राष्ट्र के महानतम नायक थे सरदार पटेल-- डा. विनोद बब्बर

सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता के अदभुत शिल्पी थे जिनके ह्रदय में भारत बसता था। उन्होंने सैकड़ों रियासतों को भारत में मिलाकर देश को अनेक समस्याओं से मुक्त कराया। आचार्य चतुरसेन अपने उपन्यास ‘गोली’ के समर्पण में पटेल के प्रयासों से एकजुट हुए भारतीय भूभाग को अब तक का सबसे विशाल भारत घोषित करते है। आज यह देखकर कष्ट होता है कि उन्हीं सरदार पटेल को लेकर देश की दो बड़ी पार्टियां आपस में उलझ रही हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कांग्रेस का मानना है कि सरदार पटेल उनके थे इसलिए किसी अन्य को उनकी प्रशंसा करने का हक नहीं है। 
पटेल जयन्ती पर गुजरात के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री की नोंक-झांेक तथा उसके बाद कांग्रेसी प्र्रवक्ता द्वारा मोदी पर ‘पटेल की विरासत’ कब्जाने के आरोपों को लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए कोई अच्छा लक्षण नहीं माना जा सकता। क्या भारत को एकसूत्र में पिराने वाले सरदार पटेल को केवल एक पार्टी का नेता बनाना उनके साथ अन्याय नहीं होगा? सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे भारतमाता के उस महान सपूत की विरासत को राजनीति के क्षुद्र जाल में उलझाना गलत होगा क्योंकि वे तो सम्पूर्ण देशवासियों के प्रियतम नायकों में से एक है। इसलिए उन्हें अपनाने के लिए मची होड़ से जन भावनाएं आहत होना स्वाभाविक है। 
यह सर्वज्ञात है कि अंग्रेजों ने भारत को खण्डित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उस समय 562 देशी रियासतें भी थीं जो अंग्रेजों के अधीन नहीं थी। उनमें से जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर को छोडक़र अधिकतर रियासतों ने सरदार पटेल के समझाने पर भारत में अपना विलय का दिया। जूनागढ़ का नवाब  पाकिस्तान में विलय चाहता था लेकिन जनविद्रोह के कारण उसे पाकिस्तान भागना पड़ा। निजाम हैदराबाद को एक स्वतन्त्र रखना चाहता था। गृह मन्त्री सरदार पटेल ने निजाम की हेकड़ी दूर करने के लिए ‘ऑपरेशन पोलो’ किया जो मात्र 5 दिन (13 से 18 सितम्बर 1948) में अपने लक्ष्य में सफल रहा जब हैदराबाद के निजाम ने भारतीय संघ में शामिल होना स्वीकार किया। निःसंदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। इसपर स्वयं गाँधीजी ने सरदार पटेल को लिखा था, ‘रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।’ गांधीजी सरदार को अपना पुत्ऱ मानते थे शायद इसीलिए गांधी के परिदृश्य से हटने के बाद सरदार को भी पद छोड़ना पड़ा। सरदार पटेल की योग्यता से अभिभूत हर भारतीय का विश्वास है कि यदि कश्मीर का मामला भी नेहरू के बजाय पटेल के हाथ मे होता तो आज भारत में काश्मीर समस्या जैसी कोई समस्या नहीं होती। यह भी स्मरणीय है कि जब सरदार अहमदाबाद म्युनिसिपेलिटी के अघ्यक्ष थे तो उन्होंने  अहमदाबाद के गार्डन में विक्टोरिया के स्तूप के समानान्तर बाल गंगाघर तिलक की प्रतिमा लगवायी थी। जिसपर गाँधी जी ने सरदार पटेल के हिम्मत बताते हुए उनका अभिनन्दन किया था। 
सरदार पटेल मितभाषी, अनुशासनप्रिय और कर्मठ व्यक्ति थे। उनके व्यक्तित्व में विस्मार्क जैसी संगठन कुशलता, कौटिल्य जैसी राजनीतिक सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी। अपने अदम्य उत्साह, असीम शक्ति एवं मानवीय समस्याओं के प्रति व्यवहारिक दृष्टिकोण से उन्होंने निर्भय होकर स्वतंत्र राष्ट्र की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान अद्भुत सफलता से किया। राष्ट्र के प्रति प्रेम एवं योगदान के कारण  विश्व के श्रेष्ठ राजनीतिज्ञों की श्रेणी में सरदार पटेल को स्मरण किया जाता है।
अब जो लोग सरदार पटेल की विरासत पर एकाधिकार जता रहे हैं क्या उनके पास इस बात का कोई उत्तर है कि जो सम्मान आपने एक परिवार विशेष को दिया है वह पटेल को क्यों नहीं? पिछले दिनों हुए एक अध्ययन के अनुसार देश की अधिकांश योजनाओं, अस्पतालों, स्टेडियमों, प्राकृतिक पार्कों तथा अनेक प्रमुख संस्थानों के नाम पर एक परिवार के सदस्यों पर रखे गये है। सरदार पटेल सहित देश के अन्य महापुरुषों को उचित सम्मान नहीं दिया गया वरना देश के महत्वपूर्ण स्थानों के नामों में इनका अनुपात इतना कम क्यों होता? देश की बात छोड़कर यदि केवल राजधानी दिल्ली में देखे तो यही दो नेहरू स्टेडियम, जे.एन.यू., आई.जी.स्टेडियम, आई.जी. हवाई अड्डा, इग्नू मुक्त विश्वविद्यालय, पचास से अधिक कालोनियों के नाम एक परिवार पर, कनॉट प्लेस का नाम भी उन्हीं को समर्पित। यहां तक कि बिना किसी संवैधानिक हैसियत के स्वर्गीय संजय गांधी को भी विशेष सम्मान दिया जाता है।  पत्र-पत्रिकाओं को दिये जाने वाले विज्ञापनों में भी अन्य महापुरुषों के साथ भेदभाव करने वाले जब पटेल की विरासत को अपना बताते हैं तो यह  उनके चरित्र का दोहरापन सामने आता है। 
क्या एक परिवार विशेष की लगातार चौथी पीढ़ी के सत्ता में होने के कारण ऐसी धारणा उत्पन्न हुई है कि वे ही देश के एकमात्र उद्धारक हैं। इसी कारण गाहे-बगाहे युवराज को सम्राट  बनाने की मांग उठती रहती है। छूत के रोग की तरह अब मानसिकता उस परिवार की सीमाओं से आगे बढ़ती हुई उत्तर प्रदेश की सर्वेसर्वा तक आन पहुंची है जिन्होंने स्वयं अपनी मूर्तियों को स्थापित कर एक नई परम्परा का शुभारम्भ किया।ऐसे में जनमानस के हृदय में यह शंका उठनी स्वभाविक है कि क्या कोई व्यक्ति अथवा परिवार राष्ट्र से बड़ा हो सकता है? क्या देश की स्वतंत्रता से लेकर आज तक की विकास यात्रा का श्रेय केवल कुछ व्यक्तियो अथवा परिवारों को ही जाता है? क्या बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, वीर सावरकर तथा लाखों अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को उस परिवार से कमतर आंका जा सकता है?
आजादी के बाद भी अनेक नेताओं ने अपनी सादगी, समर्पण तथा ईमानदारी से देश की खुशहाली में महत्वपूर्ण योगदान दिया परंतु फिर भी उनकी चर्चा नहीं की जाती। आखिर इस प्रवृति का कारण क्या है तथा इसे कितना न्यायोचित माना जा सकता है। आजादी के दीवानों ने इसलिए शहादत नहीं दी थी कि कुछ परिवार मौज उड़ाये और शेष भारत अभावों में ‘गुड फील’ करने के लिए विवश हो। हमारा सुझाव है कि किसी संस्थान के नामकरण के लिए कोई न्याय संगत प्रणाली होनी चाहिए तथा एक ही व्यक्ति के नाम पर अधिकतम संस्थानों की सीमा होनी चाहिए। राजनीति से हटकर भी बहुत से महान व्सक्तित्व ऐसे हैं जिनकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। ऐसा न हो कि अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वालों के नाम पर कुछ भी नहीं और सत्ता तक पहुंचने में सफल लोगों को नायक मानकर उनके नाम हर दीवार पर।
क्या कांग्रेस द्वारा भाजपा पर  कांग्रेसी विरासत कब्जाने का आरोप यह साबित नहीं करता कि कांग्रेस अपनी विरासत को संभाल नहीं पायी अन्यथा कोई दूसरा आपकी विरासत कैसे कब्जा सकता था? यह आप आपनी विरासत की अनदेखी करते हैं तो आपको यह अधिकार कैसे है कि दूसरों को उसे अपनाने से रोके। यदि वे पटेल के प्रति सच्ची श्रद्धा रखते हैं तो उन्हें आपत्ति करने की बजाय खुश होना चाहिए कि उनके नेता को विरोधी भी सम्मान देते हुए श्रद्धा से स्मरण कर रहे है। मोदी को भी ‘काश! ऐसा होता’ की बजाय, जो कुछ बहुत कम समय में सरदार पटेल ने किया हुआ उसकी चर्चा करनी चाहिए। सरदार बनाम बेअसरदार का तुलनात्मक अध्ययन ज्यादा प्रभावी हो सकता है। अच्छा हो मोदी तथा उनके मित्र केवल पटेल की विशाल मूर्ति तक स्वयं को सीमित न रखते हुए पटेल द्वारा किसान-मजदूरों के प्रति दिखाई गई विशाल हृदयता को भी अपनायें। नेताओं की नूरा कुश्ती जारी रहेगी लेकिन देश की कोटिशः जनता  आज के नेताओं से जब सरदार पटेल की तुलना करती है तो उसका हृदय ग्लानि से भर जाता है। असरदार सरदार वल्लभ भाई पटेल की स्मृति को नमन!
...और अन्त में एक सुझाव,  ‘यदि मोदी एवं उनकी पार्टी ने आदि कांग्रेसियों में अग्रिम पक्ति के नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल को पुर्नस्थापित करने का बीड़ा उठाया है तो कांग्रेस को उसका विरोध करने की बजाय भाजपा के किसी पितृ पुरुष को अपनाकर हिसाब बराबर करना चाहिए। वैसे कांग्रेस चाहे तो डा. हेडगवार जो कभी कांग्रेस में ही थे, को अपनाकर मोदी एण्ड पार्टी से उनकी जमीन छीन सकती है।
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