भारत-रत्न पर महाभारत- डा विनोद बब्बर

हर राष्ट्र अपने महान सपूतों का अभिनंदन करता है। भारत इसका अपवाद कैसे हो सकता है? स्वतंत्रता के पश्चात हर वर्ष हमने भी भारत रत्न देने की परम्परा आरंभ की जिसे 1977 में बंद कर दिया गया था लेकिन 1980 में फिर आरंभ कर दिया गया। इधर पिछले कुछ वर्षों से किसी को भी भारत रत्न से नवाजा नहीं गया लेकिन 16 नवंबर, को  क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के विदाई मैच के फौरन बाद उन्हें तथा प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. सीएनआर राव को भारत रत्न देने की घोषणा की गई। सचिन को यह सम्मान मिलना चाहिए अथवा नहीं इसपर लगातार विवाद रहा है। सर्वप्रथम खेलमंत्री ने खिलाड़ियों को भारत रत्न देने का प्रावधान न होने की बात कही तो कानून में परिवर्तन के साथ-साथ सबसे पहले खिलाड़ी के रूप में हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचन्द को भारत रत्न देने की जोरदार मांग चहू ओर से उठी लेकिन अब तक के सभी महान खिलाड़ियों को अनदेखा कर सचिन को भारत रत्न देना महाभारत का कारण बन रहा है।
वैसे तो कई साल से पद्म पुरस्कारों पर काफी विवाद उपजते रहे हैं जिससे इन पुरस्कारों की विश्चसनीयता और महत्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है। विवाद दो तरह के हैं। व्यक्ति विशेष और उनकी योग्यता पहला कारण है। जैसे राजीव गांधी को जब मरणोपरांत भारत रत्न दिया गया, तो लौह पुरुष बल्लभ भाई पटेल को उनके निधन के चार दशक बाद यह सर्वाेच्च सम्मान दिया गया। इसी प्रकार लोकनायक जयप्रकाश नारायण को यह सम्मान उनके संपूर्ण क्रांति के आह्वान के दो दशकों के बाद मिला, वहीं बाबा साहब अंबेडकर को तो यह सम्मान देने की याद देश को 40 साल बाद आई। भारत रत्न की सूची में कुछ ऐसे नाम हैं, जो नहीं होने चाहिण् थे क्योंकि वे विशुद्ध वोट की राजनीति के लिए दिये गए।  लेकिन सचिन को हड़बहाहट भरी  जल्दबाजी मे यह सम्मान देने से  आलोचकों को राजनीति से प्रेरित कहने का अवसर मिला है। यहां यह इस तथ्य पर भी गौर करना  आवश्यक है कि राष्ट्रपति द्वारा घोषणा से पहले ही मुंबई के वानखेडे स्टेडियम में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सचिन को यह पुरस्कार दिये जाने की बात घोषित कर दी थी। जाहिर है चुनाव के अवसर पर यह संदेश जाना स्वाभाविक था कि राज्यसभा सदस्य बनाये जा चुके सचिन की कांग्रेस से राजनैतिक नजदीकियां हैं।
सर्वसाधारण यह आपेक्षा करता है कि भारत रत्न व्यक्तित्व सम्पूर्ण राष्ट्र के विकास, दलगत राजनीति की बजाय देश की निस्वार्थ सेवा कर्म मे ध्यान लगाता है। जब हम इस कसौटी पर सचिन को परखते हैं तो देखा जा सकता है कि कभी भारत रत्न डा. विश्वेश्वरैया को दिया गया था जिन्होने जल की आपूर्ति, बांध आदि की जो योजनाएं बनाईं और उन्हें साकार किया, उनकी उस समय कल्पना कठिन थी। जबकि  सचिन ने खेल और विज्ञापनों से अपने अथाह धन कमाया है। ऐसे में यह प्रश्न उठाना गुनाह नहीं है कि केवल इसी कारण से कोई व्यक्ति भारत रत्न का हकदार कैसे हो सकता है? इस मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे पर लोगों की भावनाएं आहत करने का आरोप लगाते हुए बिहार के मुजफ्फरपुर की एक स्थानीय अदालत में मामला दायर किया गया है। आईपीएसी की धारा 420, 419, 417, 504 और 120 (बी) के तहत दायर इस मामले में कहा गया है कि देश के सर्वाेच्च नागरिक सम्मान के लिए हॉकी के जादूगर ध्यानचंद की जगह सचिन का चयन किए जाने से देश के लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। सचिन को भी एक आरोपी बनाया गया है। इससे पूर्व जेडी(यू) के सांसद शिवानंद तिवारी ने भी सवाल उठाया कि करोड़ों रुपये कमाने वाले खिलाड़ी को भारत रत्न देने का कोई औचित्य नहीं है।
देश के सर्वाेच्च सम्मान के लिए क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और जाने माने वैज्ञानिक सीएनआर राव के नाम की घोषणा के दो दिन बाद पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी को यह सम्मान देने की मांग उठी तो उसमें अब महान समाजवादी चिंतक राममनोहर लोहिया और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के नाम भी शामिल हो चुके है। आश्चर्य है कि राजनैतिक सीमाओं से उठते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नितिश कुमार, पंजाब के प्रकाश सिंह बादल के बाद जम्मू-कश्मीर के डा. फारुख अब्दुल्ला भी वजपेयी को भारत रत्न देने के पक्षधर है। अब्दुल्ला के अनुसार ‘वाजपेयी का कद इस सम्मान से भी बड़ा है। मैं भाजपा का आदमी नहीं हूं लेकिन मैं एक भारतीय हूं और मुझे लगता है कि कोई भी यह नहीं भूल सकता कि वह (वाजपेयी) बहुत अच्छे नेता हैं।’ तो दूसरी ओर  केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा, ‘गुजरात दंगों के बाद नरेंद्र मोदी सरकार को लेकर वाजपेयी के रख के बारे में सवाल अब भी खड़े हैं,। अटलजी ने एक मुख्यमंत्री को राजधर्म निभाने की सलाह दी थी। लेकिन शायद वह खुद कहीं न कहीं राजधर्म नहीं निभा सके। राजधर्म की मांग थी कि उस वक्त उस राज्य सरकार को बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए था।’
किसी को राष्ट्र द्वारा सर्वोच्च  सम्मान प्रदान करने का अर्थ है कि राष्ट्र यह स्वीकार करता है कि सम्मानित व्यक्तित्व ने अपने क्षेत्र में वैसी विशिष्टता हासिल की है, जिससे एक समाज के रूप में हम सभी समृद्ध हुए हैं। पद्मश्री से भारत रत्न ेका निर्णय करते हुए यदि हम किसी व्यक्ति की व्यवसायिक उपलब्धियों को आधार बनायेगे तो सचिन से भी बेहतर नाम सामने आ सकते हैं लेकिन सवाल तो यह है कि जिस खेल ने देश के शेष खेलों को निगल लिया और उससे भी बढ़कर सट्टेबाजी को बढ़ावा दिया उसे ही बचकाने या चालाकी भरे ढ़ंग से सम्मान क्यों?  आखिर हम राष्ट्र का रत्न चुनना चाहते हैं तो हमें पारदर्शिता से काम लेना चाहिए और निर्णय गैरराजनैतिक लोगों की समिति पर छोड़ना चाहिए।
हाल ही में पुणे में अस्पताल के उद्घाटन समारोह के दौरान लता मंगेश्कर ने जब यह कहा कि ‘मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि नरेंद्र मोदी ही देश के अगले प्रधानमंत्री बनें।’ तो महाराष्ट्र में मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष व विधायक जनार्दन चंदुर्कर ने उनसे अवार्ड वापस ले लेने की मांग कर सम्मान को अपमान में बलने का कार्य किया। जनार्दन चंदुर्कर ने कहा, “मैं लता जी से इस संबंध में सीधे बात करूंगा, लेकिन उनको आगे से ऐसा करना है तो वो भारत रत्न का अवार्ड लौटा दें। मैं खुद प्रधानमंत्री को चिठ्ठी लिखूंगा कि सम्मान प्राप्त व्यक्ति अगर ऐसा करते हैं, तो उनसे अवार्ड वापस ले लिया जाये। देश में अपने विचार रखने की भी आजादी है, लेकिन सांप्रदायिक लोगों के मामलों में ऐसा नहीं है। भारत रत्न की देश में बहुत इज्जत होती है। उनमें बहुत लोग ऐसे हैं, जिन्हें मैं बहुत प्यार करता हूं, लेकिन लोकतंत्र के नजरिये से मैं एकदम सही हूँ।’ 
भारत रत्न पर मचे महाभारत से एकबार फिर सिद्ध हुआ कि ‘आसमान को छूने के दो  रास्ते हो सकते हैं। एक हम आसमान तक उठें और दूसरा हम आसमान को ही रसातल में पहुंचा दें।’ क्या ऐसे विवाद बताता हैं कि हम सम्मान को अपमान में  बदलने में निपुण हैं। ईश्वर करे यह विवाद अंतिम हो और सुखद भविष्य की नींव रखें!
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