प्रकृति के इंद्रधनुषी रंग बिखेरता नागालैंड

नागालैंड के बारे में अब तक पुस्तकों में पढ़ा था या फिर गणतंत्र दिवस परेड़ में शामिल नागा कलाकारों की मोहक प्रस्तुति देखी थी। सेना में शामिल नागा रेजिमेंट के शैर्य की गाथाएं भी सुनते रहे हैं। पिछले दिनों जब नागरी लिपि परिषद् द्वारा आयोजित एक समारोह में नागालैंड जाने का अवसर मिला तो मन प्रफुल्लित था। मित्रों ने प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस पूर्वाेत्तर राज्य की विशेषताओं के साथ लंबे समय से जारी हिंसा का उल्लेख भी किया। भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित नागालैंड के पूर्व में म्यांमार, उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम में असम और दक्षिण में मणिपुर है। इस राज्य का क्षेत्र अधिकांशतः पहाड़ी है जिसकी सबसे ऊंची पहाड़ी का नाम सरमती है। नागालैंड की राजधानी कोहिमा है। जब कुछ नागा मित्रों ने गर्मजोशी से स्वागत करते हुए कहा, ‘आप इंडिया से आये हो’ तो मैं चौंका लेकिन चार दिनों में उनका व्यवहार कहीं भी अलगाववादी नहीं लगा।
 हमें कोहिमा जाने से पहले इनर लाइन परमिट बनवाना पड़ा। यही व्यवस्था अरुणाचल प्रदेश में हम पिछले वर्ष देख चुके हैं। सीमानर्ती राज्यों में  इस व्यवस्था का उद्देश्य बाहरी लोगों पर निगाह रखना है। कोहिमा को पूरब का स्विटजरलैंड भी कहा जाता है। आश्चर्य है कि राजधानी होते हुए भी कोहिमा में कोई हवाई अड्डा नहीं है। दीमापुर ही इस राज्य का प्रवेश द्वार माना जाता है जो रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है। दीमापुर से कोहिमा जाने वाली सड़क राष्ट्रीय राजमार्ग कहलाती है लेकिन उसकी दशा इतनी खराब है कि यह तय करना मुश्किल होता है कि सड़क में गड्डे हैं या गड्डों में सड़क। मुझे याद आ रहा था- पिछले दिनों कोहिमा की एक सभा को संबोधित करते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहलु ने कहा था, ‘नागालैंड में ‘विलेज गवर्नमेन्ट’ की संस्कृति रही है और यहां जमीनी स्तर पर लोकतंत्र है। पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने यहीं से पंचायती राज की कल्पना की थी। अफसोस है कि वर्तमान दौर में यह कमजोर पड़ चुकी है। भारत के अन्य हिस्सों में तेजी से विकास हो रहा है लेकिन नागालैंड फिलहाल इससे विमुख है।’ वैसे यह जानना दिलचस्प होगा कि तमाम परेशानियों के बाबजूद कोहिमा देश के महंगे शहरों में गिना जाता है।
पहले चर्चा दीमापुर की। नागालैंड की व्यवसायिक राजधानी के रूप में जाने जाने वाले दीमापुर की संस्कृति मिली-जुली है। वजह यह है कि पहले असम का हिस्सा रहा है। प्राचीन कचारी साम्राज्य का अंग रहे  दीमापुर के नामकरण के बारे में बहुत दिलचस्प जानकारी प्राप्त हुई। दीमापुर तीन शब्दों दी, मा और पुर से मिलकर बना है। कचारी भाषा के अनुसार दी का अर्थ है नदी, मा का अर्थ है महान और पुर का अर्थ होता है शहर। दीमापुर प्राकृतिक रूप से बहुत खूबसूरत होने के साथ एक ऐतिहासिक शहर भी है। यहां पर कचारी शासनकाल में बने मन्दिर, तालाब और किले देखे जा सकते हैं। इनमें राजपुखूरी, पदमपुखूरी, बामुन पुखूरी और जोरपुखूरी आदि प्रमुख हैं।
नागा पहाड़ियों में गैंडे, हाथी, बाघ, तेंदुआ, भालू, कई तरह के बंदर, सांबर, भैसे और जंगली सांड पाए जाते हैं। यहां साही, पेंगोलिन (शल्कधारी चींटीखोर), जंगली कुत्ते, लोमड़ी मुश्क बिलाव नेवले भी पाए जाते है। विशाल भारतीय धनेश (हार्नबिल) पक्षी की दुम के लंबे परों को पारंपरिक वेशभूषा में इस्तेमाल के लिए संभालकर रखा जाता है जैसाकि प्रस्तुत चित्र में लेखक के सिर पर रखी टोपी में पक्षी हार्नबिल के पंख हैं।
यहां की प्रमुख जनजातियां है- अंगामी, आओ, चाखेसांग, चांग, खिआमनीउंगन, कुकी, कोन्याक, लोथा, फौम, पोचुरी, रेंग्मा, संगताम, सुमी, यिमसचुंगरू और ज़ेलिआंग आदि। विविधता वाले नागालैंड में सभी प्रमुख नागाओं की अपनी -अपनी बोलियां हैं। यहां एक भाषा बोली नहीं बोली जाती है। इन बोलियों की कोईग् लिपि न होने के कारण इनका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। कुछ लोग इन्हें रोमन अपनाने की सलाह दे रहे हैं लेकिन वहां के विद्वान भाषाचिद् देवनागरी को अपनाने पर बल दे रहे हैं क्योंकि नागरी लिपि ही इनकी बोलियों के सौंदर्य और स्वरूप को सुरक्षित रख सकती है। इस दिशा में लगातार कार्य भी हो रहा है।  मजेदार बात यह है कि छोटे-छोटे क्षेत्रों में बंटे रहने वाले विभिन्न नागा जनजातियों की भी विभिन्न बोलियां हैं। एक नागा जनजाति दूसरे जनजाति की बोली नहीं के बराबर बोलते या समझते हैं। अलग-अलग बोलियों को जनजातियों के नाम से ही जाना जाता है। मएक दूसरे के बीच संवाद कायम रखने के लिए मिश्रित बोली नागामिज का उपयोग सदियों से होता रहा है। जहाँ तक हिन्दी का सवाल है तो नागालैण्ड में बखूबी समझी और बोली जाती है क्योंकि कक्षा आठ तक  हिंदी अनिवार्य है। उसके बाद हिंदी पढ़ना ऐच्छिक है। वैसे आजकल अंग्रेजी वहां राजकाज की भाषा है।
नागा समाज में महिलाओं को अपेक्षाकृत ऊँचा और सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। वे खेतों में पुरुषों के ही समान शर्तों पर काम करती हैं तथा जनजातीय परिषदों में भी उनका अच्छा-ख़ासा प्रभाव है। नागा मित्रों के अनुसार नवम्बर के अंतिम सप्ताह से उत्सवी माहौल का नजारा दिखने लगा था और क्रिसमस के मद्देनजर दिसम्बर आते-आते पूरा नागालैंड लाल रंग की रोशनियों में सरोबर हो गया। इसाई बहुल्य नागाओं के साथ-साथ गैर नागा भी अपने घरों को सजाते हैं।
नागा लोगों का खानपान हमसे काफी अलग है। मुझे बताया गया कि वे सर्वभक्षी अर्थोत् कुछ भी खा लेते हैं। उनके भोजन में कुत्ते का मांस सबसे प्रिय माना जाता है। इसके अतिरिक्त सुअर, गाय, मुर्गा, बकरा, मछली भी पसद किया जाता है। मुर्गिया और सुअर तो घरों में पाले जाते हैं। एक नागा मित्र के अनुसार काले कुत्ते का मांस या सूप प्रसुता के लिए काफी फायदेमंद होता है। वैसे अब नागा लोग साग, पत्ते, स्क्वॉयस, नागा बैगन, बीन, पत्ता गोभी भी चाव से खाते हैं।
इस प्रदेश के अनेक खूबसूरत पर्यटन स्थलों हैं। खूबसूरत जैफू चोटी, जंगली फूलों से भरी पड़ी रमणीय जकाउ घाटी, दुनिया का सबसे बड़ा रोडोडेन्ड्रान का पेड़, आर्किड की सैकड़ों प्रजातियां चित्ताकर्षक हैं, तो कोहिमा में द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापानी सेना जिसमें आजाद हिंद सेना के सिपाही भी शामिल थे, से युद्ध के दौरान शहीद हुए अफसरों और जवानों की याद में कोहिमा में बना वार सिमेटरी इतिहास का एक अविस्मरणिय अध्याय है। रविवार होने के कारण सब बंद था लेकिन वहां के अधिकारियों ने हमें विशेष छूट देते हुए पिछले दरवाजे से अंदर जाने दिया। बहुत बेहतरीन ढ़ंग से संवारे गये इस स्मारक को देखकर यूरोप में देखे स्मारक पीछे छूट गये। काश! देश के शेष स्मारकों को भी इतने करीने से संभाला जाता!
 पारंपरिक नागा जीवन शैली को, स्टेट म्यूजियम में एक ही जगह देखा जा सकता है। जनजातियों की रंगीन जीवन शैली, उनका इतिहास, संस्कृति, शस्त्र, पहनावा, रहन- सहन को एक ही छत के नीचे देखने की अनुभूति रोमांच पैदा करता है। हर वर्ष एक से पांच दिसम्बर तक शिकार की वजह से लुप्तप्रायः हो चले हॉर्नबिल पक्षी के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से राजधानी कोहिमा से लगभग पंद्रह किलोमीटर दूर खूबसूरत पर्यटन स्थल फेसमा में आयोजित किया जाता है। हमने इस हैरिटेज विलेज का अवलोकन भी किया जिससे सिद्ध हुआ कि ईसाई धर्म अपनाने के बावजूद नागाओं ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को नहीं छोड़ा।
कोहिमा से लगभग 15 किलोमीटर दक्षिण स्थित इस चोटी से सूर्याेदय का अद्भुत नजारा देखने से हम वंचित रहे क्योंकि उसी शाम हमें वापस लौटना था। इसके अतिरिक्त गिनीज बुक में दर्ज विश्व का सबसे लम्बा रोडोडेन्ड्रान का पेड़ जिसकी ऊचंाई 130 फीट है और  वास्तुशिल्प का नायाब नमूना समूचे उत्तर पूर्व का सबसे बड़ा कैथेड्रल चर्च भी देखने योग्य हैं। पर्यटन विभाग द्वारा प्रतिवर्ष दिसंबर माह के प्रथम सप्ताह में ‘हॉर्नबिल’ उत्सव आयोजित किया जाता है, जिसमें नागालैंड की सभी जनजातियां एक स्थान पर आकर उत्सव मनाती हैं और अपनी पांरपरिक वस्घ्तुओं, खाद्य पदार्थों और शिल्पगत चीज़ों का प्रदर्शन करती तथा बेचती हैं।
वहां रंग-बिरंगी वेश-भूषाए वाली युवतियां अब बेशक आधुनिक  पाश्चात्य वस्त्र पहनने लगी हैं लेकिन  पारंपरिक मेखला आज भी बरकरार है। मेखला एक शॉलनुमा वस्त्र है जिसे लोग कमर में लपेट कर पहनते है। दसके अतिरिक्त शॉल उनका प्रमुख पहनावा है और इनके डिजाइनों से नागा जनजातियों का पता लगाया जा सकता है। शॉलों के अलावा उनके अन्य पारंपरिक वस्त्र अक्सर कौड़ियों से सजे होते हैं। हालांकि नागा जिस सहजता से पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं उतने ही आराम से वे आधुनिक परिधानों में भी नजर आते हैं। इस प्रवास के दौरान हमे प्रकृति के अद्भूत नजारे तो देखने को मिले लेकिन कहीं भी पक्षियों की चहचहाट सुनाई नहीं दी। कहीं भी आकाश में किसी पक्षी को उड़ते हुए नहीं देखा। मेरी आशंका सही थी- नागा पक्षियों मारकर खा जाते हैं। पक्षियों के हो रहे शिकार की वजह से ही वहां के राजकीय पक्षी हार्नबिल पक्षी का अस्तित्व भी खतरे में हैं।
नागालैंड में क्रोमियम, निकल, कोबाल्ट, लौह अयस्क और चूना -पत्थर आदि खनिज पाए जाते हैं, परंतु
औद्योगिकरण की गति धीमी होने से राज्य का विकास देश के शेष राज्यों की गति से नहीं हो पा रहा। यादगार रहा हमारा यह नागालैंड प्रवास। - विनोद बब्बर
प्रकृति के इंद्रधनुषी रंग बिखेरता नागालैंड प्रकृति के इंद्रधनुषी रंग बिखेरता नागालैंड Reviewed by rashtra kinkar on 18:19 Rating: 5

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