सत्ता के दलाल और भारतीय राजनीति

स्वयं को पाक-साफ साबित करने के लिए कालिख का अंधड़ चलवा सकने वाले सत्ता के इन दलालों से सावधान रहने की बात कभी मिस्टर क्लीन यानि राजीव गांधी ने भी की थी लेकिन इतिहास साक्षी है कि वे खुद भी सावधान नहीं रह सके और.....। ताजा उदाहरण सिद्ध करता है कि सत्ता के इन दलालों को 56 इंच के सीने से टकराते हुए भी कोई खौफ नहीं। नित्य-प्रति नये रहस्योदघाटन कर सभी को अपना मित्र और सहयोगी बताने वाला यह शख्स आखिर सत्ता का दलाल नहीं और क्या है? हाँ, यह बात अलग है कि इसके कार्यक्षेत्र और प्रभाव को देखते हुए इसे साधारण नहीं बल्कि यूनिवर्सल दलाल माना जाना चाहिए।
आईपीएल क्रिकेट के गोरखधंधे के सिरमौर ललित मोदी पर फेमा से जुड़े अनेक गंभीर आरोप हैं। बहुत संभव है कि उसने अपने अपराधों के लिए कथित तौर पर नेताओं का इस्तेमाल भी किया हो। आरोप सामने आने पर देश से फरार होने में भी उसकी मदद की गई होगी। अब यह मदद ‘किसने की और कब की’ यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि उसने स्वयं को सबका करीबी सिद्ध करने में कोई कसर बाकि नहीं रखी। देश का भगोड़ा, अभियुक्त जिस चतुराई से शीर्ष नेताओं को कोसने के बाद राष्ट्रपति की सचिव से यूपीए सरकार के मंत्रियों और गांधी परिवार की चौखट तक जा पहुंचा है उससे स्पष्ट है कि वह विवाद की डोर अपने हाथ में रखते हुए राजनैतिक अस्थिरता बनाये रखना चाहता है। उसका यह कदम देश के हित में हो, न हो लेकिन देश के दुश्मनों को अवश्य राहत प्रदान करेगा इसलिए बिना देरी किये उसका भारतीय पासपोर्ट रद्द करने सहित हरसंभव प्रयास कर उसे भारत लाना चाहिए। यह सही कि एक अवसर पर मानवीय आधार पर उसकी मदद की गई लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि उसे अभयदान मिल गया। वह विदेशी धरती पर बैठ अपनी जन्मभूमि को अपमानित करता रहे और हम टुकर-टुकर देखते रहे।
अब यह कोई रहस्य नहीं रहा कि राजनीति में सभी का सहयोग, सभी से दुआ सलाम चलती है लेकिन ललित मोदी के बहाने जिस तरह से भानुमति का पिटारा खुलकर सामने आ रहा है उससे ‘सांपनाथ, नागनाथ और भुजंगनाथ’ की अवधारणा सत्य सिद्ध हो रही है। जिस प्रकार भाजपा का यह कहना कि ‘यह ड्राफ्ट स्टेटमेंट था और इसे जमा करने के लिए वसुंधरा स्वयं किसी अदालत में कभी उपस्थित नहीं हुई। या यह कहना कि हलफनामे के अंतिम पन्ने पर उनके हस्ताक्षर हैं लेकिन शेष पन्नों पर नहीं हैं’ और ठीक उसी प्रकार कांग्रेस का तर्क कि, ‘प्रियंका, राबर्ट का ललित से मिलना अपराध नहीं है’ हास्यास्पद ही कहा जाएगा। मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया द्वारा लंदन में ललित से मिलने पर दिया गया स्पष्टीकरण भी आसानी से गले नहीं उतरता। इस सारे खेल को केवल सुषमा, वसुंधरा, प्रियंका, सिब्बल आदि के दोषी अथवा निर्दोष होने से जोड़ना गलत होगा। इसके तह तक जाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री जी को सामने आकर राष्ट्र को न केवल यह विश्वास दिलाना चाहिए कि ललित सहित सत्ता के किसी भी दलाल को हावी नहीं होने दिया जाएगा, बल्कि उसे कानून की गिरफ्त में लाने में कोई कसर बाकी नहीं रखनी चाहिए। यदि कोई मंत्री दोषी है तो बिना विलम्ब किए सर्वदलीय जांच की घोषणा करनी चाहिए। इसी प्रकार यदि दुष्यंत और ललित के व्यवसायिक रिश्तों में कुछ अनियमितता हो तो उसे सामने लाया जाना चाहिए। लेकिन पिछली सरकार के कार्यकाल में हुई गड़बड़ियों की जांच को प्रभावित करने अथवा वर्तमान प्रशासन को पंगु बनाने के प्रयासों को सफल नहीं होने देना चाहिए। नई सरकार ने अपने गठन के फौरन बाद जिस प्रकार फुर्ती और सजगता दिखाई उससे देश में परिवर्तन की आशाओं का उफान उठ रहा है। इन प्रयासों को क्रिकेट को खेल की बजाय व्यवसाय, फिक्सिंग, जुआ, सट्टा बनाने वाले सत्ता के दलालों ने उसे जबरदस्त ठेस पहुंचाई है। यदि इस मामले को हल्के लिया गया तो देश की बहुसंख्यक जनता के सामने अगली बार फैसला लेते हुए धर्म संकट होगा कि वह किस पर विश्वास करें क्योंकि उसके सामने कोई आदर्श नहीं, केवल आदर्शों के मुखोटे ही होंगे।
इस मामले में जिस तरह से भाजपा बंटी हुई दिखाई दे रही है उसने पार्टी की छवि को प्रभावित किया है। पहली बार किसी गैरकांग्रेसी दल को पूर्ण बहुमत प्रदान करने वाले देश के उन करोड़ों लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए पार्टी को सामूहिक नेतृत्व और निर्णय में अनुभव की भागीदारी के महत्व पर विचार करना चाहिए। अपराधी बचना नहीं चाहिए परंतु योग्य का निरादर भी नहीं होना चाहिए। कोई भी दल अथवा समाज किसी एक व्यक्ति अथवा खानदान की जागीर नहीं हो सकता। बेशक लोकराज लोकलाज से चलता है परंतु नेतृत्व के लिए समता, विकास, न्याय और संविधान की कसौटी पर खरा उतरा जरूरी होता है। ललित कांड की अग्निपरीक्षा से भारतीय राजनीति अपने उस ‘लालित्य’ को प्राप्त करेगी जिसकी प्रतीक्षा इस देश के कोटि-कोटि जन को है। लेकिन यह तभी संभव है जब ललित मोदी का असंभव लगने वाला वह ट्विटर हमारे सामने हो जिसमे वह स्वयं किसी भी जांच का सामना करने भारत आने की घोषणा करे। और अगर यह नहीं होता तो पर्यात्यारोपण अथवा इन्टरपोल के माध्यम से सत्ता के दलाल की गिरफ्तारी और परिवर्तन के शंखनाद का समाचार शीघ््रा से शीघ््रा आना ही चाहिए। बस तभी होगा राजनीति का शुद्धिकरण। - विनोद बब्बर 09868211911
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Reviewed by rashtra kinkar
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