उम्मीदों की भ्रूणहत्या के खलनायक-- डॉ. विनोद बब्बर

जनता एक बार फिर छली गई। जिनसे उम्मीदें लगाई थी वे भी छलिया साबित हुए। पांच राज्यों में हुए चुनाव के अधिकांश नतीजें भाजपा के पक्ष में गए लेकिन राजधानी की जनता ने अप्रत्याशित फैसला सुनाया। भ्रष्टाचार और उत्पीड़न से परेशान जनता ने अन्ना द्वारा आरंभ किये अराजनैतिक आंदोलन को पूरा समर्थन दिया। इस आंदोलन से जुड़े एक वर्ग ने आम आदमी पार्टी का गठन किया जिसने दोनो धुरंधरों को धूल चटाते हुए देश की राजनीति की दशा और दिशा बदलने की उम्मीदे लगाई। पहले मिस्टर क्लीन से निराश जनता को दूसरे मिस्टर क्लीन ने भी बहुत निराश किया। सत्ता में आते ही उनकी  करनी-कथनी जमीन पर आ गई।  न कोई विचारधारा, न दृष्टि। केवल दूसरों की आलोचना करने में मास्टरी हासिल इन लोगों ने वह सब किया जिसे न करने की कसम खाई थी। स्वयं को भ्रष्टाचार का दुश्मन न. 1 घोषित करने वालों ने जनलोकपाल बनाने की वकालत की थी लेकिन उनका लोकपाल जो फिलहाल बना ही  नहीं परंतु उसका स्वरूप कैसा होगा उसकी झलक जरूर सामने आ गई। अपने मंत्री के विरूद्ध अदालत की कठोर टिप्पणी को मिस्टर क्लीन ने नकारते हुए उसे क्लीन चिट देकर जनता की तमाम उम्मीदों की भ्रूणहत्या कर दी। शायद उन्हें भ्रम है कि जो भी उनके साथ है वह गलती कर ही नहीं सकता। भ्रष्टाचार से उसका दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं होगा इसलिए कोर्ट के फैसले को नकारते हुए अवमानना की परिधि भी पार र गए। क्या ऐसा ही होगा उनका जनलोकपाल? क्या उसके फैसले पर भी मिस्टर क्लीन क्लीन चिट देने का अधिकार अपने पास रखना चाहते है? यदि हाँ, तो कर्नाटक और गुजरात वालों को कोर्ट से मिली क्लीन चिट के बावजूद उन्हें दोषी बताना आपत्तिजनक और अनैतिक नहीं,  उनका संवैधानिक अधिकार है।
मिस्टर क्लीन का एक साथी वकील देश की एकता -अखण्डता पर प्रहार कर रहा है। कश्मीर से सेना हटाने पर जनमत संग्रह कराने की मांग करने वाला वह ‘दंभी’ व्यक्ति अब नक्सलवाद पर जनमत संग्रह की मांग करने का दुस्साहस कर सका तो केवल इसलिए कि मिस्टर क्लीन बेहद कमजोर और नासमझ साबित हो रहे है। जनता के बीच पिटती भद्द से बचने के लिए वकील के बयान को उसका निजी बताने वालों को समझना पड़ेगा कि वे कोई निजी कम्पनी नहीं चला रहे हैं बल्कि  सरकार चला रहे है। यदि उनके लिए अपनी पार्टी और अपने नासमझ और नकारा साथी पहले हैं और देश की एकता अखण्डता बाद में मिस्टर क्लीन को भी इस देश की जनता समझना जानती है कि इससे बड़ा भ्रष्टाचार कोई और हो नहीं सकता। भ्रष्टाचारियों को तो बाद में भी निपटा जा सकता है, सबसे पहले देशद्र्रोहियों से सबसे पहले निपटा जरूरी है । यदि देश का स्वाभिमान ही नहीं रहेगा तो हमारे होने और न होने  का कोई अर्थ नहीं रहता। आश्चर्य है कि हर छोटी-बड़ी बात पर जनता की राय जानने का ढ़ोंग करने वाले ऐसे लोगों को साथ रखने अथवा फासला बनाने पर जनता की राय नहीं लेना चाहते। शायद उन्हें संदेह है कि जनता का फैसला ऐसे लोगों को पार्टी तो क्या देश से भी निकाल बाहर करने के पक्ष में आएगा।
जहाँ तक भ्रष्टाचार का प्रश्न है, उसे मिटाना व्यवस्था का दायित्व है। यदि आम आदमी उससे निपट सकता तो वह पनपता ही क्यों? व्यवस्था बेलगाम है इसलिए तो छोटे-छोटे कामों के लिए आम आदमी को दफ्तरों में बार-बार चक्कर लगाने से बचने के लिए ‘सुविधा शुल्क’ देना पड़ता है।  आश्चर्य है कि स्वयं को योग्य और ईमानदार बताने वाले नहीं जानते कि कोई भी व्यक्ति  शौक से रिश्वत नहीं देता। रिश्वत, रंगदारी, फिरौती चुकाना घुटने टेकना है क्योंकि वह आज की महंगाई में अपनी रोजी-रोटी की चिंता करे या दफ्तर के बाबू, लट्ठ वर्दीधारी सिपाही अथवा बड़े साहबों से भिड़ें। कभी दिल्ली की निवर्तमान मुख्यमंत्री के विरूद्ध  370 पेज का सबूत होने का दावा करने मिस्टर क्लीन के सुर कुर्सी पर बैठते ही बदल गए। अब उनका कहना है, ‘अगर किसी के पास  सबूत हैं तो उपलब्ध करवाएं, हम कार्रवाई करेंगे।’
जनाब भ्रष्टाचार समाप्त करने की जिम्मेवारी स्टिंग को सौंपकर निश्चिंत है पर ऐसी कोई व्यवस्था, कोई योजना प्रस्तुत करने की जरूरत महसूस नहीं करते जिसमें हर काम को करने का निश्चित समय तय हो। जो भी अधिकारी अथवा कर्मचारी ऐसा न करें उसके विरूद्ध कठोर कार्यवाही करने का प्रावधान हो। ऐसे अधकचरे प्लान दलालों के माध्यम से रिश्वत का रेट और बढ़ाने का कारक बन रहे हैं। जहाँ तक स्टिंग यानि खुफिया कैमरे से पोल खोलना की उपयोगिता का प्रश्न है, उसे अदालत में साबित कौन करेगा? कैमरा केस प्रोपर्टी बनकर कोर्ट में जमा हो जाएगा और भ्रष्टाचार से त्रस्त व्यक्ति अब दफ्तर के साथ-साथ अदालत के चक्कर भी लगाने को विवश होगा।  इस तरह तो भ्रष्टाचारी को फंसाने की बजाय  आम आदमी खुद के जाल में फंस जाएगा। मिस्टर क्लीन को समझना होगा कि यह सब जनता का काम नहीं सरकार की जिम्मेदारी है। लोकंतत्र प्रतिनिधि शासन व्यवस्था है। जनता  अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अपने प्रतिनिधि चुनती है तो यह उनका कर्तव्य है कि वे इसके लिए पुलिस, खुफिया तंत्र, विजिलेंस तैनात करें। अगर जनता को ही ये सब काम करने पड़ें तो फिर सरकार की आवश्यकता ही क्या है? और यदि हर व्यक्ति को दूसरों की रिकार्डिंग की लत लग गई तो अनेक अन्य समस्याएं भी उठ खड़ी होंगी। बहुत संभव है कि हर ‘आदमी’ को अपने दल में शामिल होने के लिए आमंत्रित करने वाले मिस्टर  क्लीन और उनके साथियों का स्टिंग भी बहुत जल्द सामने आ जाए।
दिल्ली की सफलता से आत्म मुग्ध इस मंडली के कुछ सदस्य जिस तरह से बेकाबू होकर ‘कुछ भी’ बोलने को मचल रहे हैं उसे ‘आप’ का ‘विश्वास’ ‘बिन्नी’ बन सामने आ रहा है। बिना जांचे परखे किसी को भी ‘आप’ के कुंड में डुबकी लगाने की अनुमति देना राजनैतिक प्रदूषण को बढ़ा रहा है। छटे और समाज से कटे लोग  अचानक टोपी लगाये ‘टिकट’ पाने के लिए ‘आप शरणम् गच्छिामि!’ स्वच्छ राजनीति की बात करना , कसमें खाना जितना आसान है, पर सत्ता को बरकरार रखने के लिए सिद्धांतों पर कायम रहना उतना सहज नहीं है। ‘हम अभी सीख रहे हैं, हमारी कमियों हमें बतायों’ कहने मात्र से कोई दोषमुक्त नहीं हो जाता। बिना सोचे समझे बड़ी-बड़ी बातें करना जनता दरबार की तरह धडाम हो रहे हैं।
कहाँ तो इनसे समर्थक न होने वाले भी खुश थे कि अब भ्रष्टाचार को जाना ही होगा लेकिन भ्रष्ट लोगों से समझौता और उसके बाद नासमझ साथियों को बेकाबू छोड़ देने से उपजी निराशा यह संकेत दे रही है कि जिस तरह से ‘आप’ से लगाई जनता उम्मीदें बिखर रही है उसी तरह सत्ता से लालच में ‘आप’ के साथ जुड़े लोग इसके बिखराव का कारण  भी बन सकते है।  कारण स्पष्ट है-  नेतृत्व का अभाव, विचारधारा न होना, केवल  भ्रष्टाचार की बातें करना लेकिन धरातल पर कुछ न होना, महंगी पड़ती सादगी की पोल खुलना,  कुछ लेने के लिए दल में शामिल हुए लोगों का अपना-अपना एजेंडा होना।  ये ऐसे मुद्दे हैं, जिनका कोई संतोषजनक जवाब मिस्टर क्लीन के पास नहीं हैं। यदि वह सचमुच कुछ कर पाते अथवा करते हुए दिखते तो हो सकता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भ्रष्टाचार से त्रस्त कुछ अन्य लोग उन्हें गले लगाते लेकिन मात्र कुछ ही दिनों में उन्होंने अपने समर्थकों को भारी निराशा से भर दिया है। यदि वह आकर्षण खोकर अप्रासंगिक हो गये तो जाहिर है वह उन तमाम उम्मीदों की भ्रूणहत्या के खलनायक के रूप में याद किये जाएगे। उन्हें इस मिथक ‘झाडू कितनी भी बढ़िया हो, तीन महीने से अधिक नहीं चलती’ को गलत साबित करने के लिए जिस तरह का आचरण करना चाहिए था वह उनके व्यवहार में दूर-दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा है।
सम्पूर्ण क्रांति की कोख से जन्मी जनता पार्टी की असफलता की कहानी अन्ना क्रांति की कोख से जन्मा यह संगठन भी दोहराने जा रहा है। कारण स्पष्ट है ‘अब तक झाडू स्वयं चाहे जिस हालत में रहें पर वातावरण को स्वच्छ बनाता रहा है’ लेकिन यह पहली बार है कि कोई झाडू स्वयं स्वच्छ रहने की कोशिश में वातावरण को और खराब कर रहा है।’  काश! मिस्टर क्लीन केवल अपनी छवि की नहीं, घोषित आदर्शों की रक्षा की चिंता करते तो देश उन्हें सिर आंखों पर बैठाता! फिलहाल तो कुछ ‘छटे’ लोग टोपी पहने को  बेताब है लेकिन ‘भले’ लोग स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। आजादी के बाद लगातार सत्ता में रहे दल के एक युवा नेता  ‘सिस्टम’ में बदलाव की बात कर रहे है लेकिन प्रश्न तो यह है कि क्या कहीं कोई सिस्टम है भीं? यदि नहीं तो आखिर खलनायक कौन-कौन हैं? क्या ये खलनायक स्वयं का अपराध स्वीकार करने को तैयार है या जनता ही उन्हें स्टिंग (डंक) मारकर सुधारेगी।

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