श्री वर्धमान स्वामिने नमः

जैन सम्प्रदाय के संत अपने कठोर त्याग, तपस्या के जाने जाते हैं। अपने बचपन में देखा केशलोचन का दृश्य मुझे भुलाये नहीं भूलता। अनेक जैन परिवारों मंे भी अनेक बार जाना-आना हुआ। अहिंसा और अपरिग्रह की नींव पर खड़ा यह मेहनती लेकिन कुशाग्रबुद्धि सम्प्रदाय आपेक्षाकृत संपन्न है। मंदिर महोत्सव में प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के अंतिम दिन श्री वर्धमान स्वामी की प्रतिमा कोे हाथी पर सवार कर वरघोड़ा (शोभायात्रा) निकाला गया। वहीं बैंड बाजे, ढोल, नाचना गाना जो हिन्दू मंदिरों में प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर होते है। कहीं कोई अंतर नहीं। अपने तुच्छ राजनैतिक लाभ के लिए कुछ भी करने वाले राजनेताओं की बुद्धि पर आश्चर्य हुआ कि जैन मत को हिन्दू दर्शन से अलग घोषित कर क्यों अल्पसंख्यक सम्प्रदाय का दर्जा दिया गया। उससे भी अधिक आश्चर्य अपने जैन बंधुओं पर हुआ जिन्होंने समाज को बांटने के इस प्रयास का खुलकर विरोध नहीं किया। स्वयं मेरे पुत्र सम मुनीष गोयल की पत्नी जैन परिवार से हैं। ऐसे एक नहीं, अनेको उदाहरण है जहां रोटी और बेटी की सांझ हैं तो फिर हम अलग कैसे हुए? देवेन्द्र जी ने त्याग मूर्ति महावीर और वि6म बजंरगी महावीर के भक्तों को निकट लाने का जो प्रयास किया है उसके लिए वे अभिनंदन के पात्र हैं। मगर इतना ही काफी नहीं है। जैन नेतृत्व को इस महत्वपूर्ण विषय पर अपनी बेबाक राय के साथ राजनेताओं की चाल को नाकाम करने के लिए सामने आना चाहिए। जय जिनेन्द्र!
--विनोद बब्बर, संपादक राष्ट्र-किंकर 09868211911
श्री वर्धमान स्वामिने नमः
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