जहरीली शराब और विकलांग व्यवस्था के शाश्वत संबंध-

प्रसिद्ध काक का कार्टून साभार 
जहरीली शराब का कहर इस बार मुंबई में बरपा जहां सौ से ज्यादा लोगों के मारे गये। अभी भी अनेक अस्पताल में है तो कुछ अपनी दृष्टि गंवा चुके हैं। इस बार भी पुलिस ने खूब छापेमारी की। अनेको को पकड़ा। भारी मात्रा में शराब बरामद की। हमेशा की तरह इस बार भी इस कांड की निंदा करते हुए दोषियों को फांसी के फंदे तक पहुंचाने का संकल्प दोहराया गया। उस समय बहुत बड़ी सफलता प्राप्त हुई जब इस कांड का ‘असली सूत्रधार’ को भी धर दबोचा गया। यह तथ्य भी सामने आया कि मरने वालो ने शराब नहीं कोई रसायन पिया था। पकड़ा गया ‘पापी’ पिछले चार साल से शराब के नाम पर पानी में केमिकल मिलाकर लोगों को पिला रहा था। इसके लिए जरूरी मेथेनॉल पड़ोसी राज्य से कभी सड़क के रास्ते, तो कभी समंदर के रास्ते पीपांे में भरकर आता था। उसके बाद एक तहखाने में पानी मिलाकर उसे शराब का रुप दिया जाता था। माल सप्लायरांे तक भी निर्वघ्न पहुंचता था। वे भी बेचने से पहले उसमें और पानी मिलाकर अपना ‘मुनाफा’ बढ़ाते थे।  जिससे 80 डिग्री का मेथेनॉल करीब 17 से 18 डिग्री हो जाता था। इसीलिए इतने साल सब कुछ ‘ठीक-ठाक’ चलता रहा। इस बार शायद ‘पानी की कमी’ के चलते अनुपात ग़ड़बड़ा गया और .......! 

                  मुंबई की यह घटना न तो पहली है और न ही आखिरी। 2004 में भी इसी मुंबई में जहरीली शराब ने 87 लोगों की जान ली थी। इस वर्ष के आरंभ में उ.प्र. में जहरीली शराब के कारण अनेक जाने गई। आबकार विभाग में फेरबदल हुआ। इसी दौरान प्रभावित क्षेत्रों से सटे गंगा नदी में एकाएक भारी मात्रा में लाशें देखी। सरकार ने कई खूबसूरत बहाने बनाये। हर बात को दरकिनार कर इन लाशों को बिना पोस्ट मार्टम के तुरंत दफना दिया गया। मामला शांत रहा। न सरकार का बाल बांका हुआ। न किसी को अफसोस। लेकिन जिस घर का सदस्य हमेशा के लिए चला गया उसके बदले हुए इतिहास भूगोल को किसी ने भी नहीं देखा। क्योंकि वे गरीब थे। गरीब मरते रहते है। देश चलता रहता है। नेताओं को और भी अनेक काम होते हैं। हाँ, जांच के आदेश देने में कभी कोई देरी नहीं की जाती। हजारों बार जांच हुई। हर बार रिपोर्ट प्रस्तुत हुई। कौन दोषी था। किसे सजा हुई इसकी परवाह किसे है। लोगों की यादाश्त कमजोर होती है। आखिर कब तक याद रखे क्योंकि दो-चार महीनों में फिर कोई न कोई मामला सामने आ जाता है। फिर जांच। फिर सख्ती। फिर धरपकड़। आखिर क्या करे सरकार। इस जानलेवा धंधे से जुड़े लंबे-चौड़े नेटवर्क की बात हर बार सामने आती है। हर बार बताया जाता है कि सस्ती और गैरकानूनी शराब कैसे और कहां से आती है। लेकिन यह कभी नहीं बताया गया कि अब तक प्रशासन क्या कर रहा था? अब सब कुछ जानने, बताने वाले अधिकारी इससे पहले किस ‘योग निद्रा’ में थे यह कभी जांच का विषय नहीं रहा। क्योंकि सभी जानते है कि इस ‘निद्रा’ का कारण आंखो पर बंधी ‘मुद्रा’ की पट्टी होती है। हर घटना के बाद शोर वाले खूब सक्रिय रहते हैं मगर शीघ््रा ही सब शांत हो जाता है। क्योंकि सभी के अपने हस्तिनापुर’ हैं। अपनी मजबूरियां हैं। जरूरते हैं। फिर प्रशासन और माफिया के ‘लंबे हाथों’ के बारे में  कौन नहीं जानता। उ.प्र. के पत्रकार का ताजा हस्र सामने है। इससे पहले भी अनेक स्थानों पर व्यवस्था की खामियों को सामने लाने की कोशिश कर रहे अनेक आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्याएं हो चुकी है। कटु सत्य तो यह है कि देश और समाज पर मर मिटने वाली मानवीय प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर है।

शराब के कई आकार प्रकार होते हैं। यह तो सभी जानते हैं पर शराब वैध और अवैध भी होती है। जिस शराब के पीने से शराब को आय हो वह वैध। जो बिना ‘सैटिंग’’ के बिके वह अवैध। जो हजम हो शराब और जो खबर बन जाए वह ‘खराब’। किसी भी सरकार को शराब से बहुत बड़ी रकम राजस्व के रूप में मिलती है। इसलिए बहुत तेजी से शराब के ठेको की संख्या बढ़ रही है। देश की राजधानी दिल्ली में आपको जनसुविधाएं मिले या न मिले पर कुछ दूरी पर शराब का ठेका जरूर दिखाई देगा। एक नहीं अनेक विभागों के ठेके मौजूद हैं। हर ठेके के बाहर लगी लंबी लाइन को आर्थिक खुशहाली का प्रतीक माना जाए या बर्बादी का इसपर चिंतन करने की जरूरत हमारे कर्णधारों और समाज के ठेकेदारों ने कभी नहीं समझी। पर हर दुर्घटना के बाद ये सवाल जरूर उभरते हैं कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले गरीब की शराब ही जहरीली क्यों? महंगी विदेशी शराब पीने वालो के साथ ऐसा एक भी हादसा क्यों नहीं? यह  प्रशासन की लापरवाही और माफिया से मिली भगत है। गरीबों को उसके घर के पास सस्ती और सुरक्षित शराब उपलब्ध क्यों नहीं कराई जाती। परंतु कोई इस बात का जवाब नहीं देना चाहता कि शराब का कारण गरीबी है या गरीबी का कारण शराब है? गरीबी और शराब की घनिष्ठता में दरार डालने के लिए बनाई गई योजनाओं की असफलता पर मौन क्यों? उनके जीवन स्तर को ऊँचा उठाने और उनके बच्चों को हर तरह की आधुनिक सुविधाओं वाली शिक्षा और प्रशिक्षण देने कब प्राथमिकता बनेगा?  शिक्षा पाठ्यक्रम में नैतिक मूल्यों की भूमिका क्यों नहीं? शराब के दुष्प्रभावों पर चर्चा और टीवी सीरियल क्यों नहीं? दूरदर्शनी संतों की भूमिका केवल प्रवचनों तक ही क्यों? हर गरीब बस्ती के पास नशामुक्ति केन्द्र और स्वास्थ्य सुविधाएं की रस्म अदायगी नहीं, गंभीर प्रयास करने कब होगी।

एक विद्वान के अनुसार, ‘शैतान समाज की शांति भंग करता है। विकास में बाधा उत्पन्न करता है। बहन बेटियों की इज्जत से खिलवाड़ करता है। दुनिया के हर बुरे काम का कर्ता और कारण शैतान ही है। लेकिन जहां वह स्वयं नहीं पहुंच पाता वहां शराब उसके प्रतिनिधि के रूप में मौजूद है।’ यह सत्य है कि  सरकार को राजस्व चाहिए और राजनीति के लिए शराब और शराबी भी चाहिए। शराबबंदी करने वालो के राजनैतिक भविष्य पर ताला लगा देख कौन ऐसा करने का दुस्साहस करेगा। वैसे भी शराबबंदी कहां सफल है? सड़क पर झूमते लोग हर जगह है। हर जगह शराब पीकर वाहन चलाने वाले मिलेंगे। कुछ ले-दे कर आगे बढ़ने का प्रचलन हर जगह है। ज्यादा हुआ तो चालान होगा। एक वर्ग ऐसा है जिसे जुर्माने की परवाह नहीं। ऐसे लोगों को सही राह पर लाने के लिए कानून को भी अपना तरीका बदलना पड़ेगा। समाज को जागृत होना पड़ेगा।  जुर्माना बेअसर है तो इन्हें जुर्माने की बजाय कुछ दिन कुछ खास तरह के कपड़े पहने अनिवार्य रूप से सफाई अभियान में शामिल किया जाए। सामुदायिक सेवाआंे के सुधार में इनकी भूमिका सुनिश्चित हो। ऐसे मामलों में भ्रष्टाचार के प्रति सहनीयता शून्य होनी चाहिए। यह समझना बहुत जरूरी है कि भ्रष्टाचार केवल आर्थिक विसंगति का नाम नहीं है। हमारे आचरण के भ्रष्ट होने से बड़ा भ्रष्टाचार कोई दूसरा नहीं है क्योंकि यही हर पाप और अपराध का जनक है। अकारण प्याली में तूफान उठाने वाले टीवी चैनल अथवा चोगा देखकर समाज सेवा का रंग बिखेरने वाले एनजीओ जानते हैं कि शराब पीकर कितनी सड़क दुर्घटनाएं हुई। मारे गए शराबियों के परिवार की दशा क्या है? क्या कभी टूटी चूड़ियो, मिटे सिन्दूर, उनके अभावों और अनवरत यंत्रणा पर उन्होंने नजरे इनायत की? लीवर और फेफड़े के रोगियों में कितने शराबी है? ‘अच्छी’ और ‘सुरक्षित‘ शराब मिलना कुछ लोगों का अधिकार है तो शेष समाज को ‘अच्छे’ समाचार पाने का अधिकार आखिर क्यों नहीं हैं? समाज की किसी भी घटना- दुर्घटना का प्रभाव पूरे सामाजिक वातावरण पर पड़ना निश्चित है तो ऐसे विषाक्त वातावरण में कोई स्वयं को सुरक्षित करे भी तो आखिर कैसे? -- विनोद बब्बर 9868211911 

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