उत्तर-भारत के शिव से एकदम अलग है। इस मूर्ति में पगड़ीनुमा मुकुट है, जबकि शेष देश में शिव मस्तक पर घनी जटाएँ व चाँद होता है। गले में सर्प और हाथ में त्रिशूल। लेकिन मंगेशी शिव बिल्कुल भिन्न है। इसका भिन्नता का कारण बताने के बदले वहाँ के एक पुजारी ने मेरी लम्बी दाढ़ी देखकर ज्योतिष और नग- पत्थरों के विषय में चर्चा आरंभ कर दी जिसे मैंने मुस्कराकर टाल दिया। वापसी में सेंट ज़ेवियर चर्च देखने गये जोे चार सौ साल पुराना है। यहाँ सेंट फ्रांसिस की देह आज भी सुरक्षित है। उसे वर्ष में कुछ निश्चित दिनों में दिखाया जाता है। चर्च बाहर से  अच्छी स्थिति में नहीं लगता लेकिन अंदर विशाल कक्ष कलात्मकता लिए हुए है।
सायं पाँच बजे के आसपास हम  दोना-पावला की ओर बढ़े  लेकिन हमें कुछ दूरी पर ही रोक लिया गया। आगे वाहन ले जाना सायं को प्रतिबंधित कर दिया जाता है इसलिए कुछ लोग ही पैदल वहां तक गए। दोना पावला के साथ कई प्रेम कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। प्रसिद्ध हिन्दी फ़िल्म ‘एक दूजे के लिए’ की शूटिंग ही नहीं कहानी भी इससे जोड़ी जाती है।
भीड़ भरे इस स्थान पर अनेक व्यावसायिक केन्द्र हैं। सफाई व्यवस्था भी अच्छी नहीं है। यह स्थान मंडोवी और जुआरी नदी से मिलने और इससे 1 किलोमीटर की दूरी पर अरब सागर के साथ संगम स्थित होने के कारण बोटिंग के लिए मशहूर है। डोना पाउला के बारे में कहा जाता है कि वह पुर्तगाली वायसराय की बेटी थी जो  1644 में गोवा में आ गये थे। उसका पति अत्यंत समृद्ध परिवार से था। वह ग्रामीणों की मदद किया करती थी इसीलिए उसकी मृत्यु के पश्चात् लोगों ने डोना पाउला के नाम सें गांव का निर्माण किया। वहाँ बीच पर लगी मूर्ति डोना पाउला की स्मृति को जीवान्त करती है।
वापसी से पहले हमने बाजार से कुछ खरीददारी करनी चाही लेकिन लगभग हर वस्तु का रेट सामान्य से अधिक होने के कारण इरादा त्यागना पड़ा। कुछ लोगों ने काजू की शराब खरीदी लेकिन उसके लिए लाईसेंस आवश्यक था जो कि कुछ शुल्क लेकर दुकानदार ही जारी कर सकते हैं। उस रात थकने के कारण अच्छी नींद आई लेकिन अगली सुबह जल्दी उठे क्योंकि समय से पूर्व मंडगांव स्टेशन पहुँचना था। गोवा सम्पर्क क्रांति आपेक्षाकृत अच्छी ट्रेन है जो काफी कम समय लेती है। यह केवल पनबेल, वड़ौदरा, कोटा के बाद दिल्ली रूकती है। गोवा का आकर्षण और वहाँ के लोगों के आतिथ्य की प्रशंसा करते हुए जब मैंने सेमिनार में कहा, ‘मुझे उत्सुकता थी कि गोवा को गोवा क्यों कहते हैं लेकिन यहाँ के अनुभव के आधार पर मन कहता है- गो लेकिन फिर आ।’ तो सभागार तालियों से गूंज उठा। सचमुच गोवा बार-बार बुलाता है लेकिन सर्दियों में ही वहाँ जाना बेहतर है क्योंकि गर्मियां में गोवा काफी गर्म रहता है।- विनोद बब्बर संपादक, राष्ट्र किंकर 
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