इंसानियत भी तो सिखाओं मेरे दोस्त

मेरा बेटा बड़ा होकर डॉक्टर बनेगा, इंजीनियर बनेगा। चार्टेड एकाडंटेंट बनेगा। ये या वो बनेगा। अक्सर यह विचार हमारे-आपके संबके मन में कौंधता रहता है। यहां तक किसी भी बच्चे का जन्म होने से भी पहले हम उसके लिए सपने संजोने लगते हैं। उसे किसी भी तरह सफल व्यक्तित्व बनाने के सपने देखने का मतलब है उसे धन, वैभव, समृद्धि संपन्न बनाना। एक तरह से हम उसे नोट छापने की ऐसी मशीन बनाने के अरमान पालने लगते है कि जिससे उसे सुख के किसी साधन की कमी न रहे। पर हम एक पल के लिए भी यह नहीं सोचते कि वह धनवान बने या न बने पर बड़ा होकर इंसान जरूर बने। क्या हमारे मन में कभी आशंका भी आई है कि वह धनवान बनकर भी अगर इंसान की बजाय शैतान बन गया तो? कहीं हैवान न बन जाए। आप कह सकते हैं कि मैं इंसान हूं और मेरा बच्चा इंसान का बच्चा है। वह हैवान कैसे बनेगा? परंतु बिना उत्तेजित हुए ठंडे दिमाग से सोचिए कि जिसका दिल किसी दुखिया को देखकर पसीजता न हो तो उसे इंसान कहे भी तो कैसे? जो पर नारी को देखकर स्वयं पर नियंत्रण नहीं कर पाता और बेकाबू हो जाता हो उस हवस के पुजारी को इंसान कहे या शैतान? 
चाहे कितना भी बुरा लगे लेकिन सत्य तो यही है कि आज जो हैवानियत या शैतानियत को सीमाओं को लांघते हुए दिखाई दे रहे हैं वे किसी दूसरे ग्रह से तो आये नहीं है। हैं तो हमारे आपके ही लाल। उन्हें ये कुसंस्कार कहां से मिले? इसके जवाब में आप कह सकते हैं कि कौन माता-पिता अपने बच्चे को ऐसे गंदे काम सिखाता है। आपकी बात सौ फीसदी सत्य है कि आपने अपने लाड़ले को यह नहीं सिखाया लेकिन अपने दिल पर हाथ रख कर कहो कि आपने उसे हर नारी को माँ या बहन समझने की सीख दी? उसे गणित, विज्ञान, विदेशी भाषा, मैनेजमेंट, वकालत तो सिखायी लेकिन उसे इंसानियत सिखायी क्या? क्या आपने उसे समझाया कि दीन दुखी की मदद करनी चाहिए। नहीं, आपने तो उसे सिखाया, ‘अपने काम से काम रखों। दूसरों के चक्कर में अपना समय बर्बाद मत करों।’  
क्या आपने कभी उसे कहा कि अगर कोई भूखा मिले तो उसे अपने हिस्से का आधा भोजन जरूर दो? किसी बूढ़े या विकलांग को हाथ पकड़कर सड़क करवाना तुम्हारा फर्ज है? याद करो आपने किस दिन उसे बताया था कि जीवों पर दया करों। मगर नाराज न हो। आपके पास समय ही कहां  था। आप तो स्वयं ही उसके लिए संसाधन जुटाने में उलझे थे। आपके पास तो स्वयं अपने लिए भी समय नहीं था। जैसे तैसे खाना खाया और फिर लग गए- तीन के तेरह करने में। बहुत मजबूरी है क्योंकि तमाम प्रयासों के बावजूद आप अभी भी बहुतों से पिछड़े हुए हैं। आपके पास ‘ये और वो’ नहीं है। यह सब न हुआ तो समाज में नाक कट जाएगी। आप दिनरात लगे रहे तिकड़म भिड़ाने में कैसे जुटाऊ? रखो अपने दिल पर हाथ और कहो कि उसे इन्सानियत का पाठ भी पढ़ाया है। उसे यह समझाने की कोशिश की है कि हैवानियत या शैतानियत मत न करना वरना मेरा सिर शर्म से झुक जाएगा। 
माफ़ करना संभावना कम ही है क्योंकि आप तो उसे समझाते रहे- ‘सौ में से एक सौ एक अंक लाना वरना मेरी नाक कट जाएगी। वरना तुम्हें अच्छे कोर्स में एडमिशन नहीं मिलेगा। वरना अच्छा जॉब नहीं मिलेगा। वरना बटुआ भरा नहीं रहेगा फिर कैसे घुमोगे विदेश।’ ठीक भी है, इन चीजों के बिना भी तो जिंदगी सहज नहीं रह सकती। मगर यह भी तो उतना ही सत्य है कि प्रेम, सद्भावना, इन्सानियत के बिना तो एक क्षण भी जीना कठिन है। रिश्तो की महत्व उसे नहीं सिखाया गया तो भगवान न करे कल आपका बुढ़ापा......! दिल-दिमाग से इंसानियत कायम रहेे इसका उपाय यदि बचपन से किया जाए तो शायद कुछ हल निकल सकता हैं। अब यह न कहे-- बाप रे! आजकल के बच्चे.......! बचपन तो क्या माँ के गर्भ में भी सीखा जा सकता है। अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदने का ज्ञान गर्भ से ही प्राप्त किया था। 
-- विनोद बब्बर संपर्क-09868211911
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